मरा था मैं तड़प कर वो जमाना भी भुला देना
बसाया था तुझे दिल में फसाना भी भुला देना
जले खुद थे चरागो से बचाया था तुझे हमने
नहीं ये राह फूलो की बताना भी भुला देना
सहे है दर्द हम कितने पता हो तो जरा बोलो
छुपा कर दर्द मेरा मुस्कुराना भी भुला देना
निगााहो में बसाया था तुझे आखे बनाया था
चली जो छोड़ कर अाँसू बहाना भी भुला देना
उड़े आंचल तुम्हारे थे सभाला था हवाओं से
कहा था कुछ हवाओं ने बताना भी भुला…
Added by Akhand Gahmari on July 21, 2014 at 8:00pm — 23 Comments
2122 2122 2122
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घाट सौ-सौ हैं दिखाए तिश्नगी ने
कौन छोड़ा इस हवस के आदमी ने
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करके वादा रोशनी का हमसे यारो
रोज लूटा है हमें तो चाँदनी ने
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राह बिकते मुल्क के सब रहनुमा अब
क्या किया ये खादियों की सादगी ने
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रात जैसे इक समंदर तम भरा हो
पार जिसको नित किया आवारगी ने
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झूठ को जीवन दिया है इसतरह कुछ
यार मेरे सत्य को अपना ठगी ने
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पास आना था हमें यूँ भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2014 at 7:46pm — 10 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 21, 2014 at 6:30pm — 25 Comments
यह बात 24 जून 1989 की है मेरे पिता जी जनपद देवरिया के पडरौना में तैनात थे। हम लोग वही से अपनी कार यू0पी0के0 4038 से पडरौना से अपनी मौसी की शादी में भाग लेने धरहरा मुँगेर जा रहे थे। हमारे साथ हमारी माता जी, दो भाई, मामा और वह मौसी जिनकी शादी थी और उनकी एक मित्र रूबी थी। हम लोग सुबह 6 बजे पडरौना से निकल कर 12 बजे गोपालगंज बिहार के पास पहुँचे थे उसी समय हम लोगो की कार खराब हो गयी हमारे मामा गोपालगंज बिहार से लाये मगर शा वह कार किसी तरह को गोपालगंज के अपने गैरेज में लाया मगर वह कार को पूरी तरह…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on July 20, 2014 at 4:17pm — 12 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
आजकल ये रुझान ज़्यादा है
ज्ञान थोड़ा बयान ज़्यादा है
है मिलावट, फ़रेब, लूट यहाँ
धर्म कम है दुकान ज्यादा है
चोट दिल पर लगी, चलो, लेकिन
देश अब सावधान ज़्यादा है
दूध पानी से मिल गया जब से
झाग थोड़ा उफ़ान ज़्यादा है
पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको
पर मेरा आसमान ज़्यादा है
ये नई राजनीति है ‘सज्जन’
काम थोड़ा बखान ज़्यादा है
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 20, 2014 at 3:35pm — 21 Comments
छपाक्… !
“अरे ये क्या किया.. जाने देते.. ”, एक यात्री डपटता हुआ चिल्लाया, “..फ़िर किसी और को बेच दोगे.. साले पूजा की चीजें भी नहीं छोडते हैं ये..”
“जब पूजा करना तो बोलना.. वर्ना सरकार ने अब गंगा को गंदा करने वालों को जेल भेजना शुरु कर दिया है..”, एक तिरछी मुस्कान के साथ मन्नू ने आँख…
Added by Shubhranshu Pandey on July 20, 2014 at 11:30am — 19 Comments
‘महिला उत्थान’ मुद्दे पर संगोष्ठी से घर लौटते ही कुमुद से उसके पति ने कहा... “अभी थोड़ी देर पहले ही दीपा आई थी मिठाई लेकर वो बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुई है कंप्यूटर कोर्स तो उसका पूरा हो ही गया था,तुम्हारी प्रेरणा और मार्ग दर्शन से कितना कुछ कर लिया इस लड़की ने हमारे घर में काम करते-करते.... अब सोचता हूँ अपने ऑफिस में एक वेकेंसी निकली है इसको रखवा दूँ “
कुमुद कुछ सोच कर बोली”अजी इतनी भी क्या जल्दी, वैसे भी सोचो इतनी अच्छी काम वाली फिर कहाँ मिलेगी, फिर तो ये काम करेगी…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 20, 2014 at 11:00am — 28 Comments
1222 1222 122 ---
कभी महसूस कर मेरी कमी भी
तेरी आँखों में हो थोड़ी नमी भी
नदी की धार सी पीड़ा बही, पर
किनारों के दिलों में क्या जमी भी ?
