Added by Vindu Babu on March 11, 2013 at 6:27pm — 9 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 11, 2013 at 6:17pm — 10 Comments
ओ बी ओ महोत्सव २९ - विषय - रंग पर यह कुछ लिख डाला था पर सुबह देखा कि वह तो सिर्फ १० तारीख तक ही के लिए था जबकि आज तो ११ तारीख है| अब सोचा क्यूँ ना उस विषय की इस पोस्ट को यहाँ ओ बी ओ के ब्लॉग में ही डाला जाए, तो अब उस आड़ी तिरछी रचना को अपने पन्ने पर रख रही हूँ ...
इस बीच
मैंने पाया है…
ContinueAdded by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on March 11, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 11, 2013 at 3:56pm — 8 Comments
(निराश को आशाप्रद करती रचना)
आगंतुक
Added by vijay nikore on March 11, 2013 at 12:00pm — 24 Comments
हंसबैंड
बिल शोपिंग का देते –देते, जिसकी ढीली हो गई पेंट
फिर भी हंसते हंसते जो , खुद की बजवाये बैण्ड ...
उसको कहते है हंसबैंड, की भईया कहते है हंसबैंड,
भोर भई जब सोते सोते बीबी बोले डार्लिंग,
देखो बाहर सूरज निकला, हो गई है गुड मार्निग.
यदि…
ContinueAdded by बसंत नेमा on March 11, 2013 at 11:30am — 5 Comments
दास्ताने होली (होली के पावन पर्व पर जनहित में जारी)
होली के हुरियारों ने, मुझे पिला दी भंग
अंग अंग में छा गई, भंग की तरंग
गिरते पड़ते जैसे तैसे, वापिस घर मै आया
बाहर खड़े खजहे कुत्ते को, खूब गले लगाया
वो मुझे चाट रहा था, मै उसको चूम रहा था
मदहोश था यारो, मेरा सर घूम रहा था
रंगरंगीली छैलछबीली, वहाँ एक नार खड़ी थी
वो मुझे देखकर मुस्काई, मेरी उससे आँख लड़ी थी
उसकी कातिल मुस्कान ने, मेरे अरमानो को हवा दी
रोमांटिक हुआ…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on March 11, 2013 at 11:00am — 4 Comments
जस गॅवार गुण हीन अज्ञानी। आशा विपरीत सदा दुःख मानी।।
उलटि भजे सुनि कर्म भय ताहू। क्षमा राखि इच्छित फल पाहू।।
ज्यों ढोल मढि़ पोल उर राखा। गावहिं सगुन भवानहि भाषा।।
ढमढम ढोल ताल बिनु बाजा। नटसि नाथ हिय सुर ताल साजा।।
जनम जनम सेवा शूद्र वारे। दुःख दरिद्र त्यों जीवन धारे।।
कबहु न सीस मान अधिकारी। निषाद मित्र शबरी पय वारी।।
ज्यों समाज पशु धन श्री साजे। शत विधि भला असत रस राजे।।
बलि शीशा नर क्षुधा मिटाही। गिघ्द भालु कपि प्रभु जिय माही।
सकल ब्रहम संग रहे…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 11, 2013 at 10:30am — No Comments
रंग गई रंग गई हे री सखी
मैं तो फाग के रंग में रंग गई।
1 - रंग ना गुलाल मै तो शर्म से लाल हुई
पिया घर आये मै आप गुलाल हुई
छेड़ो न छेड़ो न हे
मोहे छेड़ो न छेड़ो न छेड़ो सखी
मै तो अपने पिया रंग रंग गई।
रंग गई .........................
2 - धानी चुनर सरक सरक जाय रही
कान्हे से माथे की दौड़ लगाय रही
पकड़ो न पकड़ो न हे
अरे पकड़ो न पकड़ो न हे री सखी
मैं अपने पिया संग हो ली।
रंग गई…
ContinueAdded by mrs manjari pandey on March 11, 2013 at 12:00am — 4 Comments
ज़रूरी नहीं
कि हम पीटें ढिंढोरा
कि हम अच्छे दोस्त हैं
कि हमें आपस में प्यार है
कि हम पडोसी भी हैं
कि हमारे साझा रस्मो-रिवाज़ हैं
कि हमारी मिली-जुली विरासतें हैं
कतई ज़रूरी नहीं है ये
कि हम दुनिया के सामने
अपने प्यार का इज़हार करें
क्योंकि जब दोस्ती टूटती है
जब प्यार नफरत में बदलता है
तब रिश्तों में खटास आती है
तब दिल टूट जाते हैं
तब अकबका जाते हैं वे लोग
जिनके दिल मोम हैं
जो…
ContinueAdded by anwar suhail on March 10, 2013 at 7:24pm — 8 Comments
हरि-महिमा
तिनका तिनका हरि नाम धरै, महिखंड समूल रसातल को!
यमलोक सुलोक हवा पहिरे, हरि नाम जपे हरि आपन को!!
