पितृ दिवस पर कुछ क्षणिकाएँ ....
काँधे को
काँधे ने
काँधे दिया
इक अरसे के बाद
सृष्टि रो पड़ी
.........................
छूट गया
उँगलियों से
उनका आसमान
इक नाद बनकर रह गया
इक नाम
पापा
............................
पापा
पुत्र का आसमान
पुत्र
पिता का अरमान
एक छवि एक छाया
एक जान
एक पहचान
सुशील सरना / 19-6-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 19, 2022 at 8:28pm — 4 Comments
दोहे -पिता
*****
पिता एक उम्मीद सह, हैं जीवन की आस
वो हिम्मत परिवार की, हैं मन का विश्वास।१।
*
जीवन जग में तात ही, केवल ऐसा गाँव
सघन शीत जो धूप दें, और धूप में छाँव।२।
*
जो करते सुत को सरल, जीवन की हर राह
अनुभव से अर्जित हमें, देकर सीख अथाह।२।
*
डाँट-डपट करते भले, भोर, दिवस या रात
सम्बल सबके पर रहे, कठिन समय में तात।४।
*
नित सुख में परिवार हो, होती मन में चाह
हँसते -हँसते झेलते, इस को पीर अथाह।५।
*
पत्थर से व्यवहार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2022 at 3:53pm — 4 Comments
कोशिश है जीवन पाने की
सबकी चाह प्रथम आने की
कई करोड़ों लड़ते लेकिन
कोई - कोई विजयी निकले
शेष कहाँ जा खो जाते हैं, इसका कुछ अनुमान नहीं है
कोई चाहे कुछ भी कह ले, जीवन पथ आसान नहीं है
शाम सुबह या जेठ दुपहरी, भूख मिटाते जीवन बीते
कल जैसा ही कल होगा क्या, इस असमंजस में हम जीते
रेत सरीखे अपने सपने, कब ढह जाए नहीं भरोसा
जीने की उम्मीद लिए सब, बूँद जहर का चेतन पीते
दो रोटी पाने की …
Added by नाथ सोनांचली on June 17, 2022 at 9:59pm — 2 Comments
जागो मेरे वीर सपूतो, मैंने है आह्वान किया
आज किसी कपटी नज़रों ने मेरा है अपमान किया
किसी पापी के नापाक कदम, मेरी छाती पर ना पड़ने पाए
आज सभी तुम प्रण ये कर लो, जो आया, कुछ, ना लौट के जाने पाये
दिखला दो तुम दुश्मन को, तुम भारत के वीर सिपाही…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 17, 2022 at 11:15am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो
अब रक्त डूबी इस में न कोई कहानी हो।।
*
होता अगर हो प्यार का आबाद हर नगर
हर बात उसकी हम को भी यूँ आसमानी हो।।
*
भटको न आस पास के रंगीं नजारे देख
पथ में रखो निगाह जो ठोकर न खानी हो।।
*
हमने उन्हें खुदा का जो दर्जा दिया है फिर
कोई सजा अगर हो तो उन की जुबानी हो।।
*
किस्मत बड़ी है मान ले दामन में गर गिरे
मोती सा आबदार जो आँखों का पानी हो
*
दिल है जवाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2022 at 7:14am — No Comments
मुक्तक
आधार छंद हंसगति (11,9 )
प्रीतम तेरी प्रीत , बड़ी हरजाई ।
विगत पलों की याद, बनी दुखदाई ।
निष्ठुर तेरा प्यार , बहुत तड़पाता -
तन्हाई में आज, आँख भर आई ।
* * *
दिल से दिल की बात, करे दिलवाला ।
मस्ती में बस प्यार , करे मतवाला ।
उसके ही बस गीत , सुनाता मन को -
पी कर हो वो मस्त , नैन की हाला ।
सुशील सरना / 15-6-22
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 15, 2022 at 11:44am — 4 Comments
1
