Added by dilbag virk on March 2, 2012 at 8:42pm — 6 Comments
वक़्त का वज़ूद
वक़्त की बेलगाम रफ़्तार का वज़ूद
दिखता है चेहरे की गहराती लकीरों में
या मिलता है जीवन की भूलभुलैया में
स्नेहसिक्त माँ की आँचल में मौज़ूद
है अब भी मेरे होने की महक
सन्नाटों में गूँजती है मेरी चहक ।
चलती थी एक गुड़िया उँगलियों को थामे
उन काँपती बेजान हाथों की नरमी
और छुपी उनमे उनके नेह की गरम
उन्हीं थापों से बीतती हैं रातें ,हँसती है शामें ।
चराचर का भेद समझा जब ज्ञानदीप से
जीवन को गुज़रता देखा सामने से
अतीत के गर्त में…
Added by kavita vikas on March 2, 2012 at 7:34pm — 6 Comments
Added by MAHIMA SHREE on March 2, 2012 at 5:52pm — 9 Comments
1.
प्रकृति प्यारी
रुई बिछी धरती
ये बर्फ़बारी .
२.
मुखौटे छाए
जनमानस लुटा
चुनाव आये .
३.
उड़ते गिद्ध
फिर मारा आदमी
लो आया युद्ध .
४.
ये दुपहरी
अलसाया शरीर
जेठ का माह .
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 2, 2012 at 5:26pm — 6 Comments
यही है ख़ुदाई उसकी, छोटी सी ये इल्तजा,
जो कभी की थी उससे, पूरी वो न कर सका;
तेरे मेरे बीच हैं अब, मीलों के फ़ासले
कभी सामने थे तुम, आज हो गए परे
तेरे मेरे बीच…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 2:00pm — 21 Comments
मैं और मेरी कृत्य के बीच एक रिक्त सदा से
खुद से खुद को जकडे जंजीरों के शून्य हो जैसे
बंधे है एक दूसरे से बाहों में बाहें डाल कर
फिर भी एक बड़ा घेरा जो घिर न रहा हो जैसे
युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं
लग रहा फिर भी…
Added by Anand Vats on March 2, 2012 at 12:30pm — 8 Comments
हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं,
अपनी गजलो में शऊर का ताला नहीं.
पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,
जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.…
Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 10:30am — 20 Comments
है प्रियवर, तुम कब आओगे भेजो तुम सन्देश
थक गई मोरी अँखियाँ अब तो भेजो तुम सन्देश
भेजो तुम सन्देश प्रिये तो झपकूँ अपने नैन
राह तकूँ मै हर आहट पे देखूँ द्वारे …
ContinueAdded by Monika Jain on March 1, 2012 at 11:30pm — 7 Comments
मैं तुझको आज बताता हूं, के कमी क्या है,
तू मुझको आज ये बता, के ज़िंदगी क्या है..
ये ऊंच-नींच, जात-पात, ये मज़हब क्यूँ हैं,
ये रंग-देश, बोल-चाल, बंटे सब क्यूँ हैं,
तू-ही हर चीज़, तो फिर पाक़-ओ-गंदगी क्या है..
किसी पत्थर को पूज-पूज, नाचना-गाना,
सुबह-ओ-शाम, तेरा नाम, लेके चिल्लाना,
तेरा यकीं या ढोंग, तेरी बंदगी क्या है..
किसी को देके चैन, दर्द में सुकूं पाना,
किसी को देके दर्द, ज़ुल्म करके…
Added by Aditya Singh on March 1, 2012 at 5:54pm — 8 Comments
शोख सी परी .
ज्यों बनी, खून सनी.
कोख में मरी.
( शोख = चंचल ; कोख = माँ का गर्भाशय / Uterus )
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 4:08pm — 5 Comments
हर सुंदर
प्रभात वेला में
प्रतिदिन
मैं पाता हूँ
स्वयं को
सीलन भरी लकड़ी सा
जो चाहती है
सुलगना
और...
सुलगना भी
इस तरह की
उसमें होम हो जाए
सीलन .
सीलन अहम् की
बहुत सारे
भ्रम की
मेरी हमसफ़र !
आओ ...
पवित्र अग्नि में
प्यार की .
भस्म कर दें
सीलन
हृदयों के
संसार की .
.
.
करोगी स्वीकार ?
मेरा निमंत्रण !!
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 3:00pm — 8 Comments
सच्चाई को खोजने चला था,
झूठ ही झूट मिले,
मोहब्बत खोजने चला,
तो बेवफाई मिली,
जब खोजना छोड़ दिया,
तो तन्हाई मिली,
अब तो खुदी को खोजने चला हूँ ,
जो चाहा था बेवजह था
जो मिला है बेइंतहा है
यूही भटक रहा था
अब सकून ही सकून है |
Added by Sanjeev Kulshreshtha on March 1, 2012 at 1:00pm — 8 Comments
है अर्ज़ जो तेरी मैं दूँगी उसे सुना,
हौले से मेरे कान में कहती है ये सबा;
*
अल्फ़ाज़ बहुत आसमाने दिल पर उमड़ रहे हैं,
कोई नहीं बरसता मगर बनकर मेरी दुआ;…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 1, 2012 at 11:30am — 26 Comments
सुंदर -असुंदर
रूप-रंग
उच्च-नीच
उतार-चढ़ाव
गुड़िया-गहने
बादल-बिजली
फूल-काँटे
जीत-हार
अपना-पराया
मान-अपमान…
Added by MAHIMA SHREE on February 29, 2012 at 11:00pm — 12 Comments
बचपन का क्या बयान करू, कुछ याद नहीं रहा दुनियादारी में,
बस ये नहीं भूला की माँ जागती थी रात भर, मेरी हर बीमारी में. …
Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on February 29, 2012 at 7:30pm — 14 Comments
हुईं थीं मुद्दतें फिर, वक़्त कुछ ख़ाली सा गुज़रा है;
कोई बीता हुआ मंज़र, ज़हन में आके ठहरा है;
कहीं जाऊं, मैं कुछ सोचूँ, न जाने क्या हुआ है,
मेरी आज़ाद यादों पर किस तसव्वुर का पहरा है;…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 29, 2012 at 2:51pm — 37 Comments
उपलब्धियों के मंच पर
Added by rajesh kumari on February 29, 2012 at 1:52pm — 14 Comments
फाग बड़ा चंचल करे, काया रचती रूप !
भाव-भावना-भेद को, फागुन-फागुन धूप !!
फगुनाई ऐसी चढ़ी, टेसू धारें आग
दोहे तक तउआ रहे, छेड़ें मन में फाग ॥
भइ, फागुन में उम्र भी करती जोरमजोर
फाग विदेही कर रहा, बासंती बरजोर !!…
Added by Saurabh Pandey on February 29, 2012 at 7:30am — 21 Comments
दस फागुनी दोहे -
मन में संशय न रहे खुले खुले हों बंध ,
नेह छोह के पुष्प से निकले मादक गंध |
हुलस उलस इतरा रहे गोरी तेरे अंग ,
मेरे मन बजने लगे ढोल मजीरा चंग |
गोरी फागुन रच रहा ये कैसा षडयन्त्र ,
तू कानो में फूंकती आज मिलन के मन्त्र |
रंग लगाने के लिए तू बैठी थी ओट ,
मेरा मन…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 29, 2012 at 7:30am — 26 Comments
आदर्शों पर चल कर तो देखो,
सर उठा कर जी कर तो देखो.
अत्याचार, ज़ुल्म, और भ्रष्टाचार के आगे
आवाज़ बुलंद करके तो देखो.
मन की राह कठिन है
चुनौतियाँ जटिल है,
पर एक बार आवाज़
बुलंद करके तो देखो
आत्मसम्मान से भर उठोगे
गर्व से सर उठा सकोगे (और)
एक बार जो चख लिया
आत्मसम्मान का स्वाद
तो हर चुनौती पार करने को
बलवला उठोगे
बस ज़रूरत है साहस की
ज़रूरत है हिम्मत की.
आदर्शों पर चल कर तो देखो, …
Added by Monika Jain on February 29, 2012 at 12:00am — 6 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |