तुमने जो भी बात कही थी
सबको माना तेरे बाद
हो गई अपनी पीर पराई
हँस के जाना, तेरे बाद
बोझिल राते खुल के बोलीं
दिन बतियाया तेरे बाद
तेरे रहते था मैं बूढ़ा
खिली जवानी तेरे बाद
तुझे देख जो बादल गरजे
जमकर बरसे तेरे बाद
हो गई सारी दरिया खारी
रो-रो जाना, तेरे बाद
तेरे रहते दर-दर भटका
मंजिल पाई तेरे बाद
हाथों की वो चंद लकीरें
बनीं मुकद्दर तेरे बाद
यह भी तेरी…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on May 2, 2013 at 4:46pm — 15 Comments
अलसाई
आंखों से उठना
जूते, टाई
फंदे कसना
किसी तरह से
पेट पूरकर
पगलाए
कदमों से भगना
ज्ञान कुंड की इस ज्वाला में
निश दिन जलना खेल नहीं है
तेरे युग में .....................
पंछी, तितली
खो गए सारे
धब्बों से
दिखते हैं तारे
फूल, कली भी
हुए मुहाजि़र
प्राण छौंकते
कर्कश नारे
धक्के खाते आना-जाना
धुआं निगलना खेल नहीं है
तेरे युग…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 29, 2013 at 1:55pm — 15 Comments
आधी रात के सपने देकर
तुम मुझको बहला देते हो
जब चाहे जी
अपना लेते हो
जब चाहे जी
ठुकरा देते हो
कैसे लिखूं
तुमको पतियां
तुम वादे
झुठला देते हो
आधी रात के ................
या देवी का
जयघोष तो करते
फिर क्योंकर
चुभला देते हो
अपने छत पर
बाग लगाकर
कलियों को
दहला देते हो
आधी रात के ................
कहती हूं जो
तुमको…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 26, 2013 at 2:41pm — 17 Comments
ना मैं बेटी ना ही मां हूं
केवल रैन गुजारू हूं
रम्य राजपथ, नुक्कड़ गलियां
सबकी थकन उतारू हूं
बाबू मैं बाजारू हूं ........बाबू मैं बाजारू हूं
अंधेरे का ओढ़ दुशाला
छक पीती हूं तम की हाला
कट-कट करते हैं दिन मेरे
रिस-रिस रात गुजारूं हूं
बाबू मैं बाजारू हूं ........बाबू मैं बाजारू हूं
जात-पात का भेद ना मानूं
ना अस्ति ना अस्तु जानूं
घुंघरू भर अरमान लिए मैं
सबका पंथ बुहारू…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 11, 2013 at 6:05pm — 33 Comments
रंग भरे
फागुन के चेहरे
संग रीता
सुख चैन
टनटन करती
भाग रही फिर
अग्निशमन की वैन
होंठ चाटता
बेबस राजू
सोच रहा
फिर आज
चूते छप्पर
सर्द रात दे
तुष्ट नहीं क्यों ताज
तैर रही
उसकी आंखों में
मात-पिता की देह
आवास इंदिरा
के नीचे ही
कुचल गया
जो नेह
है तो वो
जनजाति का पर
पाए कहां प्रमाण
दैन्य रेख पर
अमला…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 10, 2013 at 1:18pm — 7 Comments
दाइज ऐसा देना बाबुल
जिससे तन-मन जले नहीं
दर्द-वेदना के सिक्कों से
जो बेबस हो तुले नहीं
ना गुलाब की कलियां न्यारी
स्वर्णहार ना चूड़मणि
नहीं मुलायम गद्दी, सोफे
नहीं रेशमी लाश बुनी
देना बाबुल ऐसा ताला
जो बुद्धि पर लगे नहीं
अम्लान रूढि़यों की ठोकर से
जो बेदम हो खुले नहीं
लाड़-प्यार चाहे ना देना
ना लेना मेरी पोथी
जनमजली ना करना मुझको
शिक्षा बिन सब हैं रोती
देना…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 4, 2013 at 4:24pm — 9 Comments
विधना तेरे रूप में, आया कहां निखार
बेशकीमती ब्लीच औ, लोशन मले हजार
मौनी बाबा टल्ली हैं, आफत में युवराज
घूर रहा जो ताज को, गुजराती परबाज
शहर गाल में गांव हैं, कोलतार में पैर
