Added by deepti sharma on October 4, 2012 at 9:37pm — 4 Comments
आज मैं शहर छोड़ आया उसका,
वो शहर जो हर पल मुझे,
बस याद उसकी दिलाता था,
वो शहर की जिसमें महकती थी,
बस उसी की खुशबू,
वो शहर जहां हर ओर उसके ही नगमे गूँजा करते थे,
वो वही शहर था जहां रहते थे,
बस चाहने वाले उसके,
आज भी बस शहर ही छूटा है उसका,
पर यादें अभी भी बाकी हैं किसी कोने में,
अपने इस नए शहर में भी बस,
उसकी ही परछाइयों कोई खोजता फिरता हूँ मैं,
बेशक शहर छोड़ दिया उसका मैंने,
पर इस नए शहर में भी मैं उसको ही खोजता हूँ,
बस शहर ही…
ContinueAdded by पियूष कुमार पंत on October 4, 2012 at 9:10pm — 4 Comments
पाप का ना भागी बन,मौन रहा क्यों साध,
मौन साध हामी भरे, वह भी है अपराध |
अपराध अगर यूँ करे, कौन करेगा माफ़,
वक्त लिखेगा एक दिन, दोषी तुझको साफ |
जान बूझ गलती करे, उसको दोषी मान
दोषी वह उतना नहीं,जिसे नहीं था भान |
मानव में न भेद करे, प्रभु सभी के साथ,
प्रभु सभी के साथ है,पकड़ कर्म का हाथ |
कर्म का फल देना ही, प्रभु के लेख माय,
प्रभु करेगा भला ही, गुरु भी यही बताय |
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 4, 2012 at 8:00pm — 12 Comments
तेरे भी ख्वाबों में कोई
अलबेली आई तो होगी
कनक कलश भर सुधा लुटाते
क्षितिज नए लाई तो होगी
उसकी कोरी एक छुअन से
पोर-पोर जागी तो होगी
पलक बंद कर तुमने भी तो
Added by राजेश 'मृदु' on October 4, 2012 at 7:31pm — 4 Comments
ये परेशानियाँ तो आनी-जानी है
मधुमेह तो कभी दिल की बीमारी है
गम है तो खुशी की वजहें भी हैं
रोते गुज़रे तो क्या जिंदगानी है
दिल के ज़ख़्मों से यूँ न घबराओ
बीते वक़्त की ये हसीं निशानी है
वक़्त बे वक़्त कुछ नहीं होता
जो मिला सब खुदा की मेहरबानी है
हर काम कल पर न छोड़ा करो
बर्बादिये वक़्त भी एक बीमारी है
गम की वजहें समझ नहीं आती
यही तो हमारी तुम्हारी कहानी है
Added by नादिर ख़ान on October 4, 2012 at 6:32pm — 4 Comments
आज फिर बदली सी हवा है,
उदास मन फिर आज अकेला है.
Added by RAJESH BHARDWAJ on October 4, 2012 at 6:00pm — 3 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 4, 2012 at 2:30pm — 4 Comments
गगनचुम्बी अट्टालिकाओं के
कटिंगदार झरोखों से लटक कर
धुंआयुक्त वातावरण में बीमार, खाँसते
अपने चेहरे की धूल को
कृत्रिम फुहारों से धोने की कोशिश में
बड़े दयनीय लगते हैं
छोटे से पात्र में कैद जड़ों के सहारे…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 4, 2012 at 10:57am — 6 Comments
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना
बड़ा याद आता है
कॉलेज का जमाना .........
सब दोस्तों का इंतजार करना
थोडा लेट होने पर भी
कितना झगड़ना
सुबह- सुबह पहली क्लास में
सबसे आगे पहली बेंच पर बैठना
कितना याद आता है
लास्ट लेक्चर में थ्योरी सुनते- सुनते
चुपके से सो जाना .........
वो कॉलेज की दुनिया
दोस्तों का फ़साना ..............
वो मोटी-मोटी सी किताबे
अकाउन्ट्स की भाषा
आँखों में पलते बड़े बड़े सपने
मगर फिर…
Added by Sonam Saini on October 4, 2012 at 10:44am — 10 Comments
ये जीवन मानों -
मुट्ठी भर रेत
झरती हैं खुशियाँ
झरते हैं सपने
इक पल
हँसना तो
दूजे पल
क्लेश
ये....................
रेतघड़ी समय की
चलती ही रहती
लम्हों की पूंजी
हाथ से फिसलती
बस स्मृतियों के
रह जाते अवशेष
ये....................
किसी से हो मिलना
किसी से बिछड़ना
जग के मेले में
बंजारे सा फिरना
दुनिया आनी जानी -
सत्य यह अशेष
ये .......................
