१२२२/१२२२/१२२
किसी की आँख का क़तरा नहीं हूँ
ग़ज़ल में हूँ मगर मिसरा नहीं हूँ.
.
न जाने क्या करूँगा ज़िन्दगी भर
तेरे सदमे से मैं उबरा नहीं हूँ.
.
अना से आपकी टकरा गया था
मैं टूटा हूँ मगर बिखरा नहीं हूँ.
.
खुदाया हश्र पर नरमी दिखाना
मैं काफ़िर हूँ प् ना-शुक्रा नहीं हूँ.
.
सफ़र में हूँ, कोई सूरज हो जैसे
कहीं भी एक पल ठहरा नहीं हूँ.
.
तराशेगी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 28, 2015 at 10:08am — 12 Comments
आज झुरमुट से उजास में
शुभ्र नूतन सा गुलाबी प्रभात
तुम से की, शरमाते हुए ,
आज कितने दिनों के बाद
तुमसे अकेले में की मुलाक़ात
और अपलक रही थी निहार…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 28, 2015 at 9:30am — 6 Comments
२१२२ २१२२ १२१२२
मेरी दुनिया रहने दो अपनी ख़्वाब आँखें
दो जहाँ हैं मेरी ये दो गुलाब आँखें
***
अब तू सम्हल जिंदगी होश खो चुके हम
साकिया ने है पिला दी शराब आँखे
**
ढूंढ लेंगे हम.....रहो पास तुम अगर बैठे
सब सवालों का देती हैं जव़ाब आँखें
***
मेरी मोहब्बत इबादत नफ़स-नफ़स है
रखती हर पल हैं मेरा सब हिसाब आँखें
**
तुम पलक के मस्त पन्ने उलटते जाओ
पढ़ रहा…
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 27, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
“ माँ! तुम्हे भैया के फ्लेट से आये हुए, यहाँ मेरे पास दो महीने हो गये है. उनका फ्लेट काफी बड़ा भी है, कुछ महीने वहाँ रह आओ. आखिर! उन्हें आपकी कमी भी तो महसूस होती होगी “
अचानक अपने कमरे में से निकलकर छोटे बेटे के इन उदारता भरे शब्दों को सुनकर, माँ को दो माह पहले बड़े बेटे की उदारता याद आ गई. आँखों में नमी लेकर अपने कपड़ो का बेग जमाते हुये उसे मन में दोनों बेटों के फ्लेट, अपनी कोख से बहुत ही छोटे लग रहे थे..
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on March 27, 2015 at 10:52am — 42 Comments
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया
था रब्त मुझसे भी कभी वो मान तो गया
आवारगी वही रही है आशिकी वही
दीवानेपन की इन्तहा को जान तो गया
दिल थे जिगर भी थे कभी वो और ही थे दिन
अब तो मशीनें रह गई इन्सान तो गया
कट तो रहा है वक्त यूं तेरे बगैर भी
जीने का जिंदगी से वो सामान तो गया
मज़हब भी चल रहे हं सियासत की राह पर
ईमान से पहले सा वो ईमान तो गया
मौलिक व अप्रकाशित
Added by charanjit chandwal `chandan' on March 27, 2015 at 7:00am — 1 Comment
हर फूल खुश्बू नहीं देता,हर कली फूल नहीं बनती
हर चमकता रात में तारा नहीं होता ,हर चमकता पत्थर हीरा नहीं होता
जरा संभल के मेरे दोस्त हर बात सच्ची नहीं होती
हर मीठा स्वर अच्छा नहीं होता, हर खड़ी जीज सहारा नहीं होती,
हर खून का रिश्ता अपना नहीं होता ,हर दोस्त सच्चा नहीं होता .
जरा सभंल........
हर रात काली नहीं होती,हर दिन उजाला नहीं होता,
हर रात दिवाली नहीं होती, हर रोज होली नहीं होती.
जरा संभल......
