पिछली बातों को दुहराना बहुत जरूरी है|
कल को सब बातें बतलाना बहुत जरूरी है|
बहुत जरूरी है अपनी सब भूलों को लिखते जाना,
आशाओं के दीप जलाना बहुत जरूरी है|…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 11, 2012 at 6:33pm — 11 Comments
सनम मैं क्या लिखूँ .............
नयनों से बहते हुए नीर को,
या दिल में चुभते तीर को.
दिखे चेहरा तेरा जिसमे, उस दर्पण को,
या, प्यार में सब कुछ समर्पण को .
या फिर लिखें अपनी फूटी तकदीर को.
नयनों से बहते हुए नीर को,
या दिल में चुभते हुए तीर को.
सनम मैं क्या लिखूँ .............
लिखूँ तुम्हारे रेशमी बालों को,
या उनमे उलझे सारे सवालों को.
लिखूँ अपने दिल की पुकार को,
या तुम जैसे संगदिल यार को.
बंध गई जिसमे मुहब्बत, लिखूँ उस…
Added by praveen singh "sagar" on March 11, 2012 at 4:00pm — 10 Comments
मैं पहाड़ी नदी हूँ…
उसी स्वामी के अस्तित्व से उद्भूत होती
उसी का सीना चीरती, काटती
अपने गंतव्य का पथ बनाती
विच्छिन्न करती प्रस्तरों-शिलाओं को
विखंडनों को भी चाक करती…
ContinueAdded by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 11, 2012 at 2:32pm — 17 Comments
साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,
---------------------------------
आँचल हया का सर सॆ सरकनॆ नहीं दिया ॥
चॆहरॆ पॆ दिल का ग़म भी झलकनॆ नहीं दिया ॥
तॆबर अना कॆ, उनकॆ, कभी ख़म नहीं हुयॆ,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 1:42am — 15 Comments
दिल की धडकनों को महसूस करके देखो.
कुछ देर मेरे साथ चल के देखो.
तुम्हारे सारे ग़म में अपने सीने में छुपा लुंगी.…
ContinueAdded by Monika Jain on March 11, 2012 at 12:30am — 6 Comments
कौन कहता है जन्नत इसे,
हम से पूछो जो घर में फंसे।
न हिफाजत, न इज्जत मिली,
कर- कर कुर्बानी हम मर गए।
दुश्मनों की जरूरत किसे,
जुल्म अपनों ने ही हम पे किए।
हमने हर शै संवारी मगर,
खुद हम बदरंग होते गए।
अपने हाथों बनाया जिन्हें,
हाथ उनके ही हम पर उठे।
घर के अंदर भी गर मिटना है,
तो संभालों ये घर, हम…
Added by Harish Bhatt on March 10, 2012 at 1:44pm — 5 Comments
Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 10, 2012 at 11:00am — 25 Comments
हर दिल अज़ीज़....
Added by AVINASH S BAGDE on March 10, 2012 at 10:51am — 14 Comments
तन की नक्काशी कही धोखा ना देदे
मन से पुकारे की एक आवाज की जरुरत है
साथ तेरे चलने से जले या ना जले दुनिया
पर क़यामत तक चले की तेरे साथ की जरुरत है
झुर्रियाँ बाल सफ़ेद
सब उम्र के फरेब
तन…
ContinueAdded by shashiprakash saini on March 10, 2012 at 2:00am — 7 Comments
मुझे दुनिया नहीं, मुझे तुम्हारा साथ चाहिए.
जीवन पथ पर तुम्हारा स्नेह चाहिए .
प्रेम की पराकाष्ठ में ही नहीं,
कंटीले पथ पर भी तुम्हारी बाँहें…
ContinueAdded by Monika Jain on March 10, 2012 at 1:00am — 2 Comments
बज उठे नगाड़े हैं, फाग फगुन गा रहा |
सज गया पलासों से, कानन इठला रहा ||
रस भरे नज़ारे हैं, फूल महकते सभी,
भँवरे अकुलाए हैं, बाग उन्हें बुला रहा ||
गगन में गुलालों का, इंद्रधनुष भी खिला,
कारवां खुशहाली का, मंगलमय छा रहा ||
रंग बिरंग राहें भी, भूल बैर गले मिलीं,
भोर मगन वीणा ले, गीत गुनगुना रहा ||
मन मयूर नाचे है, झूम कर बसंत सा,
हबीब मस्त नैनों से, रंग है बरसा रहा…
ContinueAdded by Sanjay Mishra 'Habib' on March 9, 2012 at 2:24pm — 7 Comments
Added by satish mapatpuri on March 9, 2012 at 12:40pm — 2 Comments
जो हमारे साथ होते हैं,
Added by Yogyata Mishra on March 9, 2012 at 11:16am — 6 Comments
वो टूटा फिर से सितारा मोहब्बत की खातिर
देख लो तुम भी नजारा मोहब्बत की खातिर
आ जाओ तसव्वुर में घडी दो घडी
ये वक़्त न मिलेगा दुबारा मोहब्बत की खातिर
लोग तो इश्क में जीवन ही लुटा देते हैं
दे दो बाँहों का सहारा मोहब्बत की खातिर
छूट गई है मेरे हाथों से पतंग की डोर
थाम लो इसका किनारा मोहब्बत की खातिर
खुशियों की ये दौलत मुझसे छीन ना लेना
ग़ुरबत में जीवन है…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 9, 2012 at 9:17am — 9 Comments
डरता हूँ इस दुनिया से ,यह मुझे गुमनाम न बना दे
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on March 9, 2012 at 1:53am — 5 Comments
जिंदगानी में अगर होली, नहीं तो क्या मज़ा.
गर नशे में भाँग की गोली, नहीं तो क्या मज़ा.
मानता त्यौहार हूँ, है भजन पूजन का दिन,
पर वोदका की बोतलें खोली, नहीं तो क्या मज़ा.
टेसुओं गुलमोहरो के रंग से मत रंगिये,
दो बदन में कीचड़ें घोली, नहीं तो क्या मज़ा.
छुप के गुब्बारे भरे, रंग फेकते बच्चे यहाँ!
खुल के रंगी चुनरे-चोली, नहीं तो क्या मज़ा.
रोकने से रुक गए क्योँ हाथ तेरे रंग भर,
भाभीयो ने गालियाँ तोली, नहीं तो क्या…
Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 8, 2012 at 10:41pm — 6 Comments
गुरु गोविन्द द्वारे खड़े सबके लागों पायं
स्वागत प्रभु आप का ई लेओं भांग लगाये.
बूढ़ा तोता बोले राम राम भंग पी अब बौराया है
बीत गया मधुर मास खेलो होली फागुन आया है.
भांग नशा नहीं औषधि है प्रयोग बड़ा है गुणकारी
पहले इसको अन्दर…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 8, 2012 at 9:09pm — 4 Comments
Added by dilbag virk on March 8, 2012 at 8:00pm — 4 Comments
फागुन बुला रहा मन खोले
मितवा आज किसी का होले
बौराई आमों की डालें
कोयल कुहू कुहू स्वर बोले
झूम रही खेतों में सरसों
हवा चल रही हौले…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on March 8, 2012 at 8:00pm — 3 Comments
बिना भंग की मस्ती छाई रे.... होली आई रे
आओ सारे लोग-लुगाई रे..... होली आई रे
होली आई होली आई होली आई रे.....होली आई रे
सपा के सर पे ताज आज…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on March 8, 2012 at 3:00pm — 1 Comment
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |