2122- 2122- 212
ख़्वाब से डरने लगा हूँ इन दिनों
नींद से मैं भागता हूँ इन दिनों
धड़कनें हैं तेज़ राहें पुरख़तर
मैं सँभलकर चल रहा हूँ इन दिनों
वुसअते शब बेबसी तन्हाइयाँ
इन अज़ाबों से घिरा हूँ इन दिनों
मुझपे भारी है हर इक लम्हा बहुत
फिक्र की तह में दबा हूँ इन दिनों
आइना हटकर परे मुझसे कहे
पत्थरों सा हो गया हूँ इन दिनों
कोई बतलाये मुझे मैं कौन हूँ
पहले क्या था और क्या…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 12, 2015 at 9:54am — 21 Comments
ऐ ज़िन्दगी !
सांसे चल रहीं है मेरी , इसलिये
मरा हुआ तो नहीं कह सकता खुद को
जी ही रहा होऊँगा ज़रूर, किसी तरह , ये मैं जानता हूँ
पर एक सवाल पूछूँगा ज़रूर
क्या सच में तू मेरे अंदर कहीं जी रही है ?
जैसे ज़िन्दगी जिया करती है
इस तरह कि , मै भी कह सकूँ जीना जिसे
उत्साहों से भरी
उत्सवों से भरी
उमंगों से सराबोर सोच के साथ , निर्बन्ध
चमक दार आईने की तरह साफ मन
प्रतिबिम्बित हो सके जिसमें शक्ल आपकी , खुद की भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 12, 2015 at 7:40am — 26 Comments
बहुत लगाव था अपने ज़मीन के इस टुकड़े से रघू को , ये आखिरी जो था | पत्नी की बीमारी में एक एक करके सभी जमीनें गिरवी रखता गया था , इस उम्मीद में की जब वो ठीक हो जाएगी तो दोनों मियां बीबी मिलकर , पसीना बहाकर , छुड़ा लेंगें उन्हें | लेकिन जैसे जैसे ज़मीन के टुकड़े कम होते गए , पत्नी की सांसें भी कम होती गयीं |
आखिरी वक़्त में पत्नी ने वचन लिया था कि अब वो किसी भी सूरत में ज़मीन के इस आखिरी टुकड़े को नहीं बेचेगा | जिंदगी किसी तरह गुजर रही थी लेकिन उसकी ज़मीन पर एक उद्योगपति की नज़र पड़ गयी | वहाँ…
Added by विनय कुमार on March 12, 2015 at 2:14am — 14 Comments
फिर चल पड़ी है
दिन मे तेज अंधड़
चिलचिलाती धूप
और उसमे गुलमोहर के फूल
लंबी सड़कों के दोनों और
इकठ्ठा होता पत्तियों का मलबा
और हवा से उड़ते हुये
उनका सरसराना ....
पलाश का फूल भी खिल रहा है
ओ-हो मौसम बदल रहा है ....
सुनो ...
मेरी यादों की रजईयों
को थोड़ी धूप दिखा देना
और फिर सहेज कर रख देना
जब ठंड आएगी
रिश्तों की गर्माहट के लिए
निकाल लेना फिर से .... रज़ाई
लक्ष्मण…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on March 11, 2015 at 9:07pm — 9 Comments
‘सुना है औलिया से आपका बड़ा याराना है ?’
