१२२२ १२२२ १२२२ १२२२२
कभी आवाज की सूरत , कभी केवल इशारों से
बुलावा आज भी आता है , नदियों कोहसारों से
मैं प्यासा तो नहीं हूँ पर सराबों से ये पूछूंगा
कि बदली क्यूँ गुजरती ही नहीं है रेगजारों से
बड़ी बेताब सी लहरें बढ़ी तो हैं ज़रा देखें
वो कहना चाहती है क्या, अभी जाकर किनारों से
अभी मायूसियाँ छाई हुयी हैं दिल में अन्दर तक
अभी कुछ दिन न आये घर , कोई कह दे बहारों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 3, 2015 at 6:30pm — 19 Comments
Added by Neeraj Nishchal on January 3, 2015 at 3:30pm — 8 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on January 3, 2015 at 11:00am — 21 Comments
प्राण निछावर को तुम तत्पर,
भारत के प्रिय वीर सिपाही।
दुश्मन को ललकार अड़े तुम
अंदर बाहर छोड़ कुताही ।।
सर्द निशा अरू धूप सहे तुम,
देश अखण्ड़ सवारन चाही ।
मस्तक उन्नत देश किये तब,
मंगल जीवन लोग निभाही ।।
.................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on January 2, 2015 at 10:09pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 2, 2015 at 8:23pm — 20 Comments
1212-1122-1212-112
" ये सच है काम हमारा तो बेमिसाल नहीं "
मिला सुकून जो दिल को तो अब मलाल नहीं
बिना क़सूर ही मैं बज़्म से निकाला गया
गज़ब के पूछा किसी ने कोई सवाल नहीं
मैं अपने खुद के ही दम पर जहाँ में जी लूँगाा
जो हौंसला हो अगर कुछ भी फिर मुहाल नहीं
वफ़ा की राह पे चल कर किसी को कुछ न मिला
मगर मैं ज़िन्दा हूँ अब तक ये क्या कमाल नहीं
तमाम रात अंधेरे से वो मुकाबिल था
थका थका सा लगे है, दिया निढ़ाल नहीं…
Added by दिनेश कुमार on January 2, 2015 at 8:22pm — 20 Comments
नवजीवन में नव आशा से
नव नूतन कुछ कर्म करें
नव भक्ति से नव शक्ति से
शुभ नया वर्ष प्रारम्भ करें !
नयी सोच हो नए इरादे
नव सरिता की गागर हो
लक्ष्य नए आयाम नए
नव अभिलाषा का सागर हो !
नव बातें नव किस्सें हो
पर पीपल वही पुराना हो
हो ताल नयी हो राग नए
पर मन में वही तराना हो !
हो नया जोश हो नया सफ़र
नव नौका हो नव धारा हो
नव रिश्तें हों नव जीवन के
पर प्रेम पुरातन प्यारा हो…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 2, 2015 at 7:00pm — 20 Comments
२१२/ २१२/ २१२ /२१२
आँधियों में ही दीपक जलाते हैं हम
आहिनी हैं इरादे दिखाते हैं हम
आपको देखते देखते क्या हुआ!
आईये दिल की धड़कन सुनाते हैं हम
चाँद के सामने चाँद कैसा लगे
सोच कर भी न कुछ सोच पाते हैं हम
आईने पर हमारी नजर जब पडी
सोच कर हंस दिए क्या छुपाते हैं हम
बेबफा ही सही प्यार तो प्यार है
याद आता है जितना भुलाते हैं हम
दोस्तों पे यकी आज भी है हमें
दोस्ती की…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 2, 2015 at 5:39pm — 23 Comments
किस सागर में जान मिलेगी धार समय की
कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की
तेरी यादों की बूबास घुलेगी ज्यूं ज्यूं
बढ़ती जाएगी त्यूं त्यूं महकार समय की
वक़्त कहाँ मिलता है दुनियावी पचड़ों से
मेरी ग़ज़लें सारी है बेकार समय की
वक़्त सिकंदर विश्व-विजेता सदियों से है
सुल्तानी लाफ़ानी है सरदार समय की
चंदा-सूरज गगन-पवन सब मौन खड़े हैं
आयु कौन बतलायेगा सुकुमार समय की
बैर भूलकर मीत बनें सब एक…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 2:43pm — 18 Comments
नव वर्ष कहलायेगा.......
ऐ भानु
तुम न जाने
कितनी सदियों को
अपने साथ लिए फिरते हो
सृजन और संहार को
अपने अंतःस्थल में समेटे
खामोशी से
न जाने किस लक्ष्य की प्राप्ति में
प्रतिदिन स्वयं की आहुति देते हो
आश्चर्य है
धरा के संताप हरने को
अपने सर पर ताप लिए फिरते हो
आदिकाल से
प्रतिदिन अपनी केंचुली बदलते हो
हर आज को काल के गर्भ में सुलाते हो
फिर नए कल के लिए
नए स्वप्न लिए भोर बन के आते हो…
Added by Sushil Sarna on January 2, 2015 at 1:00pm — 14 Comments
राजा बहुत हैं, शतरंज के इस खेल में,
इनक़लाब का शोर कब तक मचाओगे ?
अभाव बहुत हैं, अंधेरों के इस खेल में ,
गीत उजियारो के कब तक सुनाओगे ?
तलवारें बहुत हैं, अधर्म के इस खेल में,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 2, 2015 at 3:10am — 17 Comments
किस सागर में जान मिलेगी धार समय की
कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की
युगों युगों तक फैला है कुहसार वसन का कुहसार =पर्वतांचल
कौन अज़ल से बाँध रहा दस्तार समय की दस्तार = पगड़ी
नोक कलम की पर रखते हैं काल तीन हम
केवल हमने स्वीकारी ललकार समय की
ख़ार दर्द के चुनकर गीत उगायेंगे हम
कर जायेंगे वादी हम गुलज़ार समय की
तू ऊषा की लाली मैं संध्या का…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 1:28am — 11 Comments
बिना तुम्हें बताए
अजीब प्रश्न हैं तुम्हारे
यूँ जैसेकि चक्रव्यूह
दिल-दिमाग भिड़ गए
बोलो किस माध्यम से उत्तर दूँ|
सच है! तुम्हारा जाना खलेगा
क्योंकि तुम्हारे जाने से बनेगा
एक शून्य |
जिसे सिर्फ़ तुम भर सकती हो
और मेरे आस-पास जो उदासी है
उसमें कलरव कर सकती हो||
पर तुम्हारा जाना भी बुरा नही है
क्योंकि मैं इससे व्यर्थ के सपने
देखने से बच सकता हूँ
अपनी दुनिया नए ढंग से रच सकता…
ContinueAdded by somesh kumar on January 1, 2015 at 11:30pm — 4 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on January 1, 2015 at 9:56pm — 12 Comments
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
उत्तर से आ रही है
लाल हवायें
जीभ लपलपाती
गर्म सदायें
हिमालय बदहवास बिलकुल बेदम है
हवा में आक्सीजन शायद कुछ कम है
दो कपोत हैं अब हर घर में रहते
गुटरगूं करते जाने क्या कहते !
एक है श्वेत दूसरा काला है
कोई नहीं जानता
क्या होने वाला है ?
दर्पण हाथों से छूट रहे है
मखमल पर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2015 at 7:42pm — 14 Comments
मुख भोला है भली पोशाक |
मैं भी तत्पर हुई बेबाक | बेबाक= निर्भीक|
किसे पता की मन में खोट|
कह सखि साजन ? ना सखि वोट |
कमरे में घुसते ही जाँचै |
उलटि पलटि वह ठहि के बाँचै | ठहि= स्थिर, इत्मीनान; बाँचै= निरखना, पढ़ना |
आँखों से मारै जस चोट |
कह सखि साजन ? ना सखि वोट |
ना छोड़ै जब अवसर आवे |
अंगुली पकड़त दाग लगावे |
ना पहचानै बड़ा न छोट |
कह सखि साजन ? ना सखि वोट…
ContinueAdded by SHARAD SINGH "VINOD" on January 1, 2015 at 6:30pm — 17 Comments
ग़ज़ल- 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)
किस सागर में जान मिलेगी धार समय की
कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की
मोल समय का उससे जाकर पूछो माधो
नासमझी में जिसने झेली मार समय की
जीवन नैया पार हुई बस उस केवट से
कसकर थामी जिसने भी पतवार समय की
आलस छोड़ो साहस धारो कर्म करो तुम
उठ जाओ अब सुनकर तुम फटकार समय की
कद्र तुम्हारी ये संसार करेगा उस दिन
कद्र करोगे जिस दिन बरखुर्दार…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 3:30pm — 19 Comments
नवगीत : दिन में दिखते तारे.
तिल सी खुशियों की राहों में,
खड़े ताड़ अंगारे.
कैसे कटें विपत्ति के दिन,
दिन में दिखते तारे.
आशा बन बेताल उड़ गयीं,
उलझे प्रश्न थमाकर.
मुश्किल का हल खोजे विक्रम,
अपना चैन गवाँकर.
मीन जी रही क्या बिन जल के.
खाली पड़े पिटारे.
कैसे कटें विपत्ति के दिन..
दिन में दिखते तारे.
दर्पण हमको रोज दिखाता,
एक फिल्म आँखों से,
पत्तों जैसे दिवस झर…
ContinueAdded by harivallabh sharma on January 1, 2015 at 3:00pm — 24 Comments
साथ मेरे ज़िंदगी की …(एक रचना )
साथ मेरे ज़िंदगी की रूठी किताब रख देना
जलते चरागों में बुझे वो लम्हात रख देना
रात भर सोती रही शबनम जिस आगोश में
रूठी बहारों में वो सूखा इक गुलाब रख देना
कहते कहते रह गए जो थरथराते से ये लब
साथ मेरी धड़कनों के वो जज़्बात रख देना
आज तक न दे सके जवाब जिन सवालों का
साथ मेरे वो सिसकते कुछ जवाब रख देना
मिट गयी थी दूरियां भीगी हुई जिस रात में
एक मुट्ठी…
Added by Sushil Sarna on January 1, 2015 at 1:22pm — 18 Comments
मुझ पे कब इख्तियार मेरा है
यूँ नए साल का सवेरा है.
ख़ैरियत लोग मेरी पूछें जब
ज़ेह्न ने दर्द ही उकेरा है .
इश्क़ बाजों से पूछ कर देखो
चाँद के पार भी बसेरा है.
वक़्त की धुन पे नाचती दुनिया
वक़्त सबसे बड़ा सपेरा है.
धर्म ईमान कुफ़्र की बातें
मुझ पे वाइज़ असर ये तेरा है .
नाम तुझ पर 'दिनेश' जँचता नहीं
तेरी किस्मत में जब अंधेरा है .
दिनेश कुमार
( मौलिक व अप्रकाशित )
Added by दिनेश कुमार on January 1, 2015 at 8:00am — 14 Comments
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