क्षुद्र बुद्धि और है पराक्रम भी क्षुद्र आज ज्ञान से मनुष्य ने बना ली बड़ी दूरी है
मायावी प्रपंच से प्रभावित हैं जन सभी कलि पाश दृढ हुआ यही मजबूरी है
शाश्वत परम्पराएं त्यागने लगे तभी तो धनवान हुए किन्तु साधना अधूरी है
खप्पर भवानी कालिका का रिक्त हो रहा है शत्रु शीश काट रक्त पूर्ति भी ज़रूरी है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
सर्वथा मौलिक अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 13, 2013 at 9:30am — 10 Comments
रामसिया का रूप
राम सिया की जोड़ी कैसी, काम रती की जोड़ी जैसी.
राम सिया को जो नर ध्यावे, सब सुख आनंद वो पा जावे.
राम सिया जग के सुख दाता, जो मांगे वर वो पा जाता.
शुबह शाम नर नाम सुमीर तू, अपना काम समय पर कर तू.
कष्ट न दूजे को दे देना, सम्भव हो तो दुःख हर लेना.
परमारथ सा धरम न दूजा, नहीं जरूरत कोई पूजा.
वेद्ब्यास मुनि सब समझावे, गाथा बहु विधि कहहि सुनावे.
अन्तकाल में कष्ट जो पावे, सकल अतीत समझ में आवे.
कहत जवाहर हे रघुराई, मूरख मन से करौं बराई.
मरा मरा…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 13, 2013 at 7:30am — 12 Comments
रवि महिमा
रवि की महिमा सब जग जानी, बिनू रवि संकट अधिक बखानी.
शुबह सवेरे प्रगट गगन में, फूर्ति जगावत जन मन तन में!
दूर अँधेरा भागा फिरता, सूरज नहीं किसी से डरता.
आभा इनका सब पर भारी, रोग जनित कीटन को मारी
ग्रीष्म कठिन अति जन अकुलानी, शरद ऋतू में दुर्लभ जानी
ग्रीष्महि जन सब घर छुप जावें, शरद ऋतू में बाहर आवें.
गर्मी अधिक पसीना आवे, मेघ दरस न गगन में पावे.
पावस मासहि छिप छिप जावें. बादल बीच नजर नहीं आवे.
हल्की बारिश में दिख जावें, इन्द्रधनुष अति सुन्दर…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 13, 2013 at 7:26am — 8 Comments
दिल से सुन ओ भाई ....
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किसी की किस्मत पर जलने वालों के
दिलों को ठंडक कहाँ मिलती है,
किस्मत के धनी को इनकी परवाह भी कहाँ होती है.
देख उस खुदा की तरफ जिसने जहाँ बनाया...
तुझे और मुझे खाली हाथ यहाँ भिजवाया.
सद-कर्म से तू मर्म और धर्म का ईमान रख
अपने पे भरोसा कर, नेकी की राह चल.
बुलंदी के रास्ते तो खुद-ब खुद खुल जायेंगे
जलता रहा गर यूँ ही अगर
मातम के दरवाज़े पीढ़ी दर पीढ़ी खुल जायेंगे.
- दिनेश
शुभ…
Added by dinesh solanki on June 13, 2013 at 6:10am — 8 Comments
सुना भगवानों के पास धन बहुत,
और अपने देश में निर्धन-बहुत !
मंदिरों में जमा है अकूत सोना ,
वहीँ द्वार पर भूखी भीड़,दो,ना !
…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 12, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
आज बहुत पुरानी डायरी पर ...
उंगलियाँ चलाईं ...
जाने कहाँ से एक आवाज ..
चली आयी ..
आवाज, जानी पहचानी ...
कुछ बरसों पुरानी ..
एक हंसी,
जो दूर से हंसी जा रही थी..…
Added by Amod Kumar Srivastava on June 12, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
दुनिया मुझे न समझे, तो अच्छा है !
Added by aman kumar on June 12, 2013 at 3:45pm — 14 Comments
Added by Abid ali mansoori on June 12, 2013 at 2:01pm — 20 Comments
!! ये यादे !!