बेदम होकर हांफती, सुबह-शाम की सैर
ट्रैफिक की हर चीख पर, सिग्नल मारे आंख
रेल-बसों में चुप खड़े, सहमे डैने, पांख
अनशन पर कोई अड़ा, कोई हुआ मलंग
इटली वाले रंग में, किसने घोला भंग
नदी रही नाला हुई, किसपर नखरे नाज…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 3, 2013 at 12:54pm — 8 Comments
कटी फसल सा
पड़ा हुआ हूं
मिटा गझिन आकार
परती धरती
धूम धनुष ले
करती तीक्ष्ण प्रहार
छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार
कर्म ताल में
कीच भर गए
यत्न सकल बेकार
मन की घिर्नी
घूम थक चुकी
पंथ मिला ना द्वार
छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार
जलद पटल
क्या चित्र बनाऊं
किसपर करूं सिंगार
स्वर्णमृग तो
राम साधते
मुझे चापते हार
छू लो तुम एकबार --…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on March 25, 2013 at 12:24pm — 4 Comments
काग़जी
सारी कवायद
बोल में
रेशम-तसर है
*गुंजलक में
कै़द वादों
से हकीकत
मुख्तसर है
खोखले नारे उठाए ...............
*कर्दमी
लोबान जलते
टापता
दूभर डगर है
बेरूखी
कहती हवा की
फाग कितना
बेअसर है
खोखले नारे उठाए ...............
स्तब्ध
चंपा, नागकेसर
बर्खास्त सेमल
की बहर है
बिलबिलाते
नीम, बरगद
*भवदीय भौंरा
ही निडर…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on March 22, 2013 at 1:43pm — 5 Comments
बनिक भए
रंगरेज मेरे
बिछुआ, पायल
बेहाल सखी
फन काढ़
समीरन लाल चले
अंतर धधके सौ ज्वालमुखी
गठ जोड़ नयन
स्वादे आहट
कनखी जी का
जंजाल सखी
इत राग महावर
झाईं पड़े
उत फागुन है उत्ताल सखी
मन के झूमर
चुप बैठ गए
चूते अमिया
दुरकाल सखी
भ्रू-चाप चुने
महुआ नागर
मुसकै भदवा बैताल सखी
रस रस गलती
चलती चरखी
हर आस भई
पातालमुखी
अरदास…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on March 12, 2013 at 1:52pm — 11 Comments
रूठे घर में मानमनौव्वल
के दीपों को पलने दो
बहुत हो चुकी
टोका-टोकी
लस्टम-पस्टम
जीवन झांकी
बंद गली को
चौराहों से
गलबहियां दे
चलने दो
कोरी रातों में कलियों को
पल-दो-पल तो खिलने दो
अंधेरे में
डूबे घर भी
हमें देख
सकुचाते हैं
कल तक लगते
थे जो अपने
अब बरबस
डर जाते हैं
जंजीरों में बंधे बहुत अब
पंख जरा तो मलने…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on March 7, 2013 at 3:00pm — 11 Comments
खुरच शीत को फागुन आया
फूले सहजन फूल
छोड़ मसानी चादर सूरज
चहका हो अनुकूल
गट्ठर बांधे हरियाली ने
सेंके कितने नैन
संतूरी संदेश समध का
सुन समधिन बेचैन
कुंभ-मीन में रहें सदाशय
तेज पुंज व्योमेश
मस्त मगन हो खेलें होरी
भोला मन रामेश
हर डाली पर कूक रही है
रमण-चमन की बात
पंख चुराए चुपके-चुपके
भागी सीली रात
बौराई है अमिया फिर से
मौका पा माकूल
खा…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on March 6, 2013 at 12:44pm — 12 Comments
बाबा आए, बाबा आए
भरे हुए दो झोले लाए झोले में सपनों की बातें तारों भरी सुहानी रातें देख उन्हें राजू भी दौड़ा कर्मकीट सा… |
Added by राजेश 'मृदु' on March 5, 2013 at 5:44pm — 3 Comments
चार दशकों
के सफर में
चढ़ लिए
मंजिल कई
कुछ ने सांकल
जड़ दिए
बन गए
घुंघरू कई
रूबरू हूं
धूप से अब
चांदनी
मिलती कहां ?