विजय के उन्माद में झूमते हुए सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने अमीर खुसरो से कहा I बादशाह की फ़ौज युद्ध में विजयी होकर दिल्ली की ओर वापस हो रही थी I सुल्तान तुगलक एक लखनौती हाथी पर सवार था I अमीर् खुसरो बादशाह के बगलगीर होकर दूसरे हाथी पर चल रहे थे I
‘तौबा हुजुर ---‘ खुसरो ने चौंक कर कहा “आप भी लोगो के बहकावे में आ गए सुल्तान I वह मेरे पीर-ओ-मुर्शिद हैं I मै उनका अदना सा शागिर्द हूँ I ’
‘तो क्या सचमुच तुम दोनों में बस यही सम्बन्ध…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 11, 2015 at 6:30pm — 21 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 11, 2015 at 6:29pm — 20 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 11, 2015 at 4:04pm — 24 Comments
212 - 212 - 212 - 212 |
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जिंदगी में नहीं कोई गम क्या करें |
दिख रही बस खुशी मुहतरम क्या करें |
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टूटकर इश्क भी हमसे कब हो सका … |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 11, 2015 at 3:00pm — 30 Comments
२२१२ २२१२ २२१२ 2212 |
मौसम कहाँ जाये बदल जानें कहाँ बरसात हो | |
दहशत भरे माहौल में जाने कहाँ पर घात हो | |
कैसे करे दोस्ती कहीं जा कर किसी भी देश में ,… |
Added by Shyam Narain Verma on March 11, 2015 at 2:30pm — 10 Comments
कुंठाओं के झरे पात,
आशाओं का हो सुप्रभात
दफ़न हो घात प्रतिघात
खुशिओं के सदा बहें प्रपात
चैन की आए रात
बची रहे इंसानियत की जात
चलती रहे गीत गजलों की बात
हम समझें सबके जज्बात
खुश्बू भरे मौसम से हो मुलाकात
जख्मी रिश्तों के बदले हालात
जहरीली हवाएँ न करे आघात
कलुषित न हो मन आँगन
सुगन्धित हो यह बरसात
भावनाओं को लग पंख
मिलन की मिले सौगात
बौराए पंछी को मिले मीत
बिछुड़न से मिले राहत
मौलिक व…
ContinueAdded by Shyam Mathpal on March 11, 2015 at 2:16pm — 14 Comments
लहू से जिसको के सींचा था बागबां की तरह
Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on March 11, 2015 at 1:00pm — 13 Comments
2122 2122 212
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फिर चिरागों को बुझाने ये लगे
रास्ता तम का सजाने ये लगे
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प्रेत अफजल औ' कसाबों के यहाँ
कुर्सियाँ पाकर जगाने ये लगे
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साजिशें रचते मरे हैं जो उन्हें
देश भक्तों में गिनाने ये लगे
****
देश के गद्दार जितने बंद हैं
राजनेता कह छुड़ाने ये लगे
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बनके अपने आज खंजर देख लो
आस्तीनों में छुपाने ये लगे
****
हौसला दहशतगरों का यार यूँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2015 at 10:30am — 16 Comments
पुस्तक गुण की खान है,सीखें रखती गोय
जो उसका प्रेमी बना ,जग में जय जय होय॥
सखी भरी है ज्ञान से,उर में रखती भाव
पढ़-पढ़ के हासिल करो,रहे न ज्ञान अभाव॥
इस पूरे संसार की,जो रखती है थाह
दुनियाँ में कैसे मिली,किसको कहाँ पनाह॥
वर्ण-वर्ण मिल बन गई,सुंदर सुखद किताब
मनसा वाचा कर्मणा ,रख लो खूब हिसाब ॥
गुणी जनों ने बैठ कर,लिखे सुघर मंतव्य
रुचि जिसकी जिसमें रहे, खोजो वो…
Added by kalpna mishra bajpai on March 11, 2015 at 10:00am — 9 Comments
बद -गुमानी थी मुझे क़िस्मत पे , मगर
मैं अज़ीज़ सबका था , ज़रूरत पे , मगर
हज़ार बार मुझे टोंका उसने , सलाह दी ,
ख़याल आया मुझे उसका , ठोकर पे , मगर
