"अरे भाई ! इस दफ़ा तो पहले रोज़े से ही मैंने 'चाय' पीना छोड़ दिया इस रमज़ान में!" चाय का प्याला ले कर आये सल्लू से कहते हुए मिर्ज़ा साहिब ने अपनी तस्वीह (जापमाला) पर अपनी तर्जनी दौड़ाते हुए कहा- "पूरा एक हफ़्ता हो गया है आज!"
"तुम भी ग़ज़ब करते हो चच्चाजान! जैसे-तैसे आज निकले इधर से, और आजई जे ख़बर दे रये हो!" केतली हिलाते हुए दूसरे ग्राहक को चाय उड़ेलते हुए वह बोला - "तुम 'चाय' के शौक़ीन हमारे रेगुलर ग्राहकों में से हो, तुमईं ने छोड़ दई! ऐसो का हो गओ चच्चा! तम्बाकू-बीड़ी के बाद…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 24, 2018 at 12:30am — 7 Comments
किराये के रिश्ते
रात भर नींद नहीं आई, और सुबह होते ही वह पार्क में आ गया। कल शाम को आए फोन से पैदा हुई समस्या अभी सुलझ नहीं रही थी । चाहे कोई हल नज़र नहीं आ रहा, मगर इस समस्या को हल किये बिना छोड़ा भी नहीं जा सकता। आख़र उनका है भी कौन है,जो सात समंदर पार हैं, मगर इस बार महिंदरो उसकी बात से सहमत नहीं हो रही थी । उसका कहना कि “क्या करेंगे वहाँ जा कर हम, आप तो फिर भी यहाँ वहाँ घूम आते हो,मगर मैं ........",कह कर महिंदरो चुप हो गई।
"मैं तो वहाँ अकेली अंदर बैठी कैसे रह सकती हूँ, न कोई…
Added by Mohan Begowal on May 23, 2018 at 10:00pm — 3 Comments
नियति का अंत
प्लास्टर उतरी दीवारें खुद को अश्लील पोस्टरों में लपेटे कमरे में गुड़ी - मुड़ी पड़ी देह को खामोशी से देख रहीं थीं। दीवारों की सीलन सिसकियों के शोर के साथ गहरी होती जा रही थी।
" ओहो, तो तुम कौन सा पहली बार ऐसा होते देख रही हो! इतने सालों में न जाने कितनी ही बार तुमने ये सब देखा है", बन्द दरवाजे ने रुआंसी होती दीवारों को देखकर कहा। " पहले तो कभी तुम लोगों को ऐसा परेशान होते नही देखा!"
" चुप कर ! जन्म से यही दुनिया तो देखी थी, लगता था यही नियति होती है। मगर रात में…
Added by मेघा राठी on May 23, 2018 at 6:51pm — 6 Comments
क्षणिकाएं :
१.
तूफ़ान का अट्टहास
विनाश का आभास
काँपती रही
लौ दिए की
झील की लहरों पर
देर तक
आंधी के साथ हुए
जीवन मृत्यु के संघर्ष को
याद करके
२.
श्वास
नितांत अकेली
देह
चिता की सहेली
जीवन
अनबुझ पहेली
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 23, 2018 at 6:37pm — 9 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
पढ़ न पाए ये ज़माना इश्क की तहरीर अब
इसलिए ही ख़त जलाये औ तेरी तस्वीर अब
मंदिरो-मस्ज़िद में जाकर मिन्नतें-सजदा किये
फिर भी तुमसे दूर रहना है मेरी तक़दीर अब|
लोग कुछ मजनूँ कहें अब और कुछ फ़रहाद भी
यह तुम्हारे इश्क की ही लग रही तासीर अब |
ज़ख़्म गहरा हो गया हो या कि फिर नासूर तो
प्यार का ही लेप उस पर हो दवा अक्सीर अब|
है मुक़द्दर में नही मत सोचकर बैठो मियाँ
बदलेगी तक़दीर निश्चित…
Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 23, 2018 at 1:30pm — 2 Comments
ख्वाब थे जो वही हूबहू हो गए।
जुस्तजू जिसकी थी रूबरू हो गए।।
इश्क करने की उनको मिली है सज़ा।
देखो बदनाम वो चार सू हो गए।।
फ़ायदा यूँ भटकने का हमको हुआ।।
खुद से ही आज हम रूबरू हो गए।।
बेचते रात दिन जो अना को सदा।
वो ज़माने की अब आबरू हो गए।।
आप कहते न थकती थी जिनकी ज़ुबां।
आज उनके लिए हम तो तू हो गए।।
मौलिक /अप्रकाशित
राम शिरोमणि पाठक
Added by ram shiromani pathak on May 23, 2018 at 12:21pm — No Comments
दोहे की टेक ले कर उल्लाला छंद पर गीत (उल्लास )
जब तक जीवन में रहे , जीवित हास प्रहास ।
लायेंगी खुशियाँ तभी , जीवन में उल्लास ।
तम करता जब नृत्य है , उगता तब आदित्य है ।
पूर्वजों का कथ्य है , लेकिन बिल्कुल सत्य है ।
तन में श्रम की शक्ति हो , मन में हो विश्वास ।
लाएँगी खुशियाँ तभी , जीवन में उल्लास ।
अहम वहम को छोड़ दे , ईर्ष्या का रुख मोड़ दे ।
नफ़रत को झ्न्झोड़ दे , दिल से दिल को जोड़ दे ।
आयेगा चल कर तभी , तेरे पास उजास…
Added by rajesh kumari on May 22, 2018 at 5:40pm — 4 Comments
पाँच बरस तक कुछ न कहेंगे कर लो अपने मन की बाबू ।
बात चलेगी, तो बोलेंगे, अपनी ही थी गलती बाबू ।।
चाँद-चाँदनी, सागर-पर्वत, चाहत कहाँ किसानों की है ?
