For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,117)

ख़ुदा जानॆं

,,,,,,,,,ख़ुदा जानॆं ,,,,,,,,

=================

क्या था कल क्या आज है, ख़ुदा जाने !!

छुपा दिल मॆं  क्या राज़ है, ख़ुदा जाने…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 6, 2012 at 6:00pm — 3 Comments

नहीं छुपता है आशिक से वो आँखों की जुबाँ समझे

अपनी कल की ग़ज़ल में कुछ सुधार किये हैं ग़ज़ल की तकनीकी गलतियाँ दूर करने की कोशिश की है आशा है आप सभी को प्रयास सुखद लगेगा 



हैं हम गैरत के मारे पर ये सौदागर कहाँ समझे

लगाई कीमते गैरत औ गैरत को गुमाँ समझे



छिड़क कर इत्र कमरे में वो मौसम को रवाँ समझे

है बूढा पर छुपाकर झुर्रियां खुद को जवाँ समझे



गुलिस्ताँ से उठा लाया गुलों की चार किस्में जो

सजा गुलदान में उनको खुदी को बागवाँ समझे



बने जाबित जो ऑफिस में खुदी को कैद करता है

घिरा दीवार से…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2012 at 4:00pm — 14 Comments

मैं यमुना ही बोल रही हूं

तेरे वादे कूट-पीस कर

अपने रग में घोल रही हूं

खबर सही है ठीक सुना है

मैं यमुना ही बोल रही हूं



पथ खोया पहचान भुलाई

बार-बार आवाज लगाई

महल गगन से ऊंचे चढ़कर

तुमने हरपल गाज गिराई



मेरे दर्द से तेरे ठहाके

जाने कब से तोल रही हूं

लिखना जनपथ रोज कहानी

मैं जख्‍मों को खोल रही हूं



ले लो सारे तीर्थ तुम्‍हारे

और फिरा दो मेरा पानी

या फिर बैठ मजे से लिखना

एक थी यमुना खूब था पानी



बड़े यत्‍न से तेरी…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on December 6, 2012 at 2:00pm — 17 Comments

गीत संजीव 'सलिल'

गीत 

संजीव 'सलिल'

*

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

रजनी की कालिमा परखकर,

ऊषा की लालिमा निरख कर,

तारों शशि रवि से बातें कर-

कहदो हासिल तुम्हें हुआ क्या?

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

राजहंस, वक, सारस, तोते

क्या कह जाते?, कब चुप होते?

नहीं जोड़ते, विहँस छोड़ते-

लड़ने खोजें कभी खुआ क्या?

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

मेघ जल-कलश खाली करता,

भरे किस तरह फ़िक्र न करता.…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 6, 2012 at 1:00pm — 16 Comments

मुक्तिका: है यही वाजिब... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

है यही वाजिब...

संजीव 'सलिल'

*

है यही वाज़िब ज़माने में बशर ऐसे जिए।

जिस तरह जीते दिवाली रात में नन्हे दिए।।



रुख्सती में हाथ रीते ही रहेंगे जानते

फिर भी सब घपले-घुटाले कर रहे हैं किसलिए?



घर में भी बेघर रहोगे, चैन पाओगे नहीं,

आज यह, कल और कोई बाँह में गर चाहिए।।



चाक हो दिल या गरेबां, मौन ही रहना 'सलिल'

मेहरबां से हो गुजारिश- 'और कुछ फरमाइए'।।



आबे-जमजम  की सभी ने चाह की लेकिन 'सलिल'

कोई तो हो जो ज़हर के घूँट कुछ…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 6, 2012 at 9:22am — 13 Comments

''जोर नहीं है''

इन जुगनू सी यादों पे जोर नहीं है  

गर्म अश्कों के बहने में शोर नहीं है l

 

किसी काफ़िर का होता नहीं ठिकाना

आज यहाँ है तो कल ठौर कहीं है l

 

दो बूँदे पीकर कभी प्यास ना बुझती             

प्यासे सहरे का दिखता छोर नहीं है l

 

मालों ने गाँव की है बदल दी दुनिया

अब छोटा सा दिखता स्टोर नहीं है l

 