Added by Vinita Shukla on October 4, 2012 at 10:31am — 8 Comments
हाल कैसा भी हो, पर जहाँ को,
हाल अच्छा बताना पड़ेगा |
अश्क पलकों पे ठहरे जो आकर,
हैं ख़ुशी के, बताना पड़ेगा ||
दिल है तोडा किसी बेवफा ने,
यह न कहना, ज़माना हसेगा |
है यही वक़्त का अब तकाज़ा,
दर्द, दिल में छुपाना पड़ेगा ||
साथ जी लेंगे, पर न मरेंगे,
बात सच्ची है, मत भूल जाना |
झूठ को झूठ कहना पड़ेगा,
सच को सच ही बताना पड़ेगा ||
फिर मिलेंगे ये वादा न करना,
ज़िन्दगी का भरोसा नहीं है |
वरना दोज़ख नुमाँ इस ज़मीं पर,…
Added by Shashi Mehra on October 4, 2012 at 8:30am — 2 Comments
हम स्वछंद हैं कवि .....
हमको नहीं छंद अलंकार का है ज्ञान ,
हम स्वछंद हैं कवि बस भाव हैं प्रधान .
आचार्य गिन मात्रा कहते लिखो निर्धन ,
लिखा अगर गरीब तो क्या हो जायेगा श्रीमान !
हालात जो देखे सीधे सीधे लिख दिए ,
पढ़कर ''वे'' बोले व्याकरण का कुछ तो रखते ध्यान .
कहते अलंकार से कविता का कर श्रृंगार ,
हम 'रबड़ के छल्ले ' देते न उनको कान .
है नहीं कविता में अपनी प्रतीक ,बिम्ब,गुण ,
जूनून है बस…
Added by shikha kaushik on October 4, 2012 at 2:30am — 6 Comments
1....
शीतल मीठे नर्म से ,शब्दों को दो पाँव
सद्भावों की ईंट से ,रचो प्रीत के गाँव
रचो प्रीत के गाँव, फसल खुशियों की बोना
नेह सुधा से सिक्त, रहे हर मन का कोना
कंचन शुचिता धार ,अहम् का तज कर पीतल
हरो ताप-संताप ,सलिल बन निर्मल शीतल ..
2.........…
ContinueAdded by seema agrawal on October 4, 2012 at 2:30am — 4 Comments
आज डूबते हुए सूरज को एक बार फिर देखा,
लालिमा से भरा सूरज अलविदा कहता हुआ,
अब सूरज छुप जाएगा बस कुछ ही पलों में,
और आकाश में दिखने लगेगा चाँद वो सुंदर सा,
कभी कभी ये भ्रम भी होने लगता है,
की क्या चाँद और सूरज अलग अलग हैं,
या सूरज ही रूप रंग बदल लौट आता है,
और दो किरदार निभाता है अलग अलग तरह के,
जैसे फिल्मों में एक ही आदमी दो हो जाता है एक होते हुए भी,
आखिर क्यों नहीं ये दोनों एक साथ दिखते हैं,
ये सोचते सोचते ही नज़र खोजने लगी आकाश…
Added by पियूष कुमार पंत on October 3, 2012 at 9:30pm — 2 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 3, 2012 at 5:57pm — 6 Comments
वो मेरे सामने न आया है
जिसे भी आइना दिखाया है
मुसलसल चोट हर घडी खा के
सनम में ये निखार आया है
जिगर क्या तार तार करने को
ये किस्सा दर्द का सुनाया है
फरेबी बे-अदब चरागों ने…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 3, 2012 at 4:00pm — 1 Comment
अपनी प्रिया को छोड़ के प्रीतम अगर गया |
नन्हा सा कैमरा कहीं चुपके से धर गया ||
आया हमारे मुल्क में व्यापार के लिए
सोने की चिड़िया लेके जाने किधर गया ||
रुपये की खनक गूंजती बाज़ार में अभी
डालर के सामने मगर चेहरा उतर गया ||
बनकर मसीहा गाँव में घूमे जो माफिया ,
दस्खत कराना आज उसका सबको अखर गया ।।
कोयले से आजकल हम दांतों को रगड़ते-
तपकर दुखों की आंच में कुछ तो निखर गया ।।
Added by रविकर on October 3, 2012 at 2:00pm — 2 Comments
"अच्छा लगता है" के तारतम्य में कुछ मुक्तक पेश हैं दोस्तों
कुछ लोगों को गंजे पर मुस्काना अच्छा लगता है
झड़ते अपने बालों को सहलाना अच्छा लगता है
इक दिन वो भी ऐसे ही हो जायेंगे हँसने लायक
लेकिन हँसते हँसते मन बहलाना अच्छा लगता है
टपरे पे जा सौ का नोट…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 3, 2012 at 11:23am — 4 Comments
मुद्दत हुई कि रात गुज़ारी है घर नहीं
बच्चे सयाने हो गए मुझको खबर नहीं
वो प्यार क्या कि रूठना हँसना नहीं जहां
ऐसा भी क्या विसाल कि ज़ेरोज़बर नहीं
दरिया में डूबने गए दरिया सिमट गया
तेरे सताए फर्द की कोई गुज़र नहीं
उनके लिए दुआ करो उनका फरोग हो
जिनपे तुम्हारी बात का होता असर नहीं
रहता हूँ मैं ज़मीन पे ऊँची है पर निगाह
रस्ते के खारोसंग पे मेरी नज़र नहीं
सबको खुदाका है दिया कोई न…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 3, 2012 at 9:59am — 3 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on October 3, 2012 at 9:30am — 16 Comments
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