दिल्ली में भी
सूरज उगता है
शहादरा में
काले धुएं की, ओट से
धीरे –धीरे संघर्ष करते
ठीक उसी तरह जैसे
माँ के गर्भ से कोई
बच्चा निकलता है
बड़ा होता है
बसों और मेट्रो में
लटक –लटक कर
धक्के खा-खा कर
जीवन जीना सीखता है
पसीने को पीता जाता है
पर थक हार कर भी
जनकपुरी की तरफ बढ़ता जाता है
रक्त से लाल होकर
वहीँ कहीं किसी स्टाप पर
चुपके से उतर जाता है
पर, सूरज का जीवन…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 24, 2017 at 11:10pm — 1 Comment
Added by Mohammed Arif on July 24, 2017 at 2:45pm — 17 Comments
Added by Samar kabeer on July 24, 2017 at 12:00am — 25 Comments
तन्हा....
बहुत डरता हूँ
हर आने वाली
सहर से
शायद इसलिए कि
शाम ने सौंपी थी
जो रात
मेरे ख़्वाबों को
जीने के लिए
ढक देगी उसे सहर
अपने पैरहन से
हमेशा के लिए
और मैं
रह जाऊंगा
सहर की शरर से
छलनी हुए
ख्वाबों के साथ
तन्हा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 23, 2017 at 9:18pm — 10 Comments
धूप की तिरछी किरणें
बारिश की बूँदें
रंभाती हवाएँ
सभी एक संग ...
धूल के कण
मानो उड़ रहे हैं सपने
विचित्र रूप ओढ़े है धरती
सारा कमरा
चौकन्ना हो गया है
असंतोष मुझको है गहरा
लौट-लौट आ रहे हैं
दर्दीले दृश्य दूरस्थ हुई दिशाओं से
भूली भीषण अधूरी कहानी-से
उलझे ख़याल ...
तुम्हारे, मेरे
मकड़ी के जाल में अटके जैसे
हमारे सारे प्रसंग
जिनका आघात
हम दोनों को…
ContinueAdded by vijay nikore on July 23, 2017 at 3:00pm — 29 Comments
Added by मनोज अहसास on July 23, 2017 at 1:22pm — 1 Comment
जिन्दगी की रेलगाड़ी,
भागती सरपट चली.
मिल न पायीं दो पटरियाँ,
साथ पर चलती रहीं.
देख कर अपनों की खुशियाँ,
दीप बन जलती रहीं.
दे गयी राहत सफर में,
चाय की इक केतली.
मौसमों की मार…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 23, 2017 at 1:11pm — 9 Comments
Added by अनहद गुंजन on July 23, 2017 at 11:44am — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 23, 2017 at 10:47am — 13 Comments
सन १९८२ , बी वाय के कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, शरणपुर रोड, नाशिक , यह उनदिनों की बात है जब मैं इस कॉलेज में पढ़ती थी |
हमारी कॉलेज के पैरेलल दो सड़के जाती थी, एक त्रम्बकेश्वर रोड, और दूसरी गंगापुर रोड , और इन दोनों के बीच पड़ता है हमारा कॉलेज रोड|
हमारे कॉलेज से एक रास्ता कट जाता है जो गंगापुर रोड की तरफ जाता है , कॉलेज से करीब ४.८ किलोमीटर की दुरी पर है यह सोमेश्वर मंदिर | महादेव जी का यह एक प्राचीन मंदिर है , गोदावरी नदी के तट पर बसा यह मंदिर अपनी सुंदरता लिए हुए है | उनदिनों…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2017 at 7:17pm — 4 Comments
गाँव वालों के बीच इन दिनों एक ही चर्चा चल रही थी और वो थी सुखिया के बेटे का आतंकवादी बन जाना | सुखिया एक सीधा सादा कुम्हार था पर उसके हाथ के बने घड़े सुन्दर और पक्के होते थे | आस पास के गाँव वाले भी उसके पास घड़े खरीदने आते थे |
लोगों को जब उनके बेटे के बारे में पता चला तो वे सब सकते में आ गए ।
किसीने कहा , " घोर कलजुग है भैया , किसीका भरोसा नहीं । "
कोई बोला ," इसमें तो मुझे उस सुखिया कुम्हार की ही गलती दिखे है , माटी के घड़े तो बना दिए पर खुद…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2017 at 5:47pm — 7 Comments
ग़ज़ल(सुन तो ले दास्ताने बर्बादी )
-----------------------------------------
(फाइलातुन-मफ़ाइलुन-फेलुन )
सुन तो ले दास्ताने बर्बादी |
घर के बाहर खड़ा है फर्यादी |
लोग करते रहे विकास मगर
हम बढ़ाते रहे हैं आबादी |
पी रहा हूँ उन्हें भुलाने को
मैं नहीं हूँ शराब का आदी |
सिर्फ़ ग़म है यही जिसे चाहा
साथ उसके न हो सकी शादी |
क्या दुआ दें तुम्हें सिवा इसके
