मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
.
हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ तो क्या करें
ऐसे में उनसे दूर ना जाएँ तो क्या करें
oo
उसकी अना ने सारे तअल्लुक़ मिटा दिए
उस बे-वफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें
oo
मीना भी तू है मय भी तू साक़ी भी जाम भी
आँखों में तेरी डूब न जाएँ तो क्या करें
oo
कश्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर
हो जाएं गर…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on April 8, 2019 at 4:30pm — 10 Comments
सेल्फ़ी-स्टिक से ले डाली रे, कुल्फ़ी वाली सेल्फ़ी।
हेल्द़ी-स्टिक दो खा डालीं रे, हम सब दिखते हेल्द़ी।।
मम्मी-पापा को भी लाओ, सेल्फ़ी लेंगी मम्मी।
कुल्फ़ी सब जी भर के खाओ, मम्मी वाली कुल्फ़ी।।
सर्दी-ज़ुकाम से क्या डरना, गर्मी वाली सर्दी।
ज़ल्दी से अब और खिलादो, ठंडी कुल्फ़ी ज़ल्दी।।
सेल्फ़ी-स्टिक से ले डाली रे, मस्ती वाली सेल्फ़ी।
ले ली दादा-दादी वाली, सेल्फ़ी सुंदर ले ली।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2019 at 3:00pm — 2 Comments
मापनी: 2122 2122 2122 212
झूठ का व्यापार बढ़ता जा रहा है आजकल,
और हर इक पर नशा ये छा रहा है आजकल
है लड़ाई का नजारा हर तरफ देखें जिधर,
आदमी ही आदमी को खा रहा है आजकल
इस प्रगति के नाम पर ही मिट रहे संस्कार सब
झूठ को हर आदमी अपना रहा है आजकल
बाँटकर भगवान को नेता खुशी से झूमकर
काबा’ तेरा काशी’ मेरी गा रहा है आजकल
जाग ‘मेठानी’ बचायें आग से अपना चमन
नित नया जालिम जलाने आ रहा है…
Added by Dayaram Methani on April 8, 2019 at 2:01pm — 7 Comments
लो फिर से गर्मियों की छुट्टियां आ गईं। दो महीने पहले से परिवारजन और बच्चे इन छुट्टियों के सही व नये इस्तेमाल के बारे में अपनी-अपनी राय दे रहे थे। बच्चों की योजनाओं पर बड़ों की व्यस्तताओं और योजनाओं के कारण बच्चों के मन के फैसले नहीं हो पा रहे थे। आम चुनावों का भी माहौल चल रहा था। किसी के मम्मी-पापा किसी ज़िम्मेदारी में फंसे थे, तो किसी के किसी और काम में। बहरहाल इन छुट्टियों के एक-एक दिन का सही इस्तेमाल होना बहुत ज़रूरी था।
मुझे फुरसत देख घर के और पड़ोस के बच्चों ने मुझे यह…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on April 7, 2019 at 10:34am — 3 Comments
छा रहा नभ में अँधेरा
जुगनुओं ने सूर्य घेरा
नेह भावों से निचोड़ूँ दीप मैं घर घर जलाऊँ
वेदना तुझको बुलाऊँ
रो दिए वीरान पनघट
टूट के बिखरे हुए घट
हैं बहुत मुश्किल समय के ये थपेड़े सह न पाऊँ
वेदना तुझको बुलाऊँ
अश्रुओं से सिक्त वीणा
न कहूँ अंतस की पीड़ा
रिक्त भावों से पड़े तो किस तरह ये गीत गाऊँ
वेदना तुझको बुलाऊँ…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 7, 2019 at 10:30am — 8 Comments
"माई, अपने घर में एक मोटी पुस्तक थी। रामायण । उसमें से तूने एक प्रसंग सुनाया था कि एक केवट था जो राम चंद्र जी को नाव में इसलिये नहीं बिठा रहा था कि उनके पैरों की धूल से उसकी नाव कहीं सुंदर स्त्री ना बन जाय अतः वह उनके पैर पखारने के बाद ही नाव में बैठाने की शर्त रखा था।"
"हाँ बेटा, रामायण में लिखा तो यही है। क्योंकि भगवान राम की चरण रज़ से एक पत्थर की शिला स्त्री बन गयी थी।"
"क्या सचमुच ऐसा संभव हुआ था?"
