पीत वसन से सजी धरती सखि
सोन से भाव में तोलि रही सब
सोंधी सी खुश्बू हिया अब उमड़ति
प्रीति के चन्दन लपेटि रही अंग
कुसुमाकर बनि काम कुसुम तन
सिहरन बनि झकझोरि रहे हैं
नील गगन रक्तिम बदरी मुख …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 14, 2013 at 11:56pm — 17 Comments
ऋतु बसंत का आगमन,खुशियों का उन्माद,
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 14, 2013 at 10:26pm — 14 Comments
पत्थर दिलों के पिघलने तो दो
ज़रा होश अपने संभलने तो दो
सारा चमन तो जलाया है तुमने
कोई फूल अब थोडा खिलने तो दो
हर शाख पर अब तो उल्लू है बैठा
कहीं इन परिंदों को मिलने तो दो
अंधेरों से डरते सभी हैं यहाँ पर
जरा तुम ये सूरज निकलने तो दो
ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी
मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on February 14, 2013 at 6:50pm — 7 Comments
सूनेपन का रंग ...
पतझड़ के सूखे पत्तों -सा पीला,
मेले में खो गए भयभीत
बालक की नब्ज़-सा नीला,
या अमावस के गहन
अंधकार-सा गंभीर और काला,
सूनेपन का रंग
कैसा होता है?
घोर आतंक-सा वातावरण,
मौसम पर मौसम बेचैन,
जँगली हाँफ़ती हवाएँ
दानव-सी हँसी हँसती,
हर मास एक और पन्ना पलट
करता है गए मास का
अंतिम संस्कार।
पर सूनापन पड़ा रहता है,
वहीं का वहीं,
पुराने…
Added by vijay nikore on February 14, 2013 at 4:00pm — 18 Comments
प्रेम प्रणय का आज क्यूँ ,हो पाता इज़हार |
प्रीत दिवस के बाद क्या ,खो जाता है प्यार ?
सच्चे मन से कीजिये ,सच्चे दिल का प्यार |
निश्छल दिल ही दीजिये,जब करना इज़हार||
पश्चिम का तो चढ़ रहा ,प्रेम दिवस उन्माद |
अपने पर्वों के लिए ,पाल रहे अवसाद||
युवक युवतियों के लिए ,दिन है बहुत विशेष |
खुली मुहब्बत का मिले ,हर दिल को संदेश||
पश्चिम के त्यौहार का ,डंका बजता आज |
प्रेम दिवस के सामने ,गुमसुम है…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 14, 2013 at 11:00am — 24 Comments
भोली जनता को नेता जी मूर्ख बनाना बंद करो।
जनता जाग गई अब दिल्ली धौंस दिखाना बंद करो॥
जन्तर मन्तर से जनता का आजादी अभियान शुरू।
झूठे वादे तानाशाही गया जमाना बंद करो॥
हम सब के मत से ही नेता तुम इतने मतवाले हो।
है तेरी कुछ औकात नहीं रौब दिखाना बंद करो॥
चूस रहे हो खून हमारा अब हमको अहसास हुआ।
शहद लगे विषधर डंकों को पीठ चुभाना बंद करो॥
हम सबके श्रम के पैसों से पाल रहे हो तुम गुण्डे।
परदे के पीछे से छुपकर तीर चलाना बंद…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 14, 2013 at 5:00am — 19 Comments
पत्थरों के शहर मे दिल ही टूटते थे अभी,
भरम भी टूट गया अब के, अच्छा ही हुआ..
दोस्ती लफ्ज़ से नफ़रत थी हमको पहले भी,
रहा सहा यकीं भी उठ गया अच्छा ही हुआ..
खुली थी आँखें फिर भी नींद आ गयी जाने,
तुमने झकझोर के जगा दिया अच्छा ही हुआ..
ज़मीन होती क़दम तले तो भला गिरते क्यों,
हवा मे उड़ने का अंजाम मिला अच्छा ही हुआ..
ख्वाब था या के हादसा था जो गुज़र ही गया,
यकीं से अपने यकीं उठ गया अच्छा ही हुआ..
यूँ भी मुर्दे पे सौ मन मिट्टी थी पहले से,
एक मन और पड़ गयी…
Added by Sarita Sinha on February 13, 2013 at 11:52pm — 16 Comments
क्यों मिल गयी संतुष्टि
उन्मुक्त उड़ान भरने की
जो रौंध देते हो पग में
उसे रोते , कराहते
फिर भी मूर्त बन
सहन करना मज़बूरी है
क्या कोई सह पाता है रौंदा जाना ???
वो हवा जो गिरा देती है
टहनियों से उन पत्तियों को
जो बिखर जाती हैं यहाँ वहाँ
और तुम्हारे द्वारा रौंधा जाना
स्वीकार नहीं उन्हें
तकलीफ होती है
क्या खुश होता है कोई
रौंधे जाने से ??
शायद नहीं
बस सहती हैं और
वो तल्लीनता…
ContinueAdded by deepti sharma on February 13, 2013 at 9:26pm — 15 Comments
दारोगा बाबू का स्थानांतरण शहर से दूर एक छोटे थाने में कर दिया गया था । काफी शिकायतें आयीं थी, कि बगैर घूस लिए काम ही नहीं करते थे । नया क्षेत्र बहुत ही शांत था। थाने में कोई केस नहीं । सभी सिपाही, हवलदार, दिन भर मानों समय काटते । जैसे तैसे एक महिना निकल गया, 'बोहनी’ तक नसीब नहीं हुई थी ।
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 13, 2013 at 3:00pm — 35 Comments
सब कुछ अपने पर सहती है,
तूफान उड़ा ले जाते मिटटी,
सीना फाड़ के नदी बहती है !
सूर्यदेव को यूँ देखो तो,
हर रोज आग उगलता है,
चाँद की शीतल छाया से भी,
हिमखंड धरा पर पिघलता है !
ऋतुयें आकर जख्म कुदेरती,
घटायें अपना रंग…
ContinueAdded by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 13, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
आज मैं जिस परिस्थिति में हूँ वहां पर खुद को एक दोषी के रूप में देख रहा हूँ ! मेरे पेट में दर्द बढ़ रहा है ! हस्पताल वाले मुझे सांत्वना दे रहे हैं कि आप चिंता न करिए अभी थोड़ी देर में ही आपका ऑपरेशन हो जायेगा और आप सही सलामत हो जायेंगे ! मैं उनको कह रहा हूँ की मुझे ऑपरेशन से बहुत डर लग रहा है ! तभी एक नर्स ने मुझे बताया कि डरने की कोई बात नहीं है आपका ऑपरेशन निशा शर्मा करेंगी जो की जानी - मानी डॉक्टर हैं ! उनके आज तक सभी ऑपरेशन सफल हुए हैं ! ये नाम सुनकर ही मेरे होश उद्द गए और मैं अपने अतीत…
ContinueAdded by Parveen Malik on February 13, 2013 at 12:00pm — 21 Comments
सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं
छोड़ मुझे वो जब जब मैके जाने लगते हैं
उनके गुस्सा होते ही घर के सारे बर्तन
मुझको ही दोषी कहकर चिल्लाने लगते हैं
उनको देख रसोई के सब डिब्बे जादू से
अंदर की सारी बातें बतलाने लगते हैं
ये किस भाषा में चौका, बेलन, चूल्हा, कूकर
उनको छूते ही उनसे बतियाने लगते हैं
जिसकी खातिर खुद को मिटा चुकीं हैं, वो ‘सज्जन’
प्रेम रहित जीवन कहकर पछताने लगते…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 13, 2013 at 11:59am — 28 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 13, 2013 at 8:35am — 24 Comments
हर आहट पे सांस थमी है आ भी जाओ ना॥
सूनी दिल की आज गली है आ भी जाओ ना॥
अरमानों के गुलशन में बस तेरा चर्चा है,
हरसू तेरी बात चली है आ भी जाओ ना॥
पूनम की इस रात में तेरी याद बहुत आती है,
तारों की बारात सजी है आ भी जाओ ना॥…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on February 13, 2013 at 1:30am — 20 Comments
पथ मेरे ये अंधेरों में घिरने लगे…
ContinueAdded by Pushyamitra Upadhyay on February 13, 2013 at 12:30am — 13 Comments
त्रिभंगी सलिला:
ऋतुराज मनोहर...
संजीव 'सलिल'
*
ऋतुराज मनोहर, प्रीत धरोहर, प्रकृति हँसी, बहु पुष्प खिले.
पंछी मिल झूमे, नभ को चूमे, कलरव कर भुज भेंट मिले..
लहरों से लहरें, मिलकर सिहरें, बिसरा शिकवे भुला गिले.
पंकज लख भँवरे, सजकर सँवरे, संयम के दृढ़ किले हिले..
*
ऋतुराज मनोहर, स्नेह सरोवर, कुसुम कली मकरंदमयी.
बौराये बौरा, निरखें गौरा, सर्प-सर्पिणी, प्रीत नयी..
सुरसरि सम पावन, जन मन भावन, बासंती नव कथा जयी.
दस दिशा तरंगित, भू-नभ…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 12, 2013 at 8:30pm — 12 Comments
इस मलिन बस्ती से,
दूर जाना चाहता हूँ !
सब स्वार्थ से घिरे है ,
थोड़ा आराम चाहता हूँ !
ऐसा नहीं कि मै कमज़ोर हूँ ,
इनसे नहीं लड़ सकता !
अपनत्व दिखाते है फिर भी ,
चलते हैं चाल कुटिलता…
Added by ram shiromani pathak on February 12, 2013 at 7:00pm — 6 Comments
उर्वशी की बाहर पुकार हो रही थी। वह शीशे के आगे खड़ी अपना चेहरा संवारती -निहारती कुछ सोच में थी। तभी फिर से उर्वशीईइ .....! नाम की पुकार ने उसे चौंका दिया।
उर्वशी उसका असली नाम तो नहीं था पर क्या नाम था उसका असल में , वह भी नहीं जानती !
अप्सराओं की तरह बेहद सुंदर रूप ने उसका नाम उर्वशी रखवा दिया और भूख -गरीबी और मजबूरी ने उसे स्टेज -डांसर बना दिया। वह छोटे - बड़े समारोह या विवाह समारोह में डांस कर के परिवार का भरण -पोषण करती है अब , आज-कल।
गन्दी , कामुक , लपलपाती नज़रों के…
ContinueAdded by upasna siag on February 12, 2013 at 5:24pm — 19 Comments
चमक रही
सूरज की तरह
पीली सरसों
...............
बिखर गई
खुशिया सब ओर
आया बसंत
................
लाल गुलाबी
रंग बिरंगे फूल
लाया बसंत
.................
बगिया मेरी
महक उठी आज
आया बसंत
..............
नमन तुझे
दो मुझे वरदान
माता सरस्वती
मौलिक और अप्रकाशित रचना
Added by Rekha Joshi on February 12, 2013 at 4:43pm — 9 Comments
घर की मुर्गी या दाल
देख पडोसी की बीबी, मेरी तबियत भडकी,
मिली नजर उससे तो, मेरी आंख फडकी,
कई दिनो तक रहा, यही सिलसिला…
ContinueAdded by बसंत नेमा on February 12, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
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