कभी होठो पे हँसी लाती है ये यादे ।
कभी आंखो मे नमी लाती है ये यादे ।।
कभी माशूक कभी मासूम सी होती है ये यादे ।…
ContinueAdded by बसंत नेमा on June 12, 2013 at 1:00pm — 9 Comments
जाने कब मिलेंगे हम अब्बू आपसे...
-----------------------------------------अनवर सुहैल (मौलिक अप्रकाशित और अप्रसारित कविता)
कब मिलेगी फुर्सत
कब मिलेगा मौका
कब बढ़ेंगे कदम
कब मिलेंगे हम अब्बू आपसे...
बेशक, आप खुद्दार हैं
बेशक, आप खुद-मुख्तार हैं
बेशक, आप नहीं देना चाहते तकलीफ
अपने वजूद से,
किसी को भी
बेशक , आप नहीं बनना चाहते
बोझ किसी पर..
तो क्या इसी बिना पर
हम आपको छोड़…
Added by anwar suhail on June 11, 2013 at 8:26pm — 8 Comments
दास्ताँ इक तुम्हे सुनानी है
आज पीने को मय पुरानी है
मेरी आँखों में सूनापन सा है
सूनेपन की कोई कहानी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 11, 2013 at 4:30pm — 14 Comments
गिरा दे बूँदें
प्रतीक्षारत हम
नयन मूंदे
*
और न कस
हर कोई बेबस
अब बरस
*
चली जो हवा
उड़ गए बादल
हम नि:शब्द
*
मन बहका
आवारा बादल सा
उड़ गया लो
*
बरसे धार
बढे -उमड़े प्यार
हर्ष अपार
*
सब है वृथा
काश, घन सुनते
हमारी व्यथा
*
सलोने घन
या तो डुबो देते हैं
या जाते डूब
*
आये बौछार
बजें मन के…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 11, 2013 at 2:27pm — 7 Comments
सुनो,
तुम तो जानती ही हो ....
मेरी ग़ज़ल,
मेरी कविताओं ...
के हर अलफ़ाज़ को ...
और ये भी,
कि ये दुनियाँ कितनी रुखी है ...
ये जमाने भर तल्खी,
अक्सर घाव कर देती है,
मुझ पर ...
फिर तितलिया ..
वक्त के साथ साथ,
फीकी पड़ जाती है,
चुभते है नाश्तर बन के रंग...
और एक कसक लिए मैं,
जमाने के दरार वाले इस पहाड़ के पीछे,
करता हूँ तुम्हारा इन्तजार ..
तुम देखना,
एक दिन ये दुनियाँ,
ताजमहल के साथ भरभरा कर,
गिर…
Added by अमि तेष on June 11, 2013 at 3:11am — 15 Comments
ज़िंदगी इतने दिन तूफ़ान रही,
कभी बारिश,कभी मुस्कान रही
मिर्च थी खूब,मसाले भी बहुत
सौदा-सुलुफ की ये दुकान रही
लोग चेहरे लगाये ,आये ,गए
कौन रिश्ते थे बस पहचान रही
आसमां पर निरी सलाखें थीं
अपनी आँगन में ही उड़ान रही
खूब ढोया है उम्र को हमने
इसलिए दोस्त,कुछ थकान…
Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 10, 2013 at 10:55pm — 12 Comments
पिता परमात्मा सा होता है
जो जन्म देकर दुनिया में ले आता है
वो दुनिया दिखाने वाला पिता,परमात्मा से कैसे कम है
हमारी आहट से जो सन्न हो जाता है
जिसके भीतर हर पल हमारे पालन की चिन्ता पलती है
जो हमें जन्म देने के बाद,
अपने सारे सुख भूल जाता है।।
दुनिया में हमारे आने के बाद
वो एक राह पर ही चलता है
और अपने पुरातन ताज्य कार्य भी छोड देता है
उसकी दुनिया हमारी आहट से बदल जाती है
वो पिता परमात्मा सा होता…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on June 10, 2013 at 4:38pm — 11 Comments
यूँ पाठ जिंदगी का पढ़ाने का शुक्रिया
की बेरुखी से मुझको भुलाने का शुक्रिया
गुज़रे हुए निशान कुछ रेती पे पैर के
यादें यूँ अपनी छोड़ के जाने का शुक्रिया
कोई तो चाहिए ही था इक हमसफ़र तुझे
दिल में किसी को और बसाने का शुक्रिया
रातों से हो गयी है मुहब्बत सी अब हमें
ख्वाबों में ही दीदार कराने का शुक्रिया
दिल मोम का है सोंच के रोता रहा सदा
पत्थर कि तरहा दिल को बनाने का शुक्रिया
मुझको लगा ये काफ़िला मेरे ही साथ है…
ContinueAdded by Anurag Singh "rishi" on June 10, 2013 at 1:15pm — 11 Comments
दोस्तों को दुश्मन बनाया है किसने ..