हर लाल कपड़ा कफ़न नहीं…
ContinueAdded by Shyam Mathpal on March 26, 2015 at 8:44pm — 14 Comments
गरीब है
पर स्वाभिमानी बहुत है
सब्जी की ढकेल
शहर की कोलोनियों में
घुमाता है
जोर जोर से सब्जियों के
नाम की आबाज
लगाता है
आखिर में ले लो साहब
कहकर जरूर चिल्लाता है
कुछ आदतें हो गयी हैं
उस पर हावी
कल की सब्जियों को भी
कह जाता है ताजी
कुछ सब्जियाँ
पूरी बिक चुकी होती हैं
उनका भी नाम पुकार जाता है
बीच बीच में पानी के छींटों से
सब्जियों को सँवार जाता है
ऊँचे लोगों की नीची हरकतों को
बखूबी पहचानता है
लाखों…
Added by umesh katara on March 26, 2015 at 7:46pm — 24 Comments
भगवान किसी को लडकी न दे I लडकी दे तो उसे जवान न करे I जवान करे तो उसे खूबसूरत न बनाये I एक अदद जवान, खूबसूरत और कुमारी कन्या का खुशनसीब बाप होने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ I पहले मैं समझता था की स्वस्थ और सुन्दर लडकी का पिता होना एक गौरव की बात है I इससे न केवल उसका विवाह करने में आसानी होगी बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उसे नर्तकी या अभिनेत्री भी बनाया जा सकता है और यदि उसमे कामयाबी न मिली तो किसी प्राईवेट फर्म में रिसेप्शनिस्ट का चांस तो पक्का ही है I लेकिन मेरे इन सभी सपनो पर उस समय…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 26, 2015 at 7:00pm — 18 Comments
मैं हूँ बीमारे गम लेकिन ऐसा नहीं,
जैसे जुल्फ से जुल्फ टूटकर गिर पड़े !
मेरा दिल कांच की चूड़ियां तो नहीं,
एक झटका लगे टूटकर गिर पड़े !
मैं हूँ बीमारे गम …………
मेरे महबूब ने मुस्कराते हुए ,
नकाब चेहरे से अपने सरका दिया !
चौदहवीं का चाँद रात शरमा गया,
चौदहवीं का चाँद
जितने तारे थे सब टूटकर गिर पड़े !
मैं हूँ बीमारे गम …………
जिक्र जब छिड़ गया उनकी अंगडाई का,
शाख से फूल यूँ ,टूट कर गिर पड़े…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 9:00am — 16 Comments
कहते हैं इल्ज़ाम छुपाकर रक्खा है
मैंने तेरा नाम छुपाकर रक्खा है.
.
झाँक के देखो मेरी इन आँखों में तुम
अनबूझा पैग़ाम छुपाकर रक्खा है.
.
शायद वो हो मुझ से भी ज़्यादा प्यासा
उसकी ख़ातिर जाम छुपाकर रक्खा है.
.
जिसको तुम सब कहते हो ईमाँ वाला,
उसने अपना दाम छुपाकर रक्खा है.
.
आया है वो आज जुबां पर गुड लेकर
शायद कोई काम छुपाकर रक्खा है.
.
मस्जिद की…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 11:21pm — 24 Comments
खुशियों में होते है सब हमसफ़र..
गम में साथ कोई खड़ा नही होता!
दूसरों को करके छोटा ए-दोस्त...
कोई बड़ा नही होता!
जाने कितनी खायी ठोकरें
लाख रंजिश की गम ने..!
सामने खींचकर बड़ी लकीर
बड़ा बनना सीखा नही हमने..!!
यही करना था तो सियासत आजमाई होती!
हाथ में कलम की न रोशनाई होती..
जंग अदब की मै लड़ा नही होता!!
दूसरों को करके छोटा ए-दोस्त...
कोई बड़ा नही होता!
जिसने रची है सारी ही सृष्टि!
उसने है…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 25, 2015 at 8:00pm — 14 Comments
अंतिम शब्द
द्वार खुला था
तुम दहलीज़ पर अहम् के जूते उतार
सुस्मित शरद चाँदनी-सी कभी
कभी भोर की प्रथम किरण बनी
बाँहें फैलाए घर के भीतर चली आई
तुमने जिसे मंदिर बनाया
वह आँसू-डूबा उल्लास-भरा
मेरा मन था।
मन पावन था पावन रहा
कब कहा मैंने भगवान हूँ मैं
तुमने मुझको भगवान बनाया
और अब असीम बेरहमी से सहसा
जूतों समेत मेरे सीने पर चल कर
तुम्हारा प्रहार पर प्रहार ... उफ़ !
भीतर…
ContinueAdded by vijay nikore on March 25, 2015 at 12:30pm — 30 Comments
बहुत बार समझाया
कभी दिल को फुसलाया
मगर खुद ही ना समझ पाया
मैं हूँ क्यों यहाँ पर
बस रोज़ वो अँधेरे
और तेरी यादें के
दहकते अंगारे
परवानों सा जलने की
दुआ करता हूँ
कुछ हसीन सपनों का व्यापार
अपनी नींदों से
किया करता हूँ
दिल में बसी मूरत को
पलकों में छिपा रखता हूँ
तेरी यादों को
कागज पे अक्सर उतार देता हूँ
जब सूने पन्ने पे तेरा नाम आता है
क्या जानू क्यूँ पन्ने को
अहंकार हो जाता है
और मुझे फिर से प्यार हो जाता है…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 25, 2015 at 11:48am — 22 Comments
2212---2212---2212---2212 |
|
देखो मुझे फिर ये कहो- क्या आज भी इंसान हूँ |
क्यों इस तरह जतला रहें मैं कब कोई भगवान हूँ |
|
ईमान का ऐलान हूँ तूफ़ान का फरमान… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 25, 2015 at 11:00am — 36 Comments
1222 1222 1222 1222
मुझे लूटो कि कांधों में अभी जुन्नार बाक़ी है
मेरे सर पे अभी पुरखों की ये दस्तार बाक़ी है
लड़ाई के सभी जज़्बे तिरोहित हो गये यारों
अना से मेल खाता सा कोई हथियार बाक़ी है
इशारों ने इशारों की बहुत बातें सुनी, लेकिन
अभी गुफ़्तार में शामिल बहुत इक़रार बाक़ी है
दरारें जिस तरह खाई बनीं इस से तो लगता है
अभी भी बीच में अपने कोई दीवार बाक़ी है
गदा बन कर तेरे दर पे बहुत आया मेरे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 25, 2015 at 8:30am — 39 Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२/२१२२
हादसा टूटा जो मुझ पे हादसा वो कम नहीं है
ग़म ज़माने का मुझे है इक तेरा ही ग़म नहीं है.
.
या ख़ुदा! तेरे जहाँ का राज़ मैं भी जानता हूँ,
हैं ख़ुदा हर मोड़ पर लेकिन कहीं आदम नहीं है.
.
तेरे वादे की क़सम मर जाएँ हम वादे पे तेरे,
क्या करें वादे पे तेरे तू ही ख़ुद क़ायम नहीं है.
.
ज़ख्म वो तलवार का हो वार हो चाहे जुबां का
वक़्त से बढकर जहाँ में कोई भी मरहम…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 8:00am — 24 Comments
जेल से रिहा होकर बहुत प्रसन्न था वो , कदम उसके उत्साह का साथ नहीं दे पा रहे थे | बस मन में एक ही इच्छा , कितनी जल्दी पहुंचे अपने घर , अपनों के बीच | भागते हुए अपने मोहल्ले में घुसा , नुक्कड़ की दुकान वाले चाचा ने जैसे अनदेखा कर दिया | उसे थोड़ा अजीब तो लगा लेकिन जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए वो घर की ओर लपका | अचानक उसके कान में आवाज़ आई " किसने सोचा था कि ये भी इसमें शामिल हो सकता है , कितना मासूम चेहरा और ऐसी नापाक हरक़त "|
शक के बिना पर उसकी गिरफ्तारी हुई थी , वज़ह थी उसके कुछ दोस्त जो सामाजिक…
Added by विनय कुमार on March 24, 2015 at 10:48pm — 14 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on March 24, 2015 at 9:56pm — 25 Comments
अपना मयंक....
ये दर्द था या
स्मृति का संदेश
मैं समझ ही न सका
बस जल भरे नयनों से
उस मयंक में
अपना मयंक ढूंढता रहा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 24, 2015 at 9:24pm — 8 Comments
१२२२ १२२२
जिसे हर शय में देखा था
नजर का मेरी धोखा था।
भरम तेरी निगाहों का
कोई जादू अनोखा था।
सदी बीती जहां लम्हों
मेरा जग वो झरोखा था।
बरसतीं खार आखें अब
लबों सागर जो सोखा था।
गया न इश्क खूँ रब्बा
चढ़ाया रंग चोखा था।
नसीबी ‘’जान’’ रोये क्यूँ
ख़ुदा का लेखा जोखा था।
******************************************
मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 24, 2015 at 8:12pm — 12 Comments
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