"यार मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ "-सुजीत ने अपने दोस्त विपिन से कहा |
"प्यार, यार आजकल तो प्यार का ज़माना कहाँ हैं,बस मजे ले और उसे छोड़ दे"-विपिन ने उसे समझाते हुए कहा |
"पर ,यार मैं उस से प्यार करता हूँ,मैं किसी के साथ धोका नही कर सकता हूँ "-सुजीत ने उदास होते हुए कहा | विपिन -"यार इसी में तो मजा है ,खैर कौन है वो लड़की मैं भी तो जानूँ "
सुजीत-"तेरी बहन ,यार "
इतना सुन कर विपिन कुछ न बोल सका | उसे एक बड़ी सीख मिल चुकी थी |
"मौलिक व…
ContinueAdded by maharshi tripathi on November 26, 2014 at 6:05pm — 13 Comments
साँस चलती रही, आस पलती रही.
रात ढलने तलक, लौ मचलती रही.
वादियों में दिखी, ओस-बूँदें सहर,
चाँदनी रात भर, आँख मलती रही.
कुछ हसीं चाहतों की तमन्ना लिए,
जिन्दगी आँसुओं से बहलती रही.
मैं समझता हुयी उम्र पूरी मगर,
मौत जाने किधर को टहलती रही.
इक उगा था कभी चाँद मेरे फ़लक,
जुगनुओं को यही बात खलती रही.
वो सुनी थी कभी बांसुरी की सदा,
ज़िंदगी रागनी में बदलती रही.
मैं…
ContinueAdded by harivallabh sharma on November 26, 2014 at 2:00pm — 23 Comments
अतुकान्त कविता : पगली
विवाहिता या परित्यक्तता
अबला या सबला
नही पता .......
पता है तो बस इतना कि
वो एक नारी है ।
साथ में लिए थे फेरे
फेरों के साथ
वचन निभाने के वादे
किन्तु .......
उन्हे निभाना है राष्ट्र धर्म
और इसे ……
नारी धर्म
पगली !!
उनकी सफलता के लिए
व्रत, उपवास, मनौती
मंदिरों के चौखटों पर
पटकती माथा
और खुश हो…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 26, 2014 at 10:30am — 48 Comments
"अनुपमा, इस पुलिस की नौकरी की तनख्वाह से तो घर चलाना बहुत मुश्किल हो रहा है। बच्चे भी बड़े हो रहे हैं। कैसे इनको हम उच्च शिक्षा और सही परवरिश दे पाएंगे?"
"आप ठीक कह रहे हो लेकिन इसका समाधान भी तो नहीं है।"
"समाधान तो है अगर तुम साथ दो तो.....।"
"पहले बताओ तो! क्या समाधान है?"
"तुम्हें बस एक बार मंत्री जी के पास माॅर्निंग का अखबार लेकर जाना होगा। फिर मेरा ट्रांसफर ऐसी जगह हो जाएगा जहाँ तनख्वाह से कई गुना ऊपर की कमाई होगी।"
अनुपमा की माॅर्निंग अखबार की सहमति ने परिवार…
Added by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 9:39am — 16 Comments
तुम मेरे कौन हो?
तुम मेरे कौन हो ?
उषा सिंदूरी या चाँदनी रात
उषा जिससे ज़िन्दगी का अन्धेरा जाता है
जिसके स्पर्श से जीवन लहराता है
खिल उठते हैं जिसके दर्शन से बेल-बूटे…
ContinueAdded by somesh kumar on November 25, 2014 at 7:30pm — 10 Comments
डाक्टर कहते है
स्वस्थ आनंदित जीवन के लिए
हंसो
ठठाकर हंसो , खिलखिलाकर हंसो
आकाश गुंजा दो ,अट्टहास करो
तभी तो
शरीर से झरेगा
ऐंडोर्फिन रसायन
जो हृदय को रखेगा मजबूत
नष्ट होंगे बैक्टीरिया, वायरस
सशक्त होगा प्रतिरक्षातंत्र
पर हंसू कैसे ?
