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मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से

जिसे देख के नाचूँ झूमूँ गाऊं ख़ुशी से

मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से



मेरी रूह वही है, मेरा जिस्म वही है

मेरी आह  वही है, मेरी राह वही है

मेरा रोग वही है, औ दवा भी वही है

मेरा साया पीछे छूटे भला कैसे मुझी से

मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से



जिसे देख के नाचूँ झूमूँ गाऊं ख़ुशी से

मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से



मेरी यार वही है , दिलदार भी वही है

वो ही सावन है , औ फुहार भी वही है

वो ही…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 18, 2012 at 1:00pm — 11 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
फौजी वर्दी

सुगंध सुहानी आयेंगी  इस मोड़ के बाद 

यादें गाँव की लाएंगी  इस मोड़ के बाद 

जिस नीम पे झूला करता था बचपन मेरा 

वही डालियाँ बुलाएंगी इस मोड़ के बाद 

अब तक बसी हैं फसलें जो मेरी नज़रों में

देखो अभी लहरायेंगी इस मोड़ के बाद 

बिछुड़ गई थी दोस्ती जीवन की राहों में 

वो झप्पियाँ बरसाएंगी इस मोड़ के बाद 

नखरों से खाते थे जिन हाथों से निवाले 

वो अंगुलियाँ तरसायेंगी इस मोड़ के बाद 

मचल रही होंगी…

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Added by rajesh kumari on July 18, 2012 at 9:05am — 8 Comments

जो लिक्खेंगे ज़माने से कभी हट कर न लिक्खेंगे....

तुम्हारी हक़ बयानी को कभी डर कर न लिक्खेंगे ...

कि आईने को हरगिज़ हम कभी पत्थर न लिक्खेंगे...



रहे इश्को वफ़ा में ये तो सब होता ही रहता है..

तुम्हारी आज़माइश को कभी ठोकर न लिक्खेंगे....



भरोसा क्या कहीं भी ज़ख्म दे सकता है हस्ती को........

हम अपने दुश्मने जां को कभी दिलबर न लिक्खेंगे.....



तू क़ैदी घर का है, हम तो मुसाफिर दस्तो सहरा के....

कहाँ हम और कहाँ तू हम तुझे हमसर न लिक्खेंगे.....



उड़ानों से हदें होती है कायम हर परिंदे कि…

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Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on July 18, 2012 at 9:00am — 6 Comments

भूखे को तो चंदा में रोटी दीखे;

रोती रोटी  क्यों रो रही ,कर लो बात ,

रोटी रोटी क्यों हो रही ,कर लो बात;'



तरकारी के भाव चले विन्ध्याचल को

तन्हा रोटी यों रो रही ,कर लो बात .



धान ज्वारी मक्का बासमती पेटेंट ;

नयनन जल रोटी ले रो रही कर लो बात.



भूखे को तो चंदा में रोटी दीखे;

चंदा रोटी एक हो रही ? कर लो बात .



रात को खा के सोए सुबह पेट ;

रोटी रोटी देख हो रही कर लो बात .



तीरों तलवारों से न टूटे छल बल से ;

टूटे भूखे पेट वो…

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Added by DEEP ZIRVI on July 17, 2012 at 5:30pm — 1 Comment

माँ की व्यथा (लघुकथा)

एक अलसाई सी सुबह थी, सब काम निबटा कर बस बैठी ही थी मैं मौसम का मिजाज लेने। कुछ अजीब मौसम था आज का, हल्की हल्की बारिश थी जैसे आसमान रो रहा हो हमेशा की तरह आज न जाने क्यो मन खुश नहीं था बारिश को देखकर, तभी मोबाइल की घंटी बजी, दीदी का फोन था ‘माँ नहीं रही’। सुनकर कलेजा मुह को आने को था दिल धक्क, धड़कने रुकने को बेचैन, कभी कभी हम ज़ीने को कितने मजबूर हो जाते है जबकि ज़ीने की सब इच्छाएँ मर जाती है। मेरी माँ मेरी दोस्त मेरी गुरु एक पल में मेरे कितने ही रिश्ते खतम हो गए और मैं ज़िंदा उसके बगैर…

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Added by Vasudha Nigam on July 17, 2012 at 3:30pm — 12 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २४