"हुआ तो ऐसा ही था मगर वह तो एक श्राप के कारण हुआ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 6, 2019 at 11:30am — 14 Comments
पागल मन की मर्ज़ियाँ, नैनों के उत्पात।
स्पर्श करें गुस्ताखियाँ, सपना लगती रात।१ ।
ये आँखों की सुर्खियाँ, बिखरे-बिखरे बाल।
अधरों की शैतानियाँ ,करें उजागर गाल।२ ।
यौवन रुत में जब करें , नैन हृदय पर वार।
घूंघट पट में लाज के, शरमाता शृंगार।३ ।
नैन करें जब नैन से, अंतर्मन की बात।
दो पल में सदियाँ मिटें ,रात लगे सौग़ात।४ ।
बंजारे सा मन हुआ, बंजारी सी…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 5, 2019 at 3:42pm — 6 Comments
रक्षा करते देश की,दे कर अपनी जान।
वीर जवानों का करो,दिल से तुम सम्मान।।
बाहर से उजले दिखें, मन में भरे विकार।
ऐसे लोगों पर कभी,करना न ऐतबार।।
ये माना मैं जी रहा,तेरे जाने बाद।
लेकिन मुझको हर समय,तेरी आती याद।।
जीवन के पथ पर तुम्हें,छाँव मिले या धूप।
हर पल आगे ही बढ़ो,सुख दुख में सम रूप।।
मदिरा बहुत बुरी बला,किसने की ईजाद।
इसके कारण हो रहे,कितने घर बरबाद।।
थोड़े से भी हो…
ContinueAdded by surender insan on April 4, 2019 at 2:30pm — 6 Comments
212 212 212 212
ख़ैरमक़दम हमारा हुआ तो हुआ ।
वार फिर. कातिलाना हुआ तो हुआ ।।
फर्क पड़ता कहाँ अब सियासत पे है ।
रिश्वतों पर खुलासा हुआ तो हुआ ।।
ये ज़रुरी था सच की फ़ज़ा के लिए ।
झूठ पर जुल्म ढाना हुआ तो हुआ ।।
आप आये यहाँ तीरगी खो गयी ।
मेरे घर में उजाला हुआ तो हुआ ।।
हिज्र के दौर में हम सँभलते रहे ।
आपके बिन गुजारा हुआ तो हुआ ।।
मुझको मालूम था…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 4, 2019 at 12:46pm — 8 Comments
जब से शहर में चुनाव का बिगूल बज गया
श्वान का भी श्वान से खौफ निकल गया
शोर और सिर्फ शोर मच रहा सुबह शाम
पांच साल बाद नेता को पडा जनता से काम
श्वान हैरान परेशान घूमता रहता इधर उधर…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on April 4, 2019 at 11:00am — 4 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
_____________
आख़िर ये इश्क़ क्या है जादू है या नशा है
जिसको भी हो गया है पागल बना दिया है
oo
हाथो में तेरे हमदम जादू नहीं तो क्या है
मिट्टी को तू ने छूकर सोना बना दिया है
oo
उस दिन से जाने कितनी नज़रें लगी हैं मुझपर
जिस दिन से तूने मुझको अपना बना लिया है
oo
खिलता हुआ ये चेहरा यूँ ही रहे सलामत
तू ख़ुश रहे हमेशा मेरी यही…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on April 4, 2019 at 9:13am — 6 Comments
221 2121 1221 212
फरियाद कोई उनसे सुनाई नहीं जाती ।
आंखों से मगर ,बात छुपाई नहीं जाती ।
मैं जानता हूं ,तू मेरे हक में नहीं है पर
दिल से तेरी तस्वीर मिटाई नहीं जाती ।
जो बात जला देती है दिल को मेरे अक्सर
वो बात किसी से भी बताई नहीं जाती।
तुझपे न असर होगा किसी बात का मेरी
फिर भी मेरे होठों से दुहाई नहीं जाती ।
बारिश में बिखर जाते हैं जिनके सभी खुश रंग
तस्वीर वो अश्कों से सजाई नहीं…
Added by मनोज अहसास on April 3, 2019 at 5:06pm — 3 Comments
ग़ज़ल
मिलन की रात का लम्हा छुपा है
नज़र में बस तेरा चेहरा छुपा है
दुआ लेकर निकलना रोज़ घर से
यहाँ हर मोड़ पर ख़तरा छुपा है
लबों पर प्यास लेकर फिरने वाले
तेरे अंदर भी इक दरिया छुपा है
महकती है हमेशा ज़ीस्त यूँ भी
कि सांसों में तेरा गजरा छुपा है
सनम मत जा अभी ख़्वाबों से मेरे
अभी तो चाँद भी आधा छुपा है
'अहद' लिखना न होगा बंद मेरा
अभी दिल में बहुत लावा छुपा है !
मौलिक और…
ContinueAdded by AMIT on April 3, 2019 at 2:06pm — 7 Comments
तिनका तिनका जोड़ बनाया एक घरौंदा
दरवाजे पर आँधी आके ठहर गई
बर्बादी की धीमे-धीमे
आहट पाकर
स्वप्नकपोतों की
आँखों में भय के साये
सहमे सहमे भीरु
कातर बुनकर देखो
कोने में जा बैठे
दुबके सकुचाये
…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 3, 2019 at 12:00pm — 7 Comments
दिखलाते हैं जो सदा, व्हाट्सएप पर ओज।
गुडमार्निंग गुडनाइट जो, करें नियम से रोज।।
करें नियम से रोज, किंतु जब सम्मुख मिलते।
तब फिर इनके होंठ, नहीं रत्तीभर हिलते।।
आगे बढ़कर हाथ, नहीं यह कभी मिलाते।
वटसिपिया व्यवहार, नैट पर ये दिखलाते।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**
Added by Hariom Shrivastava on April 3, 2019 at 11:06am — 2 Comments
122 122 122 122
वो मक़तल में कैसी फ़ज़ा माँगते हैं ।।
जो क़ातिल से उसकी अदा माँगते हैं ।।
जुनूने शलभ की हिमाकत तो देखो ।
चरागों से अपनी क़ज़ा माँगते हैं।।
उन्हें भी मिला रब सुना कुफ्र में है ।
जो अक्सर खुदा से जफ़ा माँगते हैं ।।
असर हो रहा क्या जमाने का उन पर ।
वो क्यूँ बारहा आईना माँगते हैं ।।
अजब कसमकश है मैं किससे कहूँ अब ।
यहां बेवफ़ा ही वफ़ा माँगते हैं…
Added by Naveen Mani Tripathi on April 2, 2019 at 6:42pm — 8 Comments
नारी तो केवल है नारी है
नर भी तो केवल है नर
दोनोँ के विचार अलग हैं
दोनोँ के किरदार अलग
ना इसका कुछ हिस्सा ज्यादा
ना ही उसका है कुछ कम
कभी…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on April 2, 2019 at 6:30pm — 4 Comments
"अरे पागल हो गए हो क्या, उस ऑटो को क्यों जाने दिया. इतना टेंशन हैं चारोतरफ और हम लोग यहाँ फंसे हुए हैं जहाँ तीन दिन पहले ही दंगे हुए थे", राजेश एकदम बौखला गया.
"चिंता मत करो, अब स्थिति कुछ ठीक हैं, दूसरा आ जायेगा", उसने इत्मीनान से कहा और सामने सड़क पर देखने लगा.
तभी एक दूसरा ऑटो आता दिखाई पड़ा, ऑटो ड्राइवर को देखकर ही राजेश को समझ आ गया कि यह गैर मज़हबी है और वह थोड़ा पीछे हो गया.
"आ जाओ, चलना नहीं हैं क्या", कहते हुए वह राजेश का हाथ खींचते हुए ऑटो में बैठ गया.
कुछ समय बाद…
Added by विनय कुमार on April 2, 2019 at 5:36pm — 10 Comments
ओ बी ओ को 9वीं सालगिरह की सौगात
ग़ज़ल (फाइलुन _फाइलुन _फाइलुन _फाइलुन /फाइलात)
मेरा दिल दे रहा है दुआ ओ बी ओ l
तू फले फूले यूँ ही सदा ओ बी ओ l
कोई सीखे कथा, छंद या शायरी
इन सभी का है तू रहनुमा ओ बी ओ l
भाई सौरभ हों राना या मिथलेश हों
इनके दम से तू आगे बढ़ा ओ बी ओ l
सीखने का दिया मंच तूने हमें
क्यूँ न तेरा करूँ शुक्रिया ओ बी ओ l
आज ख़ुश हैं बहुत यूँ नहीं योगराज
गोद में इनकी फूला फला ओ बी…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2019 at 12:01pm — 10 Comments
ओबीओ को समर्पित एक क़त'आ
----------------------------------
जब से तेरी मेहरबानी हो गई
ख़ूबसूरत ज़िन्दगानी हो गई
हम हुए तेरे दिवाने इस तरह
जिस तरह 'मीरा' दिवानी हो गई
...........
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
--------
जिंदगी को गुनगुना कर चल दिए
मौत को अपना बना कर चल दिए
oo
उम्र भर की दोस्ती जाती रही
आप ये क्या गुल खिलाकर चल…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on April 2, 2019 at 10:00am — 6 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
Switch to the Mobile Optimized View
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |