लघुकथा- रहस्य
“ इसी व्यक्ति के साथ बापू गया था . यह कह रहा था कि हम खूब पैसे कमाएंगे . बापू ने भी कहा था कि समुद्र से खूब मछलियाँ पकडूँगा . फिर ढेर सारा पैसा ले कर आऊंगा.” कहते हुए मोहन ने फोटो इंस्पेक्टर को दिया, “ साहब ! मैं वापस समुद्र के किनारे गुब्बारे बेचने जा रहा हूँ. शायद बापू या ये व्यक्ति मिल जाए.” कहते हुए मोहन जाने लगा तो इंस्पेक्टर ने कहा, “ बेटा ! इसे देख ले. ये कौन है ?”
क्षतविक्षत फोटो में अपने बापू की कमीज पहचान कर मोहन के चीख निकल गई, “ ये तो मेरा बापू है…
ContinueAdded by Omprakash Kshatriya on August 9, 2015 at 8:00am — 6 Comments
Added by दिनेश कुमार on August 9, 2015 at 6:30am — 18 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 8, 2015 at 6:00pm — 3 Comments
Added by kanta roy on August 8, 2015 at 6:00pm — 7 Comments
रिमझिम सावन की फुहार आज मेरा भैय्या आएगा
आया तीजो का त्यौहार साथ मुझे लेके जाएगा
अम्बर पे बादल छाये
सखियों ने झूले पाए
भाभी ने गायी कजरी
बाबा जी घेवर लाए
कर लूँ अब मैं तनिक सिंगार आज मेरा भैया आएगा
आया तीजो का त्यौहार साथ मुझे लेके जाएगा
दीवार पे कागा बोले
यादों की खिड़की खोले
अम्मा ने संदेसा भेजा
सुनसुन मेरा मन डोले
मायके से आया तार आज मोरा भैया आएगा
आया तीजो का त्यौहार…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 8, 2015 at 11:52am — 6 Comments
Added by kanta roy on August 8, 2015 at 11:30am — 13 Comments
मित्रों के अवलोकनार्थ एवं अभिमत के लिए प्रस्तुत एक ताज़ा नवगीत
"मौलिक व अप्रकाशित" -जगदीश पंकज
थपथपाये हैं हवा ने द्वार मेरे
क्या किसी बदलाव के
संकेत हैं ये
फुसफुसाहट,
खिड़कियों के कान में भी
क्या कोई षड़यंत्र
पलता जा रहा है
या हमारी
शुद्ध निजता के हनन को
फिर नियोजित तंत्र
ढलता जा रहा है
मैं चकित गुमसुम गगन की बेबसी से
क्या किसी ठहराव के …
Added by JAGDISH PRASAD JEND PANKAJ on August 7, 2015 at 5:30pm — 9 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
गुनगुनाते हुए ज़िन्दगी की ग़ज़ल
मैं चला जा रहा राह अपनी बदल
हुस्न को देख दिल जो गया था मचल
आज उसको भी देखा है मैंने अटल
वो घने गेसू गुल से हसीं लव कहाँ
है मुकद्दर खिजाँ तो खिजाँ से बहल
उनके कूचे में मेरा जनाजा खड़ा
सोचता अब भी शायद वो जाए पिघल
शक्ल में गुल की ये मेरे अरमान हैं
नाजनी इस तरह तू न गुल को मसल
चैन मुझको मिला कब्र में लेटकर
शोरगुल भी नहीं न…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2015 at 2:52pm — 13 Comments
“रंजना ! ये मोबाइल छोड़ दे. चार रोटी बना. मुझे विद्यालयों में निरिक्षण पर जाना है. देर हो रही है.”
रंजना पहले तो ‘हुहाँ’ करती रही. फिर माँ पर चिल्ला पड़ी, “ मैं नहीं बनाऊँगी. मुझे आज प्रोजेक्ट बनाना है. उसी के लिए दोस्तों से चैट कर रही हूँ. ताकि मेरा काम हो जाए और मैं जल्दी कालेज जा सकू.”
तभी पापा बीच में आ गए, “ तुम बाद में लड़ना. पहले मुझे खाना दे दो.”