रायपुर से भोपाल का हवाई सफर- घरों के घरौंदे होकर नुक्ते में बदलकर खो जाने और आसमाँ के पहाड़ के ऊपर मील दर मील चढ़ते जाने का अद्भुत सफर. चंद लम्हों में ज़मीनी सच्चाइयों का दामन छूट चुका था और हम ख़्वाबों के एक खामोश तैरते समंदर के ऊपर तैर रहे थे. हर सम्त बादलों के बगूले तरह तरह की नौइयत और शक्ल में परवाज़ कर रहे थे- उनकी आहिस्ताखिरामी और लहजे के सुकून को देखकर ऐसा लग रहा था गोया किसी फ़कीर ने अपने फैज़ का खज़ाना लुटा दिया हो और नीले सफ़ेद रुई के फाहों में ज़िंदगी की तपिश से नजात के मरहम बंट…

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Added by राज़ नवादवी on July 17, 2012 at 3:08pm — 4 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २१

अब कहाँ आएँगे लौट के सबेरे कल के

रातमें तब्दील हो गए हैं उजाले ढल के

 

कोई खुशबू तेरे दामन की एहसासों में

कुछ लम्स से हथेली में तेरे आँचल के

 

मौत आई तो बेसाख्ता ये महसूस हुआ

कि ज़िंदगी आईहै वापिस चेह्रे बदल के

 

जाने वालातो सामनेसे रुख्सत हो गया

जाने क्या सुकूं मिलता है हाथ मल के

 

मैं कोई ख्वाब में हूँ या कोई गफलत है

आसमां में उड़ रहा हूँ, पंख हैं बादल के

 

बुझरही शमाने कराहते हुए मुझसे…

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Added by राज़ नवादवी on July 17, 2012 at 10:24am — No Comments

"क्या कहूँ "

"क्या कहूँ "



धीरे धीरे चलती पवन

गंभीर हो

चिंतन में डूबे को

समय देख रहे हो

या प्रवाह को महसूस कर रहे हो मेरे

या पदचाप सुन रहे हो

आने वाले समय के

क्यूँ आज…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2012 at 1:38pm — 3 Comments

गृहस्थी का दायित्व

गृहस्थी का दायित्व 



चारो भाइयों में बड़े लडके नयन बाबू की माँ लड़को को बाहर खेलने नहीं निकलने देती थी, ताकि वे बिगड़ न जावें | अचानक माँ का देहांत हो गया | उस समय नयन बाबू 16 वर्ष और पिताजी 46 वर्ष के थे | पिता प्रभु व्यसायी और सामाजिक कार्यकर्त्ता थे | पिता ने २० वर्षीय विधवा से पुनर्विवाह कर लिया | अपनी माँ के नियंत्रण के कारण कभी घर से न निकलने…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 16, 2012 at 10:08am — 8 Comments

यूँ कभी कभी

   यूँ कभी कभी मन में उठती है तरंग 

   बार-बार कहता कुछ विचलित मन 

   मस्तिष्क पटल पर छा जाते वो साज सभी 

   कानों में आती गुंजन की आवाज़ कभी 

   दिखती है आँखों में बिजली सी चमक कहीं 

   लगता है खोया गया सर्वस्व यहीं !

   देती है भाँवर सी फेरी वो कभी ख्यालों में मेरे 

   न जाने क्या पूंछा करती वो मुझसे साँझ सबेरे 

   बालों को लहरा के हवा आके छू जाती है मुझको 

   अपलक वो देखा करती पता नहीं क्यों खुद को 

   खिल गई कली चपला सी…

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Added by Raj Tomar on July 15, 2012 at 10:00pm — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जाने क्यों ?

दीवान में 

बटोर कर रखा 

बरसों पुराना सामान 

कुछ चीज़ें मात्र नहीं होता....

उसमे तो कैद होते हैं 

ज़िंदगी के वो खूबसूरत पन्ने 

जो हमें उस रूप में ढालते हैं

जो आज हम हैं....

हमारी पूरी ज़िंदगी

समेटे होती हैं

वो कुछ

गिनी चुनी निशानियाँ....

कुछ गुड्डे- गुडिया

जिनकी आँखों में

आज भी मुस्कुराता है हमारा बचपन....

