For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

November 2014 Blog Posts (146)

बड़ी सीख (लघुकथा )

"यार मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ "-सुजीत ने अपने दोस्त विपिन से कहा |

"प्यार, यार आजकल तो प्यार का ज़माना कहाँ हैं,बस मजे ले और उसे छोड़ दे"-विपिन ने उसे समझाते हुए कहा | 

"पर ,यार  मैं उस से प्यार करता हूँ,मैं किसी के साथ धोका नही कर सकता हूँ "-सुजीत ने उदास होते हुए कहा | विपिन -"यार  इसी में तो मजा है ,खैर कौन है वो लड़की मैं भी तो जानूँ "

सुजीत-"तेरी बहन ,यार "

इतना सुन कर विपिन कुछ न बोल सका | उसे एक बड़ी सीख मिल चुकी थी |

"मौलिक व…

Continue

Added by maharshi tripathi on November 26, 2014 at 6:05pm — 13 Comments

ग़ज़ल: लौ मचलती रही.

साँस चलती रही, आस पलती रही.

रात ढलने तलक, लौ मचलती रही.

 

वादियों में दिखी, ओस-बूँदें सहर,

चाँदनी रात भर, आँख मलती रही.

 

कुछ हसीं चाहतों की तमन्ना लिए,

जिन्दगी आँसुओं से बहलती रही.

 

मैं समझता हुयी उम्र पूरी मगर,

मौत जाने किधर को टहलती रही.

 

इक उगा था कभी चाँद मेरे फ़लक,

जुगनुओं को यही बात खलती रही.

 

वो सुनी थी कभी बांसुरी की सदा,

ज़िंदगी रागनी में बदलती रही.

 

मैं…

Continue

Added by harivallabh sharma on November 26, 2014 at 2:00pm — 23 Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकान्त कविता : पगली (गणेश जी बागी)

अतुकान्त कविता : पगली

विवाहिता या परित्यक्तता

अबला या सबला

नही पता .......

पता है तो बस इतना कि

वो एक नारी है ।



साथ में लिए थे फेरे

फेरों के साथ

वचन निभाने के वादे

किन्तु .......

उन्हे निभाना है राष्ट्र धर्म

और इसे ……

नारी धर्म

पगली !!



उनकी सफलता के लिए

व्रत, उपवास, मनौती

मंदिरों के चौखटों पर

पटकती माथा

और खुश हो…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 26, 2014 at 10:30am — 48 Comments

माॅर्निंग अखबार (लघुकथा)

"अनुपमा, इस पुलिस की नौकरी की तनख्वाह से तो घर चलाना बहुत मुश्किल हो रहा है। बच्चे भी बड़े हो रहे हैं। कैसे इनको हम उच्च शिक्षा और सही परवरिश दे पाएंगे?"

"आप ठीक कह रहे हो लेकिन इसका समाधान भी तो नहीं है।"

"समाधान तो है अगर तुम साथ दो तो.....।"

"पहले बताओ तो! क्या समाधान है?"

"तुम्हें बस एक बार मंत्री जी के पास माॅर्निंग का अखबार लेकर जाना होगा। फिर मेरा ट्रांसफर ऐसी जगह हो जाएगा जहाँ तनख्वाह से कई गुना ऊपर की कमाई होगी।"

अनुपमा की माॅर्निंग अखबार की सहमति ने परिवार…

Continue

Added by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 9:39am — 16 Comments

तुम मेरे कौन हो

तुम मेरे कौन हो?

तुम मेरे कौन हो ?

उषा सिंदूरी या चाँदनी रात

उषा जिससे ज़िन्दगी का अन्धेरा जाता है

जिसके स्पर्श से जीवन लहराता है

खिल उठते हैं जिसके दर्शन से बेल-बूटे…

Continue

Added by somesh kumar on November 25, 2014 at 7:30pm — 10 Comments

गुदगुदी

डाक्टर कहते है

स्वस्थ आनंदित जीवन के लिए

हंसो

ठठाकर हंसो , खिलखिलाकर हंसो

आकाश गुंजा दो ,अट्टहास करो

तभी तो

शरीर से झरेगा

ऐंडोर्फिन रसायन

जो हृदय को रखेगा मजबूत

नष्ट होंगे बैक्टीरिया, वायरस

सशक्त होगा प्रतिरक्षातंत्र

 

 

पर हंसू कैसे ?

बचपन में कोई फिसल कर गिरता

कीचड में सनता 

या चिडिया करती बीट

तब हम ताली बजा कर हँसते

लोट-पोट हो जाते

मै और मेरी बहन हम, सब…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 25, 2014 at 5:30pm — 24 Comments

साँझ होते ही सो जाता हूँ अतीत की चादर ओढ़ कर,

साँझ होते ही

सो जाता हूँ

अतीत की चादर

ओढ़ कर,

बेसुध

न जाने कब

चादर विरल होने लगती है

इतनी विरल कि

चादर तब्दील हो जाती है

एक खूबसूरत बाग़ में

जिसमे तुम मुस्कुराती हो

फूल बन कर

और मै मंडराता हूँ

भँवरे सा

तुम इठलाती,

इतराती रात भर,

तो कभी ऐसा भी हुआ

जब मै बृक्ष बन उग आता हूँ

और तुम, बेल बन लिपट जाती हो

मै हँसता हूँ तुम मुस्कुराती हो

फिर तुम चाँद बन जाती हो

और मै - चकोर

और मै लगाने लगता…

Continue

Added by MUKESH SRIVASTAVA on November 25, 2014 at 5:00pm — 9 Comments

पानी और प्यास

पानी हमको पीना है

मिनरल या फिर फ़िल्टर

साफ़ पानी सुरक्षित पानी

खुद का बर्तन खुद का पानी||

 

पानी बड़ा या प्यास ?

विषय है ये बेहद ही ख़ास

प्यास है एक स्वाभाविक सी क्रिया

प्यास सभी को जगती है||

 

कभी मिल जाता पानी तो

कभी सूखे से तपती है

प्यास है तन के प्यास है मन की

प्यास आँखों की प्यास कुछ पाने की||

 

पानी चाहिए मीठा मीठा

हो तो फ़िल्टर या फिर मिनरल

प्यासा जब मरने को…

Continue

Added by sarita panthi on November 25, 2014 at 9:42am — 7 Comments

ग़ज़ल-----मैं समन्दर को आँखों में भरके चला हूँ

212 212 212 2122

-------------------------------------------

मुद्दतों से पलक बन्द करके चला हूँ

मैं समन्दर को आँखों में भरके चला हूँ

....

जा बसा पत्थरों में हुआ वो भी पत्थर

मैं फकीरों के जैसे बे-घरके चला हूँ

....

कैसे कहदूँ मेरे यार को बेव़फा मैं

जिसकी तस्वीर को दिल में धरके चला हूँ

....

ले गया वो मेरी साँस भी साथ अपने

जिन्दगी भर बिना साँस मरके चला हूँ

....

ले न जाये छुड़ाके कहीं याद अपनी

इसलिये उम्र भर ही मैं ड़रके चला…

Continue

Added by umesh katara on November 25, 2014 at 8:18am — 22 Comments

आजकल हँसता हंसाता कौन है

२१२२...२१२२...२१२.

फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन ..

=====================

आजकल हँसता हंसाता कौन है

गम छुपा के मुस्कराता कौन है !!

हम ज़माने पे यकीं कैसे करें,

आज कल सच-सच बताता कौन है.!!

उलझनों में भी हैं कुछ नादानियाँ,

याद बचपन की भुलाता कौन है !!

जब मिलूँगा तो शिकायत भी करू

इसलिए मुझको बुलाता कौन है!!

