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अभिनय भरी इस दुनिया में
पाने के लिए प्रिय वो हृदय
करना पड़ता है अभिनय..
करना ही होगा अभिनय।
दुनियाँ का नियम ये तय
जितना अच्छा जिसका अभिनय
उतना विस्तृत उसका संचय
करना पड़ता है अभिनय..
करना ही होगा अभिनय।
भाव-भंगिमाओं के अपने ताने-बाने
भेद न इनका कोई जाने
हृदय की जाने केवल हृदय
इस दुनियाँ का नियम ये तय
करना पड़ता है अभिनय..
करना ही होगा अभिनय।
जब भी मै अभिनय करने जाऊ
भेद सब खुल ही जाये..
शब्द न मिले,भावहीन खुद को मै पाऊ
अंतर्मन को चुनूँ?
या किरदार नया निभाऊ?
पर तो,इस दुनिया का नियम ये तय
करना पड़ता है अभिनय..
करना ही होगा अभिनय।
रह न जाये उन्माद,दुःख-सुख भय
मै भी तब रहे न मै
होता है जब सत्य का उदय
हे निर्विकार ! हे निर्भय !
हर लो अपने,मेरे सारे अभिनय..!!
हे निर्विकार ! हे निर्भय !
हर लो अपने,मेरे सारे अभिनय..!!
"मौलिक व अप्रकाशित"
-‘कृष्णा मिश्रा’
2122 1212 22
आँख में भरके आब बैठा है।
खिड़की पे माहताब बैठा है।
**
रातभर वाट्सऐप पे है लड़ा
नोजपिन पे इताब बैठा है।
**
सुर्ख़ आँखें अफ़ीम हो गोया
पलकों को ऐसे दाब बैठा है।
**
यूँ ग़ुलाबी सी शॉल है ओढ़े
जैसे कोई गुलाब बैठा है।
**
धूप में खिल रही हैं पंखुरियाँ
खुश्बू में लिपटा ख़्वाब बैठा है।
**
पढ़ रहा हूँ सुबह से मैं उसको
और वो लेके किताब बैठा है।
*************************
मौलिक…
ContinuePosted on February 25, 2021 at 1:00pm — 2 Comments
22 22 22 22
इश्क मुहब्बत चाहत उल्फत
रश्क मुसीबत रंज कयामत।
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किसको क्या होना है हासिल
अपनी अपनी है ये क़िस्मत।
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क्यूँ मैं छोडूं यार तेरा दर
हक है मेरा करना इबादत।
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देख ली हमने सारी दुनिया
तुझसी न भायी कोई सूरत।
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जोर आजमा ले तू भी पूरा..
देखूँ इश्क़ मुझे या वहशत?
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दिन 'जान' ये भी कट जायेंगे
देखी है जब उनकी नफरत।
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तेरे ही दम से सारे भरम हैं
वर्ना क्या दोज़ख़ क्या…
Posted on February 23, 2021 at 5:02pm — 7 Comments
नेह के आंसू को सरजू कहता हूँ
अपनेपन से तुझको मैं तू कहता हूं।
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रात छत पे जब निकल आता है तू
इन सितारों को मैं जुगनू कहता हूँ। **
ये जो तन से मेरे आती है महक़..
मैं इसे भी तेरी खुशबू कहता हूँ।
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ये अदब,शोख़ी, नज़ाकत, लहज़े में..
मैं इसी लहज़े को उर्दू कहता हूँ।
**
सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप
मैं सदा को तेरी…
ContinuePosted on February 19, 2021 at 7:00pm — 16 Comments
2122 1212 22 (112)
मुझको तू गर मिला नहीं होता
इश्क़ है क्या पता नहीं होता।
**
एक पल को जुदा नहीं होता.
ग़म तेरा बेवफ़ा नहीं होता।
**
रोज इक ख़त मैं लिखता हूँ तुझको
और तेरा 'पता' नहीं होता।
**
दो जहाँ हमने एक कर डाले
दर्द बढ़कर दवा नहीं होता।
**
इश्क़ है गर तो सोचता है क्या?
इश्क़ होता है या नहीं होता।
…
ContinuePosted on February 15, 2021 at 3:00pm — 9 Comments
भाई जी ,कृपया मुझे अपना मोबाइल num msg करें|
भाई जी नमस्कार. हृदय के स्पंदन की भांति दोस्ती भी बडे सौभाग्य से मिलती है.
..आपका हार्दिक स्वागत है. सादर
आ. बड़े भाई जी ,,पिछले माह का सक्रिय सदस्य आपको चुने जाने पर ,,हार्दिक बधाई |
प्रिय कृष्णा
आपको मित्र पाकर मेरा गौरव बढा , निस्संदेह . स्नेह.
आदरणीय
कृष्णा मिश्रा 'जान' गोरखपुरी जी,
सादर अभिवादन
माह का सक्रिय सदस्य बनने पर मेरी और से बहुत बहुत बढ़ायी. सस्नेह .
गोपाल नारायन श्रीवास्तव
आदरणीय
कृष्णा मिश्रा 'जान' गोरखपुरी जी,
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करें | प्रशस्ति पत्र उपलब्ध कराने हेतु कृपया अपना पता एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें | ध्यान रहे मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई है |
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सादर ।
आपका
गणेश जी "बागी"
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