++ग़ज़ल ++(221 2121 1221 212 /2121 )
सरदार लाज़मी हो असरदार तो जनाब
जो चुन सके अवाम के कुछ ख़ार तो जनाब
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ऐसा भी क्या शजर जिसे फूलों से सिर्फ़ इश्क़
कोई हो शाख शाख-ए-समरदार* तो जनाब (*फल से लदी डाली )
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होगा नसीब में कि न हो बात और है
ता-ज़ीस्त रहती प्यार की दरकार तो जनाब
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जज़्बात बर्ग-ए-गुल* से ही होते हैं क़ल्ब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 20, 2019 at 10:51pm — 2 Comments
उम्र भर जो भी ग़रीबी के निशाँ देखेगा
कैसे मुमकिन है वो बाँहों में जहाँ देखेगा
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कितना बारूद भरा होगा बताना मुश्किल
लफ्ज़ से कोई निकलता जो धुआँ देखेगा
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दिल की रानाई का अंदाज़ा लगाए कैसे
जो फ़क़त हुस्न कि फिर शोला-रुख़ाँ* देखेगा
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दर्द महसूस भला ग़म का उसे हो क्यों कर
ज़िंदगी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 8, 2019 at 1:00am — 1 Comment
मिला न जो हिज़्र इश्क़ में तो कहाँ मुक़म्मल हुई मुहब्बत
डरे फ़िराक़-ओ-ग़मों से उसको न इश्क़ फरमाने की ज़रूरत
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सफ़र मुहब्बत की मंजिलों का हुज़ूर होता कभी न आसाँ
यहाँ न साहिल का कुछ पता है न तय सफ़र की है कोई मुद्दत
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न जाने कितने हैं इम्तिहाँ और क़दम क़दम पर बिछे हैं कांटे
रह-ए-मुहब्बत पे है जो चलना तो दिल में रक्खें ज़रा सी हिम्मत
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रक़ीब गर मिल गया कोई तो बढ़ेंगी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 5, 2019 at 10:30am — 4 Comments
खिजाँ ने गुलशनों में दर्द यूँ बिखेरे हैं
चमन के बागबाँ के बच्चे आज भूखे हैं
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बहार तुझ पे है दारोमदार अब सारा
कि फूल कितने चमन में ख़ुशी के खिलते हैं
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अजीब शय है तरक़्क़ी भी लोग जिस के लिए
ज़मीर बेच के ईमान बेच देते हैं
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क़ुबूल कर ली खुदा ने हर इक दुआ जब भी
दुआ में ग़ैर की खातिर ये हाथ उट्ठे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 3, 2019 at 7:30pm — 4 Comments
मुख़्तलिफ़ हमने यहाँ सोच के पहलू देखे
अक़्ल हैरान है,ऐसे मियाँ जादू देखे
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आदमी शह्र में हैरान परेशाँ देखा
जब कि जंगल में बिना ख़ौफ़ के आहू देखे
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जब अमावस को गया चाँद मनाने छुट्टी
नूर फ़ैलाने को बेताब से जुगनू देखे
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दिल में इंसान के अल्लाह नदारद देखा
और हैवान बने आज के साधू देखे
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प्यार अहसास है,महसूस किया जाता है
कैसे मुमकिन है कोई चश्म से ख़ुशबू देखे
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रोटियाँ थोक में मिलती हैं…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 1, 2019 at 7:00pm — 4 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
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ये दुआ है कि ख़ुशी आपके घर में आये
हादिसा पेश न जीवन के सफ़र में आये
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अश्क आँखों में अगर हों तो ख़ुशी के हों बस
और सैलाब न अब दीदा-ए-तर में आये
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प्यार की राह को आसाँ न समझना कोई
हौसला हो वही इस राह-गुज़र में आये
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कोशिशें लाख करे तो भी नहीं है मुमकिन
ताब-ए-ख़ुर्शीद तो हरगिज़ न क़मर में आये
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ग़ैर के ऐब को आसाँ है नज़र में रखना
ऐब ख़ुद का न किसी की भी नज़र में आये
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अपने…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 24, 2019 at 7:00pm — 4 Comments