दो घडी की बात है ये ज़िन्दगी,

ज़िन्दगी भर को निभाता कौन…

Continue

Added by Alok Mittal on November 25, 2014 at 8:13am — 27 Comments

बेड़ा गर्क कराती क्यों हो

ठूस ठूस कर खाती क्यों हो।
मोटी हो शर्माती क्यों हो।।

एक मासूम सी पत्नी हूँ।
यूँ चुटकुला सुनाती क्यों हो।।

बच्चे डर जाते है हरदम।
इतना गन्दा गाती क्यों हो।।

मुखड़े पर लीपा पोती कर।
मुझको रोज डराती क्यों हो।

आती नहीं बोलनी इंग्लिश।
बेड़ा गर्क कराती क्यों हो।।

खुद खाने के फाकें फिर भी।
भाई को बुलवाती क्यों हो।।
**********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 1:30am — 6 Comments

एक ही सच्चा किरदार

एक ही सच्चा किरदार।
बाकी सब किरायेदार।।

खुद को इंशा कहता है।
उसके गम भी ले उधार।।

कितने भूंखे मरते हैं।
कभी तो पढ़ ले अखबार।।

बड़ा अज़ीब बन्दा है वो।
दुश्मनों से करता प्यार।।

जबसे प्यार कर लिया है ।।
लोग कहते हैं बीमार।।

तुझको फिर से नज़र लगी।
जाके कभी नज़र उतार।।
*********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:57am — 26 Comments

जाते हो तो जाओ आप

जाते हो तो जाओ आप।
अब ना और रुलाओ आप।

मुझे जीने का शौक नहीं।
अपनी खैर बताओ आप।।

अंदर कोई सो गया है।
आके उसे जगाओ आप।।

हँसना नहीं आता हो गर।
आकर कभी रुलाओ आप।।

आपका कुछ छूट गया है।
जो भी है ले जाओ आप।।
********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:46am — 6 Comments

उच्छवास

अब  हद हो गयी आजमाने की,
मेरे बुलाने की, तेरे न आने की।
रहे छुपाते अपनी-अपनी कबसे,

पर्दाशुदा हुआ नजर ज़माने की।
बेदम पड़ी ख्वाहिशें भी देख लो,
तेरी  पाने की,अपनी लुटाने की।

कितना कहें शेर? फिजां तेरे रुत

में आने की,मेरे कसम निभाने की।
अपनी खुदी खुद मिटा माँगता मैं
कुछ तेरी नेमतें गले लगाने की।

@मनन (मौलिक व अप्रकाशित)

 

Added by Manan Kumar singh on November 24, 2014 at 10:33pm — 7 Comments

माँ की सीख (लघुकथा)

"माँ, तुम्हें एक खुशखबरी देनी थी। तुम नानी बनने वाली हो।"- बेटी ने अपनी माँ को बताया जिसकी पिछले महीने ही शादी हुई थी।

"बेटा, तुमने यह बात किसी को बताई तो नहीं है।"

"नहीं माँ, क्या हुआ?"

"बेटा, एक बार अल्ट्रासाउंड करवा लेती तो ठीक रहता। पता लग जाता घर का चिराग है या लड़की।"

"लेकिन माँ, यह तो पहला बच्चा है। ऐसी बातें क्यों सोच रही हो?"

"तुम्हारी भाभी भी यूँ ही माॅर्डन बातें किया करती थी। अब उसको दो लड़कियाँ हैं। बेटा, घर को चिराग देने वाली औरत का मान-सम्मान अपने आप ही…

Continue

Added by विनोद खनगवाल on November 24, 2014 at 6:01pm — 12 Comments

ग़ज़ल बदला बदला सा घर नज़र आया।

2122 12 12 22

बदला बदला सा घर नज़र आया।
जब कभी मैं कही से घर आया।

बस तुझे देखती रही आँखें।
हर तरफ तू ही तू नज़र आया।

छोड़ कर कश्तियाँ किनारे पर।
बीच दरिया में डूब कर आया।

यूँ हज़ारो हैं ऐब तुझमे भी।
याद मुझको तेरा हुनर आया।

नींद गहरी हुई फिर आज "कमाल"।
ख्वाब उसका ही रात भर आया।

मौलिक एवम अप्रकाशित
केतन "कमाल"

Added by Ketan Kamaal on November 24, 2014 at 5:15pm — 21 Comments

ग़ज़ल - रात गहरी पहले तो आती ही है

2122 2122. 212

बात आ ना जाए अपने होठ पर
देखिए पीछे पड़ा सारा शहर

मत कहो तुम हाले दिल चुप ही रहो
क्यों कहें हम खुद कहेगी ये नजर

देखो कलियाँ खुद ही खिलती जाएँगी
गीत अब खुद गुनगुनाएँगे भ्रमर

हाथ थामें जब चलेंगे साथ हम
वक्त थम जाएगा हमको देखकर

रात गहरी पहले तो आती ही है
पर पलट करती है ऐलाने- सहर

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on November 24, 2014 at 2:00pm — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर (नवगीत )

आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर

 

सहिष्णुता की ऊन का गोला

सलाइयाँ सद्व्यवहार  की   

 रंग रंग के  डालें बूटे

मनुसाई  कतारें  प्यार की

करें बुनाई सब मिलजुल कर

आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर

 

अब सर्दी का लगा महीना

देश मेरा ये थर-थर काँपे

एक-एक मिल भरें उष्णता

शाल बना  कांधों पर ढापें

धूप-धूप गूँथे प्रभाकर      

आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर

 

हिंदू मुस्लिम सिक्ख…

Continue

Added by rajesh kumari on November 24, 2014 at 11:07am — 25 Comments

आँख का आँसू हॅसेगा - (ग़ज़ल ) -लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    2122    212

******************************

चाँद  देता  है  दिलासा  कह  पुरानी  उक्तियाँ

पतझड़ों  में  गीत  उम्मीदों के गाती पत्तियाँ /1/



कह रही हैं एक दिन जब गुल खिलेंगे बाग में

फिर उदासी से  निकल बाहर हॅसेंगी बस्तियाँ /2/



स्वप्न बैठेंगे यहीं फिर गुनगुनी सी धूप में

बीच रिश्तों  के  रहेंगी  तब न ऐसी सर्दियाँ /3/



सिर  रखेगा  फिर  से  यारो सूने दामन में कोई  

आँख का आँसू हॅसेगा छोड़ कर फिर सिसकियाँ /4/



डस  रहा  है …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 24, 2014 at 11:05am — 18 Comments

नये युग का प्रेम

स्त्री को चाह होने लगी स्त्री की

पुरुष कर रहा पुरुष से प्यार

कैसे तो ये संभव है

और कैसे हो जाता इकरार||

 

स्वभाविक सी अभिव्यक्ति है ?

या सामाजिक वर्जनाओं को तिरस्कृति है?

ईश्वर का तो नही रहा होगा ऐसा कोई अभिप्राय

प्यार के नये नये रूप देते दिल हिलाए||

 

स्त्री और पुरुष का अनमोल अनूठा जोड़

सृष्टि टिकी है इस रिश्ते पर कैसे कोई सकता तोड़

वासनाओं के दिख रहे नित नए ही रूप

इश्क हो रहा शर्मिंदा प्यार दिख रहा…

Continue

Added by sarita panthi on November 24, 2014 at 9:53am — 7 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का यह लिहाज इसलिए पसंद नहीं आया कि यह रचना आपकी प्रिया विधा…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी कुण्डलिया छंद की विषयवस्तु रोचक ही नहीं, व्यापक भी है. यह आयुबोध अक्सर…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आजी तमाम भाई, आपकी प्रस्तुति पर आ कर पुरानी हिंदी से आवेंगे-जावेंगे वाले क्रिया-विषेषण से…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"वाह आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी एक अलग विषय पर बेहतरीन सार्थक ग़ज़ल का सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ

२१२२ १२१२ २२/११२तमतमा कर बकी हुई गालीकापुरुष है, जता रही गाली मार कर माँ-बहन व रिश्तों को कोई देता…See More
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service