Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 18, 2012 at 10:00pm — 15 Comments
इश्क़ की बात चली
रात आँखों में जली
————
मौजूदगी तेरी हर लम्हा मौजूद रहे
तू साथ हो न हो, साथ बावजूद रहे
ख़यालों में गुज़रा ये दिन सारा
शाम यादों में ढली
इश्क़ की बात चली..
————…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 5:57pm — 22 Comments
डाक्टर
मरीजों की भीड़ को-
डाक्टर झट-पट ऐसे निपटाता रहा,
बगैर गर्दन उठाये-
मरीज का हांल-चाल कुछ सुनता रहा
मरीज दर्द से कराहता रहा-…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 18, 2012 at 3:00pm — 5 Comments
रात्रि का अंतिम प्रहर घूम रहा तनहा कहाँ
थी ये वो जगह आना न चाहे कोई यहाँ
हर तरफ छाया मौत का अजीब सा मंजर हुआ
घनघोर तम देख साँसे थमी हर तरफ था फैला धुआं
नजर पड़ी देखा पड़ा मासूम शिशु शव था
हुआ जो अब पराया वो अपना कब था
कौंधती बिजलियाँ सावन सी थी लगी झड़ी
कौन है किसका लाल है देख लूं दिल की धड़कन बढ़ी
देखा तनहा उसे सर झुकाए समझ गया कि उसकी दुनिया लुटी
जल रही थी चिताएं आस पास ले रही थी वो सिसकियाँ घुटी घुटी
देती कफ़न क्या कैसे…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 17, 2012 at 10:00pm — 26 Comments
Added by dilbag virk on March 17, 2012 at 7:28pm — 12 Comments
जिंदगी ले के चली, एक ऐसी डगर,
राह के उस पार, चलते हैं हम सफ़र.
रात और दिन, मील के पत्थर जैसे हैं,
मोड़ बन जाते कभी, हैं चारों पहर.
फादना पड़ता है, दीवारें अनवरत,
ढूँढना चाहूँ मै, 'उसको' जब भी अगर.
शख्शियत में नये, बदलता हूँ धीरे से,
नये चेहरे मिले और, नये से राही जिधर.
द्वार-मंदिर मिले न मिले, पर चाहतें,
बांहों में ही भींचे रहती हैं, ता-उमर.
जिंदगी में लेने आता, एक बार पर-
बैठती हूँ रोज, 'बस्तीवी'…
Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 17, 2012 at 9:07am — 13 Comments
Added by RAJEEV KUMAR JHA on March 17, 2012 at 9:00am — 9 Comments
बटेश्वरनाथ गाँव के सबसे बड़े आदमी हैं। भगवान का दिया हुआ सबकुछ है उनके पास। माता पिता अभी सलामत हैं। दो लड़के और एक लड़की भी है। बड़ा लड़का गटारीनाथ ८ साल का है। लड़की सुनयनी ६ साल की और सबसे छोटा लड़का मेहुल नाथ अभी ३ साल का है जिसे प्यार से सब मेल्हू कहते हैं।
बटेश्वरनाथ के पिता कोई ३ साल पहले रिटायरमेन्ट लिये थे जब मेल्हू का जन्म हुआ था। रिटायरमेन्ट के समय खूब सारा पैसा भी मिला था। ये लोग खानदानी रईस भी थे। बटुकनाथ के पिता बहुत सारा पैसा छोड़ गये थे। इनके परिवार की खूबियाँ बहुत…
ContinueAdded by आशीष यादव on March 17, 2012 at 9:00am — 16 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2012 at 10:29pm — 11 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2012 at 9:30pm — 8 Comments
खिला धूप चेहरा मदमाती वो आंखें।
सुर्ख से अधर, पर शर्माती वो आंखें॥
.
देखूं जो नजर भर चुराती वो आंखें।
हटे जो नजर तो बल खाती वो आंखें॥
.
लगे दर्द दिल में छुपाती वो आंखें।
छुपे राजे दिल को बताती वो आंखे॥
.
क्यों ही न जाने दिल जलाती वो आंखें।
बहा अश्क फिर से बुझाती वो आंखें॥
.
सब्र के अब्र को छेद जाती वो आंखें।
अब्र से आब ले बरसाती वो आंखें॥
.
सुनो दोस्त मेरे मदमाती वो…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2012 at 9:30pm — 9 Comments
गज़ल........उनको हवा नाम दूँ जाने मैं क्या करूँ .............
