एक नवगीत
समीक्षा का हार्दिक स्वागत
रैली, थैली, भीड़-भड़क्का,
सजी हुई चौपाल
तंदूरी रोटी के सँग है,
तड़के वाली दाल
गली-गली में तवा गर्म है,
लोग पराँठे सेक रहे
जन गण के दरवाजे जाकर,
नेता घुटने टेक रहे
पाँच साल के बाद सियासत,
दिखा रही निज चाल
वादों की तस्वीरें…
Added by बसंत कुमार शर्मा on November 29, 2018 at 1:00pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
बज गई है डुगडुगी बस अब तमाशा देखिये
अब यहाँ फूटेगा बातों का बताशा देखिये//१
संग नेता के कुलाचें भर रही जो भीड़ ये
घर पहुंचकर इसके जीवन की हताशा देखिये //२
हर गली हर मोड़ पे भूखों की लंबी फ़ौज़ है…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on November 28, 2018 at 8:00pm — 12 Comments
1222 1222 122
न जाने क्या हुई हमसे ख़ता है
हमारा यार जो हमसे खफ़ा है।
यूँ ही बदनाम हाकिम को हैं करते
यहाँ प्यादा भी जब जालिम बड़ा है।
जरा सींचो भरोसा तुम जड़ों में
शज़र रिश्तों का इन पर ही खड़ा है।
उसी ने छू लिया है आसमाँ को
परिंदा जो गिरा, गिर कर उठा है।
नहीं हमदर्द होता आदमी जो
सहारा गलतियों में दे रहा है।
अमा की रात में महताब आया
तुम आये तो हमे ऐसा लगा है।
मौलिक…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2018 at 6:30pm — 10 Comments
2122 1212 22/112
जब से हमदम सिपहसलार हुआ
सबसे ज़्यादा हमीं पे वार हुआ//1
मौत से एक बार भागा जो
मौत का रोज़ ही शिकार हुआ //2
दिल के आँगन में चाँद उतरा जब
दिल का आँगन सदाबहार हुआ//3
आज फिर आग में जली दुल्हन
आज फिर हिन्द शर्मसार हुआ//4
मैं तो खुद ही मिटा मुहब्बत में
कौन कहता है मैं शिकार हुआ// 5
दूर इक बर्फ की शिला था मैं
तेरे छूने से आबशार हुआ//6
बेक़रारी भले मिली…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on November 28, 2018 at 1:00am — 2 Comments
1222 1222 122
खतों का चल रहा जो सिलसिला है ।
मेरी उल्फ़त की शायद इब्तिदा है ।।
यहाँ खामोशियों में शोर जिंदा ।
गमे इज़हार पर पहरा लगा है ।।
छुपा बैठे वो दिल की आग कैसे।
धुंआ घर से जहाँ शब भर उठा है ।।
नही समझा तुझे ऐ जिंदगी मैं ।
तू कोई जश्न है या हादसा है ।।
मिला है बावफा वह शख़्स मुझको ।
कहा जिसको गया था बेवफा है…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 27, 2018 at 10:00pm — 4 Comments
चुनौती दे डाली ....
खिड़कियों के पर्दों ने
रोशनी के प्रभुत्व को
चुनौती दे डाली
जुगनुओं की चमक ने
अंधेरों के प्रभुत्व को
चुनौती दे डाली
अंतस की पीड़ा ने
आँखों के सैलाबों को
चुनौती दे डाली,........
विरह के अभयारण्य ने
स्मृतियों के भंडारण को
चुनौती दे डाली
बिस्तर की सलवटों ने
क्षणों की चाल को
चुनौती दे डाली
जीत के आसमान को
हार की ज़मीन ने
चुनौती दे…
Added by Sushil Sarna on November 27, 2018 at 7:28pm — 6 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२
द्वार पर जो दिख रही सारी सजावट आप से है
आज अधरों पर हमारे मुस्कुराहट आप से है
आपकी आमद से मौसम हो गया कितना सुहाना
जो हुई महसूस गरमी में तरावट आप से है
यूँ तो मेरी जिन्दगी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on November 27, 2018 at 9:08am — 9 Comments
ग़ज़ल
इक ठिकाना तलाशता हूँ मैं ।
टूटा पत्ता दरख़्त का हूँ मैं ।।
कुछ तो मुझको पढा करो यारो ।
वक्त का एक फ़लसफ़ा हूँ मैं ।।
हैसियत पूछते हैं क्यूं साहब ।
बेख़ुदी में बहुत लुटा हूँ मैं ।।
इश्क़ की बात आप मत करिए ।
रफ़्ता रफ़्ता सँभल चुका हूँ मैं ।।
चाँद इक दिन उतर के आएगा ।
एक मुद्दत से जागता हूँ मैं ।।
खेलिए मुझसे पर सँभल के जरा।
इक खिलौना सा…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 26, 2018 at 11:33pm — 10 Comments
कौए अब अपने पितृ स्थान के लिए
स्कूल के बच्चों के हिस्से में आई
अनुदान राशि को हड़प ले गये ।
और अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए
राजनीति को यूँ अपनाया
कि विधायक, सरपंच मजबूर हैं
सरकारी सहायता को पितृों तक भेजने के लिए ।
अन्य पक्षियों को छोड़कर
केवल कौओं की वोटो की गिनती
के मायने जियादा हैं ।
शेर भी लाचार हैं
वे अब शिकार नहीं करते
वे शिकार हो जाते हैं ।
शेरों को हमेशा
कौओं ने सरकश में नचवाया…
Added by सूबे सिंह सुजान on November 26, 2018 at 11:00pm — 6 Comments
नया विकल्प ...
हंसी आती है
जब देखता हूँ
रात को दिन कहने वाले लोग
जुगनुओं की तलाश में
भटकते हैं
हंसी आती है
जब लोग नेता और अभिनेता की तासीर को
अलग-अलग मानते हैं
उनकी जीत के बाद
स्वयं हार जाते हैं
हंसी आती है
उन लोगों पर
जो मात्र हाथों में
किसी पार्टी का परचम उठाकर
स्वयं का अस्तित्व भूल जाते हैं
भूल जाते हैं कि वो
मात्र शोर का माध्यम हैं,
और कुछ नहीं
हंसी आती है…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 26, 2018 at 6:45pm — 3 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२/ १२२
मैं हूँ साजिद, मेरा मस्जूद मगर जाने ना
घर में साकिन हैं कई, सबको तो घर जाने ना //१
ख़ुद ही पोशीदा है तू ख़ल्क़ में तो क्या शिकवा
कोई क्या आए तेरे दर पे अगर जाने ना //२
दोनों टकराती हैं हर रोज़ सरे बामे उफ़ुक़
मोजिज़ा है कि कभी शब को सहर जाने ना //३
ये अलग बात है तू मुझपे नज़र फ़रमा नहीं
वरना क्या बात है जो तेरी नज़र जाने ना //४
तू मुदावा है मेरे गम का तुझे क्या मालूम
बात यूँ है कि…
Added by राज़ नवादवी on November 26, 2018 at 12:04pm — 11 Comments
122 122 122 122
सुना ठीक है सिरफिरा आदमी हूँ
उसूलों का पाला हुआ आदमी हूँ।
हमेशा ही जिसने सही बेवफ़ाई
जमाने में वो बावफ़ा आदमी हूँ।
कि मौजें मुझे दूर खुद से करेंगी
अभी मैं भँवर में फँसा आदमी हूँ।
डिगायेगी कैसे मुझे कोई आफ़त
मैं चट्टान जैसा खड़ा आदमी हूँ।
रहा साथ जिसके जरूरत में अक्सर
कहा है उसी ने बुरा आदमी…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 26, 2018 at 10:00am — 9 Comments
जहाँ सपने थे
लोग अपने थे
वह धरती कब की छूट गयी
भीड़ थी पर ठावँ थी
धूप थी संग छावं थी
वह धरती कब की छूट गयी
जनक थे जननी थी
बसेरा था रहनी थी
वह धरती कब की छूट गयी
जो छूट गये
जो रूठ गये
वही आस पास है
यह कैसे एहसास है ?
.
