मुक्तक काव्य "कमला "
मन वीणा को झंकृत करती, मीठा स्पंदन हो कमला
छंदों में रस वर्षा करती, रस अभिवंदन हो कमला
निर्झर की पावन झर झर तुम, हंसती हो सरगम जैसा
साधक है खुद स्वर तेरे तो, तुम स्वर गुंजन हो कमला
तन मलयागिर का चन्दन सा, मुखड़ा कुंदन है कमला…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 24, 2012 at 10:40am — 7 Comments
जय जय भारत जय जय भारत
नारद शारद करते आरत
जय जय भारत जय जय भारत
वीरों की जननी है भारत
संतों की धरनी है भारत
अब तो बस ठगनी है भारत
जय जय भारत जय जय भारत
नव नव गुंडे फिरते हैं अब
घोटाले ही करते हैं अब
चोरों की सत्ता है भारत
जय जय भारत जय जय भारत
आतंकी अब मौज मनाते
नक्शल वादी फ़ौज बनाते
दहशत की संज्ञा है भारत
जय जय भारत जय जय भारत
गंगा की धारा है निर्मल
यमुना भी बहती है कल कल
पुस्तक में ऐसा था भारत
जय जय…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 23, 2012 at 10:30am — 12 Comments
बारिश का मौसम
काले काले मेघ
काली काली जुल्फों के सायों की मानिंद
टिप -टिप टिप- टिप
बूँदें गिरती है
भीगी भीगी जुल्फों से टूटे मोती से
भिगोती है तन
मेरी सानों को छूती…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 21, 2012 at 6:27pm — 9 Comments
इश्क के मजबूत दरख्त में
शक की दीमक लग गयी है
यकीन के सब्ज पत्ते
पीले पड़ पड़ के
रिश्तों की ड़ाल से बेसाख्ता गिर रहे हैं
झूठ के तेज़ झोंके
दरख्त को जड़ से उखाड़ने की फिराक में हैं
सच की माटी जड़ों का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 21, 2012 at 11:09am — 9 Comments
मेरे शहर की बारिश
लेकर आती है
ठंडी हवा के झोंकों में लिपटी
माटी की सोंधी खुशबू
बेसाख्ता बरसती बूँदें
समेटे प्यार दुलार भरी ठंडक
और तन बदन भिगोती
मन तक भिगो जाती है
लेकिन किसी को ये सब झूठ लगता है
क्यूंकि ये लेकर आती है
घरों की टपकती
छत की टप-टप
तेज़ हवा के झोंको से सरसराहट
दरवाजों पे आहट
बिरह की आग
सखी की याद
धुत्कार भरी तपिश
भिगोती है तन बदन…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 20, 2012 at 10:40am — 9 Comments
शब्-ए-फुरकत है उजालों की जरुरत क्या है
पास तुम हो तो इशारों की जरुरत क्या है
तुम बसे हो जो बने नूर-ए-खुदा आँखों में
इन निगाहों को नजारों की जरुरत क्या है
दिल लुटे सबके नज़र उसपे पड़ी जैसे ही
बेचने दिल ये बाजारों की जरुरत क्या है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 15, 2012 at 9:33am — 4 Comments
रो मत अरे नादां नहीं ये आब चाहिए
दुनिया बदलने को दिलों में आग चाहिए
दहशत मिटे वहशत मिटे इस मुल्क से मेरे
बिस्मिल,भगत,अशफाक औ आज़ाद चाहिए
लड़ने बुराई से मिटाने गर्दिश-ए-वतन
चट्टान सा तन औ जिगर फौलाद चाहिए…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 11, 2012 at 5:13pm — 9 Comments
दिखा है आइने में अक्स जो अंजाने का
कोई किरदार था भूले हुए अफ़साने का
मुझे जिसने भुलाया चार दिन की चाहत कर
वही अब ढूंढता है इक बहाना आने का
शराबी मिल गया गुजरात की गलियों में गर
पता ही पूछ लेते आप भी मयखाने का
जरा सी बात पर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 11, 2012 at 10:19am — 4 Comments
सदा मैंने सुनी उसने कहा जैसे
नहीं आती नज़र वो है खुदा जैसे
ग़मों में भी हसीं मुस्कान रखते हैं
कभी पानी न आँखों से बहा जैसे
उसे मैं देख कर खो ही गया मौला
कोई शायर ग़ज़ल से मिल रहा जैसे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 10, 2012 at 4:46pm — 3 Comments
लुटेरे वतन के वतन बेच देंगे
धरा लुट गयी तो गगन बेच देंगे
सजावट बनावट जिसे भा रही हो
कली फूल क्या है चमन बेच देंगे
अगर आँख खोली न अपनी अभी तो
फरेबी कलामो- रमन बेच देंगे
बनाया नहीं गर नया कुंड कोई…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 8, 2012 at 9:06am — 8 Comments
यूँ बदनाम अपना वतन हो रहा है
था धरती कभी अब गगन हो रहा है
जो चढ़ फूल देवों 'प' इतरा रहे हैं
बे-ईमान सारा चमन हो रहा है
जो पग में चुभा था कभी खार बनके
वो झूठा फरेबी सुमन हो रहा है
दी आहूति सपनों भरी अब युवा ने…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 6, 2012 at 6:00pm — 10 Comments
''''''''''''''''''''''''''''''''२ मुक्तक '''''''''''''''''''''''''''''''''''
१.
नित बातों से रस बहता है, जैसे तुम मधु हो मधुवन की
मैं देखूं मुख इक टक तेरा ,खिलती सी कली हो उपवन की
ते तन तेरा ये मन तेरा, दूरी मत देना इक पल की
तुम से ही चलती हैं साँसें, इक तुम ही जरुरत…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2012 at 1:44pm — 5 Comments
"""गिरधर ओ मेरे श्याम तुमसे कायनात है
ये सब है तेरा ही करम तुमसे हयात है""""
खुश्बू से तेरी जब कभी मैं रू-ब-रू हुआ
दामन-ए-हिरस-ओ-हबस बे आबरू हुआ
किस्से मैं तेरे सुन रहा हूँ एहतिराम से
पाना है तुझे अब मेरी तू जुस्तजू हुआ
रहमत की नज़र हर्फों में कैसे बयाँ करूँ
आँखों को भिगो कर हमेशा बावजू हुआ
जादू सा तेरा ये करम मैं किस तरह कहूँ
ख्वाबों में दिखा जो वही तो हू-ब-हू…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 4, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
इन नैनों की खिड़की से, देखा इक योवन आला |
पग पग चल कर आई है , जैसे कोई सुरबाला ||
पुष्पलता सम तन तेरा, मुख चंदा सा उजियाला |
माथा सूरज सा दमके, आँखें लगती मधुशाला ||
निर्झर चाहत का जल हो, तुम हो अमृत सी हाला |
पीकर मन नहिं भरता है, फिर भर लेता हूँ प्याला ||
झूमूं गलियों गलियों में, जपता हूँ तेरी माला |
कोई पागल कहता है , कोई कहता मतवाला ||
सपनों की तुम रानी हो, मन है तेरा सुविशाला…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 4, 2012 at 12:30pm — 6 Comments
तुझको साया कहता हूँ , खुद भी तेरे जैसा हूँ
सागर हूँ गहरा लेकिन, लहरें कहती तन्हा हूँ
मुझसे क्यूँ शरमाते हो, मैं तो बस आईना हूँ
कहलो गंदा जितना तुम, मैं बस अच्छा सुनता हूँ…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 3, 2012 at 8:30pm — 6 Comments
प्रति चरण ३२ अक्षर, १६-१६ पर दो विश्राम, इक्त्तीस्वां (३१ वाँ) दीर्घ, बत्तीसवां (३२ वाँ ) लघु
शारदा कृपा कर दो मुझको नादान जान
भरो खाली झोली माता ज्ञान का दो वरदान
मैं तेरा ध्यान कर के छंद की रचना करूँ
देश देश गायें सब भारत की बढे शान
छंद मेरे पढ़ें जो भी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 3, 2012 at 7:00pm — 11 Comments
ग़ज़ल या गीत गा के सुर मिलाने में मजा आए
बने जब धुन जुदा सी तो सुनाने में मजा आए
न सोना हो सका मुमकिन न जगने में सुकूँ पाया
जगे खुद यार को भी यूँ जगाने में मजा आए
गजब है इश्क ये मौला समझना है बहुत मुश्किल
बिछड़ के यार से खुद को रुलाने में मजा आए…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 3, 2012 at 12:30pm — 6 Comments
बे-अदब आबाद होते जा रहे हैं
इल्म है बरबाद होते जा रहे हैं
देख कर गम इस जमाने का कहें क्या
सब दिले-नाशाद होते जा रहे हैं
गम हमारे देख अपनों को न गम हो
इसलिए हम शाद होते जा रहे हैं
चोर ही जाबित यहाँ पग पग लुटेरे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 3, 2012 at 9:30am — 8 Comments
इश्क में बरबाद होते जा रहे हैं
अन सुनी फ़रियाद होते जा रहे हैं
प्यार का हमको सलीका क्यूँ न आया
क्यूँ दिले-नाशाद होते जा रहे हैं
जख्म अब गहरे छुपा के मुस्कुराते
दिन-ब-दिन हम शाद होते जा रहे हैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 12:00pm — 10 Comments
ये दिल मेरा अब इश्क के काबिल ही नहीं है
बिखरा है जो अब टूट के वो दिल ही नहीं है
हम जीते थे जिस शान से यारों के साथ में
वो छूटे हैं पीछे सभी महफ़िल ही नहीं है
गम हैं मेरा जो जान से मारेगा एक दिन
जो गम को डाले मार वो कातिल ही नहीं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 1, 2012 at 5:00pm — 16 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |