For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २९

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

तेरे शहर की सब अलामतें......

 

ये तेरे शहर की तमाम अलामतें

अजनबी हैं मेरे लिये

ये तेरे शहर की दूर तक फैली

अहलेज़र की पुरनूर बस्ती

ये आलीशान मकानों का हुस्नख़ेज़ तसल्सुल

ये ज़ुल्फेसियह सी बेनियाज़

आवारामनिश राहगुज़र

ये रौशनियों की दिलावेज़ जल्वागाह

ये ख़ला-ए-फैज़बख्श

ये फज़ा-ए-तमकनत

ये कारों की होशकुन तग़ोदौ

ये होटलों की रौनक़ोरौ

ये…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 6:00pm — 4 Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २८

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

हम तो गिर्दाबेतमन्ना हैं.......

 

ख़ाम रहने दो मेरी रग़बते उलफ़त को अभी

टूट जाने दो मेरे ख़्वाब के  शीराज़े को

जाँबहक हो भी गये इश्क़ में

तो कुछ भी नहीं

मिट गये काविशे बेसूद में

तो ये भी सही

जो भी अंजामेवफ़ा होगा देखा जायेगा

हश्र बर्बादी-ए-हस्ती का सोचा जाएगा

हम तो यूँ भी

बेदस्तो पा-ए-ज़िन्दगी थे बहुत

रंज में डूबे थे, अस्ना-ए-बेबसी थे बहुत

जी…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 5:58pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २७

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

यूँ ही, फकत यूँही......

 

यूँ ही

किसी राहगुज़र सा मुड़ गया है वक्त

एक लकीर पे चलते चलते.....

मैंने सोचा है इस मोड़ से आगे

वो जगह होगी शायद

जहाँ अपने माज़ी के  हर एहसास को

गहरे दफ्न कर दूँ

और उसपे नामालूम सी तारीख का हवाला लिख दूँ

ताकि मैं खुद भी चाहकर कभी

अपनी माज़ूरियों की इबारत पढ़ न सकूँ

और सोच लूँ

मैंने जो ख्वाब कभी देखे थे नीम आँखों…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 5:54pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २६

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

कभी-कभी.....

 

कभी-कभी मेरे दिल में

ऐसे खयाल से क्यों आते हैं

कि मैं कब से उस दरिया के किनारे बैठा हूँ

जिसकी मौजें उठती गिरती

अपनी ही अथाह गहराइयों में खो गयी हैं

और कागज़ की वो कश्ती भी

जिसे भेजाना चाहा था उस पार

अनजान अपरिचित से देश में

अपनी अनबुझी तृषाओं का बोझ देकर

इस उम्मीद से शायद

कि पेड़ों और पहाड़ों के पीछे

जो क्षितिज हर सुबह रौशनी के…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 5:50pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २५

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

इंसाफ....

 

जिस किसी दयार में बसना चाहा

अजनबी दीवार के  सायों ने घेर लिया मुझे

जिस किसी की ऑख से रिश्तों के नक्श चुराये

तेज़ हवाओं ने मिटा दिया उसे

जब कभी अॅधेरी रात में उम्मीदों की शमा रौशन की

मेरी खुद की बीनाई जाती रही

जिस किसी की सम्त रफाकत का इख्दाम किया

हाथों में खार निकल आये अपने

 

ज़िन्दगी,

अगर यही तेरा इंसाफ है

तो पहले बता दिया होता…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 5:46pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २४

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

पहले भी कई बार...

 

पहले भी कई बार

जब चाँद का शिकारा

आस्मान से उतर चुका हो

और तारे भी लौट चुके हों घर को

दूर... बाद्लों के  पहाड़ के  पीछे चिनार की बस्तियों में

जब दूर दूर फैली लबबस्ता खलाओं में

रात ने लिख दी हो ज़िन्दगी की शबनमी नज़्म

जब आहटों से बसी गलियों में

खुलने को हो आये हों

कायनात के  सुफैद दरीचे

जब दरख्तों से हवा की सरगोशियों का…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 5:44pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २३

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

अक्सरहा टुकड़े टुकड़े ....

