(फाइ इलातु न _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फ़े लुन)
ख़त्म कर के ही मुहब्बत का सफ़र जाऊंगा l
तू ने ठुकराया तो कूचे में ही मर जाऊँगा l
जो भी कहना है वो कह दीजिए ख़ामोश हैं क्यूँ
आपका फ़ैसला सुनके ही मैं घर जाऊँगा l
वकते आख़िर है मेरा पर्दा हटा दे अब तो
छोड़ कर मैं तेरे चहरे पे नज़र जाऊँगा l
आ गए वक़ते सितम अश्क अगर आँखों में
मैं सितमगर की निगाहों से उतर जाऊँगा l
लौट कर आऊंगा मैं सिर्फ़ तू इतना कह दे …
Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 6, 2018 at 10:30am — 20 Comments
1-
आलोक पर्व
सेतु ये जन-हेतु
प्रकाश-स्तंभ
2-
राहगुज़र
अंधेरे का निस्तार
प्रकाश-पर्व
3-
अपनापन
दीप से विस्तारित
आत्मकेंद्रित
4-
रूप चौदस
सौंदर्य प्रसाधन
आध्यात्मिकता
5-
दूज सुबोध
भ्रातृ-भगिनि योग
दिव्य-आलोक
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2018 at 10:09am — 8 Comments
"हमने कई थी न कि देर है अंधेर नईं! सबके साथ सबके दिन फिर रये! सो अपने भी दिन फिरहें!" नदी किनारे बैठे हुए एक बाबा ने दूसरे साथी बाबाओं से किया अपना दावा दोहराते-सिद्ध करते हुए कहा - "अपने कित्ते बाबा अंतर्राष्ट्रीय हो गये, ध्यान और योग से उद्योग जम गओ, ... एक और बाबा हाईटेक हो गओ!"
"हओ! मंत्री बनत-बनत रह गये; लेकिन अब रस्ता खुल गओ अपने लाने! धंधा-पानी भी संग-संग चलो करहे अब राम-नाम जपने के साथ! दुनिया खों आयुर्वेद को भेद बहुतई अच्छी तरा समझ में आ गओ!"
"लेकिन गुरु, धरम-करम और…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2018 at 12:11am — 2 Comments
1222 1222 1222 1222
हमेशा तो नहीं होती बुरी तकरार की बातें
इसी तकरार से अक्सर निकलतीं प्यार की बातें।
नज़र मंजिल पे रक्खो तुम बढ़ाओ फिर कदम आगे
नहीं अच्छी लगा करतीं हमेेशा हार की बातें।
अँधेरे में चरागों-सा उजाला इनसे मिल जाता
गुनी जाएं तज्रिबे के सही गर सार की बातें।
अलग हैं रास्ते चाहे है मंजिल एक पर सबकी
जो ढूंढें खोट औरों में करे वो रार की…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 5, 2018 at 8:30pm — 17 Comments
1-
मन-हर्षाता
धन्य धन-तेरस
मां लक्ष्मी दाता
2-
धन तेरस
दे अब के बरस
सोने का देश
3-
धन तेरस
सोने की ये चिड़िया
धन से धन्य
4-
धनोपार्जन
से धन-विसर्जन
चादर मैली
5-
धन की दास्तां
धनी-निर्धन व्यथा
कथा में कथा
6-
लड़ी में ज्वाला
प्रकाश, आग, भाग
आत्मायें लड़ीं
7-
पर्व ही गर्व
संदेश सम्प्रेषित
धन का दर्द
8-
दिल की…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 5, 2018 at 8:24pm — 8 Comments
मेरी धरोहर - लघुकथा -
"सुधा, मेरा सफेद कुर्ता पाजामा निकाल दो। शीघ्रता से।"
"अरे विनोद, यह क्या सुन रहा हूँ? यहाँ सब लोग दिवाली की पूजा की तैयारी में व्यस्त हैं और तुम ये क्या सफेद कपड़ों की फरमाइश कर रहे हो?"
"जी दादाजी, आपने सही सुना। मुझे मेरे दोस्त अकबर के घर जाना है। उसके अब्बू का इंतकाल हो गया है।"
"तुम्हें पता है आज इस दीपावली के शुभ अवसर पर मैं अपनी वसीयत भी बनाने वाला हूँ। अभी हमारे परिवार के वक़ील आने ही वाले हैं। हो सकता है जो उस वक्त मौजूद ना हों, उन्हें…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 5, 2018 at 4:58pm — 14 Comments
धनतेरस
धन धान्य हो भरा
शुभकामना
धन बरसे
लक्ष्मी रहें प्रसन्न
सब हरसें
झालर दीप
सुंदर उपहार
सजे बाजार
हल्की है ज़ेव
महंगाई की मार
सुस्त ग्राहक
प्रथा निभाएँ
धनतेरस पर
थोड़ा ही लाएँ
धनतेरस
खुशियाँ दे अपार
प्यारा त्योहार
…. मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on November 5, 2018 at 3:30pm — 7 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
है वो मेरा दोस्त, मेरा नुकताचीं भी
शर्म खाए उससे कोई ख़ुर्दबीं भी //१
काविशे सुहबत में आके मैंने जाना
हाँ में उसकी तो छुपा था इक नहीं भी //२
जब उफ़ुक़ पे सुब्ह लाली खिल रही थी
थी हया से सुर्ख थोड़ी ये ज़मीं भी //३
दूर क्यों जाना है ज़्यादा जुस्तजू में
पालती है जबकि दुश्मन आस्तीं भी //४…
Added by राज़ नवादवी on November 4, 2018 at 7:30am — 10 Comments
कुछ 'दीवाली-हाइकु' :
1-
दिल्ली-दीवाली
(दिली-दीवाली)
दीपक-दिलवाली
ईको-फ्रेंडली
2-
कुम्हार-कला
मिट्टी, भावों से खिला
ये दीपोत्सव
3-
प्रज्जवलित
दीप कुम्हार वाले
सीप के मोती
4-
सीप का मोती
दीवाली-महोत्सव
रिश्तों की खेती
5-
मानवीयता
दानवीयता परे
दीवाली भरे
6-
दिव्य-दीवाली
दशा-दिशा निमित्त…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 4, 2018 at 6:00am — 8 Comments
मेरी आँखें बंद करो
और इस तरह से
दुनिया को बंद करना
मैं तुम्हें फिर मिलूंगा
तुम शानदार हो
जीवित और ज्वलंत
मेरे सीने से गहरी सांस लेना
मैं तुम्हारी मुस्कान की तस्वीर बना लूँगा
तुम्हारी आंखों के पीछे का नरम प्रकाश
मेरे दिमाग में यादों का मीलो चलना
इच्छा है कि मैं एक चील की तरह झपट के
और तुम्हें उस जगह ले जाऊ
जिस जगह जहां आँसू गिरते थे
जबकि हम आमने-सामने बैठे थे
एक दूसरे के गाल पर हाथ
फुसफुसाते हुए "सब ठीक…
Added by narendrasinh chauhan on November 3, 2018 at 2:30pm — 2 Comments
काल चक्र - लघुकथा -
"राघव, तुम यहाँ रेलवे प्लेटफार्म पर, इस हालत में?"
मुझे एक बार तो विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बेंच पर बैठा शख्स मेरा मित्र राघव ही है। दाढ़ी , बाल बढ़े हुए। पैर में हवाई चप्पल। पाजामे के साथ ढीली सी टी शर्ट। मेरा हम उम्र था लेकिन अस्सी साल का बूढ़ा लग रहा था|
मैं जिस राघव का दोस्त था, वह तो सदैव आसमान में उड़ता था। शेर की तरह दहाड़ता था। कालेज के दिनों में वह अकेला बंदा था जो सूट बूट और टाई पहनकर कार में कॉलेज आता था। क्या शानदार व्यक्तित्व था। हर कोई उसे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 3, 2018 at 12:04pm — 12 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
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आ गया है जेठ, गर्मी का महीना
अब समंदर को भी आयेगा पसीना //१
उम्र भी अब तो सताने लग गई है
डूबता ही जा रहा है ये सफ़ीना //२
सोचता हूँ जिंदगी भी क्या करम है
उफ़ ! ये मरना और यूँ मर मर के जीना //३
ज़िंदगानी के तराने गा रहे सब
हैं दिवाने सैकड़ों और इक हसीना //४…
Added by राज़ नवादवी on November 3, 2018 at 7:00am — 16 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
किसी की बद्दुआ से गर कोई बीमार हो जाता
दुआ सा आखिरी वो भी बड़ा हथियार हो जाता।१।
ललक से धन की थोड़ा भी कहीं दो चार हो जाता
कसम से आईना भी तब महज अखबार हो जाता।२।
घड़ी भर को ही हमदम का अगर दीदार हो जाता
सुकूँ से मरने का यारो तनिक आधार हो जाता।३।
कहानी प्यार की अपनी किनारे लग कहाँ पाती
कहीं हद तोड़ कर तट भी अगर मझधार हो जाता।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 3, 2018 at 6:00am — 20 Comments
"देख, अब भी समय है! संभाल ले, अनुशासित कर ले अपने आप को!"