बचपन में कोई फिसल कर गिरता
कीचड में सनता
या चिडिया करती बीट
तब हम ताली बजा कर हँसते
लोट-पोट हो जाते
मै और मेरी बहन हम, सब…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 25, 2014 at 5:30pm — 24 Comments
साँझ होते ही
सो जाता हूँ
अतीत की चादर
ओढ़ कर,
बेसुध
न जाने कब
चादर विरल होने लगती है
इतनी विरल कि
चादर तब्दील हो जाती है
एक खूबसूरत बाग़ में
जिसमे तुम मुस्कुराती हो
फूल बन कर
और मै मंडराता हूँ
भँवरे सा
तुम इठलाती,
इतराती रात भर,
तो कभी ऐसा भी हुआ
जब मै बृक्ष बन उग आता हूँ
और तुम, बेल बन लिपट जाती हो
मै हँसता हूँ तुम मुस्कुराती हो
फिर तुम चाँद बन जाती हो
और मै - चकोर
और मै लगाने लगता…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on November 25, 2014 at 5:00pm — 9 Comments
पानी हमको पीना है
मिनरल या फिर फ़िल्टर
साफ़ पानी सुरक्षित पानी
खुद का बर्तन खुद का पानी||
पानी बड़ा या प्यास ?
विषय है ये बेहद ही ख़ास
प्यास है एक स्वाभाविक सी क्रिया
प्यास सभी को जगती है||
कभी मिल जाता पानी तो
कभी सूखे से तपती है
प्यास है तन के प्यास है मन की
प्यास आँखों की प्यास कुछ पाने की||
पानी चाहिए मीठा मीठा
हो तो फ़िल्टर या फिर मिनरल
प्यासा जब मरने को…
ContinueAdded by sarita panthi on November 25, 2014 at 9:42am — 7 Comments
212 212 212 2122
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मुद्दतों से पलक बन्द करके चला हूँ
मैं समन्दर को आँखों में भरके चला हूँ
....
जा बसा पत्थरों में हुआ वो भी पत्थर
मैं फकीरों के जैसे बे-घरके चला हूँ
....
कैसे कहदूँ मेरे यार को बेव़फा मैं
जिसकी तस्वीर को दिल में धरके चला हूँ
....
ले गया वो मेरी साँस भी साथ अपने
जिन्दगी भर बिना साँस मरके चला हूँ
....
ले न जाये छुड़ाके कहीं याद अपनी
इसलिये उम्र भर ही मैं ड़रके चला…
Added by umesh katara on November 25, 2014 at 8:18am — 22 Comments
२१२२...२१२२...२१२.
फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन ..
=====================
आजकल हँसता हंसाता कौन है
गम छुपा के मुस्कराता कौन है !!
हम ज़माने पे यकीं कैसे करें,
आज कल सच-सच बताता कौन है.!!
उलझनों में भी हैं कुछ नादानियाँ,
याद बचपन की भुलाता कौन है !!
जब मिलूँगा तो शिकायत भी करू
इसलिए मुझको बुलाता कौन है!!
दो घडी की बात है ये ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी भर को निभाता कौन…
ContinueAdded by Alok Mittal on November 25, 2014 at 8:13am — 27 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 1:30am — 6 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:57am — 26 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:46am — 6 Comments
अब हद हो गयी आजमाने की,
मेरे बुलाने की, तेरे न आने की।
रहे छुपाते अपनी-अपनी कबसे,
पर्दाशुदा हुआ नजर ज़माने की।
बेदम पड़ी ख्वाहिशें भी देख लो,
तेरी पाने की,अपनी लुटाने की।
कितना कहें शेर? फिजां तेरे रुत
में आने की,मेरे कसम निभाने की।
अपनी खुदी खुद मिटा माँगता मैं
कुछ तेरी नेमतें गले लगाने की।
@मनन (मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Manan Kumar singh on November 24, 2014 at 10:33pm — 7 Comments
"माँ, तुम्हें एक खुशखबरी देनी थी। तुम नानी बनने वाली हो।"- बेटी ने अपनी माँ को बताया जिसकी पिछले महीने ही शादी हुई थी।
"बेटा, तुमने यह बात किसी को बताई तो नहीं है।"
"नहीं माँ, क्या हुआ?"
