1222 1222 1222 1222
कहो कुछ तो समझ के भी जताते और ही कुछ हैं
अदीबों की ज़ुबाँ में कुछ , इरादे और ही कुछ हैं
रवादारी हो , रस्में या कोई हो मज़हबी बातें
अलग ऐलान करते हैं, सिखाते और ही कुछ हैं
उन्हें मालूम है सच झूठ का अंतर मगर फिर भी
दबा कर हर ख़बर सच्ची , दिखाते और ही कुछ हैं
जो क़समें दोस्ती की रोज़ खाते हैं, बिना…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 8, 2015 at 9:49am — 16 Comments
१२२२ २१२२ १२२२ २१२२
नहीं करना काम कोई मगर दर्शाना बहुत है
छछुंदर सी शक्ल पाई अजी इतराता बहुत है
जरा रखना जेब भारी करेगा फिर काम तेरा
सदा भूखी तोंद उसकी भले ही खाया बहुत है
वजन रखना बोलने पर जरा भारी बात का तू
दबा देगा बात को घाघ वो चिल्लाता बहुत है
दरोगा वो गाँव का देखिये तो मक्कार कितना
शिकायत लिखता नहीं फालतू हड़काता बहुत है
मुहल्ले में शांत रहता मगर उसने बारहा ही
भिड़ाया है…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 7, 2015 at 6:18pm — 9 Comments
क्षण कठिन हो या सरल,
एक समान में जियो,
भूल कर अतीत को,
वर्तमान में जियो।
हो सुखों की संपदा,
दु:ख का पहाड़ हो,
नेक नियति मानकर,
तुम गरल-सुधा पियो।
जीत है कभी तो,
कभी हार भी मिले,…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on November 7, 2015 at 5:46pm — No Comments
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Added by मोहन बेगोवाल on November 7, 2015 at 4:30pm — 1 Comment
लघुकथा- नफरत
अख़बार में प्लास्टिक की बोरी पर दीपक बेचते गरीब बच्चे की फोटो के साथ उस की दास्ताँ छपी थी. जिस ने अपने मेहनत से अमेरिका में एरोनाटिक्स इंजीनियरिंग में मुकाम हासिल किया था. उस फोटो को देख कर हार्लिक बोला , “ कितना गन्दा बच्चा है. इसे देख कर खाना खाने की इच्छा ही न हो.”
“ यदि मैं देख लू तो मुझे उलटी हो जाए,” लुनिक्स ने अपना तर्क दिया, “ मम्मा ! ये भारतीय बच्चे इतने गंदे क्यों होते हैं ? आप तो भारत में रही है ना. आप वहां कैसे रहती थी. ये तो नफरत के काबिल है.”
“…
ContinueAdded by Omprakash Kshatriya on November 7, 2015 at 3:30pm — 10 Comments
16 रुक्नी ग़ज़ल
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नफ़रत का बाज़ार सजा है; हममें जितनी, कीमत उतनी।
इच्छाओं का दाम लगा है, खुदमें जितनी, कीमत उतनी।।
इस पुस्तक के पन्नों पर तुम, नैतिकता क्यों कर लिखते हो।
मानवता की छद्म व्याख्या, इसमें जितनी, कीमत उतनी।।
व्यवहार और समाचार में, सिर्फ एक सम्बन्ध यही है।
नमक मिर्च की हुई मिलावट, इनमें जितनी, कीमत उतनी।।
कलयुग वाले महाराज के, दरबारी मानक बदले हैं।
चाटुकारिता भरी हुई है, जिसमें…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 7, 2015 at 9:30am — 13 Comments
1222—1222—1222—1222 |
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तसव्वुफ़ का है आलम, जिंदगी रोने नहीं देती |
ये मैली-सी चदरिया मोह की धोने नहीं देती |
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दिखे जो नींद में यारो, वो सपने हो नहीं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 6, 2015 at 10:03pm — 14 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2015 at 9:53pm — 10 Comments
सिसकते दीये - (लघुकथा ) -
शंकर कुम्हार की जब से टांग टूटी थी, सारी घर गृहस्थी बिखर गयी थी!घरवाली दमा की मरीज़ , बेटा छोटू महज़ पांच साल का, कौन चलाये घर के खर्चे!त्यौहार सिर पर ! त्यौहार मनाना तो दूर ,रोज़मर्रा के खर्चे पूरे नहीं पड रहे थे!
शंकर ने जैसे तैसे थोडे से छोटे बडे मिट्टी के दीपक बनाये थे कि त्यौहार पर बेच कर चार पैसे आजायेंगे तो दीवाली ठीक ठाक मन जायेगी! छोटू को बडी मुश्किल से ,दस रुपये रोज़ देने का लालच देकर दीपक बेचने भेजा!छोटू भी खुश था कि सौ दो सौ रुपये कमा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 6, 2015 at 8:00pm — 2 Comments
आँधियों के थपेड़े और,
गर्मी की तपिश ने,
उगते हुए पौधे की जड़ हिलाई,
वट वृक्ष की तब याद आई।
कर दिया क्यों दूर,
जिसने जन्म दे, पाला तुझे,
कर बड़ा काबिल बनाया,
सारी लगाकर पाई पाई ।
चलते हुए घुटनों के बल,
पहले पहल था जब…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on November 6, 2015 at 7:47pm — 2 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on November 6, 2015 at 6:11pm — 7 Comments
Added by Janki wahie on November 6, 2015 at 5:49pm — 17 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on November 6, 2015 at 4:18pm — 3 Comments
सैयां भये कोतवाल -(लघुकथा) -
बाल श्रम विरोध कानून सप्ताह के दौरान छापेमारी में पंद्रह बालकों को रिहा कराया गया!इनमें अधिकतर बच्चे अपने परिवार से भाग कर आये थे!कुछ अनाथ भी थे!जो अनाथ थे ,उनको तो अनाथालय वालों ने आश्रय दे दिया मगर जिनके मॉ बाप थे ,परिवार थे ,उनको लेने से अनाथालय वालों ने मना कर दिया!
अब सात बच्चे पुलिस की देख रेख में थे!उनके परिवारों को सूचना भिजवा दी थी!कुछ तो आसाम और नेपाल तक से भाग कर आये थे!अभी तो यह भी निश्चित नहीं था कि जो पते बच्चों ने दिये वह सत्य भी हैं…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 6, 2015 at 1:00pm — 16 Comments
तुमसे ही तो है
Added by Abid ali mansoori on November 5, 2015 at 9:00pm — 8 Comments
जो लक्ष्य से भटका नहीं,
जो हार पर अटका नहीं,
जीत पक्की है उसी की,
राह में खटका नहीं।
लगन है अटूट जिसकी,
और है पक्का इरादा,
पास उस रणवीर के,
काल भी फटका नहीं।
मजबूत हैं जिसके…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on November 5, 2015 at 8:30pm — 6 Comments
Added by Ravi Shukla on November 5, 2015 at 7:11pm — 11 Comments
1212 - 1122 - 1212 – 112 |
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न ओंस है, न शफक है, न ताब है कोई |
ये लॉन एक खफ़ा-सी किताब है कोई |
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झुका झुका सा मुझे देख, सब यही कहते … |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 5, 2015 at 4:36pm — 19 Comments
अमर गंध …
पी के संग सो गयी
पी के रंग हो गयी
प्रीत की डोर की
मैं पतंग हो गयी
दीप जलता रहा
सांस चलती रही
पी की बाहों में मैं
इक उमंग हो गयी
हर स्पर्श देह में
गीत भरता रहा
नैनों की झील की
मैं तरंग हो गयी
निशा ढलती रही
आँखें मलती रही
होठों की होठों से
एक जंग हो गयी
कुछ खबर न हुई
कब सहर हो गयी
साँसों में पी की मैं
अमर गंध हो गयी
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on November 5, 2015 at 4:18pm — 6 Comments
Added by Abid ali mansoori on November 5, 2015 at 1:23pm — 11 Comments
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