गीत
मात्र भार १६ १६
बहला रहा रोज इस दिल को,
किस्से बचपन के कह कर के.
तेरी महकी महकी यादें,
मैंने रख लीं हैं तह कर के.
प्रथम दृष्टि का वह सम्मोहन,
भूल नहीं अब तक मैं पाया.…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on January 18, 2018 at 8:30pm — 2 Comments
एक नवगीत
दूर बैठ कर पूछें दद्दा,
और सुना, क्या हाल-चाल है.
कैसे कह दूं, ठीक-ठाक सब,
मस्त हमारी चाल-ढाल है
तोड़ रहे हैं सभी आजकल,
अपना नाता गाँधी से.
सपनों की कंदीलें उनकी,
बचा रहा हूँ आँधी से.…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 22, 2017 at 5:02pm — No Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मापनी 1222 1222 1222 1222
इधर जाता तो अच्छा था, उधर जाता तो अच्छा था.
रहा भ्रम में, कहीं पर यदि, ठहर जाता तो अच्छा था.
उभर आता तो अच्छा था, हृदय का घाव चेहरे पर,
हमारा दर्द भी हद से, गुजर जाता तो अच्छा था.
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 17, 2017 at 5:30pm — 17 Comments
मापनी २२ २२ २२ २
इतनी ज्यादा बात न कर
वादों की बरसात न कर
टूट न जाए नाजुक दिल,
उससे भीतरघात न कर
ख्यात न हो, कुछ बात नहीं,…
Added by बसंत कुमार शर्मा on September 15, 2017 at 8:30pm — 18 Comments
मापनी २२ २२ २२ २२
सुबह के’ मंजर से उजले हो,
दिल को लगते बहुत भले हो.
एक नजर देखा है जब से,
सपने जैसा दिल में’ पले हो.
सारी दुनिया जान गयी है,
तुम तो नहले पर दहले हो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 31, 2017 at 7:08pm — 17 Comments
अँधियारे गद्दी पर बैठा,
सूरज सन्यास लिए फिरता
नैतिकता सच्चाई हमने,
टाँगी कोने में खूँटी पर.
लगा रहे हैं आग घरों में,
जाति धर्म के प्रेत घूमकर.
सत्ता की गलियों में जाकर,
खेल रही खो-खो अस्थिरता.
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 26, 2017 at 7:16pm — 17 Comments
मापनी 2122 2122 2122 212
कैद हैं धनहीन तो, जो सेठ है, आजाद है
झुग्गियों की लाश पर बनता यहाँ प्रासाद है
थाम कर दिल मौन कोयल डाल पर बैठी हुई,
तीर लेकर हर जगह बैठा हुआ सय्याद है
भाईचारा प्रेम सब बातें किताबी हो गईं,
हो रही बेघर मनुजता,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 18, 2017 at 9:01am — 10 Comments
मापनी २२ २२ २२ २२
झील सी गहरी नीली आँखें
हैं कितनी सकुचीली आँखें
खो देता हूँ सारी सुध बुध
उसकी देख नशीली आँखें
यादों के सावन में भीगीं
हो गईं कितनी गीली आँखें
मोम बना दें पत्थर को…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 7, 2017 at 4:30pm — 32 Comments
मापनी 2122 2122 212
दूर से नजरें मिलाते रह गए हम
पास उनके आते’ आते रह गए हम
कान पर जूं तक न रेंगी साहिबों के,
हक़ की खातिर गिड़गिड़ाते रह गए हम
तल्खियाँ हर बात में उनकी रहीं हैं,
प्यार की धुन गुनगुनाते रह गए…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 28, 2017 at 1:25pm — 14 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलात
मापनी २२१/२१२१/१२२१/२१२
करते नहीं हैं’ लोग शिकायत यहाँ हुजूर,
थोड़ी तो’ हो रही है’ मुसीबत यहाँ हुजूर.
बिकने लगे हैं’ राज सरे आम आजकल,
चमकी खबरनबीस की’ किस्मत यहाँ हुजूर.
बिछती कहीं है’ खाट, कहीं टाट हैं बिछे,
हो हर जगह रही है’ सियासत यहाँ हुजूर.
पलते रहे हैं’ देश में जयचंद हर जगह,
पहली नहीं है’ आज ये’…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 26, 2017 at 1:00pm — 6 Comments
कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.