"अपनी थ्योरी अपने ही पास रख! ... देख, रुक जा! ठहर जा! रोक ले समय को भी! उसे और तुझे मेरे हिसाब से ही चलना होगा!"
"तो तू मुझे अपनी मनचाही दिशा में धकेलेगा! अपनी मनचाही दशा बनायेगा! 'देश' और 'काल' की गाड़ी की मनचाही 'स्टीअरिंग' करेगा!
"बिल्कुल! ड्राइवर, कंडक्टर, सब कुछ मैं ही हूं और हम में से ही हैं हमारे देश की गाड़ी चलाने वाले! तुम.. और समय .. तुम दोनों तो बस क़िताबी हो; बड़ी ज़िल्द वाली बड़ी-बड़ी क़िताबों में रहकर…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 3, 2018 at 12:29am — 5 Comments
.
सोचिये फिर डूबने में कितनी आसानी रहे
उनकी आँखों में जो मेरे वास्ते पानी रहे.
.
मैं किसी को जोड़ने में घट भी जाऊँ ग़म न हो
ज़िन्दगानी के गणित में इतनी नादानी रहे.
.
क़त्ल होते वक़्त भी मैं मुस्कुराता ही रहूँ
ताकि क़ातिल को मेरे ता-उम्र हैरानी रहे.
.
क़ाफ़िला यादों का गुज़रे रेगज़ार-ए-दिल से जब
आँखों में लाज़िम है सारी रात तुग़्यानी रहे.
.
क्यूँ भला सोचूँ वो दुश्मन है मेरा या कोई दोस्त
मैं रहूँ…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 2, 2018 at 6:45pm — 29 Comments
2122 2122 212
काँच पत्थर से भले टकरा गया।
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा समझा गया।
फ़िर सियासत में हुई हलचल कहीं,
मीडिया के हाथ मुद्दा आ गया।
सारी दुनिया एक कुनबा है अगर,
आयतन रिश्तों का क्यों घटता गया?
इक बतोलेबाज की डींगें सुनीं,
आदमी घुटनों के ऊपर आ गया।
फिर किसी औरत का दामन जल…
ContinueAdded by Balram Dhakar on November 2, 2018 at 3:30pm — 19 Comments
सुदूर पहाड़ी पर एक प्रसिध्द ‘माँ दुर्गा’ का एक मन्दिर था, जिसका संचालन एक ट्रस्ट के हाथ में था। उसमे पुजारी, आरती करने वाला, प्रसाद वितरण करने वाला, मंदिर की सफाई करने वाला, मंदिर की आरती के समय घंटी बजाने वाला आदि सभी लोग ट्रस्ट द्वारा दी जाने वाली दक्षिणा एवम भोजन पर रखे गए थे।
आरती खत्म हो जाने के बाद जहाँ अन्य लोग चढ़ावे को इक्कठा कर कोष में जमा कराने में तत्पर रहते थे वही घंटी बजाने वाला ‘घनश्याम’ आरती के समय भाव के साथ इतना भावविभोर हो जाता था कि होश में ही नही…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on November 1, 2018 at 10:09pm — 3 Comments
मापनी - २१२२ 12 1222
चाहते हैं मगर नहीं आती
हर ख़ुशी सबके’ घर नहीं आती
दिल में’ थोड़ी सी’ गुदगुदी कर दे
आजकल वो खबर नहीं आती
मैं इधर जब उदास होता हूँ
नींद उसको उधर नहीं…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on November 1, 2018 at 5:30pm — 30 Comments
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