मौलिक व अप्रकाशित"
Added by amita tiwari on November 25, 2018 at 8:30pm — 3 Comments
माँ शारदा का वरदान है प्यार
[ श्री रामकृष्ण अस्पताल सेवाश्रम, कंखल (उत्तरखंड, भारत) से ]
ऐसी ही ... प्रिय
लेटी रहो न मेरे घुटने पर सर टेके
भावनायों के निर्जन समुद्र तट पर आज
बहें हैं आँसू बहुत मध्य-रात्रि के अंधेरे में
कभी अनेपक्षित बह्ते कभी रुक्ते-रुकते
पहले इससे कि तुम्हारा एक और आँसू
मेरे अस्तित्व पर टपक कर मुझको
नि:स्तब्ध,…
ContinueAdded by vijay nikore on November 25, 2018 at 7:16pm — 8 Comments
221 2121 1221 212
तुमको खबर है खूब खतावार कौन है
दो सोच कर सजाएँ गुनहगार कौन है।१।
यारो सिवा वो बात के करता ही कुछ नहीं
हाकिम से इसके बाद भी बे-ज़ार कौन है।२।
हम तो रहे जहीन कि जिस्मों पे मर मिटे
पहली नज़र का बोल तेरा प्यार कौन है।३।
सबसे बड़ा सबूत है मुंसिफ का फैसला
खाके कसम वफा की वफादार कौन है।४।
अपना तो फर्ज एक है तदबीर कर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2018 at 1:14pm — 6 Comments
2122 1212 22/112
माँ
***
माँ जिधर भी नज़र उठाती है
वो ज़मीं हँसती मुस्कुराती है//१
हर बला दूर ही ठहर जाए
माँ उसे डांट जब लगाती है //२
माँ के कदमों से दूर जाए जो
ज़िन्दगी फिर उसे रुलाती है //३
पास जब मौत आए बच्चों के
तब तो माँ जां पे खेल जाती है //४
जब कभी भूल हमसे हो जाए
माँ ही दामन में तब छुपाती है //५
भूख के साये में न हों बच्चे
खुद को माँ धूप में सुखाती है…
Added by क़मर जौनपुरी on November 25, 2018 at 1:08pm — 7 Comments
2122 2122 2122 2122
इस कदर बेबस हूँ मैं, लाचार हूँ इस ज़िन्दगी से
दोस्तों, मर भी नहीं सकता अभी, अपनी खुशी से।
क्या कहूँ, अपने लिए कुछ, दूसरों के वास्ते कुछ
कायदे तुमने लिखे है सोच बेहद दोगली से।
वक्त उन माँ-बाप को भी दे जरा, तेरे लिए
जो उभर पाये नहीं ताउम्र अपनी मुफ़लिसी से।
इश्क़ के सहरा में 'राहुल' प्यास से बदहाल यूँ हूँ
बूँद भर जल के लिए लिपटा हूँ काँटों की कली से।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by Rahul Dangi Panchal on November 25, 2018 at 12:00pm — 6 Comments
2122 1122 1122 22/ 122
वह्म को खोल के हमने तो वहम कर डाला
जीभ थी ऐंठती, इस दर्द को कम कर डाला
बाज़ लफ़्ज़ों के तलफ़्फ़ुज़ को हज़म कर डाला
नर्म जो थी न सदा उसको नरम कर डाला
क़ह्र की छुट्टी करी सीधे कहर को लाकर
टेढ़े अलफ़ाज़ पे हमने ये सितम कर डाला
क्योंकि लंबी थी बहुत रस्मो क़वायद पे बहस
ख़त्म होती नहीं ख़ुद, हमने ख़तम कर…
Added by राज़ नवादवी on November 25, 2018 at 9:59am — 15 Comments
आग की तरह के शब्द,
मेरी आत्मा में जलाते है ,
मैं अपने आप को खोया पाता हूँ ,
नियंत्रण, रखना प्रतीत नहीं हो सकता है,
इरादे लटक जाते
फांसी पे एक ध्रुव की ,
और प्यार धुंधला हो जाता है,
आँखों की कालिमा से
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by narendrasinh chauhan on November 24, 2018 at 3:35pm — 5 Comments
2122 1122 1212 22
सीधे सीधे वो कलेजे पे वार करता है
खूब दिलबर है वो हँसके शिकार करता है //१
चाल होती है अज़ब उसकी मीठी बातों में
झूठी बातें वो बड़ी शानदार करता है //२
खूब हिस्सा जो दवाओं में खा रहा है वो
डॉक्टर अब तो दवा से बीमार करता है //३
जिस्म औ रूह के सुकून को मिटा डाला
और कहता है कि वो मुझसे प्यार करता है //४
ख़ून का प्यासा हुआ है ग़ज़ब का अब इंसां
ख़ून के रिश्ते को भी तार तार करता है…
Added by क़मर जौनपुरी on November 23, 2018 at 9:22pm — 7 Comments
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