"बेटा, एक बार अल्ट्रासाउंड करवा लेती तो ठीक रहता। पता लग जाता घर का चिराग है या लड़की।"
"लेकिन माँ, यह तो पहला बच्चा है। ऐसी बातें क्यों सोच रही हो?"
"तुम्हारी भाभी भी यूँ ही माॅर्डन बातें किया करती थी। अब उसको दो लड़कियाँ हैं। बेटा, घर को चिराग देने वाली औरत का मान-सम्मान अपने आप ही…
Added by विनोद खनगवाल on November 24, 2014 at 6:01pm — 12 Comments
2122 12 12 22
बदला बदला सा घर नज़र आया।
जब कभी मैं कही से घर आया।
बस तुझे देखती रही आँखें।
हर तरफ तू ही तू नज़र आया।
छोड़ कर कश्तियाँ किनारे पर।
बीच दरिया में डूब कर आया।
यूँ हज़ारो हैं ऐब तुझमे भी।
याद मुझको तेरा हुनर आया।
नींद गहरी हुई फिर आज "कमाल"।
ख्वाब उसका ही रात भर आया।
मौलिक एवम अप्रकाशित
केतन "कमाल"
Added by Ketan Kamaal on November 24, 2014 at 5:15pm — 21 Comments
Added by Poonam Shukla on November 24, 2014 at 2:00pm — 17 Comments
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
सहिष्णुता की ऊन का गोला
सलाइयाँ सद्व्यवहार की
रंग रंग के डालें बूटे
मनुसाई कतारें प्यार की
करें बुनाई सब मिलजुल कर
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
अब सर्दी का लगा महीना
देश मेरा ये थर-थर काँपे
एक-एक मिल भरें उष्णता
शाल बना कांधों पर ढापें
धूप-धूप गूँथे प्रभाकर
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
हिंदू मुस्लिम सिक्ख…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 24, 2014 at 11:07am — 25 Comments
2122 2122 2122 212
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चाँद देता है दिलासा कह पुरानी उक्तियाँ
पतझड़ों में गीत उम्मीदों के गाती पत्तियाँ /1/
कह रही हैं एक दिन जब गुल खिलेंगे बाग में
फिर उदासी से निकल बाहर हॅसेंगी बस्तियाँ /2/
स्वप्न बैठेंगे यहीं फिर गुनगुनी सी धूप में
बीच रिश्तों के रहेंगी तब न ऐसी सर्दियाँ /3/
सिर रखेगा फिर से यारो सूने दामन में कोई
आँख का आँसू हॅसेगा छोड़ कर फिर सिसकियाँ /4/
डस रहा है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 24, 2014 at 11:05am — 18 Comments
स्त्री को चाह होने लगी स्त्री की
पुरुष कर रहा पुरुष से प्यार
कैसे तो ये संभव है
और कैसे हो जाता इकरार||
स्वभाविक सी अभिव्यक्ति है ?
या सामाजिक वर्जनाओं को तिरस्कृति है?
ईश्वर का तो नही रहा होगा ऐसा कोई अभिप्राय
प्यार के नये नये रूप देते दिल हिलाए||
स्त्री और पुरुष का अनमोल अनूठा जोड़
सृष्टि टिकी है इस रिश्ते पर कैसे कोई सकता तोड़
वासनाओं के दिख रहे नित नए ही रूप
इश्क हो रहा शर्मिंदा प्यार दिख रहा…
ContinueAdded by sarita panthi on November 24, 2014 at 9:53am — 7 Comments
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