मुमकिन हो तो इनके हिस्से लिख दो थोड़ी बदली बाबू ।।
खाली थाली, खाली तसला, टूटा छप्पर, चूल्हा गीला,
रोजी-रोटी बन्द पड़ी जब, क्या करना जन-धन की बाबू ।।
जो काशी बन जाए क्योटो, या दिल्ली हो जाए लंदन ।
प्यासा जन बस जल पा जाये, गाँव लगे शंघाई बाबू ।।
अच्छे-दिन, काले-धन की…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 22, 2018 at 3:30pm — 17 Comments
मुंतजिर हूँ मैं इक जमाने से।
आ जा मिलने किसी बहाने से।।
उनकी गलियों से जब भी गुजरा हूँ।
ज़ख़्म उभरे हैं कुछ पुराने से।।
दिल की बातें ज़ुबां पे आने दो।
कह दो! मिलता है क्या छुपाने से।।
मेरे घर भी कभी तो आया कर।
ज़िन्दा हो जाता तेरे आने से।।
इश्क़ की आग राम है ऐसी।
ये तो बुझती नहीं बुझाने से।।
मौलिक/अप्रकाशित
राम शिरोमणि पाठक
Added by ram shiromani pathak on May 21, 2018 at 11:30pm — 8 Comments
पानी से तो धुल जाते थे
सिक्कों की प्राचीन प्रथा
सचमुच में कितनी अच्छी थी
स्वस्थ रहे जनता अपनी
यह सुभग भावना सच्ची…
Added by Usha Awasthi on May 21, 2018 at 7:30pm — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on May 21, 2018 at 5:45pm — 1 Comment
"कहते हैं साहित्यकारों, लेखकों, खिलाड़ियों, वैज्ञानिकों और डॉक्टरों का कोई धर्म या मज़हब नहीं होता!" युवा दोस्तों के समूह में से एक ने कहा।
"शिक्षकों, छात्रों, और राजनेताओं का भी तो क़ायदे से कोई धर्म या मज़हब नहीं होता!" दूसरे दोस्त ने अपना किताबी ज्ञान झाड़ा।
"अबे, तो क्या ड्राइवरों, पुलिस, सैनिकों और वकील-जजों का भी कोई धर्म या मज़हब नहीं होता?" तीसरे साथी ने झुंझलाकर कहा।
"हां कहा तो यही जाता है कि किसी भी तरह के कलाकारों का भी इसी तरह न कोई धर्म होता…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 21, 2018 at 2:34pm — No Comments
2122---1212---22
.
जो भी सोचूँ, उसी पे निर्भर है
मेरी दुनिया तो मेरे भीतर है
.
इक फ़रिश्ता है मेहरबाँ मुझ पर
स्वर्ग से ख़ूब-तर मेरा घर है
.
जिसमें जज़्बा है काम करने का
कामयाबी उसे मयस्सर है
.
जीत कैसे मिली, है बेमानी
जो भी जीता, वही सिकन्दर है
.
कोई क़तरा भी भीक में माँगे
और हासिल किसी को सागर है
.
ज़ह्र-आलूदा इन हवाओं में
साँस लेना भी कितना दूभर है
.
हाँ, ये जादूगरी है लफ़्ज़ों की
( हाँ,…
Added by दिनेश कुमार on May 21, 2018 at 10:00am — 7 Comments
डिजिटल ग़ुलामी है बहुआयामी
शारीरिक नुमाइश हुई बहुआयामी
हैरत है, कहें किसको नामी और नाकामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
योग ग़ज़ब के हो रहे वैश्वीकरण में
मकड़जाले छाते रहे सशक्तिकरण में
छाले पड़े आहारनलिकाओं में
ताले संस्कृति और संस्कारों में
अधोगति, पतन सतत् रहे बहुआयामी
हैरत है, कहें किसमें खामी और नाकामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
शिक्षा, भिक्षा, रक्षा सभी बहुआयामी
लेन-देन, करता-धरता, कर्ज़दाता भी…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 20, 2018 at 9:00pm — 4 Comments
2122 2122 212
आँख मुद्दत से चुराती जिंदगी ।
लग रही थोड़ी ख़फ़ा सी जिंदगी ।।
तोड़ती अक्सर हमारी ख्वाहिशें ।
हो गयी कितनी सियासी जिंदगी ।।
सिर्फ मतलब पर किया सज़दा उसे ।
जी रहे हम बेनमाज़ी जिंदगी ।।
रोटियों के फेर में कुछ इस तरह ।
मुद्दतों तक तिलमिलाई जिंदगी ।।
हम जमीं पर पैर पड़ते रो पड़े ।
दे…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 20, 2018 at 8:28pm — 1 Comment
1212--1122--1212--22
.
मैं अपने काम अगर वक़्त पर नहीं करता
तो कामयाबी का पर्वत भी सर नहीं करता
.
हसीन ख़्वाब अगर दिल में घर नहीं करता
तवील रात से मैं दर-गुज़र नहीं करता
.
हरेक मोड़ पे ख़ुशियों तो कम हैं,दर्द बहुत
कहानी वो मेरी क्यों मुख़्तसर नहीं करता
..
सिखा दिया है मुझे ग़म ने ज़िन्दगी का हुनर
किसी भी हाल, मैं अब आँख तर नहीं करता
.
मैं अपने अज़्म की पतवार साथ रखता हूँ
मेरे सफ़ीने पे तूफ़ाँ असर नहीं करता
.
ग़ुरूर साथ…
Added by दिनेश कुमार on May 20, 2018 at 6:00pm — 3 Comments
"अपने पुत्र को समझाओ गांधारी। वासुदेव कृष्ण की माँग सर्वथा उचित है। 'पांडवो के लिये पाँच गाँव!' भला इससे कम और क्या हो सकता है?’’
"नहीं आर्यपुत्र, अब वह समझाने की सीमा में नहीं रहा। पानी सिर से ऊपर बहने लगा है।" गांधारी की आवाज सदैव की भांति स्थिर थी। 'मैंने आप से अनगिनित बार उसे समझाने के लिये कहा लेकिन आप के 'पुत्र-मोह' ने उसे कभी समझाना ही नहीं चाहा। परिणामतः हम जहां आ चुके है, वहां से लौटना संभव नहीँ।"
........... युद्ध की कालिमा छंट चुकी थी लेकिन सभी पुत्रों को खो चुके…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2018 at 5:17pm — 5 Comments
"बिटिया, कितनी बार कहा है कि अॉनलाइन शॉपिंग वग़ैरह के अॉफरों और प्रलोभनों में अपना समय और पैसा यूं मत ख़र्च करो!" अशासकीय शिक्षक ने अपनी कमाऊ शादी योग्य बेटी से कहा ही था कि उनकी पत्नी बीच में टपकीं और बोलीं- "तुम अपने काम से काम रखो। बिटिया तुम से ज़्यादा कमा कर अपने दम पर अपना दहेज़ जोड़ रही है और पैसे भी! ... और रिश्ता भी!"
"आप लोग यूं परेशान न हों! ...मम्मी तुम्हें पापा से इस तरह नहीं बोलना चाहिए। मुझे पता है प्राइवेट नौकरी में क्या-क्या और कैसे सब कर पाते हैं!" बिटिया ने…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on May 20, 2018 at 6:31am — 5 Comments
1222 1222 1222 1222
मुख़ालिफ़ होअगर मौसम तो कुछ अच्छा नहीं रहता
बदलते वक्त में कोई कभी अपना नहीं रहता
कोई इंसान रिश्तों के बिना जिंदा नहीं रहता
मुहब्बत के बिना पक्का कोई रिश्ता नहीं रहता
बुजुर्गों को दुखी करने से पहले सोच ये लेना
शज़र जब सूख जाता है कोई पत्ता नहीं रहता
जहाँ पर मुफलिसी बच्चों से बचपन छीन लेती है
किसी बच्चे के दिल में भी वहाँ बच्चा नहीं रहता
ज़रूरत ज़िस्म की जिनको मशीनों सा बना…
Added by rajesh kumari on May 19, 2018 at 10:46pm — 15 Comments
2122 2122 212
छेड़ कर उसकी कहानी देखना ।
फिर तबाही आंसुओं की देखना ।।
यूँ ग़ज़ल लिक्खी बहुत उनके लिए ।
लिख रहा हूँ अब रुबाई देखना ।।
अब नुमाइश बन्द कर दो हुस्न की ।
हैं कई शातिर शिकारी देखना ।।
हिज्र ने हंसकर कहा मुझसे यही ।
वस्ल की तुम बेकरारी देखना ।।
वह बहक जाएगा इतना मान लो ।
एक दिन फिर जग हँसाई देखना ।।
तिश्नगी झुक कर बुझा देती है वो ।
बा…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 19, 2018 at 10:30pm — 3 Comments
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