"क्या मम्मी आप भी जरा-जरा सी बातों पर तुनक पड़ती हो,पूरा आसमान सिर पर उठा लेती हो.पापा के दोस्तों के बीच में ही तो थीं आप वे लोग कोई जानवर तो नहीं,हँसी-मजाक ही तो किया चीर हरण तो नहीं.."सुनकर खून उतर आया था उसकी आँखों में,अपनी ही लाठी,अपने पर वार,तिलमिलाते हुए पलकें बंद कर ली तो दर्द आंसू बन बह निकला.वह सोचने लगी,
'उम्र की पहली फसल बाबा की अँगुलियों में अटक गई,सतरंगी सपने उड़े भी न थे कि उम्र की दूसरी फसल बिन हवा-पानी घूँघट में उजड़ गई और तीसरी को तो…
ContinueAdded by asha jugran on October 31, 2015 at 11:30pm — 17 Comments
साफ़ नीला आसमान
सफेद रूई सा हल्का
बिलकुल हल्का ,
हल्का वाला सफेद बादल
कभी बहुत भारी सा हो जाता है
वक्त रेशम सी ,
रेशम सी मुलायम वक्त
फिसलती हुई ,सरकती हुई
रेशमी सा एहसास देती हुई गुजर जाती है
वक्त के वजूद में
जाने क्यों पहिए होते है
जो दिखाई नहीं देते पर ब्रेक नहीं होते है
शायद ब्रेक भी रहें हो कभी लेकिन
आजकल वक्त नहीं रूकता
यहाँ बाजार में बहुत भीड़ है
यह भीड़ कभी खत्म नहीं…
ContinueAdded by kanta roy on October 31, 2015 at 10:09am — 6 Comments
जब थी उठी बरसात से,
पहले पहल भीनी महक,
था मन तरंगित हो उठा,
सुन पक्षियों की चह चहक,
गुमशुदा, अब बाग से,
क्यों कली कोमल हो गयी।
बीते पलों को याद कर,
आँख, बोझल हो गयी।
पत्थरों की शगल में,
सड़क सौतन क्या…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on October 30, 2015 at 7:04pm — 3 Comments
२२१ १२२२ २२१ १२२२
कितने ही यहाँ जिनके घर अपने नहीं होते
क्या होता खुदा जग में गर अपने नहीं होते
हर जुल्म सहा उसने लेकिन न कहा कुछ भी
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते
था जंगली वो हाथी देता ही कुचल हमको
गर पास धनुष अपना शर अपने नहीं होते
बिगड़े न अगर होते बेटे तो यकीनन ही
रातों में भटकते क्यूँ घर अपने नहीं होते
चोरी से कहाँ बचते चोरों से बचाते क्या
मजबूत घरों के गर दर अपने नहीं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on October 30, 2015 at 4:36pm — 7 Comments
ओढ़नी ओढ़ कर मैं पिया प्रेम की
प्रार्थना कर रही, चाँद वरदान दे
मन महकता रहे प्रीत की गंध से
दो हृदय एक हों प्रेम के बंध से
प्रीत अक्षय सदा भाग्य अनुपम मिले
जिस्म दो हैं मगर एक ही जान दे...
ओढ़नी ओढ़ कर...
मैं पिया के हृदय में सदा ही रहूँ
वो ही सागर मेरे, मैं नदी सी बहूँ
चाँद, हर इक नज़र से बचाना उन्हें
दीर्घ आयु सदा मान-सम्मान दे
ओढ़नी ओढ़ कर...
मेंहदी हाथ में रच महकती रहे
और लाली…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 30, 2015 at 2:30pm — 18 Comments
रात के तीसरे पहर में
खिड़की पर यादें लिए बैठा हूँ
बारिश की बुँदे
तेरी आँसुओ से लगते है
दिल में कई अरमान से जगते है
गलियों में भागते हुए
एक झलक देखी है ख्वाबों की
कई रतजगा किये, कई दिन बीते खाली सा
कड़ी धूप में नंगे पैर जलाये है
मेरे संग आज भी तेरे साये है
एक रंग चुना है आँखों ने
एक गंध बसी है साँसों में
अज़ब सा नशा है
नज़रे भागती है हरदम
ज़ुल्फों पर चमकती है शबनम
पानी की टंकी पर बैठ…
Added by राकेश on October 30, 2015 at 2:00pm — No Comments
हृदय को विक्षिप्त करते,
शूल हैं, दंश हैं कुछ,
घावों को कुरेदते,
बीते पलों के अंश हैं कुछ।
अतीत की स्मृति भला,
मस्तिष्क से हो दूर कैसे,
कसक भी है, ठेस भी,
चुभन है भरपूर ऐसे,
वेदनाएं मिट रही हैं शनैः शनैः,
अभी भी पल…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on October 30, 2015 at 8:09am — No Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 29, 2015 at 11:40pm — 8 Comments
यूँ भी तक़दीर बदलते हैं यहाँ
लोग गिर गिर के संभलते है यहाँ।
दोस्तों ! इक ज़रा मतलब के लिए
लोग चेहरों को बदलते है यहाँ।
माईले हिर्सो हवस है कितने
देख कर ज़र को फिसलते है यहाँ।
आँख की पुतली फिरे फिर शायद
लोग पल भर में बदलते है यहाँ।
ग़ैर की बात नहीं ऐ लोगों
ज़हर अपने भी उगलते है यहाँ।
क्या बिगाड़ेगी हवाये उनका
वो जो तूफान में पलते है यहाँ।
रोशनी बस वही फैलाते है
जो दीये की तरह जलते है यहाँ।…
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on October 29, 2015 at 11:30pm — 5 Comments
"अंकल जी, बर्थडे का सामान दे दो , ये छोटा वाला केक कितने में मिलेगा ?" - सोनू ने बेकरी वाले से पूछा।
"डेढ़ सौ रुपये का"
जवाब सुनकर सोनू आँखें फाड़े साथियों की तरफ देखने लगा । सभी ने अपनी जेबों से पैसे निकाले। कुछ सिक्के, कुछ पुराने फटे से नोट, कुल जमा पैंतीस रुपये थे। छोटे भाई का बर्थडे तो मनाना ही है।
"लो अंकल जी, पैंतीस रुपये में छोटा सा कोई केक और बाक़ी सामान पैक कर दो !" - सोनू ने निराश हो कर कहा। बेकरी वाले को हँसी आ गई । फटे पुराने से कपड़े पहने हुए बच्चों को देखकर…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2015 at 11:00pm — 9 Comments
Added by Dr T R Sukul on October 29, 2015 at 10:03pm — No Comments
पूरे दिन घर में आवागमन लगा था | दरवाज़ा खोलते बंद करते श्यामू परेशान हो गया था | घर की गहमागहमी से वह इतना तो समझ चूका था कि बहूरानी का उपवास हैं | सारे घर के लोग उनकी तीमारदारी में लगें थें | माँजी सरगी की तैयारी के लिय उसे बार-बार आवाज दे रही थी | सारी सामग्री उन्हें देने के बाद वह खाना खिलाने लगा घर के सभी सदस्यों को | फिर फुर्सत हो माँजी से कह अपने घर की ओर चल पड़ा |
बाजार की रौनक देख अपनी…
Added by savitamishra on October 29, 2015 at 8:30pm — 5 Comments
जाने ये कैसा, असर जिन्दगी का,
फूलों की चाहत है होती सभी को,
काँटों भरा है, सफर जिन्दगी का।
मेहनत मशक्कत सब करते हैं फिर भी,
रस्ता न आता, नज़र जिन्दगी का।
बदलती फिजायें , बदलता जमाना,
अंधेरा है देखो जिधर, जिन्दगी का।
मन की मुरादें जब पूरी न होतीं,
तो सपना है जाता, बिखर जिन्दगी का।
गरीबों को मिलती न रोटी कहीं भी,
ये करते हैं कैसे, बसर जिन्दगी का।
भटकता हर इंसा कुछ पाने की जिद…
Added by Ajay Kumar Sharma on October 29, 2015 at 7:25pm — 1 Comment
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on October 29, 2015 at 7:00pm — 2 Comments
2122---2122---2122---212 |
|
दौर बदला है, बदल जा, ऐ सुखनवर साथ चल |
सोचता है जिस जबां में, उस जबां में लिख ग़ज़ल |
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जिंदगी बदलाव है...... गर थम गए… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 2:44pm — 36 Comments
काश कि सरकार,
अपने चक्षुओं से देख पाती,
यदि वोट की खातिर वो,
दोनों हाथ से धन न लुटाती।
तो देश की सारी व्यवस्था,
इस तरह न चरमराती।
काश कि सरकार,
अपने चक्षुओं से देख पाती।
छोड़ निंदा रस कहीं,
गर…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on October 29, 2015 at 1:42pm — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2015 at 11:31am — 7 Comments
उत्सव –( लघुकथा ) -
"नाना जी, इस बार दीवाली पर पूरे मकान को बिजली की लडियों से ढक दैंगे, सारा घर जगमग करेगा"!
"नहीं छुट्टू, इस बार दीवाली पर यह सम्भव नहीं होगा"!
"किसलिये नाना जी"!
"छुट्टू, तेरी नानी,तेरे पापा और तेरी मॉ की बरसी होना बाकी है,उसके बाद ही हम कोई उत्सव मना सकते हैं"!
"यह तो और भी अच्छा है, एक साथ ही दौनों काम कर लेते हैं, दीवाली पर ही बरसी मना लेते हैं"!
"छुट्टू, बरसी एक साल पूर्ण होने पर पंडित जी द्वारा दी गयी तिथि पर ही होती…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 29, 2015 at 11:23am — 8 Comments
तुम सोचते हो जो नहीं हूँ मैं
जो कुछ भी मैं हूँ वो यही हूँ मैं।
दुश्वारियाँ करती नहीं व्याकुल
आता है जीना जिंदगी हूँ मैं।
जो सोचना है सोचिए साहब
मैं जानता हूँ कि सही हूँ मैं।
साहिल से यारी मैं करूँ कैसे
जाना है आगे इक नदी हूँ मैं।
अच्छा किसे लगता भला जलना
पर क्या करूँ कि रोशनी हूँ मैं ।
नीरज कुमार नीर / मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on October 28, 2015 at 11:08pm — 12 Comments
Added by kanta roy on October 28, 2015 at 8:36pm — 18 Comments
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