अँधेरा डरावना क्यों होता है , अब उसे पता चल गया था | दिन के उजाले में शरीफ दिखने वाला इंसान , अँधेरे में एक घिनौने शख़्श में तब्दील हो जाता था | कई महीने हो गए थे बर्दाश्त करते हुए | पति से बताने की कोशिश भी की थी लेकिन वो तो अपने बड़े भाई के खिलाफ सुनने को भी तैयार नहीं था | कई बार उसने सोचा कि सासू से बता दे लेकिन उसे पता था कि उसकी बात कोई नहीं सुनेगा |
चार साल पहले आई थी वो शादी करके इस घर में | जेठानी बहुत सीधी और समझदार थी पर घर में सिर्फ जेठ का ही हुक्म चलता था | उनके हर निर्णय में…
Added by विनय कुमार on March 7, 2015 at 2:47am — 12 Comments
(अविजित राय की हत्या जैसे कायरतापूर्ण कृत्य ने दहला दिया...दुनिया भर के अल्पसंख्यकों को समर्पित कविता)
चेहरे-मोहरे
चाल-ढाल से जब
पहचाना न जा सका
तब पूछने लगा वो नाम
और मैं बचना चाह रहा बताने से नाम
फिर यूँ ही टालने के लिए
लिया ऐसा नाम
जो मिलता-जुलता हो उससे कुछ-कुछ
जिसे कहने से
बचा जा सके पहचान लिए जाने से
लेकिन ये क्या
अब पूछा जा…
Added by anwar suhail on March 6, 2015 at 10:03pm — 9 Comments
एक बार फिर शर्माजी ने जेब में हाँथ डाल कर चेक किया , गुलाल की पुड़िया पड़ी हुई थी | चटख लाल रंग का गुलाल ख़रीदा था उन्होंने ऑफिस आते हुए और सोच रखा था कि आज तो लगा के ही रहेंगे | उम्र तो खैर उनकी ५५ पार कर चुकी थी लेकिन पता नहीं क्यों इस बार होली खेलने की इच्छा प्रबल हो गयी थी उनकी |
५ महीना पहले ही ट्रांसफर होकर आये थे इस ऑफिस में | आते ही देखा कई नयी उम्र की लड़कियां थीं यहाँ | कहाँ पिछला ऑफिस , जहाँ सिर्फ पुरुष ही थे और वो भी काफी खडूस किस्म के | लेकिन यहाँ , एक तो उनके विभाग में भी थी |…
Added by विनय कुमार on March 6, 2015 at 1:26pm — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 6, 2015 at 1:09pm — 16 Comments
अभिव्यक्तियाँ
किस्से कहानी कविताएँ
सब अभिव्यक्तियाँ जीवन की
कहाँ तक साधू अपेक्षायें
गुरुजन गुणीजन की ?
मन की बेकली है
लिखने का प्रथम उदेश्शय
हो जाऊ सफल जो मानकों
पर चलूँ /दूँ गहन संदेश |
बिन पथों से डिगे
होंगी कैसे राहे प्रशस्त
नव सृजन की ?
अलंकारों से छंदों को साधना
क्या संकुचित बस यहीं तक
साहित्य की आराधना
अर्थ क्या रह जाएगा
जो ना हो इनमें
जीवन-तत्व अवशिष्ट…
ContinueAdded by somesh kumar on March 6, 2015 at 8:54am — 5 Comments
आओ होली मिलन कर लें
जला बुराईयों को
अच्छाईयों को दिल में भर लें
मगर देखो तुम
होली की हुड़दंग में
रंग मुहब्बत का
ना इस तरहां लगाया करो
खेलो होली रंगों से
मगर दिल तक
ना आया करो
भांग का नशा है
थोड़ा संभल जाया करो
होली तो भूल जाओगे
अगले दिन
मगर दिल पे लगे रंगों को
जन्म भर ना भुला पाओगे
और हमें यूँ हीं ताउम्र
बे-वजह तड़पाओगे !!
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 6, 2015 at 4:48am — 6 Comments
सुन री सखी फिर फागुन आयो
याद पिया की बहुत रुलायो
इत उत डोलूँ, भेद ना खोलूँ
बैरन नैना भरि-भरि आयो
सुन री सखी फिर ........
जब से गये परदेश पिया जी
भेजे न इक संदेश जिया की
इक-इक पलछिन गिन के बितायो
सुन री सखी फिर ........
ननदी हँसती जिठनी हँसती
दे ताली देवरनियो हँसती
सौतनिया संग पिया भरमायो
सुन री सखी फिर .....
खूब अबीर गुलाल उड़ायें
प्रेम रंग, सब रंग इतराएँ
बिरहा की अगनी ने मोहे जलायो
का पिया ने मोहे,…
Added by Meena Pathak on March 5, 2015 at 11:42pm — 10 Comments
रंगों के पर्व होली पर सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनायें -जगदीश पंकज
उड़ने लगा गुलाल,
अबीर हवाओं में
रंगों का त्यौहार
रंगीली होली है
मस्त हवा के
झोंकों ने अंगड़ाई ले
अंगों पर कैसी
मदिरा बरसाई है
मौसम की रंगीन
फुहारों से खिलकर
बजी बावरे मन में
अब शहनाई है
लगा नाचने रोम-रोम
तरुणाई का
मौसम ने मस्ती की
गठरी खोली है
रंगों की बौछारों ने
संकेत किया
रिश्तों की अनुकूल
चुहल अंगनाई में
जीजा-साली ,कहीं…
Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on March 5, 2015 at 11:20pm — 5 Comments
......होली......
होली है त्यौहार रंगों का ,
आओ तन मन रंग लें .
हो खुशियों की बौछार ,
आओ तन मन रंग लें.
सबका हो हर अरमान पूरा
ना सपना रहे अधूरा
जिसकी जितनी चाहत हो
उतना उसको मिल जाये
बस खुशियों की बारिस हो
और तन मन खिल जाये
प्यार प्यार बस प्यार रहे
सारी दुनिया के भीतर
और किसी भी भाव का
हो ना पाए असर
इस होली पर इसी भाव को
बस अपने मन में पालें
प्यार छोड़ कर…
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on March 5, 2015 at 10:30pm — 3 Comments
मधुशाले भी बोल रहे.... होली आई होली आई
भंग घुटेगी रस गन्ने में होली आई होली आई
है सरकारी फ़रमान ....
प्यारे बन्द रहेगी दुकान
साकी अकेली प्याले अकेले
हथ जोड़ करें आह्वान
आजा ..आ जाओ श्रीमान
बोतल... अद्दी पउआ ले जा
रम भिस्की ए दउआ ले जा
भर लो... सारो मकान
ओ बन्द रहेगी दुकान
मयखाने भी बोल रहे होली आई होली आई
रंग घुलेंगे दंग रहेंगे होली आई होली आई
इक दिन पहले प्यारे ले जा
ज़ाम जहां के न्यारे ले जा
बम भोले का प्रसाद…
Added by anand murthy on March 5, 2015 at 10:08pm — 3 Comments
आया फ़ाग का मौैसम मुझे सपने सजाने दो
दिल के पास जो रहता उसी के पास जाने दो
तू मेरे रंग में रंग जा मैं तेरे रंग को पा लूँ
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है
अधूरा श्याम राधा बिन ,राधा श्याम की हो ली
दिलों में प्यार भरने को आयी आज फिर होली
होली की असीम शुभकामनायें
तन से तन मिला लो अब मन से मन भी मिल जाये
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है
ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली…
Added by Madan Mohan saxena on March 5, 2015 at 5:27pm — 2 Comments
रंग की उमंग देखो होली हुडदंग देखो ,
लाल लाल रंग डाल सखी सारी लाल हैं |
राग फाग छेड़ कर भाभी आई झूम झूम
पल में ही रंगी सखी मुख पे गुलाल हैं |
पीली पीली पिचकारी रंग हरा खूब डारी
भागी सखी घूम घूम हमको मलाल है |
अब नहीं दिख रही होली वह भोली भाली
मन मेरे बार बार उठता सवाल है |
(मौलिक अप्रकाशित)
Added by Chhaya Shukla on March 5, 2015 at 1:27pm — 6 Comments
“ कवि सम्मलेन का भव्य आयोजन हो रहा था, सभागार श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था , देश के कई बड़े कवि मंच पर उपस्तिथ थे, मंच संचालक महोदय बार –बार निवेदन कर रहे थे की अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना का पाठ करें, इसी श्रृंखला में उन्होंने कहा, अब मैं आमंत्रित करता हूँ, आप के ही शहर से आये हुए श्रधेय कवि विद्यालंकार जी का, तालियों से सभागार गूँज उठा !”
“तभी मंच संचालक महोदय ने उनके कान में कहा ‘सर कृपया १५ मिनट से ज्यादा समय मत लीजियेगा’ !”
“विद्यालंकार जी ने मंच पर आसीन कवियों एवम् श्रोताओं से…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 5, 2015 at 12:49pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2015 at 11:09am — 15 Comments
Added by दिनेश कुमार on March 5, 2015 at 10:00am — 2 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on March 4, 2015 at 6:18pm — 6 Comments
घूँघट पट क्यों ओढ़ती,तुम पर मैं बलिहार
घट मेरे बसती सदा,तुम पर जान निसार ॥
गोरी तुम मैं सांमला,प्रीत घनेरी होय
राधा वर मैं बन गया,जो होए सो होय ॥
बंशी मेरी टेरती , तुम को सुबहो शाम
दर्शन श्यामा के बिना ,हमें कहाँ आराम॥
बहुत हुआ अब चुप रहो,नटवर नागर नन्द
मदन माधुरी डालते, भरते दिल आनन्द ॥
पुष्प लता है बावरी ,प्रेमातुर संसार
कंठ कंठ में रम रहा ,दामोदर करतार॥
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 4, 2015 at 3:00pm — 9 Comments
इस होली पर रंग लगाने आ जायें
बचपन के कुछ यार पुराने आ जायें
होली-फागुन बरखा-सावन या जाड़ा
यादें तेरी ढूंढ बहाने आ जायें
दीवाने हो झूमा करते थे जिन पर
होठों पर वे मस्त तराने आ जायें
होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी
सब नेकी का साथ निभाने आ जायें
सतरंगी थे इनके वादे कल यारों
लोग सियासी आज निभाने आ जायें
जीवन में हो पागलपन भी थोड़ा सा
दीवानों के संग सयाने आ…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 4, 2015 at 1:40pm — 7 Comments
१२१ २२ १२२
अजीब है ये जिन्दगी
सलीब है ये जिन्दगी
न जान तू किस खता की
नसीब है ये जिन्दगी
इश्क जिसे है,उसी की
रकीब है ये जिन्दगी
गिने जु सांसे, बहुत ही
गरीब है ये जिन्दगी
निकाह मौत तुझसे औ
हबीब है ये जिन्दगी
‘मौलिक व अप्रकाशित’
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 4, 2015 at 11:00am — 14 Comments
शादी की दावत-2
द्वार पर चुनमुनिया थी |
“भईया आप लोग बारात नहीं चलेंगे |उहाँ सब लोग तैयार हो गए हैं |बैंड-बाजा वाले भी आ गए हैं |सभी औरत लोग लावा लेने जा रही हैं |”
कितना बोलती है तू !क्या तू भी बारात चेलेगी ?मैंने कहा
“और क्या ?उहाँ चलकर फुलकी ,रसगुल्ला ,टिकिया खाने वाला भी तो चाहिए ना |”
“अच्छा तू चल ,हम लोग नया कपड़ा पहनकर आते हैं |”महेश भईया बोले
उसके मुड़ते ही महेश भईया ने कहा - “चलों जवानों ,कूच करते हैं |”
“मैं विद्रोह पर हूँ !शादी में…
ContinueAdded by somesh kumar on March 3, 2015 at 11:30pm — 4 Comments
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