२१२ २१२ २१२ २१२
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दोस्त निर्लिप्त है, टोकता भी नहीं
और पूछो अगर बोलता भी नहीं
बोलना जब मना, फाइदा भी नहीं
बे ज़ुबाँ कह सके रास्ता भी नहीं
रात तारीकियों से घिरी इस क़दर
मंज़िलें बेपता , रास्ता भी नहीं
तुम अभी तो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 5:30pm — 24 Comments
Added by Pari M Shlok on June 18, 2015 at 5:13pm — 18 Comments
- चच्चा , ई का वखत आय गयो , बेईमान बेईमानै की शिकायत कर रहा है , कहत है कि इका सजा देयो । चोरै चोर का पकड़ावाय देही का ?
हम तो यही जाने रहे कि सबै मौसेरे भाई होत हैं।
- अब का कींन जाए , जब सब भले मनई मुह बांधे बैठे रहिये , सबै बुराईयन पे आँखें मूंदें रहिये , कान बंद किये रहिये तब और का होई, यही होई , बुराइयै बुराई का मार डाली , चोरै चोर का पकड़वाए देई। …………बुराई फलत नाइ है बचवा, ज्यादा दिन चलत नाई है, नाही तो दूनियाँ तो कब्बै खत्म हुई गई होत.
अच्छाई अच्छाई का कब्बो…
Added by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2015 at 3:32pm — 4 Comments
चेहरे की रेखाओं में …
जाने कैसी बेरहम हो तुम
सिसकने की वजह देकर
खामोशी से चली जाती हो
चेहरे की रेखाओं में
दर्द के रंग भर जाती हो
स्मृति के किसी कोने में कुछ दृश्य
मेरे अन्तःमन को विचलित कर जाते हैं
और मैं बेबस निरीह सा
अपने सर को झुकाये
काल्पनिक लोक के दृश्यों से
स्वयं को जोड़ने का
बेवजह प्रयत्न करता हूँ
जानता हूँ कि उन दृश्यों से
एकाकार असंभव है
फिर क्योँ तेरी प्रतीक्षा करूं
क्योँ तुझसे स्नेह करूं
ऐ नींद…
Added by Sushil Sarna on June 18, 2015 at 3:30pm — 6 Comments
"क्या हुआ माते ?"
"कुछ नहीं हुआ लक्ष्मण, तुम अयोध्या में ही रहोगे।"
"मुझ से कोई भूल हो गई क्या ?"
"भूल तुमसे नहीं श्री राम से हो गई थी, जिसे सुधारने का प्रयास कर रही हूँ।"
"भूल और मर्यादा पुरुषोत्तम से ? मैं कुछ समझा नहीं माते।"
"उर्मिला के हृदय…
Added by योगराज प्रभाकर on June 18, 2015 at 1:00pm — 20 Comments
"तुमने जन्म देकर कोई एहसान नहीं किया है ..! क्या हमनें कहा था कि हमें इस दुनिया में लाओ ..? एक ब्रांडेड टी - शर्ट के लिए तो तरसते है हम .... अगर परवरिश करने की ताकत नहीं थी तो पैदा करने से पहले सोचना था ना ... अब हमारा क्या ...? "
"इसलिए तो सब घरबार बेचकर तुम्हारा एडमिशन इतने बडे़ काॅलेज में करवाया है कि तुम अपने बच्चों को वो सब दो जो हम ना दे सकें तुम्हें । "
"कितना शर्मिंदा होता हूँ वहाँ कालेज में इन साधारण कपडों में ... कितना अच्छा होता कि मै पढ़ाई ही नहीं करता ..! "…
Added by kanta roy on June 18, 2015 at 11:00am — 14 Comments
प्यार - एक वैचारिक अतुकांत --'' हाँ , आपसे ही कह रहा हूँ ''
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वाह !
किसने कह दिया ?
आपके दिल में प्यार भरा है, सागर सा
खुद ही दे दिये सर्टिफिकेट , खुद को ही
वाह ! क्या बात है
बिना जाने सच्चाई क्या है ? कैसी है ?
प्यार है भी कि नहीं दुनिया में
प्यार नाम की चीज़ होती कैसी है ?
रहता कहाँ है प्यार ?
किन शर्तों में जी पाता है ?…
Added by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 10:00am — 10 Comments
" आज के बाद ये सब खेल मत खेलना " और उसने सारे गुड्डे , गुड़िया को उठा कर फेंक दिया । बेटी सहम गयी , कुछ महीने पहले मम्मी ने ही इतने प्यार से ख़रीदे थे उसके लिए !
अगले दिन वो खिलौनों में बाइक्स और कार के अलावा कुछ गन भी ले आई थी और तलाक़ के नोटिस का ज़वाब भी भिजवा दिया था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 18, 2015 at 2:03am — 12 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 11:00pm — 18 Comments
सम्प्रदायिक दंगा...
चौराहों पर भीड़ अकड़ कर
भड़ास निकालती
दूकानें घबराकर छिप जाते बन्द डिब्बों में
जनानी खिड़कियां दुबक जातीं
देर सुबह तक.....शायद अनि-िश्चत काल के लिए
बिना पंख की हवाएं बिखेरतीं, सौरभ-अफवाहें
अर्ध्द खुली मर्द खिड़कियां, अवाक!
