मुझको गले लगाती है।
तब जाकर फुसलाती है।।
कितने मरते होंगे जब।
होठ चबा मुस्काती है।।
चूम चूमकर आँखों से।
मेरा दर्द बढ़ाती है।।
जलन चाँद को होती है।
वो छत पे जब आती है।।
छिपकर देखा करती है।
मैं देखूँ छिप जाती है।।
2222222
मौलिक अप्रकाशित
राम शिरोमणि पाठक
Added by ram shiromani pathak on May 8, 2018 at 10:02pm — 9 Comments
क्षणिकाएं : ....
१,
मौत
देती है
ज़िंदगी
मौत को
२.
शूल के
प्रतिबन्ध से
पुष्प
वंचित रहा
स्पर्श से
३.
मयंक
आधी खाई रोटी से
लुभा रहा था
अन्धकार को
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 8, 2018 at 12:27pm — 2 Comments
नारी का मन
न जाने कोई
जाने गर तो
न पहचाने कोई
एक पहेली बनती नारी
हास परिहास की शिकार है नारी
नव रसों में डूबी हुई
अनोखी पर सशक्त है नारी
कौन जाने कब हुआ जन्म
श्रुष्टि रचयिता में सहभागी है नारी
हर रिश्ते में बाँधा है इसको
माँ, बहन, चाची औ मासी
पूर्ण होता संसार है इससे
अर्धनारीश्वर का रूप धरा शिव ने
नारी का सम्मान बढ़ाया
युग बदला
बदली है नारी
परम्परा से आधुनिकता की राह पर
आज देखो चल पड़ी है नारी
कदम कदम पर…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 8, 2018 at 11:07am — 11 Comments
स्कूटर फर्राटे से थाने के सामने निकला।यह बात थाने को नागवार गुजरी।एक सिपाही ने हाथ दिया।स्कूटर रुक गया।उसने थाने के कंपाउंड में चलने का इशारा किया।अब स्कूटर थाने के मेन गेट पर खड़े इंचार्ज के सामने खड़ा था।सवार बगल में थे।इंचार्ज ने गाड़ी के कागज की माँग की,जो दिखा दिए गए।उसे गाड़ी का नंबर पढ़ने में दिक्कत हो रही थी।बार बार बताने के बावजूद वह अटक रहा था।अंत में स्कूटर सवार बुजुर्ग ने ध्यान दिलाया कि नंबर तो ठीक ही लिखा हुआ है।हाँ, लिखावट थोड़ी फीकी हो गयी है।लजाया-सा इंचार्ज झिझक भरे लहजे में…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on May 8, 2018 at 7:23am — 13 Comments
कहीं बनाते हैं सड़क, कहीं तोड़ते शैल
करते श्रम वे रात दिन, बन कोल्हू के बैल।1।
नाले देते गन्ध हैं, उसमें इनकी पैठ
हवा प्रवेश न कर सके, पर ये जाएँ बैठ।2।
काम असम्भव बोलना, सम्भव नहीं जनाब
पलक झपकते शैल को, दें मुट्ठी में दाब।3।
चना चबेना साथ ले, थोड़ा और पिसान
निकलें वे परदेश को, पाले कुछ अरमान।4।
सुबह निकलते काम पर, घर से कोसों दूर
भूमि शयन हो शाम को, होकर श्रम से चूर।5।
ईंट जोड़…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on May 7, 2018 at 5:30pm — 24 Comments
सुलगन :
तुम
अपना तमाम धुआँ
मुझे सौंप
चले गए
मुझे अकेला छोड़
मेरी देह
तुम्हारे धुएँ की गर्मी से
देर तक
ऐसे सुलगती रही
जैसे
गरम सिगरेट की
झड़ी हुई राख से
सुलगती है
कोई
ऐश -ट्रे
देर तक
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 7, 2018 at 4:21pm — 8 Comments
"अरे पप्पा! यह तो आपकी प्रिय हीरोइन है न! मोबाइल के इस नये विज्ञापन में यह क्यों कह रही है कि 'पूरा भारत यूं घूम रहा है' !" - इतना कह कर 'बड़े से घेरे वाली नई मिनी फ्रॉक' पहने आठवीं कक्षा की छात्रा अपने युवा देशभक्त-नेता पिता का हाथ थाम उनके चारों तरफ़ चक्कर लगाने लगी!
"यह तो 'मोबाइल नेटवर्क' का विज्ञापन सा लग रहा है! अपने देश का 'व्यापारिक नेटवर्क' इस वैश्वीकरण में 'घूमने' से ही बेहतरीन हो रहा है न!" युवा पिता ने अपनी बेटी की…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 7, 2018 at 2:58pm — 8 Comments
(चौथे शैर में तक़ाबल-ए-रदीफ़ नज़र अंदाज़ करे)
नसीहत जो बुज़ुर्गों की न मानी याद आएगी
हमें ता उम्र उनकी सरगरानी याद आएगी
मियाँ मश्क़-ए-सुख़न कर लो नहीं ये खेल बच्चों का
ग़ज़ल कहने जो बैठोगे तो नानी याद आएगी
ज़माने भर की आसाइश के जब सामाँ बहम होंगे
तुझे माँ-बाप की क्या जाँ फ़िशानी याद आएगी
जुड़ी होंगी मज़ालिम की बहुत सी दास्तानें भी
हवेली गाँव की जब ख़ानदानी याद…
ContinueAdded by Samar kabeer on May 7, 2018 at 12:00pm — 34 Comments
समाज सेवा - लघुकथा –
दद्दू नब्बे का आंकड़ा पार कर चुके थे। पूरा परिवार शहर में बस गया था लेकिन दद्दू गाँव में अपनी पुस्तैनी हवेली में ही पड़े थे। उनकी देखभाल और तीमारदारी के लिये बड़ी बहू साथ में थी। खाने पीने से ज्यादा दद्दू की दवाईयों का ख्याल रखना पड़ता था। यूं कहो कि दद्दू दवाओं के सहारे ही जीवित थे। दद्दू की दुनियाँ एक बिस्तर पर सिमट चुकी थी।
"दद्दू, मुँह खोलो, दवा खालो"?
"बहू, अब ये दवाओं का सिलसिला खत्म कर दो। एक बार बस छुट्टन को बुलादो। उससे मिलकर अलविदा कह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 7, 2018 at 11:50am — 14 Comments
मारे घूसे जूते चप्पल बदज़ुबानी सो अलग।
और कहते गाँव को मेरी कहानी सो अलग।।
आये साहब वादों की गोली खिलाकर चल दिये।
कह रहे हैं ये हुनर है खानदानी सो अलग।।
है अना गिरवी मरी संवेदनाये भी सुनो।
ज़िंदा है गर मर गया आँखों का पानी सो अलग।।
घोलकर नफ़रत हवा में वो बहुत मग़रूर है।
चाहिए उनको नियामत आसमानी सो अलग।।
लूटकर चलती बनी मुझको अकेला छोड़कर।
अब कहूँ क्या तुम हो दिल की राजधानी सो अलग।।
ढंग से इक काम…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on May 7, 2018 at 9:53am — 15 Comments
गुलज़ार प्यार का
हर रात उसी ग़मरात का ज़िक्र न कर
नातुवां ग़म को अपने तू गैरअहम कर
ज़िन्दगी में माना गर्द-ए-सफ़र है बहुत
ग़म-ए-पिनहाँ का रोज़ रंज-ओ-ग़म न कर
यूँ खामोश न रह, उदास और न हो
वादा यह पक्का कि लौट आऊँगा मैं
दिन में सही या रातों में तुम्हारी.. या
आ कर मुस्कराऊँगा ख़्वाबों में कभी
गालों पर मेरे…
ContinueAdded by vijay nikore on May 7, 2018 at 5:39am — 8 Comments
तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना
शर्त ये है तो फिर.. जा नहीं देखना.
.
जीतना हो अगर जंग तो सीखिये
हो निशाना कहीं औ कहीं देखना.
.
खो दिया गर मुझे तो झटक लेना दिल
धडकनों में मिलूँगा..... वहीँ देखना.
.
देखता ही रहा... इश्क़ भी ढीठ है
हुस्न कहता रहा अब नहीं देखना.
.
कितना आसाँ है कहना किया कुछ नहीं
मुश्किलें हमने क्या क्या सहीं देखना.
.
एक पल जा मिली “नूर” से जब नज़र
मुझ को आया नहीं फिर कहीं देखना.
.
