एक-दूजे के पूरक होकर
यथावत रखें संसार
पक्ष-विपक्ष राजनीति में
जनता के प्रतिनिधि
प्रतिवाद छोड़ सोचे जरा
एक राष्ट्र हो किस विधि
अपने पूँछ को शीश कहते
दिखाते क्यों चमत्कार
हरे रंग का तोता रहता
जिसका लाल रंग का चोंच
एक कहता बात सत्य है
दूजा लेता खरोच
सत्य को ओढ़ाते कफन
संसद के पहरेदार
सागर से भी चौड़े हो गये
सत्ता के गोताखोर
चारदीवारी के पहरेदार ही
निकले कुंदन…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 23, 2017 at 6:00pm — 3 Comments
1222 1222 122
सुखनवर से वो पहले आदमी है
गलत क्या है अगर नीयत बुरी है
किताबों से कमाई कम हुई तो
सुना है, रूह उसने बेच दी है
अचानक आइने के बर हुये हैं
इसी कारण बदन में झुरझुरी है
लगावट खून से, होती है अंधी
वो काला भी, हरा ही देखती है
चली तो है पहाड़ों से नदी पर
सियासी बांध रस्ता रोकती है
दिवारें लाख मज़हब की उठा लें
अगर बैठी, तो कोयल , कूकती है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 23, 2017 at 7:30am — 6 Comments
पहाड़ पर
चढ़ना भी पहाड़
सोचा ही नहीं
स्नेह आशीष
से भरा रहा सदा
माँ का आंचल
xxxxx
महकी हवा
वासंती हैं नजारे
फागुन आया ।
मादक टेसू
रंग गई चूनर
फागुन आया ।…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on February 22, 2017 at 4:48pm — 2 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on February 22, 2017 at 3:38pm — 3 Comments
(16 14 मात्रा भार)
.
(1)
हाथ जोड़ कर फिरते दिखते जब-जब सीजन आता है
दर-दर पर मिन्नत होती है हर इक जन तब भाता है
काम साध कुर्सी को पाकर याद नहीं फिर कुछ आता
झुककर जो वादे कर जाते उनको कौन निभाता है?
(2)
मौसम जैसा हाल सजन का समझ नहीं कुछ आता है
इस पल होता है तौला उस पल माशा बन जाता है
प्रीत हमारी लगती झूठी जाने क्या दिल में रखते?
वादे उनके ऐसे लगते ज्यों नेता कर जाता है।
(3)
आँखों को झूठा मत समझो आँखें सच ही कहती हैं…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 22, 2017 at 2:30pm — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on February 22, 2017 at 1:00pm — 13 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 22, 2017 at 11:29am — 2 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 22, 2017 at 7:13am — 2 Comments
मत्तगयंद सवैया :-
============
दो इतनी बस भीख मुझे मन, और न माँग रहा कुछ स्वामी|
नाम जपे दिन रात सदा मुख, गान करे रसना गुण स्वामी||
रूप मनोहर देख सदा दृग, शीतल हो मन पावन स्वामी |
याचक “सत्य” करे विनती नित , शीश नवा पद पंकज स्वामी|१|
याद बड़ी शुभदायक औ तव, रूप बड़ा मन मोहक स्वामी|
भक्त कृपालु उदार मना तुम, भक्त कृपा लहते तव स्वामी||
बन्धु सखा गुरु मात पिता तुम, हो भव सागर तारक स्वामी|
जीवन की तुम आस प्रभो! तुम,हो…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on February 21, 2017 at 11:30pm — 2 Comments
एक सूरज ...