हर बात में नुक्स निकालना है सहज  

करने को कुछ कहो तो जोर नहीं है l

-शन्नो अग्रवाल 

Added by Shanno Aggarwal on December 6, 2012 at 1:57am — 10 Comments

कौन बचाए अस्मित माँ की

देश चलाने वाले ही जब बिकने को तैयार खड़े हों

पैदा होते ही बचपन का पालन पोषण कर्ज तले हो

आम आदमी के घर में हो दो रोटी की खातिर दंगे

कौन बचाए अस्मित माँ की जिसके लाल दलाल बने हों ।।

धर्म नाम की धोखेबाजी मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में

रक्तपात के उपदेशों का पाठ चल रहा हर द्वारे में

घोटालों की राजनीति में सब गुदड़ी के लाल पड़े हों

कौन बचाए अस्मित माँ की जिसके लाल दलाल बने हों ।।

हिजड़ों की बस्ती के दर्शन दिल्ली के दरबार मिलेंगे

संचालक मैडम के आसन दस जनपथ…

Continue

Added by Manoj Nautiyal on December 5, 2012 at 9:25pm — 9 Comments

हमारे इश्क का फैसला तो हमीं से होगा

न किसी खाप न किसी मौलवी से होगा

हमारे इश्क का फैसला तो हमीं से होगा



ये कह कर ठुकरा गया वो आसमाँ मुझे

हमारा वास्ता ही क्या तेरी जमीं से होगा



यूं दुआ को न तरस, यूं दवा को न ढूंढ

ज़ख्म इश्क ने दिया, ठीक शायरी से होगा



बेफिकर घूमता है, इश्क से अनछुआ

मुखातिब वो भी तो कभी दिल्लगी से होगा



यूं भी जिन्दगी किसी से बेताल्लुक नहीं होती

तेरा मिलना ही जरुर बुजदिली से होगा



मेरी ग़ुरबत पे कर कुछ निगाह कुछ करम

ये अंधेरों का मसला हल रौशनी से…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on December 5, 2012 at 7:06pm — 5 Comments

अपने दुःख से नहीं दुसरे के सुखसे दुखी

 

कर्ण और राम दो मित्र थे l राम एक व्यापारी बन गया लेकिन कर्ण अभी भी बेरोजगार था जिसकी वजह से उसकी घर की हालत ठीक नहीं थी l समय समय पर राम भी अपने मित्र की मदद कर देता था कुछ समय तक ऐसे ही चलता रहा l और एक दिन कर्ण को एक अच्छी नौकरी मिल गई जिस कारण घर में किसी वस्तु की कमी नही रह गई थी और धीरे धीरे धन की समस्या भी समाप्त होने लगी थी l इस कारण अब वह अपनी जिंदगी सही से और शांति की जिन्दगी जी रहा था l  व्यापार मैं व्यस्त होने की वजह से राम और कर्ण एक दुसरे से मिल नहीं पाए…

Continue

Added by PHOOL SINGH on December 5, 2012 at 5:01pm — 7 Comments

मृत्‍यु के बाद

आज नहीं स्‍पंदन तन में

क्षुधा-उदर भी रीते है

स्निग्‍ध शुभ्र वह प्रभा विमल

मुझको खूब सुभीते हैं



देह झरी अवसाद झरे

व्‍यथा-कथा के स्‍वाद झरे

किरण-किरण से घुली मिली

सकल नुकीले नाद झरे



नया जगत आभास नया

लहर-लहर उल्‍लास नया

मदिर मधुर है मुक्‍त पवन

आज गगन में रास नया



वसनहीन अब हूं…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on December 5, 2012 at 4:43pm — 7 Comments

बंजरों के लोग भी अब कस्तियाँ लेने लगे

कार में बैठे शराबी चुस्कियाँ लेने लगे

तब भिखारी भी शहर के आशियाँ लेने लगे



रूठना आता नहीं है पर दिखावा कर लिया

रूठने के बाद हम ही सिसकियाँ लेने लगे



घूमने आये थे मंत्री जो निरिक्षण में अभी

चाय पीकर वो भी देखो झपकियाँ लेने लगे…



Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 5, 2012 at 4:38pm — 13 Comments

रेत में जैसे निशां खो गए

रेत में जैसे निशां खो गए

हमसे तुम ऐसे जुदा हो गए

 

रात आँखें ताकती ही रहीं

मेहमां जाने कहाँ सो गए

 

सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें

छोड़कर मझधार में खो गए…

Continue

Added by नादिर ख़ान on December 5, 2012 at 4:30pm — 11 Comments

उलझन

जानती हूँ
या कहो
बखूबी समझती हूँ
तुम्हारे चुपचाप रहने का सबब
हमारे बीच समझ का
जो अनकहा पुल है
कभी सच्चा लगता है और
कभी दिवास्वप्न सा
दुविधा की कई बातें हैं
जज्बातों की कई सौगाते भी हैं
जो अकेले बैठ के
अपने मन मंदिर में
कोमल अहसासों से पिरोयें हैं
साझा करने को कभी
पुल के इस पार तो आओ
दो बातें तो कर जाओ
जानती हूँ तुम्हें
या नहीं जानती की
उलझन तो सुलझा जाओ

Added by MAHIMA SHREE on December 5, 2012 at 4:22pm — 22 Comments

प्यार से तस्वीर मेरी - पोंछना आंसू बहाके

प्यार से तस्वीर मेरी, पोंछना आंसू बहाके।

शीश खटिये पे टिकाकर, सोंचना आंसू बहाके।।

 …

Continue

Added by अरुन 'अनन्त' on December 5, 2012 at 3:06pm — 16 Comments

मंदार माला सवैया

मंदार माला सवैया :-

=================

राजा वही जॊ प्रजा कॊ दुखी दीन, संताप हॊनॆ न दॆता कभी !!

बाजी लगा दॆ सदा जान की आन,ईमान खॊनॆ न दॆता कभी !!

आनॆ लगॆं आँधियाँ राज मॆं आँख,आँसू भिगॊनॆ न दॆता कभी…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 5, 2012 at 12:00pm — 12 Comments

मत्तगयंद सवैया

मत्तगयंद सवैया :-

===============

आज हुयॆ मतदान सभी चुनि, बैठ गयॆ चढ़ि आसन चॊटी,

भारत कॆ यह राज-मणी सब, फ़ॆंक रहॆ अब  खॊटम खॊटी,

नागिन सी  फ़ुँफ़कार भरॆं सब, छीनत हैं जनता कइ रॊटी,…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 5, 2012 at 10:00am — 10 Comments

ओ..री कुरसी माई । (व्यंग गीत)

चुनाव  में  हारे  हुए  नेताजी  की  व्यथा ?

ओ..री  कुरसी  माई । (व्यंग…

Continue

Added by MARKAND DAVE. on December 5, 2012 at 10:00am — 2 Comments

‘’भारत’’

जो सोने की चिड़िया था सो रहा है

जिसे रोना ना चाहिये वो रो रहा है l

इस दुनिया का है कुछ अजब कायदा 

अब लोगों को जाने क्या हो रहा है l

नये जमाने में खो गयी सादगी कहीं 

बस बोझ जीने का इंसान ढो रहा है l

मन में खोट और रिश्तों में है चुभन    

यहाँ अपना ही अपनों को खो रहा है l

जहाँ उगे कभी मोहब्बत के थे शजर 

वहाँ काँटों का जंगल अब हो रहा है l

कितनी गंगा हुई मैली जानते सभी   

पर उसमें…

Continue

Added by Shanno Aggarwal on December 5, 2012 at 3:57am — 3 Comments

दुष्टो की है देह (दोहे)

 
 नहीं रहा अब गाँव में, भाईचारा भाव,
खेतो में बढ़ने लगे, नित क्लेश के भाव ।
 
 
नहीं रहा अब शहर में, जीना यूँ आसान,
जगते है अब चाय से, रात जाम की शान ।
 
मोल झूंठ का बढ रहा, संत जगत भी मौन,
सच सस्ते में बिक रहा, सच बोले अब…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 4, 2012 at 7:00pm — 13 Comments

महाभुजंगप्रयात सवैया

महाभुजंगप्रयात सवैया :-

=================

नहीं रास आईं वफ़ायॆं किसीकॊ, अनॆकॊं चलॆ हैं उसी राह राही !!

किनारॆ खड़ॆ दॆखतॆ हैं तमाशा,हमारी वफ़ा का सिला यॆ तबाही !!

पुकारा कई बार था नाम लॆकॆ,खुदाकी…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 4, 2012 at 2:00pm — 4 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
7 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service