खुशी तो है उजालों की, मगर क्यों
कहीं बाक़ी दिखी है बरहमी* भी ( खिन्नता )
उड़ाने आसमानी भी रखो पर
तुम्हे महसूस होती हो ज़मी भी
ये रिश्ता किस तरह का है बताओ ?
अदावत* भी हमी से, हमदमी भी ( दुश्मनी )
उफ़क पे देख लाली है खुशी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 20, 2014 at 10:39am — 22 Comments
सामायिक गीत !
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मन से मन की बात चलेगी
सहज भाव अपनापन होगा।
जुड़े नहीं जो तार ये मन के
सूखा और सूनापन होगा !
छद्म ,छल-कपट छलिया बन के
मेघदूत आये सावन के !
किसका ये सब रचा हुआ है /
मुद्दे का सत्यापन होगा !
मन से मन की बात चलेगी
सहज भाव अपनापन होगा …।
हर मौसम को धरा सह…
Added by AVINASH S BAGDE on July 19, 2014 at 9:19pm — 15 Comments
माँ, बहन, बेटी के आँसू पे यहाँ रोता है दिल
रोज़ लुटती अस्मतें, क़त्लों का ग़म ढोता है दिल |
आबरू को उम्रदारों ने भी बदसूरत किया
मर्दों का बचपन भी है बदकार बद होता है दिल |
शाहो-साहब औ’ गँवारों सब में बद शह्वानीयत
सब की आँखों में चढ़ा शर्मो-हया खोता है दिल |
है हुक़ूमत बेअसर बेख़ौफ़ हैं ज़ुल्मो-ज़बर
हर घड़ी हर साँस जैसे ख़ार पे सोता है दिल |
आज भी शै की तरह हैं घर या बाहर…
ContinueAdded by Santlal Karun on July 19, 2014 at 7:25pm — 34 Comments
भारत तेरा रूप सलोना, यहाँ-वहाँ सब माटी सोना |
कहीं पर्वत-घाटी, जंगल, कहीं झरना-झील, समुन्दर
कहीं गाँव-नगर, घर-आँगन, कहीं खेत-नदी, तट-बंजर
कश्मीर से कन्याकुमारी, कामरूप से कच्छ की खाड़ी
तूने जितने पाँव पसारे, एक नूर का बीज है बोना |
इस डाल मणिपुरी बोले, उस डाल मराठी डोले
इस पेड़ पे है लद्दाखी, उस पेड़ पे भिल्लीभिलोडी
कन्नड़-कोयल, असमी-तोता, उर्दू–बुलबुल, उड़िया-मैना
एक बाग के सब हैं पंछी, सब से चहके…
ContinueAdded by Santlal Karun on July 19, 2014 at 7:00pm — 26 Comments
यही कोई 40 से 45 के बीच की रही होगीं वो गठीला बदन, घने काले बाल थ्री स्टेप में कटे हुए, माथे पर सुर्ख लाल बिंदी उनके चेहरे की खूबसूरती को और भी बढ़ा रही थी हलकी हवा के झोके से उनके बालों की लटकती हुई लट लयमान होकर मानो उनके चेहरे को पूरी तरह से ढकना चाह रही हो उनके एक ओर शून्य में एकटक निहारने की कोशिश जो बरबस उनकी तरफ मुझे आकर्षित कर रही थी उनके व्यक्तित्व को देखकर कोई भी ये महसूस कर सकता था कि उनके चेहरे पर प्रकति ने स्थाई रूप से मुस्कुराहट और प्यार चिपकाए होंगे लेकिन वक्त के थपेड़ों ने…
ContinueAdded by sunita dohare on July 19, 2014 at 5:30pm — 9 Comments
प्रिया
कहती हो
कहाँ रही
नवेली.
अब कहाँ कजरा
चमेली का गजरा
छूई-मुई
लाजवन्ती.
सुबह का नास्ता
बच्चों का स्कूल
प्रीत गए भूल.
बनाकर टिफिन
घर से ऑफिस
ऑफिस से घर
भागदौड़.
तुम नहीं जानती
कितना सुखद लगता है
आज भी तुम्हारा रूप
किचन में
आँचल से पसीने पोंछती
तुम -अद्भुत सजती हो .
जब अपने को
सहज ही सहेजकर
ऑफिस के लिए
निकलती हो
खुदा कसम
नवेली ही लगती…
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on July 19, 2014 at 5:30pm — 8 Comments
2212 / 2212 / 2212 / 2212
दिल के मकाँ में यार कोई दिलकुशा मिलता नहीं
भीगा पड़ा है आशियाँ अब दिलशुदा मिलता नहीं |
हमने वफ़ा में बाअदब जानो-ज़िगर सब दे दिया
उनकी वफ़ा, चश्मो-अदा, दिल गुमशुदा मिलता नहीं |
उम्मीद हमने छोड़ दी उनकी इनायत पे बसर
ये ज़िन्दगी रहमत-गुज़र दिल या ख़ुदा मिलता नहीं |
उनकी वफ़ा के माजरे, बेबस्तगी पे क्या कहें
उन पे फ़ना दिल रोज़ होता दिल जुदा मिलता नहीं |
यों दिलज़दा मेरा…
ContinueAdded by Santlal Karun on July 19, 2014 at 5:00pm — 16 Comments
"अरे बेटा , कैसे खा लिया तुमने उस ठेले से समोसा और पानी पूरी ? तुम तो जानते नहीं कि कितने गंदे हाथ होते हैं उनके और कैसा पानी और तेल इस्तेमाल करते हैं वो लोग"! मम्मी परेशान थीं और पापा चिंतित |
बड़े भाई ने भी टोक दिया "तुमसे ये उम्मीद नहीं थी, तुम तो मेडिकल के छात्र हो" |
"लेकिन मम्मी, मुझे भूख बहुत लगी थी"|
अब सब खामोश थे |
.
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by विनय कुमार on July 19, 2014 at 1:00pm — 14 Comments
प्रेम दीपक
बंधन में मत बाँध सखी
उन भावों को
जो नित-नित
मानसपट पर चित्रित होते हैं –
स्वप्नों के छंद में बाँध सखी
उन छंदों को
जो पलकों पर पुलकित, अधरों पर बिम्बित होते हैं.
नयनों से ढुलके जो दो-चार बूँद सखी
अपने हिय के पत्र-पुष्प पर
टल-मल-टल
उनमें अपनी किरणों को पिरो देना
मेरी पीड़ा के होमकुण्ड में गंगाजल.
जब आग बुझे, कुछ राख उड़े
तम छाए सखी,
उस नीरव हाहाकार को तुम कुचल देना
स्वप्निल रातों…
Added by sharadindu mukerji on July 19, 2014 at 2:00am — 20 Comments
अचानक ही हो गयीं कुछ पंक्तियाँ....
बदरी के पहलू में
सूरज की अठखेली....
सूरज की साज़िश ने
लहरों की बंदिश से बूँद चुराकर,
प्रेम इबारत अम्बर पर लिख दी
सतरंगी पट ओढ़ाकर,
बूझ रही फिर भोर
प्रेम की नवल पहेली....
आतुर बदरी बेसुध चंचल
लटक मटक नभ मस्तक चूमे,
अंग-अंग सिहरन बिजली सी…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on July 18, 2014 at 7:30pm — 14 Comments
धूप, दीप, नैवेद बिन, आया तेरे द्वार
भाव-शब्द अर्पित करूँ, माता हो स्वीकार
उथला-छिछला ज्ञान यह, दंभ बढ़ाए रोज
कुंठाओं की अग्नि में, भस्म हुआ सब ओज
चलते-चलते हम कहाँ, पहुँच गए हैं आज
ऊसर सी धरती मिली, टूटे-बिखरे साज
मौन सभी संवाद हैं, शंकाएँ वाचाल
काई से भरने लगा, संबंधों का ताल
नयनों के संवाद पर, बढ़ा ह्रदय का नाद
अधरों पर अंकित हुआ, अधरों का अनुनाद
तेरे-मेरे प्रेम का, अजब रहा…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on July 17, 2014 at 9:45pm — 26 Comments
निराशा की ऊँची लहरों
और आशा के सपाट प्रवाह के बीच
मन हिचकोले खा रहा है
कभी निराशा अपने पाश में बाँध कर खींच ले जाये
कभी आशाएँ
मुझे ले जाकर किनारे पहुँचा दें
कभी सोचता हूँ
बह चलूँ लहरों के साथ
कभी लगे
बाहर आ जाऊँ इस गर्दिश से
ये किस मुकाम पर हूँ
ये कौन सा मोड़ है
पल-पल उठती रौशनी भी
भ्रमित कर दे कुछ देर को
कि रास्ता बदल लूँ
या चलता रहूँ
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by शिज्जु "शकूर" on July 17, 2014 at 1:02pm — 20 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मिलो गर ज़िन्दगी से तुम कोई फ़रियाद मत करना
बिठाना बैठना हँस लेना दिल नाशाद मत करना
रखो दिल काबू में पहली नज़र के प्यार में यारो
जमाना कहता खुद को कैस ओ फरहाद मत करना
किताबें मजहबी रहने दो इन अलमारियों में बंद
मिलो जो आदमी से पोथियों को याद मत करना
सियासत की फरेबी चाल में फंसकर ऐ लोगो तुम
मुहब्बत चैन अमन को तुम कभी बर्बाद मत करना
मैं उधड़े जख्मो की तुरपाई…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on July 16, 2014 at 11:00pm — 15 Comments
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