सुबह से हो गयी शाम और अब रात भी
पैर हैं कि थकने का , नाम नहीं लेते , मगर
वो खरीददार है , कोई क़ीमत भी दे सकता है
अभी आया है कहाँ , वो मेरी चौखट पे , मगर
करो गुस्सा या कि नाराज़ हो जायो "अजय"
सितम जो भी करो , करो खुद पे , मगर
अजय कुमार…
ContinueAdded by ajay sharma on March 10, 2015 at 11:59pm — 9 Comments
करें कोशिश सभी मिलकर हसीं दुनिया बना दें फिर
चलो जन्नत से भी बढ़कर जहां अपना बना दें फिर
लगाकर रेत में पौधे पसीने से चलो सींचें
ये सहरा सब्ज़ था पहले यहाँ बगिया बना दें फिर
मेरी मानो रियाज़त से बदल जाती है तकदीरें
हथेली की लकीरों में कोई नक्शा बना दें फिर
जलाकर खेत मेरे गाँव के बोले सियासतदां
इन्हें रोटी नहीं मिलती इसे मुद्दा बना दें फिर
दिलों के दरमियां कोई रुकावट क्यों रहे यारो
गिराकर इन…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 10, 2015 at 11:00pm — 20 Comments
Added by amita tiwari on March 10, 2015 at 10:45pm — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
तेरी आँखों में डूबा था यही अपराध था मेरा
जरा सी बात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--1
ये बिखरी जुल्फ मैं तेरी ,सँवारू हाथ से अपने
मेरे जज्बात पर तूने सजा-ए- मौत लिख डाली--2
सिले हैं होठ क्यों तूने शिकायत की बजह क्या है
मिलन की रात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--3
तेरे होठों से होठों को जलाकर देख लेता मैं
मगर हर-बात पर तूने सजा-ए-मौत लिखडाली--4
बडी मुश्किल से गुजरा था खिजाओं से भरा मौसम …
Added by umesh katara on March 10, 2015 at 9:00pm — 14 Comments
112 212 221 212
बस कर ये सितम के,अब सजा न दे
हय! लम्बी उम्र की तू दुआ न दे।
अपनी सनम थोड़ी सी वफ़ा न दे
मुझको बेवफ़ाई की अदा न दे।
गुजरा वख्त लौटा है कभी क्या?
सुबहो शाम उसको तू सदा न दे।
कलमा नाम का तेरे पढ़ा करूँ
गरतू मोहब्बतों में दगा न दे।
इनसानियत को जो ना समझ सके
मुझको धर्म वो मेरे खुदा न दे।
रखके रू लिफ़ाफे में इश्क़ डुबो
ख़त मै वो जिसे साकी पता न…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 10, 2015 at 4:35pm — 25 Comments
हास्य-व्यंग्य गीत,
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बड़ॆ गज़ब का झॊल, रॆ भैया,,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल, रॆ भैया,,,बड़ॆ गज़ब का झॊल !!
बन्दर डण्डॆ लियॆ हाँथ मॆं,अब शॆरॊं कॊ हाँकॆं,
भूखी प्यासी गाय बँधी हैं, गधॆ पँजीरी फाँकॆं,
कॊयल कॊ अब कौन पूछता,कौवॆ हैं अनमॊल !! रॆ भैया,,,,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,
बड़ॆ गज़ब का झॊल,,रॆ भैया,,बड़ॆ गज़ब का झॊल,,,,,
साँप नॆवलॆ मिल कर खॆलॆं, दॆखॊ आज कबड्डी,
पटक पटक कर गीदड़ तॊड़ी,आज बाघ की हड्डी,
ताक-झाँक मॆं लगी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 10, 2015 at 2:00pm — 21 Comments
" फासला " (लघुकथा)
"कादिर मियाँ आप होश में तो है शेख सादी को रिहा करवाना चाहते है, वतन की अमन परस्ती का भी ख्याल करो।" वसीम साहब कुछ तेज आवाज में हैरानी से बोले। जबाब में कादिर मियाँ का लहजा भी उखड़ गया। "वसीम साहब। 'शेख' के रिहा होने से हमारा कारोबारी फायदा होगा, उसकी नजरबंदी से हम पहले ही बहुत नुक्सान उठा चुके है। रही बात हालात की तो उस पर नजर रखना आपकी हुकूमत का काम है।"
"ठीक है कादिर मियाँ मगर दहशतगर्दी का क्या जो फिर से..........।" वसीम साहब की…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on March 10, 2015 at 1:01pm — 16 Comments
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