अक्स मेरा
घुल गया है
सब्ज कर
सारा जहां
(मौलिक रचना)
Added by राजेश 'मृदु' on March 1, 2013 at 6:15pm — 9 Comments
अभिचार सा
करता
छिड़कता जल
चला था,
शून्य पथ
धर अफीमी
रूप कोई
रात थी
बेहद सुरत
कुछ धुरंधर
मेघ भी तो
कर गए
नि:शब्द ही
गलफड़े भर
श्वांस भरके
थे खड़े
कुछ दर्द भी
ढह ना पाई
रोशनी पर
ना हुई
पथ से विपथ
करबले की
ओर बढ़ते
पांवों में थी
जो शपथ
Added by राजेश 'मृदु' on February 28, 2013 at 12:31pm — 9 Comments
बोल मेरे अर्पण
तुझको क्या लुभाए
डैनें बांध रहना
या उड़ना जग उठाए
मूड़ता जो माथा
है वह अनादि गाथा
आवर्त की ये रूनझुन
पथ में सभी ने पाए
रोहित न हो तू लोहित
आकर है तू तो शोभित
स्वर दे जरा गमक दे
अनहद तुझे बुलाए
इक दृष्टि अपलक दे
सोंधी सी इक धमक दे
यह चक्र जो अनघ है
सबको ही आजमाए
नीरव निशा जो रहती
श्यामल सी चोट सहती
भासित उसी से…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on February 26, 2013 at 10:54am — 4 Comments
जब शिवजी का ध्यान भंग करने के लिए मदनदेव को कहा गया तो वे राजी तो हो गए किंतु उनका मन गहरी सोच में पड़ गया उनकी कशमकश को दर्शाने के लिए चौपाईयां लिखी जिसमें आवश्यक सुधार आदरणीय अम्बरीष जी ने सुझाया जिसके बाद इसे ओबीओ के पटल पर रखने का साहस कर पा रहा हूं ।…
Continue
Added by राजेश 'मृदु' on February 8, 2013 at 12:07pm — 5 Comments
*मध्यमेधा का
एक चम्मच सूरज उठाए
कर्मनाशा आहूतियों को
जब भी मढ़ना चाहा
राग हिंडोल के वर्क से
अतिचारी क्षेपक
हींस उठे
पिनाकी नाद से
और डहक गया
सारा उन्मेष.......
तकलियां.....
बुनती ही रहीं
कुहासाछन्न आकाश
बिना किसी अनुरणन के
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
*मध्यमेधा- मध्यम वर्ग की मेधा (बांग्ला शब्दार्थ)
Added by राजेश 'मृदु' on February 6, 2013 at 1:53pm — 10 Comments
मन में अक्षय स्नेह सभी के
समरस भाव प्रवणता है
फिर भी जाने क्योंकर सबने
बांटी कलुष,कृपणता है
छूत-पाक का लावा-लश्कर
हुलस चूम कब यम आया
कसक धकेले, सदा अकेले
बूंद-बूंद कब ग़म आया
फंसा जुए में गला सभी का
पगतल अतल विकलता है
जाने फिर भी हर लिलार पर
किसने मली खरलता है
तपिश उड़ेले स्वाद कषैले
लिए जागते दीप कहां
रूचिर अधर पर लुटे प्राण को
मिला दूसरा सीप…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on February 1, 2013 at 11:19am — 10 Comments
झूठ सुहाना होता प्रियवर
सबके ही मन भाता है
ऐसी है यह लिपि अनोखी
हर भाषा में चल जाता है
झूठ धर्म इतना समरस है
हर देश में रच-बस जाता है
समता का संदेश सुहावन
जन-जन में फैलाता है
झूठ जानती केवल अपनाना
नहीं किसी को ठगती है
सातों जन्म निभाती सुख से
वफा हमेशा करती है
झूठ तो एक भोली कन्या है
जो चाहे मन बहलाता है
जब चाहे जी अपनाता इसको
जब चाहे जी ठुकराता…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on January 31, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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