हनुमान हरी हरि राम रटे, मिलगे वन मा सुग्रीव सखा !
रघुवीर मिले दुःख दूर भये, मनमीत बने हरि राम सखा!!
कहि कोल किरात चंडाल जपे,उलिटा हरि नाम सुनाम लगे!
हरि नाम जपे कवि के रसना, सुर प्रीत बने गंगा जमुना !!
हरि नाम कथा कहहि सुनही, पर प्राण सराहि हरे दुःख को!
कही मोह बढाहि चले मद में, हरी नाम भुलाय पड़े गत…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 10, 2013 at 5:09pm — 6 Comments
अहंकार है जड़ प्रकृति, स: ह्वै चेतन सार!
हंसा बूझि अस मूढ़मति, ज्ञानी भए भव पार!!
द्युलोक मा व्यापक रहत,आदित तैजस रूप!
बसुधा धारत अनल सत,वायु शून्य इक भूप!!
आदित्य सोसत सागर, गुरुत्व शून्य अस भाए!
बादल डाले वीर्य रस, धरा उपज अति पाए!
विश्वान इक गर्भ सृजक, चेतन रहा डोलाए!!
षट घन घना कुंभ विकृत,सत जागत सुख पाए!!
हंस उड़त एक पाद से,इक जलाशय रहि जाए!
कर्म पाश रस चाहना, फिरै सरोवर …
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 10, 2013 at 12:31pm — 2 Comments
(१) ज्वलंत प्रश्न
जब फलदार वृक्ष ही
बन जाएं नरभक्षी,
चूसने लगें रक्त,
तब क्या करे पथिक,
किधर ढूँढे छाँव, शीतलता,
कहाँ करे विश्राम,
कैसे जुटाये भोजन
जेठ की तपती राहों में।
(२) एक घटना
सुबह कुछ फूल देखे थे,
आकार में बड़े-बड़े,
चटख रंगोंवाले, भड़कदार,
मन किया कि घर ले आऊँ,
जाँच की तो पाया
सारे के सारे जहरीले थे।
(३) कैसी…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on March 10, 2013 at 11:46am — 8 Comments
जिनके लिये हिन्द प्राण से प्यारा था।
सत्य अहिंसा ही बस जिनका नारा था।
तैंतीस कोटि जनो का जो विश्वास था।
जिसमे होता देवों का आभाष था।
जिसने देखे स्वप्न राम के राज की।
उसी हिन्द की दशा हुई क्या आज की।
सत्य बैठ कोने मे सिसकी लेता है।…
Added by आशीष यादव on March 10, 2013 at 10:30am — 7 Comments
खरीफ की फसल को तैयार कर अनाज को सहेजते और ठिकाने लगाते लगाते रब्बी की फसल भी तैयार होने लगती है. मसूर, चना, खेसारी, और मटर आदि के साथ सरसों, राई, तीसी आदि भी पकने लगते हैं, जिन्हें खेतों से काट कर खलिहान में लाया जाता है. इन सबके दानो/फलों को इनके डंटलों से अलग करने से पहले इन सबको पहले ठीक से सजाकर रखा जाता है, ताकि खलिहान के जगह का समुचित उपयोग हो. आम बोल-चाल की…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on March 10, 2013 at 7:30am — 4 Comments
इस वर्ष सारा राष्ट्र स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जन्म-शती मना रहा है। स्वामी जी द्वारा दिया गया विचार-दर्शन युग-युगीन और शाश्वत है। उनकी दिव्य वाणी अमरता का महान् संदेश प्रदान कर रही है। स्वामीजी के दर्शन की आज भी उतनी ही प्रासंगिकता है जितनी विगत 20 वीं सदी में रही थी। मात्र 39…
ContinueAdded by prabhat kumar roy on March 10, 2013 at 7:00am — 4 Comments
शिव पार्वती विवाह (खण्ड-काव्य) सॆ कुछ छन्द
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मत्तगयंद सवैया :-
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शारद, शॆष, सुरॆश दिनॆशहुँ, ईश कपीश गनॆश मनाऊँ ॥
पूजउँ राम सिया पद-पंकज, शीश गिरीश खगॆशहिं नाऊँ ॥
बंदउँ चारहु बॆद भगीरथ, गंग तरंगहिं जाइ नहाऊँ ॥
मातु-पिता-गुरु आशिष…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 9, 2013 at 9:30pm — 31 Comments
Added by Pushyamitra Upadhyay on March 9, 2013 at 6:41pm — 6 Comments
चाहत के पंछी को जब उडाता हूँ
दर्दे -ए -दिल और करीब पाता हूँ
घूम कर जब तक वो घर नहीं आता
घर का दर हूँ कब चेन पाता हूँ
मैनें मुस्करा कर हाथ बढाया
उस के अहं से क्यूँ टकराता हूँ
तब मुझ को होने…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on March 9, 2013 at 5:51pm — 6 Comments
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