हो मुबारक ये खाना आबादी…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 22, 2017 at 5:41pm — 12 Comments
जाम ... (एक प्रयास)
२१२२ x २
शाम भी है जाम भी है
वस्ल का पैग़ाम भी है।l
हाल अपना क्या कहें अब
बज़्म ये बदनाम भी है।l
हम अकेले ही नहीं अब
संग अब इलज़ाम भी है।l
बाम पर हैं वो अकेले
सँग सुहानी शाम भी है।l
ख़्वाब डूबे गर्द में सब
संग रूठा गाम भी है।l
ख़ौफ़ क्यूँ है अब अजल से
हर सहर की शाम भी है ll
होश में आएं भला क्यूँ
संग यादे जाम भी है !l
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 21, 2017 at 5:30pm — 20 Comments
“भाभी जल्दी आइये देखिये ‘साथी डॉट कॉम’ पर कितने उत्तर आये हैं|”
“अरे क्या करती हैं बड़े लोग देखेंगे,सुनेंगे तो क्या सोचेंगे |”
“खुश होंगे भाभी, सब चाहते हैं कि आप फिर से एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करें |”
“सालों पहले मुझे सफ़ेद साड़ी से रंगीन साडी पहनाने में, कितने पापड़ बेले थे आपने, भूल गयी क्या, जो अब ये नया काम करने जा रही हैं |”
“पर मैं सफल हुई ना|थोड़ा सा आत्मविश्वास की ज़रूरत है बस |केदारनाथ के हादसे को हुए भी १२ साल बीत गए हैं ,भाई व बच्चों को तो वापिस नहीं ला…
ContinueAdded by Manisha Saxena on July 20, 2017 at 11:30pm — 8 Comments
2122 -1212 -22
मुझ पे तू मेहरबां नहीं होता
मैं तेरा क़द्रदां नहीं होता।
बोलने वाले कब ये समझेंगे
चुप है जो बेज़ुबां नहीं होता।
कोई अरमान हम भी बोते. . .गर
मौसम-ए-दिल ख़िज़ाँ नहीं होता।
ख्वाहिशो सीने पे न दस्तक दो
अब मेरा दिल यहां नहीं होता।
जो बचाए किसी को कातिल से
वो सदा पासबाँ नहीं होता।
चाहे कितना उठे धुआँ ऊपर
वो कभी आसमाँ नहीं होता।
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by Gurpreet Singh jammu on July 20, 2017 at 1:41pm — 14 Comments
यूँ ही..............
मुझको यदि पढ़ना चाहोगे
कई बहाने मिल जाएँगे
मुझसे यदि बचना चाहोगे
कई बहाने मिल जाएँगे
हम दुनियावी मसलों को-
छोड़, यहाँ तक आ पहुंचे हैं
तुम, अपनी फिकरों को छोड़ो
कई बहाने मिल जाएँगे
खूब दिखाए बाग-तितलियाँ
औ खूब सुनाई गज़लें भी
कैसे डूब गई मैं तुझमें
कई बहाने मिल जाएँगे
कौन कह रहा तनहा हैं हम
हम से दूर हुए कब तुम थे?
मजबूरी टूटे बस…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 20, 2017 at 11:43am — No Comments
यूँ ही..............
अवसादों की खींच-तान हो,
तुमको मैंने देखा है
बादल तिरता आस्मान हो
तुमको मैंने देखा है
हर कारज के होने में
पाने में या खोने में
तुम ही सब अनुष्ठान हो
तुमको मैंने देखा है
आपा-धापी, गला-काट
बात-बात पर लाग-डांट
दुनिया से परेशान हो
तुमको मैंने देखा है
जगती के इस रेले में
औ विवाद के ठेले में
जलता सा जब मसान हो
तुमको मैंने देखा…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 20, 2017 at 11:27am — No Comments
Added by Mohammed Arif on July 20, 2017 at 12:07am — 14 Comments
१
आया सावन
बोले मयूरा सुनो
उसकी बोली |
२
गरज गए
बादल सावन के
नाचो औ गाओ |
३
गीत कोई तो
सुना दो सावन के
मनवा डोले |
४
मधुर गीत
गाती जब सखियाँ
पिया पुकारें |
५
हरित धरा
कहती कुछ कुछ
सुनो तो सही |
६
चमके जब
बिजली डर लागे
ढूँढे पिया को…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 18, 2017 at 10:30pm — 14 Comments
व्यर्थ है ...
व्यर्थ है
अपनी आशाओं को
दियों की
उदास पीली
मटमैली रोशनी में
मूर्त रूप देना
व्यर्थ है
प्रतीक्षा पलों की
चिर वेदना को
कपोलों पर
खारी स्याही से अंकित
शब्दों के स्पंदन को
मूर्त रूप देना
व्यर्थ है
शून्यता में विलीन
पदचापों को
अपने स्नेह पलों में
समाहित कर
मौन पलों को
वाचाल कर
मन कंदरा के
भावों को
मूर्त रूप…
Added by Sushil Sarna on July 18, 2017 at 10:00pm — 8 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |