Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 5, 2016 at 6:30pm — 11 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on November 5, 2016 at 4:36pm — 2 Comments
Added by Arpana Sharma on November 5, 2016 at 3:30pm — 6 Comments
घरोंदा - लघुकथा –
"सुनोजी, तुम्हारे रिटायरमेंट में डेढ़ साल बचा है।रिटायर होने के बाद यह सरकारी मकान छोड़ना होगा।कुछ सोचा है, कहाँ जांयेंगे"।
"सुधा, अभी अपने पास डेढ़ साल है। कुछ ना कुछ इंतज़ाम हो जायेगा"।
"इतने साल की नौकरी में तो कोई तीर मारा नहीं, अब डेढ़ साल में क्या चमत्कार कर लोगे"।
"सुधा, तुम यह कैसी बातें करती हो।बत्तीस साल, बेदाग नौकरी की है।रिटायर होने पर पी एफ़ और ग्रेचुटी का इतना तो पैसा मिल ही जायेगा कि दो कमरों का फ़्लैट खरीद सकूं"।
" वाह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 5, 2016 at 1:05pm — 6 Comments
Added by Arpana Sharma on November 4, 2016 at 4:07pm — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on November 4, 2016 at 4:00pm — 6 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on November 4, 2016 at 2:57pm — 3 Comments
बस , यूँ ही ....
मुस्कुराई थी
उस रात
क्या तुम
बस
यूँ ही
गुनगुनाई थी
उस रात
क्या तुम
बस
यूँ ही
शरमाई थी
उस रात
क्या तुम
बस
यूँ ही
बहार बन के
आई थी
उस रात
क्या तुम
बस
यूँ ही
मुझ में समाई थी
उस रात
क्या तुम
बस
यूँ ही
मेरे लिए
रोयी थी
उस रात
क्या तुम
बस …
Added by Sushil Sarna on November 3, 2016 at 4:30pm — 6 Comments
Added by Rahila on November 3, 2016 at 3:16pm — 4 Comments
Added by Ravi Prakash on November 3, 2016 at 12:52pm — 2 Comments
बहर :- 2212 2212 2212 2212
(हरिगीतिका छंद)
अनमोल क्षण जीवन के जो मन में बसा हरदम रखें,
जो जिंदगी के खाश पल उर से लगा हरदम रखें।
जिन याद से मस्तक हमारा शान से ऊँचा उठे,
उन याद के ख्वाबों को सीने में जगा हरदम रखें।
सन्तोष जो हमको मिला जब स्वप्न पूरे थे हुए,
उन वक्त के रंगीन लमहों को बचा हरदम रखें।
जब कुछ अलग हमने किया सबने बिठाया आँख पे,
उन वाहवाही के पलों को हम सजा हरदम रखें।
जो आग दुश्मन ने लगाई देश में आतंक…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on November 3, 2016 at 10:30am — 3 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 2, 2016 at 11:21pm — 4 Comments
Added by Samar kabeer on November 2, 2016 at 10:56pm — 16 Comments
अंत के गर्भ में .....
मैं
व्यस्त रही
अपने बिम्बों में
तुम्हारे बिम्ब को
तलाशते हुए
तुम
व्यस्त रहे
अपने
स्वप्न बिम्बों को
तराशने में
हम
व्यस्त रहे
इक दूसरे में
इक दुसरे को
ढूंढने में
पर
वक्त ने
वक्त न दिया
हम
ढूंढते ही रह गए
आरम्भ को
अंत के गर्भ में
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 2, 2016 at 10:11pm — 2 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on November 2, 2016 at 4:19pm — 1 Comment
अभी कल की ही तो बात रही
Added by amita tiwari on November 1, 2016 at 10:00pm — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 1, 2016 at 6:02pm — 5 Comments
दिए कुछ आस के ......
आँखों से झांक रहे
सपने विश्वास के
देहरी पर जल रहे
दिए कुछ आस के
नेह के भरोसे ही
कुछ रिश्ते जोड़े हैं
तुमने न जाने क्यूँ
अनुबंध सारे तोड़े हैं
मौन की पीडाएं ही
मुझको तो छलती हैं
पास तुम आते हो
दूरी तब ढलतीं हैं
सम्बन्ध ले आये हैं
रिश्ते कुछ पास के
देहरी पर जल रहे
दिए कुछ आस के |
नश्तर से चुभते हैं
धूप के सुनहरे…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on November 1, 2016 at 4:00pm — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on November 1, 2016 at 8:30am — 9 Comments
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