शमशान में लाशों को पहुँचाया है किसने..
किसने किसको, किसको है देखा ..
न देखा है हमने न, देखा है तुमने...
हुयी शाम और ये रात है आयी..
किसने ये तारों की महफ़िल सजाई ...
सोचते-सोचते में सो गया हूँ ..
रात की कालिमा में मैं खो गया हूँ..
किसने इस कालिमा को लालिमा बनाया ..
किसने मुझको फिर से जगाया..
किसने किसको, किसको है देखा ..
न देखा है हमने न, देखा है तुमने... …
Added by Amod Kumar Srivastava on June 10, 2013 at 12:00pm — 8 Comments
मालिक ने इस दौड़ में यूं ही नहीं शामिल किया,
फ़क्त ये जानना ज़रूरी है कि किस काबिल किया |
कहते रहे जो ज़िंदगी भर खुदा ही आख़िरी ज़रुरत है,
उन्होंने अपनी रूह तक को भी ना हासिल किया |
बहुत कोशिशें की मगर पढ़ ना सके उस इबारत को,
जिन हर्फों ने राम और रहमान को फ़ाज़िल किया|
सोचा वो धुँआ थी, बिखर के मिल गयी हवाओं में
हर अधूरी ख्वाहिश को इस तरहा मुकम्मिल किया|
मैं ना ग़ालिब था, ना मीर ना ही और कोई…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 10, 2013 at 11:55am — 7 Comments
आकाशदीप
‘’ आओ ! आओ ! मेरे पास आओ ! ! ‘’
हर शाम आकाश का निमंत्रण आता ,
उसे पाने का हर सम्भव प्रयास ,
साम दाम दण्ड भेद मैंने अपनाया .
मन की तृष्णा कहूँ या कमज़ोरी ,
सबने उन्नति कह स्वागत किया .
मेरे रास्ते में अनेक तारेपुंज थे ,
पर आजीवन एक ही लक्ष्य है साधा .
आकाशदीप पाने हेतु पथ में ,
कितने तारे टूटे कितने हुए धूल ,
आया भी हाथ में एक बुझा दीपक ,
लोभ में नष्ट हुआ जीवन समूल .
( मौलिक व अप्रकाशित रचना )
Added by coontee mukerji on June 10, 2013 at 11:13am — 1 Comment
पेड़ पर बैठी चिड़िया बोली
ओ जंगल के राजा
मानव कितना अभिमानी है
इसको तू खाजा
स्वार्थ में आकर छीन रहा था
मेरा घर वो आज
बच्चे मेरे बिलख रहे थे
कैसी गिरी ये गाज
ना जाने क्या सोच कर उसने
ये पेड़ आज नही काटा
पेड़ भी बोला गुस्से से
मारूंगा एक चांटा
छाया देता ,फल भी देता
और आसरा सबको
फिर भला ये मानव
काट रहा क्यों मुझको
सुन कर सारी बातें
शेर जोर से दहाड़ा
आने दो कल मानव…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 10, 2013 at 11:04am — 5 Comments
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