कुछ फूलों की 

सूखी पंखुड़ियां 

जो आज भी दोस्ती बन महकती  हैं जहन…

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Added by Dr.Prachi Singh on July 14, 2012 at 10:59pm — 4 Comments

'कोख' को बचाने को ...भाग रही औरतें

कोख को बचाने को भाग रही औरतें 

------------------------------------------

ये कैसा अत्याचार है 

'कोख' पे प्रहार है 

कोख को बचाने को 

भाग रही औरतें 

दानवों का राज या 

पूतना का ठाठ …

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 14, 2012 at 10:30pm — 12 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघु कथा : ????

"चल कल्लुआ जल्दी से दारु पिला, आज मैं बहुत खुश हूँ |"…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 14, 2012 at 3:30pm — 36 Comments

दो घूंट भरके पी ले

आदरणीया/आदरणीय गुरुमां, गुरुजनों और मेरे प्रिय मित्रों. आज पहली बार मैंने ओ.बी.ओ पर ग़ज़ल की कक्षा से सीख कर एक ग़ज़ल लिखने का प्रयास किया है. कृप्या मेरा मार्ग दर्शन करें कि मैंने कहाँ पर त्रुटी की है. सभी को सादर प्रणाम.

दो घूंट भरके पी ले, बड़ी उम्दा शराब है,

ए दोस्त तेरी प्यार में किस्मत ख़राब है,

धोखा है, बेवफा है, ये हुस्न है फरेबी,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 14, 2012 at 1:30pm — 8 Comments

कह मुकरियाँ

कह मुकरियाँ



एक प्रयास किया है मुकरियाँ लिखने का दोस्तों आशा करता हूँ मार्गदर्शन मिलेगा



जब आती है नए ख्वाब दिखाती है

फिर अपनी बात से ही मुकर जाती है

उसको होती नहीं फिर हमारी दरकार

क्या मित्र सजनी ??? ना मित्र सरकार



जब आती है कली कली खिल जाती है

भंवरों के गुन्जन को गती मिल जाती है

उसके आने से मिल जाए दिल को करार

क्या मित्र सजनी ??? ना मित्र बहार



उसके बिना सब फीका सा लगता है

छप्पन भोग भी नीका न…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 14, 2012 at 1:16pm — 7 Comments

किरण

ढोल- नगाड़े

हाथी- घोड़े

आतिशबाजी

इतने रंग

सब हैं संग

कभी पालकी लिए

कभी रणभूमि

कभी रंगभूमि

चले जा रहे हैं

भागे जा रहे…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 14, 2012 at 10:59am — 4 Comments

जो बेवफा हो गए

आंसूओ को आँखों में खेलने दो 
मुस्कराहट को होठों से रूठने दो
कब तक रोकोगे, कब तक टोकोगे
जो बेवफा हो गए…
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Added by rajkaran on July 13, 2012 at 10:31pm — 4 Comments

रिश्वत खाना पाप नहीं है बाबाजी

नयन लड़ाना पाप नहीं है बाबाजी

प्यार जताना पाप नहीं है बाबाजी



अगर पड़ोसन पट जाये तो उसके घर

आना -  जाना पाप नहीं है बाबाजी



बीवी बोर करे तो कुछ दिन साली से

काम  चलाना पाप नहीं है बाबाजी



पत्नी रंगेहाथ पकड़ ले तो उसके

पाँव दबाना पाप नहीं है बाबाजी



रोज़ सुबह उठ, अपनी पत्नी की खातिर

चाय बनाना पाप नहीं है बाबाजी



वेतन से यदि कार खरीदी न जाये

रिश्वत खाना पाप नहीं है बाबाजी



'अलबेला' हर व्यक्ति यहाँ…

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Added by Albela Khatri on July 13, 2012 at 7:30pm — 30 Comments

"मौन एक सशक्त अभिव्यक्ति है "

"मौन एक सशक्त अभिव्यक्ति है "



लब खामोश हैं


कुछ कम्पन है

कहना चाह रहे हैं

पर खामोश हैं

फिर भी कोई तो है

जो कर रहा है बात

चुप चुप…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 6:30pm — 3 Comments

ताज महल

ताज महल 

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चंचल हिरनी मृग नयनी 

मदमस्त अदा गृह सजनी
करती श्रृंगार सौ बीमार 
उसका मेरा असीम प्यार
नयनों में अनजानी  आस 
जाने क्यों रहती अब  उदास
पूछो लाख खामोश रहती…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 13, 2012 at 6:28pm — 12 Comments

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