कभी सदा-ए-दिल-ए-यार जो सुनी होती
तो दास्ताँ न मेरी दर्द से भरी होती
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रक़ीब पर न कभी रहम गर किया होता
मेरी ये ज़िंदगी सहरा न फिर बनी होती
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तुम्हारी ज़िंदगी में ग़म कभी न आते गर
रिदा-ए-आरज़ू थोड़ी सिकुड़ गई होती
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गुहर हयात में तुमको नसीब हो जाते
ज़रा सी वक़्त से तैराकी सीख ली होती …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 21, 2019 at 11:00am — 7 Comments
जल रही दिलों में आग हम बुझाएँ किसलिए
और सब्र बार बार आजमाएँ किसलिए
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तोड़ता सुकून-ओ-चैन की हदें अगर कोई
लोग हिन्द देश के सितम उठाएँ किसलिए
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क़त्ल जो करे यक़ीन का हबीब भी अगर
फिर यक़ीँ उसी पे आज हम दिखाएँ किसलिए
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बार बार हो चुके ग़लत वतन के फ़ैसले
फिर अदू की चाल में हम आज आएँ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 21, 2019 at 1:30am — 8 Comments
जिस मुल्क में ग़रीब के लब पर हँसी नहीं
तो मान कर चलें कि तरक़्क़ी हुई नहीं
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जुम्लों के दम पे जीत की आशा न कीजिये
चलती है बार बार ये बाज़ीगरी नहीं
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तहज़ीब क़त्ल-ओ-ख़ून की परवान चढ़ रही
लगता है आदमी रहा अब आदमी नहीं
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उम्मीद रहगुज़र कोई मिलने की मत करें
मंज़िल के वास्ते है अगर तिश्नगी नहीं
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चाहें…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 16, 2019 at 4:30pm — 5 Comments
शहीदों को ख़िराजे अक़ीदत
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वो तिरंगे में लिपट गांव जब आया होगा |
तो हर इक शख़्स ने चुल्हा न जलाया होगा |
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क्या न गुज़रेगी किसी दिल पे बयाँ हो कैसे
आख़री फूल तिरे सर पे चढ़ाया होगा |
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जब गए दोस्त उसे आज सलामी देने
याद गुज़रा उसे बचपन भी फिर आया होगा |…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 15, 2019 at 1:00pm — 5 Comments
(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
जब आपकी नज़र में वफ़ा सुर्ख़रू नहीं
दिल में हमारे इश्क़ की अब आरजू नहीं
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रुसवा किये बिना किसी को हों जुदा जुदा
गलती से प्यार को करें बे-आबरू नहीं
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रिश्तों की सीवनों पे ज़रा ग़ौर कीजिये
उधड़ीं जो एक बार तो होतीं रफ़ू नहीं
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उस मुल्क की अवाम के बढ़ने हैं रंज-ओ-ग़म
जिस मुल्क में मुहब्बतों की आबजू…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 14, 2019 at 2:00am — 5 Comments
थम रही हैं क्यों नहीं ये सिसकियाँ
क्यों परेशां हैं चमन में तितलियाँ
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साल सत्तर से भले आज़ाद हैं
आज भी सजती बदन की मंडियाँ
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अब घरों में भी कहाँ महफ़ूज़ हैं
ख़ौफ़ के साये में रहती बेटियाँ
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ये बशर कैसी तेरी मर्दानगी
मार देता क्यों है नन्ही बच्चियाँ
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कहते हैं हम बेटा-बेटी एक से
फ़र्क़…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 13, 2019 at 12:30am — 4 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 8, 2019 at 2:30pm — 7 Comments
रोशनी के सामने ये तीरगी क्या चीज़ है
वक़्त की आंधी के आगे आदमी क्या चीज़ है
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जब थपेड़े ग़म के खाता है जहाँ में आदमी
तब उसे मालूम होता है ख़ुशी क्या चीज़ है
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एक बच्चे की कोई भी आरज़ू पूरी हो जब
ग़ौर से फिर देखिये चेहरा हँसी क्या चीज़ है
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ग़ुरबतों से लड़ के जिसने ख़ुद बनाया हो मक़ाम
