इश्क के मजबूत दरख्त में
शक की दीमक लग गयी है
यकीन के सब्ज पत्ते
पीले पड़ पड़ के
रिश्तों की ड़ाल से बेसाख्ता गिर रहे हैं
झूठ के तेज़ झोंके
दरख्त को जड़ से उखाड़ने की फिराक में हैं
सच की माटी जड़ों का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 21, 2012 at 11:09am — 9 Comments
प्यारे मित्रो हमारे लाड़ले बाबाजी आज चार दिन की विदेश यात्रा पर जा रहे हैं इसलिए अगली मुलाक़ात 25 जून को ही होगी, परन्तु जाते जाते भी बाबाजी से रहा नहीं गया . ये आपके समक्ष अपनी नई रचना परोसने के लिए मरे जा रहे हैं . इसलिए ओ बी ओ के मंच पर प्रस्तुत है यह नूतन तुकबंदी :
बड़े…
Added by Albela Khatri on June 21, 2012 at 8:12am — 15 Comments
सानिध्य में सुदूर हर बात से मजबूर
सजग चिंतित, विराग अनुराग !
प्रतिकूल मंचन, मुलाक़ात सज्जन
फिर वहीँ आचार विचार संचन !
दिशाहीन नाव, अथाह सागर
मस्ती तूफ़ान ज्यों यादगार मगर !
अद्वैत, असहाय , निरुपाय
कुमकुम की कली तेज धुप अलसाय !
मधुर मिलन फिर वही चिंतन
अनुराग अपार तेजधार बहाव !
धूमिल क्षितिज , कलरव
अभिनव राग हज़ार बार !
हरित निष्प्राण मंद वायु यार
…
Added by Raj Tomar on June 20, 2012 at 10:58pm — 12 Comments
नीम में लगती दीमक
रिश्तों में मिठास नहीं
डूब गयी आशा किरण
एक दूजे पे विश्वास नहीं
रिश्तों का प्रबल क्षरण
जुड़ने के आसार नहीं
घर घर छिड़ा अब रण
मीठा स्वप्न संसार नहीं
चन्दन लिपटत न भुजंग
शीतलता का वास नहीं
माता करती भ्रूण भंग
नारी के संस्कार नहीं
भूल गए करना सत्संग
जीवन से अब प्यार नहीं
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 5:30pm — 14 Comments
जुम्मन अब्बू से बोला
दो पैसा बदलूँ चोला
निठल्लू जवान खाते गोला
सुधरो जल्दी तुमको बोला
पैसा न एक मेरे पास
कमाओ खुद छोडो आस
धंदा कोई न आता रास
बाजार करता न विश्वास
जेब कटी की सारी कमाई
पुलिस ले उडी भाई
युक्ती सुन्दर तुम्हे बताता
बन जा नेता का जमाता
अच्छी है ये तुम्हरी सीख
मांगनी पड़े अब न भीख
छुट भैया में बड़ा लोचा
करूँ धंधा कई बार सोचा
पनवाडी ने करा खाता बंद
सब बोले धंदा है मंद
माल मुफ्त अब…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 1:30pm — 8 Comments
कहाँ गई वो मेरे देश की खुशबु
जिसमे सराबोर रहते थे
इंसानों के देश प्रेम के जज्बे ,
कहाँ गई वो माटी की सुगंध
जिससे जुडी रहती थी जिंदगी
कहाँ गए वो आँगन
जिनमे हर रोज जलते थे
सांझे चूल्हे
जहां बीच में रंगोली सजाई जाती थी
जो परिचायक थी
उस घर की एकता और सम्रद्धि की
जिसमे खिल खिलाता था बचपन
लगता है वक़्त की ही
नजर लग गई…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 20, 2012 at 11:43am — 18 Comments
मेरे शहर की बारिश
लेकर आती है
ठंडी हवा के झोंकों में लिपटी
माटी की सोंधी खुशबू
बेसाख्ता बरसती बूँदें
समेटे प्यार दुलार भरी ठंडक
और तन बदन भिगोती
मन तक भिगो जाती है
लेकिन किसी को ये सब झूठ लगता है
क्यूंकि ये लेकर आती है
घरों की टपकती
छत की टप-टप
तेज़ हवा के झोंको से सरसराहट
दरवाजों पे आहट
बिरह की आग
सखी की याद
धुत्कार भरी तपिश
भिगोती है तन बदन…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 20, 2012 at 10:40am — 9 Comments
वो एक बड़ा अफसर है. अफसर है तो जाहिर सी बात है शहर में रहता है. पिता एक साधारण से किसान है. खेती करते हैं, सो गाँव में रहते है. अफसर बेटा अपने परिवार में बहुत व्यस्त है इसलिए गाँव जाकर पिता का हाल-समाचार लेने का समय नहीं है. बेटे से मिले बहुत दिन हो गए तो पिता ने विचार किया शहर जाकर खुद ही उससे मिल आया जाये. शहर में बेटे के रहन सहन को देख कर पिता बहुत खुश हुवे. अगले दिन गाँव वापस आने का विचार था लेकिन पोते-पोती की जिद से और रुकना पड़ा. एक - दो दिन तो ठीक ठाक बीत गए. किन्तु फिर बेटे के अफसरी…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on June 20, 2012 at 10:00am — 11 Comments
बिटिया रानी खिली कली सी
सागर चीरे- परी सी आई
बांह पसारे स्वागत करती
जन मन जीते प्यार सिखाई !
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कदम बढ़ाओ तुम भी आओ
धरती अम्बर प्रकृति कहे
गोद उठा लो भेद भाव खो
सोन परी हिय मोद भरे !
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हहर-हहर…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 12:56am — 16 Comments
बांहें दी पसार मैंने,
कर दी पुकार मैंने,
आओ आओ आओ मेरे गले लग जाइए
दामिनी सी चंचल मैं,
फूल जैसी कोमल मैं,
मेरी ओजस्वी आँखों से आँख तो मिलाइए
आज किलकारी हूँ मैं,
कल फुलवारी हूँ मैं,
भारत की नारी हूँ मैं, मेरे पास आइये
वंश को बढ़ाना हो तो,
देश को बचाना हो तो,
भ्रूणहत्या रोक कर, बेटी को बचाइये
___जय हिन्द !
Added by Albela Khatri on June 19, 2012 at 8:30pm — 12 Comments
अतिथि से गृहस्वामी बोला मेरे स्नेहपात्र;
आकांक्षा हमारी आप बार-बार आइए|
अतिथि ने अभिभूत कहा धन्य भाग्य मेरे;
इतनी ख़ुशी आपकी, कारण बताइए|
गृहस्वामी ने सुनाया, बड़ा अच्छा लगता है;
इतना तो निश्चित ही आप जान जाइए|
पर जो सुख मिलता है जाते देख आपको;
उस परमानंद से मुक्ति न दिलाइए||
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 19, 2012 at 12:30pm — 12 Comments
प्यारे रक्त देवता
सादर जीवनदानस्ते!
आपके जीवनदायिनी रूप को नमन करते हुए पत्र प्रारम्भ करता हूँ। अब आप सोचते-सोचते अपना सिर खुजा रहे होंगे, कि आपको इस तुच्छ प्राणी ने भला देवता क्यों कह दिया? देखिए मैं भारत देश का वासी हूँ और यहाँ जगह-जगह थान बनाकर और हर ऐरे-गैरे नत्थू खैरे की मज़ार बनाकर जब पूजा व सिज़दा किया जा सकता है, तो आपको देवता के…
ContinueAdded by SUMIT PRATAP SINGH on June 19, 2012 at 12:26pm — 6 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on June 19, 2012 at 10:30am — 7 Comments
लिख नहीं जो सकता तू सच ख़बर ज़माने की।
बोल क्या ज़रूरत है फिर क़लम उठाने की॥
छोड़ दे ये हसरत भी दिल कहीं लगाने की।
सह नहीं जो सकता तू ठोकरें ज़माने की॥…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 18, 2012 at 1:00pm — 13 Comments
११ वी कक्षा उतीर्ण करने के बाद वर्ष १९६३ में मेरे पिताजी एवं बड़े भाई ने सोचा लक्ष्मण ने संस्कृत विद्यापीठ,मुंबई से प्रथमाँ परीक्षा भी पास की है, को औयुर्वेदिक महाविद्यालय में पढने हेतू दाखिला दिला देते है | वैद्य एवेम आयुर्वेदिक कॉलेज के प्रोफेसर श्रीछाजू राम जी की सलाह अनुसार प्रवेश आवेदन भरकर साक्षात-कार के पश्चात प्रवेश सूची में नाम न देखकर,लक्ष्मण के पिता रामदासजी ने प्रिंसिपल एव आयुर्वेदाचार्य श्री रामप्रकाश स्वामी से मिले, तो उन्होंने बताया की जब हमें प्रवेश हेतु शारीरिक दक्ष…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 18, 2012 at 10:00am — 8 Comments
हँसता हुआ गुलाब बोला
देखो मैं कितना सुन्दर हूँ !
कितना गोरा रंग मेरा ,
खुशबू का मैं घर हूँ !
कितना कोमल अंग मेरा ,
सहलाना तो छोडो !
पंखुडियाँ झड जाएँगी
मुझको कभी न तोडो !
शाहों अमीरों का शान बना, पुष्पों का सरताज हूँ
यूँ बहुत पुराना राजा हूँ मैं फिर भी नया नया हूँ !
खाद रसों को चूस चूस कर इतना बड़ा हुआ हूँ
ओढ़ भेड़ की खाल को मैं भेडिया बना खड़ा हूँ !
राधा के होंठों से मैं लाली चुरा लाया हूँ
राम के सिलीमुख को शूल बना बैठा…
Added by Raj Tomar on June 17, 2012 at 7:47pm — 7 Comments
Added by SUMIT PRATAP SINGH on June 17, 2012 at 5:00pm — 6 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 17, 2012 at 4:54pm — 12 Comments
बेशक नफरतों को दिल में पालिए
Added by yogesh shivhare on June 17, 2012 at 3:30pm — 6 Comments
जिन्दगी हमारी भी बनती एक सवाल
गर सवाल का जबाब 'वो 'हमारे होते
उन यादों में ही गुजर लेते उमर सारी
गर दो पल भी 'वो ' साथ हमारे होते ..
न भिगोते अश्क पलकों को भी ,गर
ये नयन न उनके मतवारे होते
जान लेते हकीकत प्यार की हम भी
जो प्यार का आइना 'वो ' हमारे होते ..
राहों में हमारे होते उजाले अनेक
जो 'उनके अँधेरे ' न हमारे होते
भूल के उनको सो लेते चैन से
सपने जो वश में हमारे होते ..
गुनगुना लेते ताउम्र उनको हम
जो…
Added by Ajay Singh on June 17, 2012 at 9:30am — 2 Comments
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