Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 11, 2017 at 1:00am — 8 Comments
कैसे कहूँ अब तुझसे कुछ कहा भी नहीं जाता,
तनहा ज़िंदगी में अब यूँ रहा भी नहीं जाता
चले थे जिस मोड़ तलक इस सफ़र में हम ,
रास्ता उस सफ़र का भुलाया भी नहीं जाता
उठता हैं मेरे दिल में तिरी यादों का तूफ़ाँ भी,
हादसा था जैसे ये भुलाया भी नहीं जाता
सुख गये यूँ अश्क़ भी यादों से तिरी,
ग़मों को लिये अब तो रोया भी नहीं जाता
तुम रहो कहीं भी मगर ये सच है ,
वजूद तिरा दिल से फिर मिटाया भी नहीं जाता
वो शख़्स जिसने मुझे अपना माना…
Added by santosh khirwadkar on August 10, 2017 at 8:30pm — 6 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 10, 2017 at 9:30am — 20 Comments
2122 1212 112/22
गर अँधेरा है तेरी महफिल में
हसरत ए रोशनी तो रख दिल में
खुद से बेहतर वो कैसे समझेगा ?
सारे झूठे हैं चश्म ए बातिल में
क़त्ल करने की ख़्वाहिशों के सिवा
और क्या ढूँढते हो क़ातिल में
बेबसी, दर्द और कुछ तड़पन
क्या ये काफी नहीं था बिस्मिल में ?
फ़िक्र क्या ? बाहरी जिया न मिले
रोशनी है अगर तेरे दिल में
कोई तो कोशिश ए नजात भी हो
अश्क़ बारी के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 10, 2017 at 8:30am — 30 Comments
Added by santosh khirwadkar on August 9, 2017 at 11:39pm — 4 Comments
एक कोयल कूकती है पास की अमराई में,
आजकल मैंने सुना है रात की गहराई में।
हो रहा था मेघ गर्जन साथ ही वृष्टि घनी,
क्या बुलाती है किसी को या हुई वो बावली?
फिर ये सोचा हो न मुश्किल की कहीं कोई घड़ी,
भीग शीतल नीर थर – थर काँपती हो वो पड़ी।
कुहू – कुहू सुनते हुए मैं मन ही मन गुनता रहा..
पक्षियाँ तो शाम ढलते नीड़ में खो जाती हैं,
घिरते तिमिर के साथ ही वो नींदमय हो जाती हैं।
तभी कौंधा मन, अरे ! ये धृष्टता दिखलाती है,
दुष्ट पंछी मधुर…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 9, 2017 at 8:32pm — 3 Comments
Added by surender insan on August 9, 2017 at 5:00pm — 16 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 9, 2017 at 4:30pm — 16 Comments
2122 1212 22
(१)
ये जो इंसान आज वाले हैं
कुछ अलग ही मिजाज वाले हैं
रास्तों पर अलग अलग चलते
एक ही ये समाज वाले हैं
दस्तख़त से बनें मिटें रिश्तें
कागजी ये रिवाज वाले हैं
रावणों की मदद करें गुपचुप
लोग ये रामराज वाले हैं
रोज खबरों में हो रहे उरियाँ
ये बड़े लोकलाज वाले हैं
मुंह छुपाते विदेश में…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 9, 2017 at 1:05pm — 29 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 9, 2017 at 12:28pm — 6 Comments
फिर आ गयी है रात
पूनम के बाद की
खिला हुआ चाँद
कह रहा है कुछ
क्या तुम सुन रहे हो ?
तारों से कर रहें हैं बातें
तन्हा बीत जाती हैं रातें
देखता है यह चाँद यूँही
हँसता होगा यह भी देख मुझको
क्या तुम सुन रहे हो ?
साथ चलने को कहा था
थामकर हाथ चल रहे थे
फिर क्या हुआ यकायक
कैसे गरज गए यह बादल
क्या तुम सुन रहे हो
चमक रही है बिजली
चाँद…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2017 at 10:00pm — 13 Comments
हो रहा कलरव श्यामा का
उठो देखो बाहर
सूर्य उठा रहा चादर
हो रही है भोर
नारंगी नभ से खिलता
बादलों को चीरता हुआ
कह रहा है हमसे
हो रही है भोर
पत्तों पर ओस शर्माती
देख सूर्य की किरणे
खुद को समेटती कहते हुए
हो रही है भोर
मिट्टी की सौंधी सी महक
कलियों का खिलना
धुप देख मुस्कुराना कहता है
हो रही है भोर
उठो छोडो बिस्तर अब…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2017 at 9:30pm — 6 Comments
तिरी नज़रों में ये बात नज़र आती है
मिरी याद तो तुझे आज भी आती है
ये चाहत का मामला है जनाब,
दिल की कशिश है,लौट आती है
छुपा लो लाख इसे तुम दिल में मगर,
बात दुनियाँ को भी नज़र आती है
दिल गिरफ़्त में है और क़ैद भी'संतोष'
चाहत तिरी वो ज़ंजीर नज़र आती है
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by santosh khirwadkar on August 8, 2017 at 8:00pm — 9 Comments
Added by Mohammed Arif on August 8, 2017 at 6:43pm — 13 Comments
क्षणिक सुख ...
कितने
दुखों से
भर दिया
बज़ुर्गों का दामन
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने
सैंकड़ों झुर्रियों में
छुपा दिया
बज़ुर्गों के सुख को
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने
मानवीय संवेदनाओं के
हर बंध अनुबंध
बिसरा डाले
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने
ममता की अनुभूति
जो भूले न
आज तक
उन्हें
कन्धों तक का
मोहताज़ बना दिया
वर्तमान के…
Added by Sushil Sarna on August 8, 2017 at 6:37pm — 6 Comments
16 मात्रा आधारित गीत (चोपाई छन्द आधारित )
*****
कोमल स्पंदन मन चिर उन्मन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन
.
किसलय पुंजित ह्रदय हुलसित
उत्कंठा इंद्रजाल पुलकित
नित भोर भये चिर कोकिल-रव
मधु कुंज कुंज गुंजित कलरव
.
रे गंध युक्त मसिमय अंजन
रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन
.
घनघोर घटा चितचोर विहग
नभ अंतःपुर द्युतिमान सुभग
अकलुष प्रदीप्त कोमल उज्ज्वल
तप नेह वेदना में प्रतिपल
.
रे स्वर्ण…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on August 8, 2017 at 4:30pm — 14 Comments
Added by पंकजोम " प्रेम " on August 8, 2017 at 4:30pm — 10 Comments
गहराई में ही जीवित रहता शीतल जल
सश्रम ही पाता तृषित मनुज वह नीर विमल ... ||
गंभीर ज्ञान ज्ञानी का बसता अंतः तल
आता समक्ष जब स्वागत में हों ध्वनि करतल ... ||
ज्ञान अधूरा हो या छिछला - उथला जल
दिखता सुदूर पर प्राप्य सहज, करता मन चंचल ... ||
.
- करीब (मौलिक व अप्रकाशित)
Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 8, 2017 at 3:00pm — 4 Comments
आज राखी बँध रहे थे, खूब राखी बँध रहे थे,
भाई भी सब सज रहे थे, पहन कुरते जँच रहे थे!
हीरे – मोती सोने – चाँदी, से सजे रेशम के धागे,…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 7, 2017 at 10:00pm — 8 Comments
Added by santosh khirwadkar on August 7, 2017 at 8:18pm — 10 Comments
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