निलेश…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2018 at 8:30pm — 11 Comments
कुदरत की सबसे बडी नेमत है हंसी,
ईश्वरीय प्रदत्त वरदान है हंसी,
मानव में समभाव रखती हैं हंसी,
जिन्दगी को पूरा स्वाद देती हैं हंसी,
बिना माल के मालामाल करने वाली पूंजी है हास्य,
साहित्य के नव रसो में एक रस होता हैं हास्य,
मायूसी छाई जीवन में जादू सा काम करती हैं हंसी,
तेज भागती दुनियां में मेडिटेशन का काम करती हैं हंसी,
नीरसता, मायूसी हटा, मन मस्तिष्क को दुरुस्त करती हैं हंसी,
पलों को यादगार बना, जीने की एक नई दिशा देती हैं…
ContinueAdded by babitagupta on May 6, 2018 at 5:30pm — 4 Comments
उजाले का वहाँ पहरा नहीं था ।
कभी सूरज जहाँ ढलता नहीं था ।।1
बहा ले जाए तुमको साथ अपने ।
वो सावन का कोई दरिया नहींथा।।2
मेरे महबूब की महफ़िल सजी थी ।
मगर मेरा कोई चर्चा नहीं था ।।3
मैं देता दिल भला कैसे बताएं ।
सही कुछ आपका लहज़ा नहीं था ।।4
जरा सा ही बरस जाते ऐ बादल ।
हमारा घर कोई सहरा नहीं था ।।5
जले हैं ख्वाब कैसे आपके सब ।
धुंआ घर से कभी उठता नहीं था ।।6
तुम्हारी हरकतें कहने…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 6, 2018 at 4:12pm — 5 Comments
बढ़ते ही नित जा रहे, खादी पर अब दाग
नेता जी तो सो रहे, जनता तू तो जाग।१।
जन सेवा की भावना, आज बनी व्यापार
चाहे केवल लाभ को, कुर्सी पर अधिकार।२।
मालिक जैसा ठाठ ले, सेवक रखकर नाम
देश तरक्की का भला, कैसे हो फिर काम।३।
नेता जी की चाकरी, तन्त्र करे नित खूब
किस्मत में यूँ देश की, आज जमी है दूब।४।
मुखर हुए निज स्वार्थ हैं, गौंण हो गया देश
नेता खुद में मस्त हैं, क्या बदले परिवेश।५।
जाति धर्म तक हो गये, सीमित नेता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2018 at 3:30pm — 10 Comments
एक उखड़ा-दुखता रास्ता
(अतुकांत)
कभी बढ़ती, कम न होती दूरी का दुख शामिल
कभी कम होती नज़दीकी का नामंज़ूर आभास
निस्तब्ध हूँ, फड़क रही हैं नाड़ियाँ
देखता हूँ तकलीफ़ भरा बेचैन रास्ता ...
खाली सूनी नज़र से देख रहा है जो कब से
मेरा आना ... मेरा जाना
घूमते-रुकते हताश लौट जाना
कुछ ही देर में फिर चले आना यहाँ
ढूँढने…
ContinueAdded by vijay nikore on May 6, 2018 at 11:43am — 14 Comments
1212---1122--1212--22
.
कठिन, सरल का कोई मसअला नहीं होता
अगर तू ठान ले दिल में तो क्या नहीं होता
.
अगर हो अज़्म तो पत्थर में छेद होता है
हुनर मगर ये सभी को अता नहीं होता
.
हमारे कर्म से प्रारब्ध भी बदलता है
नसीब अपना कभी तयशुदा नहीं होता
.
ये तज्रिबा है हमारा मुशाहिदा भी है
अमीर-ए-शह्र किसी का सगा नहीं होता
.
सितमगरों के इशारों पे खेल होता है
अदालतों में कोई फ़ैसला नहीं होता
.
जुड़ा ही रहता है ममता…
Added by दिनेश कुमार on May 6, 2018 at 9:00am — 8 Comments
Added by Kumar Gourav on May 5, 2018 at 11:04pm — 6 Comments
इम्तहान के दिन में काहे ,
जमकर नींद सताये रे.
पुस्तक पर जब नजर पड़े ,
तो दुविधा से मन काँप उठे ,
काश,कहीं मिल जाती सुविधा, नइया पार कराये रे .
हर पन्ना पर्वत सा लागे ,
लगे पंक्तियां भी भारी ,
प्रश्नों की तलवार दुधारी ,
रह रह आँख दिखाये रे.
चार दिनों में होना ही है ,
दो दो हाथ पुस्तिका से ,
क्या लिक्खूंगा उत्तर उस पर ,
मन मेरा भरमाये रे…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on May 5, 2018 at 4:54pm — 3 Comments
Added by Sushil Sarna on May 5, 2018 at 4:39pm — 5 Comments
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