समाधान चाहिए
बढ़ती हुई समस्याओं का, समाधान चाहिए,
इंसान के अवतार में, फिर भगवान चाहिए,
मुश्किलों से घिरी हुई है,अपनी जन्म-भूमि,
अब एक जुझारू योद्धा,बड़ा बलवान चाहिए,
बैठे हैं भ्रष्ठाचारी, हर मोड़ हर कदम पर,
अब इनकी खातिर,एक नया शमशान…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 6, 2012 at 5:30pm — No Comments
रात आई
काली चुनरी ओढ़ के
नीले व्योम को ढँक लिया
घुप्प अँधेरा,
सन्नाटे बातें करते हैं
हवाओं से
दूर से आती हैं कुछ आवाजें
डरावनी सी भयानक सी
कानों में खुसफुसाती…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 6, 2012 at 3:30pm — 5 Comments
रात के तेवर जब - जब बदले नज़र आये,
तेरी यादों के मौसम बड़े उबले नज़र आये,
तसल्ली दे रहे हैं, हालात मुझे लेकिन,
आँखों से सारे मंजर दुबले नज़र आये,
भभकते अश्कों को कोई साथ न मिला,
न रुके और न…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on July 6, 2012 at 12:44pm — 8 Comments
ख्वाब आँखों के कोई भी मुकम्मल हो नहीं पाए,
खाकर ठोकर यूँ गिरे फिर उठकर चल नहीं पाए,
खिलाफत कर नहीं पाए बंधे रिश्ते कुछ ऐसे थे,
सवालों के किसी मुद्दे का कोई हल नहीं पाए,
बड़े उलटे सीधे थे, गढ़े रिवाज तेरे शहर के,
लाख कोशिशों के बावजूद हम उनमे ढल नहीं…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 6, 2012 at 12:09pm — 6 Comments
नीर भरी थी
विष्णुपदी निर्मल
Added by sangeeta swarup on July 6, 2012 at 10:45am — 4 Comments
दोहा सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
कथ्य, भाव, रस, शिल्प, लय, साधें कवि गुणवान.
कम न अधिक कोई तनिक, मिल कविता की जान..
*
मेघदूत के पत्र को, सके न अब तक बाँच.
पानी रहा न आँख में, किससे बोलें साँच..
ऋतुओं का आनंद लें, बाकी नहीं शऊर.
भवनों में घुस कोसते. मौसम को भरपूर..
पावस ठंडी ग्रीष्म के. फूट गये हैं भाग.
मनुज सिकोड़े नाक-भौं, कहीं नहीं अनुराग..
मन भाये हेमंत जब, प्यारा लगे बसंत.
मिले शिशिर से जो गले,…
Added by sanjiv verma 'salil' on July 6, 2012 at 10:20am — 5 Comments
Added by Neelam Upadhyaya on July 6, 2012 at 10:00am — 6 Comments
Added by प्रवीण कुमार श्रीवास्तव on July 6, 2012 at 7:49am — 7 Comments
जो आदमी ज़मीं से जुड़ा रह नहीं सका।
वो ज़ोर आंधियों का कभी सह नहीं सका॥
हिकमत1 से चोटियों पे पहुँच तो गया…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 5, 2012 at 11:30pm — 7 Comments
मासूम सी एक सूरत,
बन गई वो मेरी जरुरत,
होता है कुछ देखकर उसे,
क्या कहू वो है कितनी खूबसूरत....
........
अब सब कुछ फ़साना एक लगता है,
उसका दूर जाना भी, पास आना लगता है,
सोचा न था, एक दौर ऐसा आएगा,
जब ये दिल, किसी को चाहेगा,
फिर भी चुप रहेगी ये जुबाँ, ऐसी कोशिस है,
आँखों से समझे वो प्यार, ये साजिस है,
अब समझाना है उसको इन आँखों की भाषा,
वो होगी मेरे रूबरू,है इस दिल को आशा,
पा लेंगे उसको खुदपर विस्वास है,
मिलेगी वो, क्योकि वो…
Added by Pradeep Kumar Kesarwani on July 5, 2012 at 11:30pm — 3 Comments
भैय्या मोरे मैन हीं दलाली खायो ...भैय्या मोरे मै नहीं दलाली खायो
ये पार्टी और वो पार्टी मिलकर ...म्हारे मुख लपटायो ..
रे भैय्या मोरे मैनहीं दलाली खायो
देश को ऊंचो नाम करन को
भाइयो के पेट भरण को
कामन वेल्थ करवायो .. रे भैय्या मोरे मैन हीं घपलों करवायो
उनकी गाड़ी पेट्रोल पियत है
म्हारी तो मुफ्त मा चलत है
म्हारी बहु ने पुत्र वधु कह कर
ठेकों मैंने दिलवायो .....पर भैय्या मोरे मै नहीं दलाली खायो
जब जब जरुरत उनको पड़ी…
ContinueAdded by UMASHANKER MISHRA on July 5, 2012 at 10:25pm — 7 Comments
जिनके लिए हमने दिल औ जान लुटाई .
Added by Rekha Joshi on July 5, 2012 at 8:30pm — 14 Comments
(१)
मोहब्बतों से विनती
मोहब्बतों से विनती दिलों से निवेदन,
नहीं दिल्लगी में मिले, कोई साधन,
नाजुक बहुत हैं ये रिश्तों के धागे,
नहीं फिर जुड़ेगा, जो टूटा ये बंधन,
संभालेंगे कैसे लडखडाये कदम जब,
फ़िसलेंगे हाथों से अपनों के दामन,
पनप नहीं पाते ज़ज्बात फिर दिलो में,
सूना हो गया जो निगाहों का आँगन,
आँखों का बाँध छूटा तो कैसे बंधेगा,
अश्को से हो जायेगी इतनी अनबन,
(२)
मैं तो…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on July 5, 2012 at 1:30pm — No Comments
हो गयी चाँद को हैरानी, सागर हुआ है प्यासा,
निगाहों ने मेरी खातिर ऐसा चेहरा है तलाशा,
उजड़े हुए चमन में फिर से फूल खिल गया हो,
मेरे रब ने, जैसे खुद किसी, हीरे को हो तराशा,
यारों दिन में भी हो जाए अंधेरों का इजाफा,
उसकी सूरत जो न दिखे तो बढ जाती है निराशा,
ये पहाड़ सी जिंदगानी चुटकी में गुजर जाए,
तेरा साथ जो मिले, मुझको राहों में जरा सा,
तू ही दिल की आरजू, तू ही प्यार की परिभाषा,
तूफाँ में बुझ रहे चरागों की तू है आशा.......
Added by अरुन 'अनन्त' on July 5, 2012 at 1:00pm — No Comments
बिखरे हुए पन्ने किताबों के आगे,
जिंदगी रुक गयी हिसाबों के आगे,
सवालों के पीछे सवालों के तांते,
उलझी जवानी जवाबों के आगे,
जीने में जद्दोजहद हो गयी है,
सुधरे हुए हारे खराबों के आगे,
कोई चोट देकर कोई चोट खाकर,
सब लेटे पड़े हैं शराबों के आगे,
आँखों में सजाये जिसे बैठे सभी हैं,
मंजिल नहीं है उन ख्वाबों के आगे.......
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Added by अरुन 'अनन्त' on July 5, 2012 at 12:00pm — 5 Comments
हे जलधि, जब कोई ग़ोताखोर
तुम्हारे गर्भ में घुस,
मोती चुग-
दूर हो जायेंगा,
प्यार को वासनामयी
आँखों से देखा जायेंगा |
अगर- ग़ोता लगा,
गर्भ में ही लीन हो जायेंगा,
प्यार पूज्य हो जायेंगा |
फूल-सा चेहरा खिलेगा(जन्मेगा)
चमन में खुशबु महकेगी
किसी को कोई
आपत्ति नहीं होगी |
- लक्ष्मण लडीवाला, जयपुर
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 5, 2012 at 11:30am — 5 Comments
हर इंसान की अपनी एक छोटी सी दुनिया है। जिसमें वह अपनी हैसियत के मुताबिक रहता है। एक खुशी की तलाश में वह यहां-वहां भटक रहा है। खुशी भी क्या, बस वह जी-तोड मेहनत के बाद मालूम चलता है कि आज यह कमी है, कल को इसका पूरा करना है। अगले दिन कोई और ही दुख सामने खड़ा दिखाई देता है। सिर्फ कहने भर की बातें होती है हम तुम्हारे साथ है, हम सब एक है। सच्चाई यह है कि कोई किसी के साथ नहीं है यहां तक कि वह भी जो उसके अपने होते है, जिनके साथ वह बचपन से खेलता-कूदता हुआ बड़ा हो जाता है। वह भी अपनी-अपनी छोटी दुनिया…
ContinueAdded by Harish Bhatt on July 5, 2012 at 10:45am — 4 Comments
तेरी भीगी निगाहों ने जब-जब छुआ है मुझे,
तेरा एहसास मिला तो कुछ-कुछ हुआ है मुझे,
फिसल कर छूट गया तेरा हाथ मेरे हाथों से,
सितम गर ज़माने से मिली बददुआ है मुझे,
लगी है ठोकर संभालना बहुत मुश्किल है,
घूंट चाहत का लग रहा अब कडुआ है मुझे,
तरसती- बेबाक नज़रें ताकती हैं रास्तों को,
दिखा तेरी सूरत के बदले सिर्फ धुँआ है मुझे....
Added by अरुन 'अनन्त' on July 5, 2012 at 10:30am — 4 Comments
मृगनयनी कैसी तू नारी ??
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मृगनयनी कजरारे नैना मोरनी जैसी चाल
पुन्केशर से जुल्फ तुम्हारे तू पराग की खान
तितली सी इतराती फिरती सब को नाच नचाती
तू पतंग सी उड़े आसमाँ लहर लहर बल खाती
कभी पास में कभी दूर हो मन को है तरसाती
इसे जिताती उसे हराती जिन्हें 'काट' ना आती
कभी उलझ जाती हो ‘दो’ से महिमा तेरी न्यारी
पल छिन हंसती लहराती औंधे-मुंह गिर जाती
कटी पड़ी भी जंग कराती - दांव लगाती
'समरथ' के हाथों में पड़ के लुटती हंसती…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 6:30am — 25 Comments
वेदना संवेदना अपाटव कपट
को त्याग बढ़ चली हूँ मैं
हर तिमिर की आहटों का पथ
बदल अब ना रुकी हूँ मैं
साथ दो न प्राण लो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।
निश्चल हृदय की वेदना को
छुपते हुए क्यों ले चली मैं
प्राण ये चंचल अलौकिक
सोचते तुझको प्रतिदिन
आह विरह का त्यजन कर
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।
अपरिमित अजेय का पल
मृदुल मन में ले चली मैं
तुम हो दीपक जलो प्रतिपल
प्रकाश गौरव बन चलो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण…
Added by deepti sharma on July 5, 2012 at 1:00am — 49 Comments
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