वो दूर हैं आज यूँ जाने मैं क्या करूँ
वो मूक हैं आज क्यूँ जाने मैं…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on March 16, 2012 at 1:21pm — 15 Comments
शिक़ायत
मेरे दिल के कुछ कांटे
मेरे साथ रहे और चुभते रहे
वोह मुझको छलनी करते रहे
हम उनकी हिफाज़त करते रहे
अपना गुनाह बस इतना था
हम उनको अपना कह बैठे
वह हमसे नफरत करते रहे
हम उनसे मुहब्बत करते रहे
हम दीपक थे जलना ही था
पर वफ़ा की आग में जलते रहे
वह समझ न पाए प्यार मेरा
दुनियाँ से शिक़ायत करते रहे
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
9350078399
१६.०३.१२.
Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 16, 2012 at 11:46am — 9 Comments
कभी
Added by AVINASH S BAGDE on March 16, 2012 at 10:25am — 16 Comments
दूर क्षितिज प्राची की लाली ,
अरे बावरी ओ मतवारी ,
उस पल को तूँ विस्मृत कर दे ,
जीवन मे विष को जो भर दे ,
इंद्रव्रज्या नही बन दधीचि तूँ ,
परम दंभ का ना बन प्रतीक तूँ ,
कण्ठ गरल मुख पर मुस्कान…
ContinueAdded by अश्विनी कुमार on March 16, 2012 at 10:00am — 8 Comments
निजत्व की खातिर
कर्तव्यो की बलिवेदी से
कब तक भागेगा इन्सान
ऋण कई हैं
कर्म कई हैं
इस मानव -जीवन के
धर्म कई हैं
अचुत्य होकर इन सबसे
क्या कर सकेगा
कोई अनुसन्धान
कई सपने हैं
कई इच्छाये हैं
पूरी होने की आशाये हैं
पर विषयों के उद्दाम वेग से
कब तक बच सकेगा इन्सान
भीड़-भाड़ है
भेड़-चाल है
दाव-पेंच के
झोल -झाल है
इनसे बच कर अकेला
कब तक चलेगा…
Added by MAHIMA SHREE on March 15, 2012 at 4:30pm — 60 Comments
मृगनयनी नवयौवना
लावण्य क्या कहना !
संकोच व लज्जा
बनी सुसज्जा.
सप्त-अंगुल भर
कटी प्रदेश कमाल.
ओ गजगामिनी
तेरी मदमस्त चाल.
अर्ध- पारदर्शी वस्त्र में कैद
अंग -प्रत्यंग में
लाती भूचाल,
तिर्यक दृष्टीपात
करती हृदय अघात
नारी सौंदर्य .
निहारते चक्षु.
अट्टालिकाओं से
चतुष्पथ पर...
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा ( सौंदर्य रस पूर्ण बिम्ब )
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 15, 2012 at 11:45am — 7 Comments
मेरे ही पुत्रों ने,
मुझे,
लूटा है बार-बार!
एक बार नहीं,
हजार बार!
अपनी अंत: पीड़ा से
मैं रोई हूँ, जार जार!
हे, मेरे ईश्वर,
हे मेरे परमात्मा,
दे इन्हें सदबुद्धि,
दे इन्हें आत्मा,
न लड़ें, ये खुद से,
कभी धर्म या भाषा के नाम पर,
कभी क्षेत्रवाद,
जन अभिलाषा के नाम पर.
ये सब हैं तो मैं हूँ,
समृद्ध, शस्य-श्यामला.
रत्नगर्भा, मही मैं,
सरित संग चंचला.
मत उगलो हे पुत्रों,
अनल के अंगारे,
जल जायेंगे,
मनुज,संत…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on March 15, 2012 at 6:37am — 14 Comments
छलक जाते है आंसू
मेरी आंखों से
जब देखता हूं तुमको
बंद आंखों से
दिल होता है बैचेन
जब सोचता हूं
तुम्हारे बारे में
काश!
न देखा होता तुमको
न जाना होता तुमको
न आते दिल के करीब
न होता प्यार तुमसे
न होते जुदा हम
तब होती
एक ही बात
तुम भी रहती…
Added by Harish Bhatt on March 15, 2012 at 1:56am — 3 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2012 at 9:00pm — 6 Comments
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