मारे घूसे जूते चप्पल बदज़ुबानी सो अलग।
और कहते गाँव को मेरी कहानी सो अलग।।
आये साहब वादों की गोली खिलाकर चल दिये।
कह रहे हैं ये हुनर है खानदानी सो अलग।।
है अना गिरवी मरी संवेदनाये भी सुनो।
ज़िंदा है गर मर गया आँखों का पानी सो अलग।।
घोलकर नफ़रत हवा में वो बहुत मग़रूर है।
चाहिए उनको नियामत आसमानी सो अलग।।
लूटकर चलती बनी मुझको अकेला छोड़कर।
अब कहूँ क्या तुम हो दिल की राजधानी सो अलग।।
ढंग से इक काम…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on May 7, 2018 at 9:53am — 15 Comments
गुलज़ार प्यार का
हर रात उसी ग़मरात का ज़िक्र न कर
नातुवां ग़म को अपने तू गैरअहम कर
ज़िन्दगी में माना गर्द-ए-सफ़र है बहुत
ग़म-ए-पिनहाँ का रोज़ रंज-ओ-ग़म न कर
यूँ खामोश न रह, उदास और न हो
वादा यह पक्का कि लौट आऊँगा मैं
दिन में सही या रातों में तुम्हारी.. या
आ कर मुस्कराऊँगा ख़्वाबों में कभी
गालों पर मेरे…
ContinueAdded by vijay nikore on May 7, 2018 at 5:39am — 8 Comments
तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना
शर्त ये है तो फिर.. जा नहीं देखना.
.
जीतना हो अगर जंग तो सीखिये
हो निशाना कहीं औ कहीं देखना.
.
खो दिया गर मुझे तो झटक लेना दिल
धडकनों में मिलूँगा..... वहीँ देखना.
.
देखता ही रहा... इश्क़ भी ढीठ है
हुस्न कहता रहा अब नहीं देखना.
.
कितना आसाँ है कहना किया कुछ नहीं
मुश्किलें हमने क्या क्या सहीं देखना.
.
एक पल जा मिली “नूर” से जब नज़र
मुझ को आया नहीं फिर कहीं देखना.
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निलेश…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2018 at 8:30pm — 11 Comments
कुदरत की सबसे बडी नेमत है हंसी,
ईश्वरीय प्रदत्त वरदान है हंसी,
मानव में समभाव रखती हैं हंसी,
जिन्दगी को पूरा स्वाद देती हैं हंसी,
बिना माल के मालामाल करने वाली पूंजी है हास्य,
साहित्य के नव रसो में एक रस होता हैं हास्य,
मायूसी छाई जीवन में जादू सा काम करती हैं हंसी,
तेज भागती दुनियां में मेडिटेशन का काम करती हैं हंसी,
नीरसता, मायूसी हटा, मन मस्तिष्क को दुरुस्त करती हैं हंसी,
पलों को यादगार बना, जीने की एक नई दिशा देती हैं…
ContinueAdded by babitagupta on May 6, 2018 at 5:30pm — 4 Comments
उजाले का वहाँ पहरा नहीं था ।
कभी सूरज जहाँ ढलता नहीं था ।।1
बहा ले जाए तुमको साथ अपने ।
वो सावन का कोई दरिया नहींथा।।2
मेरे महबूब की महफ़िल सजी थी ।
मगर मेरा कोई चर्चा नहीं था ।।3
मैं देता दिल भला कैसे बताएं ।
सही कुछ आपका लहज़ा नहीं था ।।4
जरा सा ही बरस जाते ऐ बादल ।
हमारा घर कोई सहरा नहीं था ।।5
जले हैं ख्वाब कैसे आपके सब ।
धुंआ घर से कभी उठता नहीं था ।।6
तुम्हारी हरकतें कहने…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 6, 2018 at 4:12pm — 5 Comments
बढ़ते ही नित जा रहे, खादी पर अब दाग
नेता जी तो सो रहे, जनता तू तो जाग।१।
जन सेवा की भावना, आज बनी व्यापार
चाहे केवल लाभ को, कुर्सी पर अधिकार।२।
मालिक जैसा ठाठ ले, सेवक रखकर नाम
देश तरक्की का भला, कैसे हो फिर काम।३।
नेता जी की चाकरी, तन्त्र करे नित खूब
किस्मत में यूँ देश की, आज जमी है दूब।४।
मुखर हुए निज स्वार्थ हैं, गौंण हो गया देश
नेता खुद में मस्त हैं, क्या बदले परिवेश।५।
जाति धर्म तक हो गये, सीमित नेता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2018 at 3:30pm — 10 Comments
एक उखड़ा-दुखता रास्ता
(अतुकांत)
कभी बढ़ती, कम न होती दूरी का दुख शामिल
कभी कम होती नज़दीकी का नामंज़ूर आभास
निस्तब्ध हूँ, फड़क रही हैं नाड़ियाँ
देखता हूँ तकलीफ़ भरा बेचैन रास्ता ...
खाली सूनी नज़र से देख रहा है जो कब से
मेरा आना ... मेरा जाना
घूमते-रुकते हताश लौट जाना
कुछ ही देर में फिर चले आना यहाँ
ढूँढने…
ContinueAdded by vijay nikore on May 6, 2018 at 11:43am — 14 Comments
1212---1122--1212--22
.
कठिन, सरल का कोई मसअला नहीं होता
अगर तू ठान ले दिल में तो क्या नहीं होता
.
अगर हो अज़्म तो पत्थर में छेद होता है
हुनर मगर ये सभी को अता नहीं होता
.
हमारे कर्म से प्रारब्ध भी बदलता है
नसीब अपना कभी तयशुदा नहीं होता
.
ये तज्रिबा है हमारा मुशाहिदा भी है
अमीर-ए-शह्र किसी का सगा नहीं होता
.
सितमगरों के इशारों पे खेल होता है
अदालतों में कोई फ़ैसला नहीं होता
.
जुड़ा ही रहता है ममता…
Added by दिनेश कुमार on May 6, 2018 at 9:00am — 8 Comments
Added by Kumar Gourav on May 5, 2018 at 11:04pm — 6 Comments
इम्तहान के दिन में काहे ,
जमकर नींद सताये रे.
पुस्तक पर जब नजर पड़े ,
तो दुविधा से मन काँप उठे ,
काश,कहीं मिल जाती सुविधा, नइया पार कराये रे .
हर पन्ना पर्वत सा लागे ,
लगे पंक्तियां भी भारी ,
प्रश्नों की तलवार दुधारी ,
रह रह आँख दिखाये रे.
चार दिनों में होना ही है ,
दो दो हाथ पुस्तिका से ,
क्या लिक्खूंगा उत्तर उस पर ,
मन मेरा भरमाये रे…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on May 5, 2018 at 4:54pm — 3 Comments
Added by Sushil Sarna on May 5, 2018 at 4:39pm — 5 Comments
चरित्र - लघुकथा –
"वर्मा साहब, अपना सामान समेट लीजिये। आज और अभी आपको वृद्धाश्रम में जाना है”।
इतना कह कर वह युवक गुस्से में तेजी से निकल गया।
वर्मा जी का मस्तिष्क संज्ञा शून्य हो गया। वह सोचने पर विवश होगये कि आज उनका इकलौता पुत्र किस तरह व्यवहार कर रहा है।
कमिशनर जैसे बड़े पद से सेवा निवृत हुये करीब बारह साल हो गये। इस बीच पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया।
"आपने अभी तक पैकिंग नहीं की"? वही युवक पुनः बड़बड़ाते हुये आया|
"अचानक यह फ़ैसला, वह भी बिना मेरी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 5, 2018 at 10:05am — 12 Comments
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on May 5, 2018 at 7:44am — 8 Comments
छोटे के मन में यह बात घर कर गयी थी कि अम्माँ और बाबूजी उसका नहीं बड़े का अधिक ख़याल रखते हैं.
दोनों भाइयों की शादी होने के बाद यह भावना और बलवती हो गयी क्यूँ कि छोटे की बीवी को अपने तरीक़े से जीवन जीने की चाह थी. ऐसे में घर का बँटवारा अवश्यम्भावी था. बाबूजी ने छोटे को समझाने की बहुत कोशिश की , बड़े का हक़ मारकर भी वो दोनों को एक देखने पर राज़ी थे. बड़ा भी कुछ कुर्बानियों के लिए तैयार था अपने भाई के लिये लेकिन छोटे की ज़िद के आगे सब बेकार रहा.
आख़िरकार घर दो हिस्सों में बँट गया और एक हिस्से…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2018 at 7:30am — 18 Comments
पिघलती हुई मोम
(अतुकांत)
हम दोनों .... दो छायाएँ
अन्धकारमय एकान्त में
फूटे हुए बुलबुलों-सी
सुन्न हो रही भावनाएँ
कितनी नदियों का संगम…
ContinueAdded by vijay nikore on May 5, 2018 at 6:00am — 9 Comments
122----122----122----122
.
जो आँखों से दिखती नहीं है सभी को
मैं क्यों ढूँढ़ता हूँ उसी रौशनी को
.
जो समझे मेरे दिल की सब अन-कही को
मैं क्या नाम दूँ ऐसे इक अजनबी को
.
सुधारेगा कौन आपके बिन मुझे अब
मुझे डाँटने का था हक़ आप ही को
.
भले रोज़मर्रा में हों मुश्किलें ख़ूब
बहुत प्यार करता हूँ मैं ज़िंदगी को
.
कसौटी पे परखे जो किरदार अपना
भला इतनी फ़ुर्सत कहाँ है किसी को
.
तुम्हें नूरे-जाँ भी दिखेगा इसी में
कभी…
Added by दिनेश कुमार on May 5, 2018 at 4:46am — 11 Comments
वार्ड के बिस्तर पर वह निढ़ाल पड़ा है, डॉक्टर कह रहे हैं कि ये नीला पड़ गया है, उन्होंने पुलिस को भी बुला लिया है |
“नीला तो पैदा होते समय ही था, अब क्या होगा ?”, किसी पास खड़े ने कहा |
बात निकलती हुई इस पर आ कर रुक गई, सुबह तो नए कपड़े पहन और चौर बाज़ार से खरीदी काली एनक लगा कि गया था
काले चश्में का एक फायदा तो ये था कि आंख का टीर भी नजर नही आता था |
अभी कुछ दिन हुए घर वाली रब को प्यारी हो गई थी |
कुछ…
Added by मोहन बेगोवाल on May 4, 2018 at 10:30pm — 5 Comments
122 122 122 122
मैं जब भी चला छोड़ने मैकशी को ।
अदाएं जगाने लगीं तिश्नगी को ।।1
लिए साथ मैं जी रहा बेखुदी को ।
सजाता रहा होंठ पर बाँसुरी को ।।2
अमीरों की महफ़िल में सज धज के जाना ।
वो देते नहीं अहमियत सादगी को ।।3
है मिलता उसे ही जो रो करके माँगे ।
बिना रोये कब हक़ मिला आदमी को ।।4
पकड़ कर उँगलियों को चलना था सीखा।
दिखाते हैं जो रास्ता अब हमी को ।।5
मुहब्बत हुई इस तरह आप से क्यूँ ।
अभी…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 4, 2018 at 9:58pm — 3 Comments
11212 11212 11212 11212
यहाँ जिंदा की है खबर नहीं यहाँ फोटो पे ही वबाल है
जो टंगी कहीं थी जमाने से खड़ा अब उसी पे सवाल है
कई जानवर रहे घूमते बिना फिक्र के बिना खौफ के
हुए क़त्ल जब कोई समझा था बड़े काम वाली ये खाल है
कई हुक्मरान हुए यहाँ सभी आँखे बंद किये रहे
कोई खोल बैठा जो आँख है सभी कह उठे ये तो चाल है
ये सियासतों का समुद्र है यहाँ मछलियों सी हैं कुर्सियां
सभी हुक्मरान सधी नजर सभी ने बिछाया जाल…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 4, 2018 at 6:00pm — 10 Comments
मजदूर ...
अनमोल है वो
जिसे दुनिया
मजदूर कहती है
इसी के बल से
धरातल पर
ऊंचाई रहती है
कहने को
मेरुदंड है वो
धरा के विकास का
आसमानों को छूती
अट्टालिकाएं बनाने वाला
जो
तिनकों की झोपड़ी में रहता है
वो
सृजनकर्ता
मजदूर कहलाता है
हर आज के बाद
जो
कल की चिंता में डूबा रहता है
कल का चूल्हा
जिसकी आँखों में
सदा धधकता रहता है
कम होती…
Added by Sushil Sarna on May 4, 2018 at 3:49pm — 6 Comments
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