 

रिश्तों को अक्सरहा टुकड़े टुकडे जी कर

अपनी नज़्म की किताब पूरी की है मैंने

एहसासों को रेज़ा रेज़ा सीने से लगा कर

हर्फ के साये में ढाला है

अपनी रायगाँ तमन्नाओं को

आरज़ूओं को यूँहीं वहशतों का नाम दिया

शबोरोज़ के मामूल में कुछ यूँ ही

ज़िन्दगी गुज़ारी है अब तक

जैसे गुमशुदा खला में मेरे नाम का इक बर्ग

दीवानावार हवाओं के दस्त ब…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 4:49pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २२

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

गुम गया है कहीं.....

 

मेरी ही तन्हाइयों के सिरहाने

एक एहसास कहीं

गुम गया है मेरा

एक मासूम सादासिफत एहसास

जो अब तलक ज़िन्दगी से मेरी निसबत का

एक अकेला शाहिद था

वही एक

रेज़ा-रेज़ा सा एहसास मेरा

जिसे कभी तुमसे चुराया था

ज़िन्दगी भर के लिये

जिसे सहेज कर रखा था अब तलक

खयालों के पैरहन में

वो नन्हा सा मुब्तसिम एहसास

गुम गया है…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 4:46pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २१

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

तगय्युर.....

 

ण्डहरों में पलने लगे हैं

तामीर के सपने.

उजड़ी बस्तियों में

फिर से कोर्इ खोल रहा है

ज़िन्दगी के ज़ख़ीरे.

वीरान घरों की दहलीज़ पे फिर से

आहटें बसने लगी हैं,

खामोश दरीचों से परदे

सरकने लगे हैं,

छत की चिमनियों से

धुओं का रेला

निकलने लगा है एक बार फिर.

ख़ामोश फ़ज़ाओं में

सय्यारों का झुण्ड

निकलने को…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 4:43pm — 2 Comments

देख कहीं तेरी देहरी सूनी ही न रह जाये माँ

देख कहीं तेरी देहरी 

सुनी ही न रह जाये माँ 
तेरी बेटी को परखने 
आज फिर कुछ लोग आ रहे है..................
 …
Continue

Added by Sonam Saini on June 29, 2012 at 4:30pm — 16 Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- २०

(आज से तीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

वितृष्णाओं का सफर.....

 

संवेदनाओं से चलकर

वितृष्णाओं का सफर

अपनी अनुभूतिओं को समेटकर

चल देने की कथा है

जिसमें कदाचित

संबंधों के कंपनशील तंतुओं के

टूट जाने की नियति होती है

जिसमें मैं सदैव की तरह

स्थितियों के विपर्यय से लड़ता

एक रिक्तता के अनुभव में

विलीन हो जाता हूँ

और आत्मवेदना के दवाब की हवा

आलोचना के मौसम में

सघन से सघनतर होती…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 4:12pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १९

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

मुझे प्यार की सज़ा दो.......

 

तुमसे बगैर पूछे मैंने

तुम्हें सोचा है कई बार

कभी शाम की लम्बी सड़क पे

तन्हा टहलते समनज़ारों तक

कभी रात की सियाह खामोशी में

चहलकदमी करते घर के चौबारे पर

कभी कमरे के रौज़न से

दूर बाहर खलाओं में देखते हुए

कभी शहर की भीड़-भाड़ सड़कों में

दफतर से लौटते हुए

यूँ ही कभी

कुछ करते, कुछ न करते हुए

सोचा है कई बार…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 4:04pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १८

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

अपनी हताशा से फिर इक बार उठूँगा....

 

मैं मानता हूँ,

तुम्हारी उपेक्षा का प्रहार सह न सका

और गिर गया निराशा की कठोर धरा पे

अपनी व्यथा का भार लिए!

 

मैं मानता हूँ

मेरी पीड़ाका अतिस्राव

अभी और भी दुखायेगा मुझे

जब तुमसे बह कर आने वाली हवा

स्मृतियों का एक पूरा संसार

छोड जाएगी पीछे!

 

मैं मानता हूँ

अभी और भी जलेंगे

मेरी…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:59pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १७

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

सूखे फूल खिल उठेंगे.......

 

सूखे फूल जो फिर खिल उठेंगे पेड़ों पे

क्षीण आशाएँ जो पुन: जाग जाएँगी हृदय में

भूले रास्ते

जो फिर से आ मिलेंगे मेरी असीम यात्रा पथों से

बिछड़े लोग, छूट गये घर, पुरानी किताबें

जिनसे फिर होगा समागम

जीवन के किसी अकल्पित क्षण में.........

मैं जी रहा हूँ उसी फूल

उन्हीं आशाओं

उन्हीं रास्तों

उन्हीं लोग

उन्हीं घर और किताबों…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:54pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १६

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

एक तुम्हारे खत ने....

 

नदी के वे द्वीप

जो दिशांतर में लुप्त नहीं हुए अभी

संबंधों के निष्कर्ष

जो लिखे नहीं गये अब तक

वे लोग जो अभी

आधे-अधूरे हैं विश्वासों की परिधि में

वे आहटें

जिनके सोते से जागने का भय

आशंकाओं ने संभाल रखा है अब तक

दूरियों के गहराये भँवर

जिनमें अभी शेष नहीं हुआ है सब कुछ

आशा-निराशा की वीथि

सोते जागते के सपने

सच…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:48pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १५

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

किंचित इतना है....

 

इतिहास के भुला दिये जाने वाले चरित्रों की तरह

अपने जीवन की कामना नहीं की है मैंने,

न ही देश और काल की सत्ताओं में लक्षित

अपने सुख दुख के व्यापारों का इष्ट ही

मेरे जीवन का ध्येय है,

मैं यह भी नहीं सोचता कि समय से परे

स्मरणीय लोगों में एक

मेरा जीवन चरित भी उल्लेख्य हो,

मैं अकिंचन हूँ

या अजस्र संभावनाओं का पुंज

इन गहन विवेचनों का…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:42pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १४

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

प्रणय.....

 

जिन संस्कारों ने

जीवन के  साहसिक निर्णयों से वंचित रखा अब तक/

जिन इच्छाओं की काल्पनिक प्रतिबद्धताओं ने

वंचना और अवंचना के  द्वंद्वों में

सीमायित रखा मुझे/

जो अनाख्यायित जिजीविषा

हर प्रवृति, हर लिप्तता में निभृत रही

और जिनसे उद्भास न हो सका सच का/

जिन मोहों को लेकर जीता रहा

उनका अभिशाप/

जो –दृष्टि नित्यानित्य के  विवेक से…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:36pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १३

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

क्या होता.....

 

यदि मैं अनेक सम्पन्नताओं से युक्त भी होता

तो क्या होता

मेरे जीवन में यदि धनाभाव न होता

और स्पृह लोगों की वन्चना न होती

यदि प्रतिदिन की उलझनें ना होतीं संताप देने को

और सब कुछ सुलभ और सुगम भी होता

तब भी जीवन का उतकर्ष अपरिहार्य  था....

अपने अस्तित्व से जुड़े भव्य कथानकों का

मेरे पश्चात मूल्य भी क्या होता

इसके अतिरिक्त कि

समीक्षाओं और…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:03pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- १२

(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)

हताशा...

 

हर जन्म में

अपने सीमित प्रत्यक्षों से छले जाने के बाद भी

सत्य की अन्येतर संप्रभुता को नकारता रहा हूँ

ये जानते हुए भी कि

संबन्धों का सत्व विषाद से अतिरंजित है

जीवन के विषयीगत समीकरणों में

अनुबध्द होने की चेष्टा करता रहा हूँ

और अनादि काल से

प्रेम के जिस सम्पूरक आधेय की तलाश रही है

उसे वायव्य पिन्डों के सदृश

कभी प्राप्त नहीं कर सका…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 3:00pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ११

(आज से अट्ठारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)

बैचलर.....

 

मेरे घर भी मनुहारों का खेल होता

मेरे पत्नी होती, मेरे बच्चे होते

कभी बच्चों की किलक, कभी माँ की छीज

घर गृहस्थी के सामानों के अभाव का

कभी होता अनुभव

समय से खाने और

समय से घर लौटने के बंधनों का बोध

कभी यूँ ही छुट्टी के रोज़

देर तक अकर्मण्य बने रहने का सुख होता

और होता

पत्नी की शिकायत और

बच्चों के प्रतिवेदनों में गुम्फित

एक…

Continue

Added by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 2:55pm — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
9 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"बदलते लोग  - लघुकथा -  घासी राम गाँव से दस साल की उम्र में  शहर अपने चाचा के पास…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"श्रवण भये चंगाराम? (लघुकथा): गंगाराम कुछ दिन से चिंतित नज़र आ रहे थे। तोताराम उनके आसपास मंडराता…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
22 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
yesterday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
yesterday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service