बस वही तो जानता है…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 7, 2019 at 10:30am — 4 Comments
भले नीम जां मेरा जिस्म हो अभी रूह इसमें सवार है
अभी जा क़ज़ा किसी और दर मेरी साँस में भी क़रार है
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है जवाब देती लगे नज़र अभी है ख़याल की रोशनी
रहे ज़ीस्त मेरी रवाँ दवाँ ये तुम्हीं पे दार-ओ-मदार है
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जो पिलाई तूने थी चश्म से कभी मय जो बन के थी साक़िया
न उतर सका न उतार पर चढ़ा अब तलक वो ख़ुमार है …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 4, 2019 at 5:30pm — 7 Comments
(1212 1122 1212 22 )
हयात में तू मुहब्बत की आन रहने दे
कतर न पंख ये दिल की उड़ान रहने दे
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न तोड़ सिलसिला तू इस तरह मुहब्बत का
वफ़ा का मुझको जरा सा गुमान रहने दे
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न खोल राज़ सभी हो न मेरी रुसवाई
कुछ एक राज़ सनम दरमियान रहने दे
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मैं जानता हूँ हक़ीक़त में प्यार है मुझसे
क़फ़स में क़ैद तेरे मेरी जान रहने दे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 2, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
(१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ )
कभी तन्हा अगर बैठें तो ख़ुद से गुफ़्तगू कीजे
खुदा मौजूद है अंदर उसी की जुस्तजू कीजे
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नुज़ूमी चाल क़िस्मत की क्या हमारी बताएगा
पढ़ा किसने मुक़द्दर है भला क्या आरजू कीजे
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कहाँ तक नफ़रतों का ज़ुल्म सहते जायेंगे यारों
मुहब्बत के शरर से रोशनी अब चार सू कीजे
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तभी करना मुहब्बत जब निभा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 30, 2019 at 10:00am — 8 Comments
(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
दस्तूर इस जहाँ के हैं देखे अजीब अजीब
दुश्मन भी एक पल में बने देखिये हबीब
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बनती बिगड़ती बात अचानक कभी कभी
बिगड़े नसीब वालों के खुल जाते हैं नसीब
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वादा किया था हम से सजा लेंगे ज़ुल्फ़ में
लेकिन सजा है ज़ीस्त में क्यों आपके रक़ीब
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नज़दीक आज लग रहा होता है दूर कल
जो दूर दूर रहता वो हो जाता है क़रीब
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होता है पर कभी कभी ऐसा भी मो'जिज़ा
बनता ग़रीब बादशा और बादशा ग़रीब
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हैरत है बातिलों…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 27, 2019 at 5:00pm — 4 Comments
समझ न आया कि पत्थर से प्यार कैसे हुआ
हसीन हादसे का मैं शिकार कैसे हुआ
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कहा है तूने कि ये हादसा नहीं है गुनाह
हुआ गुनाह तो फिर बार बार कैसे हुआ
***
हुई है कोई ग़लतफ़हमी आपको मुंसिफ़
करे जो प्यार कोई गुनहगार कैसे हुआ
***
करेगा कौन यक़ीं गर मुकर भी जाओ तो
चला न तीर तो फिर आर पार कैसे हुआ …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 26, 2019 at 2:30pm — 12 Comments
किसी रिश्ते में हों गर तल्ख़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
शजर पर गर हैं सूखी पत्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
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बसाने को बसा लो ज़ुर्म की अपनी हसीं दुनिया
मगर बदनाम जो हों बस्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
***
नुमाइश कर रहे हो जिस्म की अच्छी नज़र चाहो
हुज़ूर ऐसी कभी ख़ुशफ़हमियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
***
मुसीबत, मुश्किलें, आफ़ात, चिंता और ग़म भी संग
घरोंदे में घुसी ये मकड़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर
***
नहीं फ़र्ज़न्द को हासिल अगर कुछ काम थोड़े दिन
मिलें उसको…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 24, 2019 at 12:00pm — 12 Comments
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