माँ गुरु थी पहली अपनी जिसका तप पावन ज्ञान लिखूँ
छाँव मिली जिस आँचल में उसको सब वेद पुरान लिखूँ
गर्भ पला जिसके तन में उसको अपना भगवान लिखूँ
मात सनेह समान यहाँ कुछ और नहीं उपमान लिखूँ
2
साजन जो परदेश गए करके मकरन्द विहीन कली
अश्रु गिरें दिन रात यहाँ बरसे जस सावन की बदली
बात रही दिल में जितनी दिल ने दिल से दिल में कह ली
हाल हुआ दिल का अपने जस नीर बिना तड़पे मछली
नाथ…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on June 15, 2022 at 7:54am — 4 Comments
आओ कसम लें देश जलाया न जाएगा
अब एक दूसरे को चिढ़ाया न जाएगा।।
*
यह देश राम श्याम से विक्रम भरत से है
वन्शज इन्हीं के सारे भुलाया न जाएगा।।
*
मंगोल हूण शक या मुगल आर्य जो भी हैं
आपस में इन को और लड़ाया न जाएगा।।
*
बाबर की भूल आज भी जुम्मन गले लगा
सबको कसम है ऐसा सिखाया न जाएगा।।
*
संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं
कोई भी भेद-भाव हो गाया न जाएगा।।
*
होगी समान न्याय की जब रीत देश में
तब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 14, 2022 at 6:18pm — 2 Comments
क्यों परेशान होता है तू , जिसे जाना है वो जाएगा
हाथ जोड़ कर पैर पकड कर, तू उसको रोक ना पाएगा
वो जाता है तो जाने दे, पर याद न उसकी जाने दे
तू उसको ये अवसर ना दे, वो बाद मे तुझे बहाने दे
जिसको आँसू की क़दर नहीं, ना होने का तेरे असर नहीं
उसे रोक के क्या तू पाएगा, तेरी खातिर जो बेसबर नहीं
तू रोके तो रुक जाएगा, घड़ियाली आँसू बहाएगा
अपनी हर नाकामी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 14, 2022 at 12:30pm — 1 Comment
तृप्ति भी मिलती नहीं औ द्वंद भी कुछ इस तरह है
सोचना क्या? छोड़ना क्या? कुछ नहीं बस में हमारे
साथ किसके क्या रहा है छोड़कर धरती गगन को
फूल जो भी आज हैं वे छोड़ देंगे कल चमन को
मौत पर होवें दुखी या जन्म पर खुशियाँ मनाएँ
हार से हम हार जाएँ या लड़े औ जीत जाएँ
ज़िन्दगी के राज़ गहरे दूर जितने चाँद तारे
सोचना क्या? छोड़ना क्या? कुछ नहीं बस में हमारे
हर पतन के बाद ही होता जगत उत्थान भी है
शांति की ही गोद में …
Added by नाथ सोनांचली on June 13, 2022 at 11:10am — 6 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
बाबर से यार जो भी बुलाने पे आ गये
इतिहास लिख के झूठ छुपाने पे आ गये।१।
*
अनबन से घर की गैर जो न्योते गये कभी
अपनों के बाद खुद भी निशाने पे आ गये।२।
*
पुरखों को अपने भूल के अपनाते गैर को
ये कौन लोग देश जलाने पे आ गये।३।
*
कानून कैसे आज भी पहले सा है विवश
गुण्डे समूची फौज ले थाने पे आ गये।४।
*
गुजरा वो दौर बम से जो दहले था देश पर
पत्थर से आज शान्ति उड़ाने पे जा गये।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2022 at 9:30pm — 4 Comments
(1222 1222 1222 1222 - हजज मुसम्मन सालिम)
न देखा है कभी उनको हुई पर प्रीत क्या कहने.
न जाना ही न पहचाना बने मनमीत क्या कहने.
कहें सब जाल दुनिया यह सभी सुर ताल आभासी,
लिखे ऋतु गीत उपवन के बजे संगीत क्या कहने.