शहर की गली, सड़क सब सॉय-सॉय
...फुफकारते काले नाग
शोक में, सब्जियां - फल सब दॉए-बॉए
नालियों में अपनी सूरतें देखतीं
सड़कों के मध्य चप्पलें दहाड़े मार कर रोती
जूते फटेहाल…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2015 at 8:30pm — 14 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2015 at 8:11pm — 12 Comments
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन
एक मिसरे में इधर मैंने मेरा दिल बाँधा
दूसरे में तेरे रुख़्सार का ये तिल बाँधा
यूँ लगा जैसे हुवा सारा ज़माना रौशन
मैंने दौरान-ए-ग़ज़ल जब महे कामिल बाँधा
ख़ून आँखों से टपकता है तो हैरत कैसी
तूने क्यूँ कस के बदन से ये सलासिल बाँधा
मुनकशिफ़ हो गया दुनिया पे मेरा फ़न आख़िर
उसने साफ़ा मेरे सर पे सर-ए-महफ़िल बाँधा
उस से अल्फ़ाज़ की कुछ भीक थी दरकार मुझे
इस लिये मैंने मियाँ शैर…
Added by Samar kabeer on June 17, 2015 at 7:00pm — 31 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
लोग समझे कि शाइरी होगी
बात तो सिर्फ़ आप की होगी
.
रोज़ साहिल पे आ के रुकती है
शाम की कोई बे-बसी होगी
.
तेरे जाने का ग़म रहा मुझ को
ग़म को कितनी खुशी हुई होगी.
.
अपने जादू से जीत लेती है
ये कज़ा भी कोई परी होगी.
.
ले चलूँ बेटी के लिए गुडिया
मुँह फुलाए वो अनमनी होगी.
.
मेरे दर पे ख़ुशी है आने को
आती होगी!! कहीं रुकी होगी.
.
दर्द की चींटियाँ लिपटती हैं
दिल में यादों की चाशनी…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on June 17, 2015 at 4:30pm — 19 Comments
" मंजू के यहाँ आज बडी़ वाली एल ई डी भी आ गई । पिछले ही महिने उसने गाड़ी भी ली थी । और एक आप है ...!!!"
" मै क्या ....? क्या कहना चाहती हो तुम ?"
वहीं पास के विडियो गेम में लगे बेटे ने भी कंधे को उचका कर पिता की ओर देख फिर अपने गेम में व्यस्त हो गया ।
" मै क्या कहूँगी भला आपसे .! आपकी ही आॅफिस का बाबू है वो ..और आप अधिकारी होकर भी किसी काम के नहीं ..! "
" किसी काम का नहीं मै ....? "- मन में रह - रह कर एक ही बात अब घुम रही थी कि वे क्या किसी काम के नहीं है सच में ..? कल…
Added by kanta roy on June 17, 2015 at 1:30pm — 22 Comments
Added by Seema Singh on June 17, 2015 at 12:59pm — 4 Comments
२१२२ २१२२ २१२
चाँद को जो गुनगुनाना आ गया
चाँदनी को मुस्कुराना आ गया
दीप राहों में जले कुछ इस कदर
याद इक मंजर पुराना आ गया
देख कर अठखेलियाँ वो अब्र की
पंछियों को चहचहाना आ गया
मौतं से भी हो गई थी आशिकी
, जंग में जब जाँ लुटाना आ गया
पड़ गई कुछ जान उस मासूम में,
पेट में जब एक दाना आ गया
जिंदगी की देखकर जद्दोजहद ,
जोश हमको आजमाना…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 17, 2015 at 10:30am — 18 Comments
2122 2122 212
क्या वही फिर से ज़माना आ गया ?
आदमी को दोस्ताना आ गया
शर्म उनकी आँखों मे दिखने लगी
इसलिये नज़रें चुराना आ गया
फ़िक्र अब करते नहीं यादों की हम
अब हमें उनको भुलाना आ गया
ऊब कर रोने से दिल को देखिये
अब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 17, 2015 at 9:00am — 22 Comments
2122-2122-2122-212
.
मुस्कुरा कर कह रही कुछ झुर्रियाँ बरसात में
देखीं थीं हमने कभी रंगीनियाँ बरसात में
.
आज का बचपन न जाने कौन सी चिन्ता में गुम
अब नहीं कागज़ की दिखतीं कश्तियाँ बरसात में
.
ज़ेह्न में रच बस गया है अब तो उनका ज़ायका
माँ खिलाती थी हमें जो पूरियाँ बरसात में
.
आज घर में शाम को चूल्हा जलेगा किस तरह
कह रही मजदूर की मजबूरियाँ बरसात में
.
मेरे घर की छत गिरी थी या गिरा था आसमाँ
जो हुईं उस रात थीं दुश्वारियाँ बरसात…
Added by दिनेश कुमार on June 17, 2015 at 8:34am — 14 Comments
2122 2122 2122 2
फाईलातुन फाईलातुन फाईलातुन फा
हम किसी से मिलने उसके घर नहीं जाते
आप भी है जिद में मेरे दर नहीं आते
बेबसी महबूब की किस भाँति समझाऊँ
आज भी उनको मेरे चश्मेतर नहीं भाते
जिन्दगी बीती है उनकी सूफियाना सी
मस्त तो है रहते साजो पर नहीं गाते
इश्क में हूँ जांबलब मेरा भरोसा क्या
फ़िक्र उनको कब है चारागर नहीं लाते
एक साया उसका बांटी जिन्दगी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 16, 2015 at 9:30pm — 34 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on June 16, 2015 at 7:30pm — 26 Comments
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