“क्यों ? आप का कहाँ जाना है ? कम से कम आप ही दो रोटी बना दो ?” माँ ने किचन में प्रवेश किया.
“हूँउ ! तुझे क्या…
ContinueAdded by Omprakash Kshatriya on August 7, 2015 at 7:30am — 14 Comments
2212 1221 2212 12
दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ,
इस ज़िन्दगी में तुझसे यही सिलसिला करूँ |
दिन भर शराब पी के हुआ,था मैं दरबदर,
अब ढूंढता हूँ चादर ग़मों की सिला करूँ |
नफरत थी जिन दिलों में, भुलाया नहीं मुझे,
दिल में बता खुदा, उनके, कैसे खिला करूँ |
अमन-ओ-अमां के साये ही जिनसे नसीब हो,
ऐसे चमन जमी दर ज़मीं काफिला करूँ |
तन्हा है सब सफ़र और तनहा हैं रास्ते,
अब सोचता हूँ तुझसे यहाँ ही मिला…
Added by Harash Mahajan on August 6, 2015 at 6:03pm — 13 Comments
आज किस तरह ज़िन्दगी खोई,
पास क्या दूर भी नहीं कोई.
एक तस्वीर दिल पे है चस्पा,
रूह जिसको लिपट-लिपट रोई.
रात भर बेकली रही मुझ पर,
और दुनिया सुकून से सोई.
फूल आंगन में अब न तुम ढूंढो,
फस्ल काँटों भरी अगर बोई.
वक़्त अपना कुछ इस तरह बीता,
हमनशीं हो गई गज़लगोई.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by इमरान खान on August 6, 2015 at 4:30pm — 7 Comments
कर सत्य को अंगीकार ....
आवरण से श्रृंगार किया
माया से किया प्यार
अन्तकाल संसार ने
सब कुछ लिया उतार
अद्भुत प्रकृति है जीव की
ये भटके बारम्बार
लौ लगाये न ईश से
पगला बिलखे सौ सौ बार
शीश झुकाये मन्दिर में
हो जैसे कोई मज़बूरी
अगरबत्ती भी यूँ जलाए
जैसे ईश पे करे उपकार
कपट कुण्ड में स्नान करे
और विकृत रखे विचार
कैसे मिलेगा जीव तुझे
उस पालनहार का प्यार
सत्य धर्म है,सत्य कर्म है
सत्य जीवन आधार
ईश स्वयं…
Added by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 1:13pm — 8 Comments
“आप सरकारी नौकरी के साथ समाज सेवा कैसे कर लेते है?”
“जब नौकरी से फ्री होता हूँ तो खाली समय का उपयोग कर लेता हूँ.”
“आपको झुग्गी-बस्ती में शिक्षा के प्रसार की प्रेरणा कहाँ से मिली?”
“हा हा हा... प्रेरणा व्रेरणा कुछ नहीं भाई.... स्लम एरिया के पास वाले सिग्नल पर बच्चों को सामान बेचते और भीख मांगते देखा, तो स्लम में चला गया... लोगों से बात की तो लगा कुछ करना होगा और असली काम तो वालेंटियर ही कर रहे है.”
“आपको सब पर्यावरण-मित्र कहते है क्योकिं आप इतने बड़े ओहदे पर है फिर…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 12:00pm — 22 Comments
बहर - 2212 1212 22 1212
वो भ्रम तुम्हारे प्यार सा बेहद हसीन था
सपनों के आसमान की मानो जमीन था
सारी थकान खींच ली गोदी में लेटकर
बच्चा वो गीत रूह का ताजातरीन था
हर खत में अपनी खैरियत, उसको दुआ लिखी
माँ यह कभी न लिख सकी, कुछ भी सही न था
मन, प्राण, आँख द्वार पर, बेकल बिछे रहे
कुनबा तमाम जुड़ गया, आया वही न था
अँजुरी मेरी बँधी रही और सारा रिस गया
वो प्यार रेत से कहीं ज्यादा महीन…
Added by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 10:00am — 20 Comments
ईमानदारी जरा चोटिल ही हुई थी कि मौके का फायदा उठा कुछ लोगों ने उसे निष्प्राण घोषित कर तुरत - फुरत में ठठरी पर कसने लगे । उन्हे डर था उसके वापस जिंदा हो गतिमान होने का ।
जिन चार कंधों पर उसकी अर्थीं उठाई जा रही थी उनमें सबसे आगे देश के कर्णधार थे उसके पीछे भ्रष्टाचार , देश के सफलतम व्यवसाई और शेयर दलाल थे ।
सबकी आँखें चमक रही थी । सबके मन में लड्डू फूट रहे थे कि पीछे रोती हुई जनता अचानक खुशी के मारे तालियाँ बजाने लगीं ।
तालियों की शोर पर काँधे देने वालों ने चौंक कर देखा तो…
Added by kanta roy on August 6, 2015 at 9:00am — 25 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
सब छोड़ छाड़ हम्द-ओ-सना में लगा रहा
आफ़त पड़ी जो सर प दुआ में लगा रहा
अब उससे नेकियों की तवक़्क़ो फ़ुज़ूल है
जो सारी उम्र जुर्म-ओ-सज़ा में लगा रहा
सीने में अपने झाँक के देखा नहीं कभी
हर सम्त वो तलाश-ए-ख़ुदा में लगा रहा
हिम्मत थी जिसमें ,छीन लिया बढ़ के अपना हक़
मजबूर था जो आह-ओ--बुका में लगा रहा
अच्छाई उसको छू के भी गुज़री नहीं कभी
उसका दिमाग़ सिर्फ़ ख़ता में लगा रहा
मैंने तो जान बूझ के धोया…
Added by Samar kabeer on August 5, 2015 at 11:30pm — 19 Comments
पहले तो रविन्द्र ने चाहा,कि न कर दूँ ,क्यूंकि दस बज चुके थे, और सर्दी भी बढ़ रही थी, पर एक साथ पाँच सवारियां देख कर उस ने फेरा लगाने का मन बना लिया । सुबह से कोई अच्छा फेरा भी तो नहीं लगा था । वह सवारियों को थ्रिविलर में बिठा बस स्टैंड से शहर के सुनसान एरिया की तरफ निकल पड़ा जो कभी रौनक भरा होता था, पर जब का हस्पताल को यहाँ से कहीं और शिफ्ट किया तब ज्यादातर दुकानदारों ने दुकानों को पक्के तौर पर ताले लगा दिए,और बाकी अब तक बंद हो चुकी थी ।
हिचकोले खाता थ्रिविलर चारों तरफ फैली…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on August 5, 2015 at 9:30pm — 4 Comments
Added by S.S Dipu on August 5, 2015 at 7:04pm — 2 Comments
कायर ( कहानी )
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रक्त दान -महा दान
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बढ़ते वजन से परेशान हैं, कैंसर के मरीज को देख -सुन कर भय होता है कि कहीं ये रोग आप को भी न लग जाए. हृदय रोग और हृदय आघात की संभावना कभी भी।
आप इन जोखिमों को कम कर सकते हैं यदि आप १८ से ६५ वर्ष की आयु के स्वस्थ वयस्क हैं। बस आपको करना है नियमित रक्त दान.
४५ कि.ग्राम से अधिक वजन वाले लोग तीन माह के अंतराल पर रक्त दान कर सकते हैं।
स्वेक्षिक रक्त दान से प्राप्त रक्त ही सबसे ज्यादा सुरक्षित रक्त होता है।…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 5, 2015 at 4:54pm — 4 Comments
चढ़ावा - लघुकथा
''दादू .... !''
''हूँ .... !''
''हम मंदिर में पैसे क्यों चढ़ाते हैं … ?''
''बेटे , हर आदमी को अपनी नेक कमाई से कुछ न कुछ अपनी श्रद्धानुसार प्रभु के चरणों में अर्पण करना चाहिए। ''
''लेकिन दादू , आप तो कहते हैं कि हमारे पास जो भी है तो प्रभु का दिया है … . । ''
''हाँ तो … । ''
''तो जब सब कुछ प्रभु ही देते हैं तो हम फिर उन्हें पैसे क्यों चढ़ाते हैं ?''
दादू निरुत्तर हो पोते का मुख देखने लगे।
सुशील सरना
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 5, 2015 at 3:54pm — 12 Comments
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