सो गया
थक कर
सिंधु के क्षितिज़ पे
ख़ुदा के दर पे
ज़मीं के
बशर के लिए
चैन-ओ-अमन की
फरियाद लिए
जलता हुआ
एक सूरज
संचार हुआ
नव जीवन का
भर दिया
ख़ुदा के नूर को
ज़मीं के ज़र्रे ज़र्रे में
करता रहा भस्म
स्वयं को
स्वयं की अग्नि में
बशर के
चैन-ओ-अमन
के लिए
एक सूरज
रो पड़ा
देखकर
बशर की फितरत
नूरे बख़्शीश को
समझ न सका
ग़ुरूर में…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 21, 2017 at 2:04pm — 9 Comments
संतों तक को झूठी रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तार कर सरकार अच्छा नहीं कर रही | देश विदेश में लाखों अनुयायी किसी के ऐसे ही बनते | मेरे घर से अपनी बहन के साथ इनके आश्रम में 15 दिन रहकर आई है | चेलों का बड़ा ख्याल रखा जाता है | नियमित व्याखान और पूजा पाठ चलता रहता है | बहुत पहुँचे हुए संत है, मैंने भी पुष्कर में इनके प्रवचन सुने है |
पाठक जी बोले - ये सब तो ठीक है ओझा जी, पर इनके खिलाफ अश्लील कारनामे और महिलाओं के साथ लिप्त पाए जाने के पुख्ता सबूत के आधार पर ही गिरफ्तार किया है | कई शहरों में…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 21, 2017 at 12:22pm — 10 Comments
२१२२, ११२२, ११२२, २२
ये नहीं है कि हमें उन से मुहब्बत न रही,
बस!! मुहब्बत में मुहब्बत भरी लज्ज़त न रही.
.
रब्त टूटा था ज़माने से मेरा पहले-पहल,
रफ़्ता-रफ़्ता ये हुआ ख़ुद से भी निस्बत न रही.
.
ज़ह’न में कोई ख़याल और न दिल में हलचल,
ज़िन्दगी!! मुझ में तेरी कोई अलामत न रही.
.
उन से नज़रें जो मिलीं मुझ पे क़यामत टूटी,
वो क़यामत!! कि क़यामत भी क़यामत न रही.
.
याद गर कीजै मुझे, यूँ न…
Added by Nilesh Shevgaonkar on February 21, 2017 at 12:00pm — 17 Comments
नज़्र ....
सहर हुई
तो ख़बर हुई
शब्
सिर्फ
बातों को
नज़्र हुई
रहते ख़ामोश
नज़रों को
जुबां देते
रात यूँ ही
नज़रों के
दरमियाँ गुज़ार देते
लम्स करते बयाँ
सफर निगाहों का
फिर
न सहर की
खबर होती
न शब्
लफ़्ज़ों को
नज़्र होती
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 20, 2017 at 1:34pm — 12 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2017 at 12:53am — 16 Comments
उसने मुझको देखा है,
शायद कुछ तो सोचा है।
मंज़र कुछ ऐसा है जो,
उसकी आँखों देखा है।
मुश्क़िल राहों पे अब वो,
धीरे-धीरे चलता है।
कहता है वो सच को सच
सबको कड़वा लगता है।
उस पे शक़ करना कैसा,
वह तो जाँचा परखा है।
सुख-दुख के मौसम को, वह
ख़ामोशी से सहता है।
बारिश हो जाने से अब,
मौसम बदला-बदला है।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Mohammed Arif on February 19, 2017 at 3:30pm — 15 Comments
Added by नाथ सोनांचली on February 19, 2017 at 2:53pm — 26 Comments
Added by Mahendra Kumar on February 19, 2017 at 11:30am — 23 Comments
2122 2122 2122
हर हथेली, क़ातिलों की जान ए जाँ है
ज़ह्र उस पे, मुंसिफों सा हर बयाँ है
बाइस ए हाल ए तबाही हैं, उन्हें भी --
बाइस ए तामीर होने का गुमाँ है
एक अंधा एक लंगड़ा हैं सफर में
प्रश्न ये है, कौन किसपे मेह्रबाँ है
किस तरह कोई मुख़ालिफ़ तब रहेगा
जब कि हर इक, दूसरे का राज दाँ है
जिन चराग़ों ने पिया ख़ुर्शीद सारा
उन चराग़ों में भला अब क्यूँ धुआँ है
जब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 19, 2017 at 9:30am — 20 Comments
Added by Manan Kumar singh on February 19, 2017 at 9:00am — 17 Comments
Added by Dr Ashutosh Mishra on February 19, 2017 at 7:38am — 8 Comments
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