पात्र परिचय
गोपाल - एक गरीब बालक (उम्र करीब दस साल )
जमुना - गोपाल की माँ
मुनिया - गोपाल की छोटी बहन
गुप्ता जी - प्रतिष्ठित व्यापारी
रमेश - गुप्ता जी का छोटा भाई
गोलू - गुप्ता जी का सात वर्षीय पुत्र
शामू - गुप्ता जी का नौकर
(प्रथम दृश्य)
(छोटी सी झोपड़ी में जमुना , टूटी…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on January 31, 2015 at 11:00pm — 6 Comments
सुनो,
है ईश्वर ऐसा करो
मुझे पागल कर दो
शरीर से दिमाग का
संपर्क खत्म कर दो
मेरे एहसास
मेरी प्यास
मेरी तृष्णा
मेरा प्यार
मेरी लालसा
से मेरा नाता खत्म कर दो
न मर्म रहे
न भावना
न दर्द रहे
न रोग ....
सुनो....
है ईश्वर ऐसा करो
मुझे पागल कर दो
जीवन तो तब भी रहेगा
दौड़ेगा रगों मे खून
देखुंगा, सुनुंगा
खा भी लूँगा
दोगे कपड़े तो…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on January 31, 2015 at 8:00pm — 7 Comments
Added by ram shiromani pathak on January 31, 2015 at 10:00am — 25 Comments
राधॆश्यामी छन्द :
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भारत की यह पावन धरती,प्रगटॆ कितनॆं भगवान यहाँ !!
समय समय पर महापुरुष भी,दॆनॆ आयॆ सद्ज्ञान यहाँ !!
वॆद,ऋचायॆं लिखकर जिसनॆ,जीवन शैली सिखला दी है !!
एक शून्य मॆं सारी दुनियाँ,जॊड़,घटा कर दिखला दी है !!
इतिहास यहाँ का भरा पड़ा, वलिदानों की गाथाऒं सॆ !!
गूँज रहा है शौर्य आज भी, वीरॊं की अमर चिताऒं सॆ !!
शौर्य-शिरॊमणि यॆ भारत है,सत्य,अहिंसा की है डॊरी !!
एक दृष्टि सॆ पूर्ण पुरुष है,एक…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 31, 2015 at 12:30am — 8 Comments
माँ तू सुनती क्यों नहीं
तूँ बुनती क्यों नहीं
इक नई सी जिंदगी
वो घुटनों पे चलना
वो आँखों को मलना
वो मिटटी को खाना
बिना सुर के गाना
वो चिल्ला के कहना
मुझे रोटी देना
आज फिर चूल्हे पे पानी
तूँ पकाती क्यों नहीं
माँ तूँ सुनती क्यूँ नहीं
वो तेरी हथेली
में कितनी पहेली
वो मेरा कसकना
वो तेरा सिसकना
वो ममता की छाया
मुझे याद आया
वो मुस्कान तेरी
वो पेशानी मेरी
आज फिर से बोशा
सजाती क्यूँ नहीं
माँ…
Added by vijay on January 30, 2015 at 7:30pm — 12 Comments
सुकन्या भारतीय वायुसेना में नौकरी के पहले दिन तैयार होते ही भागी भागी आयी और अपनी माँ मधु को एक सैल्यूट करते हुए कहा, "माँ देखो, तुम्हारा सपना, तुम्हारे सामने| अब और क्या चाहिये तुम्हे?"
मधु की आखों में चमक के साथ साथ आंसू भी आ गये| उसने कहा, "एक वादा और चाहिये, बेटे| यदि तेरे भी बेटी हुई और तेरा पति और सास उसकी हत्या करने की कोशिश करे, तो तू मेरे जैसे अपनी बेटी को लेकर भाग मत आना| तेरी बेटी की रक्षा करने का कोई न कोई तरीका तुझे तेरे अफसर सिखा ही देंगे|"
(मौलिक…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 30, 2015 at 7:00pm — 14 Comments
दीवारें चहकने सी लगे
मकान जब घर बनता है
तेरे आने से घर मेरा
जन्नत बनता है
खुशियाँ , सावन की
घटाएँ बनने लगी
किलकारी से तेरी
मेरी दुनिया सजने लगी
खिड़कियाँ घर की
उम्मीद का सूरज लाए
सुगन्धित मस्त पवन
गीत बहारों के गुनगुनाएँ
आँगन में फागुन
रंग नए बिखरा गया
बसंती खेत की तरह
मेरे घर को वो लहरा गया
सरसों की फसल सम
मनभावन सा घर
पूज्य है मुझको मेरा छोटा सा घर…
Added by डिम्पल गौड़ on January 30, 2015 at 10:08am — 13 Comments
"यार,काव्य-गोष्ठी तो बहुत कर लीं पर काव्य-सम्मेलनों से बुलावा नहीं आता |"
"अरे मिट्टी के माध, अच्छी कविता लिखना–पढ़ना ही काफ़ी नहीं|"
"तो !"
"तोता बनना सीखो |"
"कैसे?"
"सज्जन के घर राम-राम |और चोर के घर-माल-माल |और फिर पाँचों अंगुलियाँ घी में | "
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सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on January 30, 2015 at 10:00am — 16 Comments
2122 2122 212
जब हमें दिल का लगाना आ गया
राह में देखो ज़माना आ गया
ख़त तुम्हारा देखकर बोले सभी
खुशबू का झोंका सुहाना आ गया
इक पता लेके पता पूंछे चलो
बात करने का बहाना आ गया
नाम तेरा जपते जपते यूँ लगे
अब तुझे ही गुनगुनाना आ गया
ज़िन्दगी रफ़्तार में चलती रही
मौत बोली अब ठिकाना आ गया
बेरुखी ने ही दिखाया गई हमें
फूल पत्थर पर चढ़ाना आ गया
शख्स इक गुमनाम देखा बोले सब
शहर में…
Added by gumnaam pithoragarhi on January 30, 2015 at 8:00am — 14 Comments
"आप का नाम क्या है ?" बगल में आई नयी पड़ोसन ने पूछा |
वो सोच में पड़ गयी , क्या बताये | शादी के बाद जब से इस घर में आई है तब से तो किसी ने उसके नाम से नहीं पुकारा | शुरू में बहू , फिर मुन्ने की माँ और अब मिसेस शर्मा , यही सुनती आई है वो | शायद तीस साल बहुत होते हैं किसी को खुद का वजूद भूलने के लिए | वो अपना वजूद ढूँढ रही थी , पड़ोसन चली गयी थी |
.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on January 29, 2015 at 9:30pm — 20 Comments
2122 2122 2122 2122
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मन किसी अंधे कुए में नित वफ़ा को ढूँढता है
जबकि तन लेकर हवस को रात दिन बस भागता है
*****
तार कर इज्जत सितारे घूमते बेखौफ होकर
कह रहे सब खुल के वचलना चाँद की भोली खता है
*****
जिंदगी भर यूँ अदावत खूब की तूने सभी से
मौत के पल मिन्नतें कर राह में क्यों रोकता है
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जाँच को फिर से बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन
घाव की मौजूदगी में दर्द …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2015 at 11:14am — 28 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 10:29am — 30 Comments
212 212 212 212
मेरे हँसने हँसाने पे शक़ है उसे
बेव़जह मुस्कुराने पे शक़ है उसे
.................
अलव़िदा कह गया जाता-जाता मग़र
आज़तक भूलपाने पे शक़ है उसे
....................
हर किसी से करूँ ज़िक्र मैं यार का
पर व़फायें निभाने पे शक़ है उसे
...................
कब से तनहाई दुल्हन बनी है मेरी
पर तुझे भूल जाने पे शक़ है उसे
.................
आँसुओं से समन्दर भी मैंने भरा
मेरे आँसू बहाने पे शक़ है उसे
उमेश…
ContinueAdded by umesh katara on January 29, 2015 at 9:19am — 27 Comments
मेरे सबसे प्रिय रचनाकार
कभी प्रत्यक्ष मिला नहीं आपसे
सपना है मेरा ,
आपसे मिलना , बातें करना
घंटों ,
किसी झील के किनारे
सूनसान में
आपकी हर रचनायें
गढती जाती है
मेरे अन्दर आपको
बनती जाती है
आपकी छवि ,
कभी धुंधली , कभी चमक दार , साफ साफ
क़ैद है मेरे दिलो दिमाग़ में
आपकी रचनाओं की सारी खूबियों के साथ
आपकी एक बहुत प्यारी छवि
क्या आप सच में वैसे ही हैं
जैसी आपकी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 29, 2015 at 8:16am — 31 Comments
एक लघु प्रयास (ताटंक छन्द) *****************************
राष्ट्र-वन्दना के स्वर फिर से,वीणाओं में गूँजेंगे ।।
शीश चढ़ाकर अगणित बॆटॆ,भारत माँ को पूजेंगे ।।
षड़यंत्रों नें बाँध रखा है, आज हिन्द को घेरे में ।।
मानवता का दीप जलायें, आऒ सभी अँधेरे में ।।
अपने अपने धर्म दॆवता, लगते सबकॊ प्यारे हैं ।।
जितने प्यारे प्राण…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 29, 2015 at 3:33am — 8 Comments
Added by दिनेश कुमार on January 28, 2015 at 7:30pm — 15 Comments
मानव का मान करो ….
सिर से नख तक
मैं कांप गया
ऐसा लगा जैसे
अश्रु जल से
मेरे दृग ही गीले नहीं हैं
बल्कि शरीर का रोआं रोआं
मेरे अंतर के कांपते अहसासों,
मेरी अनुभूतियों के दर पे
अपनी फरियाद से
दस्तक दे रहे थे
दस्तक एक अनहोनी की
एक नृशंस कृत्य की
एक रिश्ते की हत्या की
दस्तक उन चीखों की
जिन्हें अंधेरों ने
अपनी गहराई में
ममत्व देकर छुपा लिया
मैं असमर्थ था
अखबार का हर अक्षर
मेरी आँखों की नमी से
कांप रहा…
Added by Sushil Sarna on January 28, 2015 at 3:03pm — 22 Comments
२१२२ २१२२ २१२२२
रहनुमा वो कह गया है क्या इशारों में
चारसू उठता धुंआ ही अब नजारों में
धुंध कुछ छाई है ऐसी अब फलक पे यूं
रोशनी मद्दिम सी लगती चाँद तारों में
साजिशों की आ रही है हर तरफ से बू
छुप के बैठी हैं खिजाएँ अब बहारों में
खेलते जो लोग थे तूफाँ में लहरों से
वक़्त ने उनको धकेला है किनारों में
है नहीं महफूज दुल्हन डोलियों में अब
क्या पता अहबाब ही हों इन…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 28, 2015 at 2:11pm — 17 Comments
रातों के बेच कर ,दिन की रोशनी मैं इज्जत से जिन मज़बूरी हैं मेरी
आत्मा को बेच कर ,चहरे पर ये रौशनी झूठी है मेरी
जिनके आगे रातें लूटी हैं लुटाया है मैंने ,
उन्हें दिन में इज्जत देने वालों की पहली कतार में पाया हैं मैने
रातों ......
वैसे कहने को तो सभ कुछ पाया है मैने ,
पर हकीकत ये है ,सब कुछ लुटाया हैं मैंने
मेरे आंशुओं की नीलामी लगाई हैं उन्होंने
मेरे मजबूरियों की पूरी कीमत पाई है उन्होंने
रातों....
मुझे चीर…
ContinueAdded by Shyam Mathpal on January 28, 2015 at 12:00pm — 14 Comments
हाथ से यूँ सरसराती सी निकाली जिंदगी
खूब कोशिश की मगर कैसे संभाली जिंदगी
लाख पटके पांव फिर भी जो लिखा था वो हुआ
हर तजुर्बे कर के देखे और खंगाली जिंदगी
जिंदगी की राह में चलते हुए ऐसा लगा
है मरासिम कुछ पुराना देखी भाली जिंदगी
है बड़ी बेबाक सी उज्जड गवारों सी लगी
अब मुझे कितना कचोटे एक गाली जिंदगी
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
विजय कुमार मनु
Added by vijay on January 28, 2015 at 9:30am — 11 Comments
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2022
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3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
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