- शून्य…
ContinueAdded by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on June 11, 2022 at 7:00pm — No Comments
बोझ पड़ा सिर पे घर का मन में घनघोर अशांति हुई
यौवन में तन वृद्ध हुआ अरु जर्जर मानस क्लांति हुई
बीत गए सुख चैन भरे दिन जो अब लौट नहीं सकते
बाल सफेद हुए सिर के मुख की सब गायब कांति हुई
जीवन के दिन चार यहाँ इसमें उसमें हम त्रस्त हुए
अर्थ क्षुधा बुझती न कभी धन संचय में बस व्यस्त हुए
वक़्त नहीं मिलता जिसमें हम बैठ कहीं कुछ सोच सकें
बन्धु सखा हित वक़्त नहीं अब यूँ हम शुद्ध गृहस्थ हुए
नाथ सोनांचली
विधान -: भानस ×7…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on June 11, 2022 at 2:30pm — No Comments
मैं बिकती हूँ बाज़ारों में, तन ढंकने को तन देती हूँ
मैं बिकती हूँ बाज़ारों में, अन्न पाने को तन देती हूँ
तन देना है मर्जी मेरी, मैं अपने दम पर जीती हूँ
जिल्लत की पानी मंजूर नहीं, मेहनत का विष मैं पिती हूँ
हाथ पसारा जब मैंने, हवस की नज़रों ने भेद दिया
अपनों के हीं घेरे में, तन मन मेरा छेद…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 11, 2022 at 10:24am — No Comments
1।।
कभी डाँट से तो कभी स्नेह दे के पिता ने किया पूर्ण कल्यान मेरा
पढ़ाया लिखाया सिखाया मुझे जो उसी से हुआ आज उत्थान मेरा
नहीं जो पिता साथ होते कभी तो, लगा यों कि संसार वीरान मेरा
पिता का नहीं नाम जो साथ होता न होता कही आज सम्मान मेरा
2।।
पिता में बसे तीर्थ सारे हमारे उन्हीं में सदा ईश का भान पाया
पिता के बिना जो पड़ी मुश्किलें तो स्वयं को निरामूर्ख नादान पाया
निजी ज़िन्दगी में पिता जी सरीखा रहा दोस्त जो वो न इंसान…
Added by नाथ सोनांचली on June 10, 2022 at 2:30pm — 8 Comments
तू उगता सा सूरज, मैं ढलता सितारा
तेरी एक झलक से मैं छुप जाऊँ सारा
तू गहरा सा सागर, मैं छिछलाता पानी
तू सर्वगुण सम्पन्न मैं निर्गुण अभिमानी
तू दीपक के जैसा मैं हूँ एक अंधेरा
तू निराकार रचयिता, मैं…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 9, 2022 at 11:30am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
जो व्यक्ति जग में जन्म से अपना इमाम हो
बोलो किसी भी और का क्योंकर ग़ुलाम हो।।
*
इतनी न आपने देश में फैले अशान्ति फिर
घर में सभी के आज भी पौदा जो राम हो।।
*
चाहे किसी भी कौम से नाता हो फर्क क्या
जाफर न घर में आप के, पैदा कलाम हो।।
*
दण्डित किया ही जाएगा गद्दार देश में
अब्दुल गणेश जोन या करतार नाम हो।।
*
छोड़ो ये खानदान ये मजहब ये जातियाँ
सबकी वतन में देखिए पहचान काम हो।।
*
नफरत लिए न भोर के बैठी हो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2022 at 9:58am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
खिचवाते भीत प्रीत की ऊँची नहीं कहीं
मीनारें नफरतों की ये ढहती नहीं कहीं।।
*
जकड़ा है राजनीति ने मकड़ी के जाल सा
इतिहास खोद बस्तियाँ मिलती नहीं कहीं।।
*
होली में कब वो रंग में डूबा था पूछ मत
अब तो मिठास ईद की दिखती नहीं कहीं।।
*
मजहब के फेर भूल के भटके हैं इस तरह
आये हैं ऐसी राह जो खुलती नहीं कहीं।।
*
मन्दिर के भग्नभाग का इतिहास क्या कहें
बातें जो वामियान की थमती नहीं कहीं।।
*
बाबर ढहाया तोड़ के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2022 at 12:55pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
*
कैसे कैसे सर बचाने में लगे हैं लोग सब
क्या समझ खन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
एक हम हैं जो शिखर पर जान देने पर तुले
नींव के पत्थर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
लहलहाते खेत मेटे सेज के विस्तार को
आजकल बन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
जिसको देखो आग ही की बात करता है यहाँ
कैसे कह दें घर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
हैं सुरक्षित सोचकर वो भीड़ में शामिल मगर
अपने भीतर डर बचाने में लगे हैं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2022 at 12:58pm — No Comments
पतझड़ का मौसम लगते ही बाग-बगीचों में जहां देखों वही पत्तों से जमीन ढक जाती हैं।
गर्मियों की छुट्टियों में बिनी और पम्मी के घर उनकी बुआजी के बच्चे टिपलू और टीना आए हुये थे।दिनभर खेलकूद खाने-पीने की मस्ती चलती और सुबह-शाम को बगीचे मे दादी के साथ पौधो को पानी डालते।
एकदिन शाम को रोजमर्रा की तरह पानी डालते बच्चों को दादाजी ने अपने पास बुलाया और क्यारियों में जमी खरपतबार को उखाड़कर एकतरफ ढेर लगाने को कहा और साथ में उग आए नीम, जामुन, पीपल, तुलसी बगेरह के पौधों को जड़ों सहित मिट्टी में…
Added by babitagupta on June 6, 2022 at 9:30am — No Comments
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