जब भी' की आपने सियासत की.
प्यार पूजा सदा ही हमने तो,
आपने कब इसकी इबादत की
जुल्म धरती ने सह लिए सारे,
आसमां ने मगर बगावत की
आदमी आदमी से जलता है,
कुछ कमी है यहाँ जहानत…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 25, 2017 at 10:10am — 10 Comments
जिन्दगी की रेलगाड़ी,
भागती सरपट चली.
मिल न पायीं दो पटरियाँ,
साथ पर चलती रहीं.
देख कर अपनों की खुशियाँ,
दीप बन जलती रहीं.
दे गयी राहत सफर में,
चाय की इक केतली.
मौसमों की मार…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 23, 2017 at 1:11pm — 9 Comments
निर्दोषों के हत्यारों की,
क्या बस निंदा काफी है.
घाटी में आतंकी मिलकर,
दिखा रहे हैं दानवता.
हृदय विलखता लिए हुए हम,
ओढ़े बैठे सज्जनता.
तड़प रही है भारत माता,
जयचंदों को माफ़ी है.
जाति धर्म की राजनीति में,
इंसान हो रहा गायब.
चमचों की कोशिश रहती है,
रहे हमेशा खुश साहब.
भोली जनता को गोली है,
पल पल नाइंसाफी है.
टूट गए हैं सारे…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 18, 2017 at 4:52pm — 12 Comments
घर टूटे मिट गए वसेरे,
महलों में आवास हो गया.
ऊँचे कद को देख लग रहा,
सबका बहुत विकास हो गया.
भूल गए पहचान गाँव की,
बसे शहर में जब से आकर.
नहीं अलाव प्रेम के जलते,
सूनी है चौपाल यहाँ पर.
अधरों पर मुस्कान…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 18, 2017 at 9:25am — 8 Comments
मापनी २२१२ २२१२ २२१२
आ तो सही एक बार मेरे गाँव में
अद्भुत अतिथि सत्कार मेरे गाँव में
हर वक्त रहते हैं खुले सबके लिए
सबके दिलों के द्वार मेरे गाँव में
तालाब नदियाँ और पनघट की छटा
है प्रीति का…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 12, 2017 at 9:44am — 20 Comments
नवसृजन कर हम बनाएँ,
एक भारत श्रेष्ठ भारत
काम हो हर हाथ को,
ख़त्म हो बेरोजगारी.
हो न शोषण बालकों का,
और हो भय मुक्त नारी.
आचरण में भ्रष्टता से,
मुक्त हो अपनी सियासत.
शांति के हम दूत बनकर,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 11, 2017 at 8:41am — 10 Comments
लल्ला गया विदेश
© बसंत कुमार शर्मा
जाने क्यों अपनी धरती का,
जमा नहीं परिवेश.
ताक रही दरवाजा अम्मा,
लल्ला गया विदेश.
खेत मढैया बिका सभी कुछ,
हैं जेबें खाली.
बैठी चकिया पीस रही है,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 20, 2017 at 6:55pm — 4 Comments
पश्चिम की आँधी
पश्चिम की आँधी शहरों से,
गाँवों तक आई.
देख सड़क को पगडंडी ने,
ली है अँगड़ाई.
बग्गी, घोड़ी छोड़ कार में,
बैठा है दूल्हा.
नई बहुरिया माँग रही है,
तुरत गैस चूल्हा.…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2017 at 4:30pm — 2 Comments
मात्रिक छंद आधारित एक गीतिका
स्वीट कभी नमकीन, मुहब्बत होती है
जग में बहुत हसीन, मुहब्बत होती है
थोड़ा थोड़ा त्याग, तपस्या हो थोड़ी,
फिर न कभी ग़मगीन, मुहब्बत होती है
चढ़ती है परवान, नाम दुनिया में होता,
जितनी भी प्राचीन, मुहब्बत होती…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 13, 2017 at 3:39pm — 10 Comments
बहर फ़ैलुनx ४
कुछ तुम बोलो कुछ हम बोलें
सारा मैल ह्रदय का धो लें
सुख की धूप खिल रही बाहर,
अन्दर की खिड़की तो खोलें.
उगा लिए हैं बहुत कैक्टस,
बीज फूल के भी कुछ बो लें
सूख न जाए आँख का पानी,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 9, 2017 at 12:00pm — 2 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |