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September 2016 Blog Posts (189)

गीत ........अब हृदय में वेदनाओं का सृजन है |

अब हृदय में वेदना ही का सृजन है,

भीड़ में कहीं खो गया यह मेरा मन है ।



पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,

सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।



जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,

प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।



अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,

आदमी का विषधरों जैसा चलन है।



ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,

इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।



याद रहता है कहाँ, कोई किसी को,

हालात से है जूझता हर तन और मन है ।…



Continue

Added by Abha saxena Doonwi on September 17, 2016 at 10:00am — 9 Comments

एक तरही ग़ज़ल(समीक्षार्थ)

बह्र:1222 1222 1222 1222



नफ़स मुश्किल हुआ लेना नजारे रक्स करते हैं

छुड़ा कर आज दामन को सहारे रक्स करते हैं।



यकीं जिनपर मुझे सबसे ज़ियादा था हुआ करता

गिरा कर हौंसला मेरा वो'प्यारे रक्स करते हैं।



गवाही कौन देगा अब तुम्हारी बे गुनाही की

बिका ईमां गवाहों का वे' सारे रक्स करते हैं।



भुला आवाज को दिल की तमाशा देखते हैं सब

"सफीने डूब जाते हैं किनारे रक़्स करते हैं।"



मुहब्बत कर रहे देखो पराई से सभी यारो

भुला अपनी ही'भाषा को… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 16, 2016 at 11:30pm — 13 Comments

मुद्रा स्फीति --डॉo विजय शंकर

( नवीन मुद्रा के आगमन पर स्वागत सहित, अचानक प्रस्तुत )



कैसे गायब हो जाते हैं छोटे सिक्के ,

पाई , अधेला , धेला , दाम ,

छेदाम , पैसा , दो पैसा ,

इक्कनी , दुअन्नी , चवन्नी ,

गला कर उन्हें तांबे ,

पीतल में ढाल लेते हैं।

कहते हैं , उनकी खरीदने की

ताकत ख़तम हो जाती है ,

या उनकीं अपनी कीमत बढ़ जाती है ?

हमारी समझ घट जाती है ,

तभी तो वे पुराने सिक्के

चलन में आज मिलते नहीं ,

कहीं मिल जायें तो

सौ, दो सौ , हजार , दस हजार… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 11:10pm — 12 Comments

ग़ज़ल: इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,

2122. 2122. 2122. 212



इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,

देखकर सारे ज़माने की अदावत फिर गया,



टूटते हैं बेसबब जिस भी तरह पत्त्ती यहाँ,

वो नज़र से ख़ुद किसी के बेवजह ही गिर गया,



दर्द लेकर प्यार का ज़ख़्मी बना आशिक़ नया,

बन शराबी लड़खड़ाते उस तरफ़ से घर गया,



जानकर उसकी ख़ताओं की वजह,अहसास से,

आँख भरता हो दुखी का दिल मिरा बस भर गया,



लोग कहते थे उसे है साहसी कितना बड़ा,

प्यार के अंजाम के पहले निडर भी डर गया ।…



Continue

Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 16, 2016 at 11:00pm — 10 Comments

सृष्टि का सबसे मधुर फिर गीत हम गाते सनम-----ग़ज़ल, पंकज मिश्र

2122 2122 2122 212



काश तेरे नैन मेरी रूह पढ़ पाते सनम।

दर ब दर भटकाव से ठहराव पा जाते सनम।।



इक दफ़ा बस इक दफ़ा तुम मेरे मन में झाँकते।

देखकर मूरत स्वयं की मन्द मुस्काते सनम।।



धड़कनों के साथ अपनी धड़कनें गर जोड़ते।

इश्क़ का अमृत झमाझम तुमपे बरसाते सनम।।



हाथ मेरे थाम कर चुपचाप चलते दो कदम।

प्रीत का जिंदा नगर हम तुमको दिखलाते सनम।।



खुद से अब तक मिल न पाए हो तो बतलाऊँ तुम्हें।

लोग कहते शेर मेरे तुझसे मिलवाते… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 16, 2016 at 9:50pm — 13 Comments

पर्दा जो कभी रहा ही नहीं ( लघु - कथा ) - डॉo विजय शंकर

यह चार लाइनों की छोटी सी एक युग-युगीन लघु-कथा है।

एक ऐसे देश-राज्य की जिसमें कहीं कुछ भी परदे के पीछे नहीं रहा है , जो रहा है , सब परदे के सामने रहा है , गौर से देखें , सच में कहीं कभी कोई पर्दा रहा ही नहीं।

बस सबने अपनी-अपनी आँखों पर स्वयं पर्दा डाल रखा है।

व्यवस्था में सबसे ऊपर धृष्टराष्ट्र आसीन रहा है जो कुछ भी हो जाए , हर बात पर एक ही बात कहता है , "कोई मुझे भी तो बताओ , क्या हुआ , क्या हो रहा रहा है ? "

और उधर सीकरी से दूर , बहुत दूर ,प्रजा तानपूरा बजा कर सूरदास के पद… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 9:30pm — No Comments

विसर्जन--

"गणपति बप्पा मोरिया" की आवाज़ अबीर गुलाल और कानफाड़ू संगीत के बरसात के बीच गूंज रही थी, सड़क को निकलने वाले जुलुस ने पूरी तरह से जाम कर दिया था। किसी तरह बचते बचाते वो निकल रही थी कि एक गेंदे का फूल आकर छाती पर लगा और नज़र अनायास उस ट्रक की ओर चली गयी। भक्तों की भीड़ में दिख ही गया लखना, बज रहे संगीत पर झूम रहा था, या नशे में, समझना मुश्किल था। घृणा से एक जलती निगाह उसने उसकी ओर फेंकी और जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगी। पता नहीं मेडिकल स्टोर भी खुला होगा या नहीं इसी चिंता में वो परेशान थी कि लखना भी मिल…

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Added by विनय कुमार on September 16, 2016 at 3:31pm — 4 Comments

मैंने आँखों में देखी तेरी सूरत

तेरी आँखों में मैंने देखी अपनी सूरत

तब से भूला जग में जीने की चाहत ॥

तेरी भोली मूरत का मैं पुजारी हो गया

तेरा दीवाना, परवाना मस्ताना हो गया

गलियों में तेरे घूमता आवारा हो गया

मैं सभी के नजरों में बदनाम हो गया ।

तेरी आँखों में मैंने देखी अपनी, सूरत

तब से भूला जग में जीने की चाहत ॥

भूलकर मैं सुध बुध मस्ताना हो गया

पतंगे की तरह मैं तेरा दीवाना हो गया  

तेरे बिन मैं तो अब बेसहारा हो गया   

सुबह शाम तेरी राह देखता रह गया…

Continue

Added by Ram Ashery on September 16, 2016 at 3:30pm — 1 Comment

भावना के ज्वार से खुद को निकाल ले----ग़ज़ल (पंकज मिश्र)

2212 1212 2212 12
मन की फिज़ा बिगाड़ के, बरसात रोकते?
बकवास से ख़याल तो, अब मत ही पालिये

जब की सुनामी हो उठी, धड़कन के शह्र में
वाज़िब है दिल के घाट से, कुछ फासला रहे

सुनिये तो साहिबान ये, सर्कस अजीब है
सपनों में विष मिलाते हैं अपने ही काट के

मरहम लिए हक़ीम तो मिलते तमाम हैं
ये और बात उसमें नमक मिर्च डाल के

क्या रोग पाल बैठा है, पंकज इलाज़ कर
तू भावना के ज्वार से खुद को निकाल ले

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 16, 2016 at 9:54am — 6 Comments

रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ (ग़ज़ल)

बह्र : २१२२ २१२२ २१२

 

रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ

पर न रंगों की दुकाँ हैं तितलियाँ

 

गुनगुनाता है चमन इनके किये

फूल पत्तों की जुबाँ हैं तितलियाँ

 

पंख देखे, रंग देखे, और? बस!

आपने देखी कहाँ हैं तितलियाँ

 

दिल के बच्चे को ज़रा समझाइए

आने वाले कल की माँ हैं तितलियाँ

 

बंद कर आँखों को क्षण भर देखिए

रोशनी का कारवाँ हैं तितलियाँ

 ------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 16, 2016 at 1:59am — 12 Comments

चूल्हा

चूल्हे पर तपता

पतीला

आग की बेचैन

लपटें

माँ की कुछ बेबस

साँसे

बच्चे की खुली

किताबें

मन में आस की

तरंगे

पतिले के उबलते

पानी को

इंतज़ार है चावल

के कुछ बिन छने

दानो का

लगता नही की

शराबी

पिताजी

घर लौटेंगे

बिन झगड़ा कर

माँ से

बिन चादर

ही सो लेंगे

लगता नहीं

की दादी बेटे

की तरफ़दारी

से बच पाएँगी

दारू को भी

माँ की

वजह बतायेंगी

चूल्हा फड़फड़ाके

ख़ुद…

Continue

Added by S.S Dipu on September 16, 2016 at 12:30am — 6 Comments

गजल(काश मुझको....)

बहर-रमल मुसद्दस सामिन

2122 2122 2122

+++

काश मुझको भी मिला उस्ताद होता!

शाइरी का इक जहाँ आबाद होता।1



हर्फ अपने बात हर दिल की पिरोते,

तालियाँ पिटतीं बहुत इरशाद होता।2



राबिते ढ़ल काफिये मिलते जमीं से

हर बहर में प्यार का संवाद होता।3



फिर कहाँ कोई भटकता रूक्न होता,

नित नया इक शेर तब ईजाद होता।4



रूप का डंका बजाते फिर रहे सब,

हुश्न हर ताबीर से आजाद होता।5



मानती अपनी गजल कविता सुहाती,

फिर नहीं मन में… Continue

Added by Manan Kumar singh on September 15, 2016 at 8:30pm — 9 Comments

परीक्षा सिर पर (लघुकथा) / (हिन्दी पखवाड़े पर) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

कक्षा दसवीं के छात्रों को कुछ अंग्रेज़ी शब्दों के बनने का इतिहास और उनके सही मानक उच्चारण बताते हुए अंग्रेज़ी के शिक्षक कहने लगे- "इसलिए मैं कहता हूँ कि कोई दम नहीं है अंग्रेज़ी भाषा में, विश्व की दूसरी भाषाओं के शब्दों से कभी उलझती, कभी संवरती सी बड़ी ही वाहियात भाषा है ये!" भावावेश में इतना कहकर वे छात्रों को अंग्रेज़ी के स्वर व व्यञ्जनों, उनसे शब्द-निर्माण और सही उच्चारण आदि का विस्तृत ज्ञान देते हुए छात्रों से सही उच्चारण का अभ्यास कराने लगे। छात्र असफल रहे, तो अपना सिर पीटते हुए छात्रों से… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 15, 2016 at 8:21pm — 3 Comments

आज अपनों से हुआ अब सामना है (एक प्रयास ) /अलका चंगा

2122 2122 2122



जो हुई पाहुन कभी अपने हि घर में

आज अपनों से हुआ अब सामना है

हर जनम का साथ चाहा है दिलों ने

तीन लफ़्ज़ों को नहीं अब थामना है

हाथ जो भरते है उसकी मांग सूनी

उम्र भर का साथ ही अब कामना है



डोलियां उठती है जो शहनाइयों में

अर्थियां उनकी सजाना हाँ... मना है

चाहतें अपनी तभी तक हैं अधूरी

इश्क में अश्कों भरा दिल गर सना है

 "मौलिक व…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 7:30pm — 11 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
यार, ठीक हूँ, सब अच्छा है ! (नवगीत) // --सौरभ

लोगों से अब मिलते-जुलते

अनायास ही कह देता हूँ--

यार, ठीक हूँ..

सब अच्छा है !..

 

किससे अब क्या कहना-सुनना

कौन सगा जो मन से खुलना

सबके इंगित तो तिर्यक हैं

मतलब फिर क्या मिलना-जुलना

गौरइया क्या साथ निभाये

मर्कट-भाव लिए अपने हैं

भाव-शून्य-सी घड़ी हुआ मन

क्यों फिर करनी किनसे तुलना

 

कौन समझने आता किसकी

हर अगला तो ऐंठ रहा है

रात हादसे-अंदेसे में--

गुजरे, या सब

यदृच्छा है !

 

आँखों में कल…

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Added by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 5:30pm — 23 Comments

दोहे (एक प्रयास ) /अलका चंगा

छोटे मुँह की बात भी,ऊँची राह सुझाय ।
सीख कहीं से भी मिले, सीखो ध्यान लगाय ।।

औरन को अपना कहें , सुनते उनकी बात ।
अपनों की सुध है नहीं, उनसे करते घात।।

ऐसा नाम कमाइए, मन के खोले द्धार ।
अपनों की सुध लीजिये, बढे प्रेम व्यव्हार ।।

खुशियों की खामोशियां , खा जाती सुख चैन।
यादें ना हो साथ तो ,दिन बीते ना रैन ।।

.

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 4:00pm — 6 Comments

सिंदूरी हो गयी ... (क्षणिकाएं )....

सिंदूरी हो गयी ... (क्षणिकाएं )....

१.

ठहर जाती है

ज़िदंगी

जब

लंबी हो जाती है

अपने से

अपनी

परछाईं

...... .... .... .... ....

२.

एक सिंदूर

क्या रूठा

ज़िन्दगी

बेनूरी हो गयी

इक नज़र

क्या बन्द हुई

हर नज़र

सिंदूरी हो गयी

..... ..... ..... ..... ..... ....

३.

ज़ख्म

भर जाते हैं

समय के साथ

शेष

रह जाते हैं

अवशेष

घरौंदों में

स्मृतियों के

इक अनबोली

टीस के…

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Added by Sushil Sarna on September 15, 2016 at 3:55pm — 2 Comments

कुण्डलिया- हिंदी दिवस के सम्बन्ध में

हिन्दी तो अनमोल है, मीठी सुगढ़ सुजान।

देवतुल्य पूजन करो, मात-पिता सम मान।।

मात-पिता सम मान, करो इसकी सब सेवा।

मिले मधुर परिणाम, कि जैसे फल औ मेवा।।

कहे पवन ये बात, सुहागन की ये बिन्दी।

इतराता साहित्य, अगर भाषा हो हिन्दी।१।

 

दुर्दिन जो हैं दिख रहे, इनके कारण कौन।

सबकी मति है हर गई, सब ठाढ़े हैं मौन।।

सब ठाढ़े हैं मौन, बांध हाथों को अपने।

चमत्कार की आस, देखते दिन में सपने।।

सुनो पवन की बात, प्रीत ना होती उर बिन।

होती सच्ची चाह, न…

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Added by डॉ पवन मिश्र on September 14, 2016 at 9:30pm — 13 Comments

हिंदी

हिंदी सभ्यता मूल पुरातन भाषा है

संस्कृति के जीवित रहने की आशा है

एक चिरंतन अभिव्यक्ति का साधन है

भारत माता का अविरल आराधन है

हिंदी पावनता का एक उदाहरण है

मातृभूमि की अखंडता का कारण है

उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम तक

सारी बोलीं हिंदी माता की चारण हैं

हिंदी सरस्वती, दुर्गा माँ काली है

संस्कृति की पोषक माँ एक निराली है

पूरब में उगते सूरज की आभा है

पश्चिम में छिपते सूरज की लाली है

जन मन की अभिव्यक्ति की…

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Added by Aditya Kumar on September 14, 2016 at 8:51pm — 11 Comments

दोहे(प्रेम पियूष)22

प्रेम सुमन का है गहन ,हवा चल रही मंद।
मैं अलि सम पीता फिरूँ,मधुर-मधुर मकरंद।।

तुम बिन किससे हो प्रिये,अपने दिल की बात।
नहीं बीतता दिवस अब,नहीं बितती रात।।

अधरों पर फिर से खिली,मृदुल मौन मुस्कान।
सच कहता हूँ हे प्रिये,लोगी मेरी जान।

ढाई आखर प्रेम का,लिए हाथ में हाथ।
जीवन भर चलना प्रिये,हरदम मेरे साथ।।

खुद को मीरा कह रही,मुझको माखनचोर।
दिखता मैं उसको सदा,कण कण में चहु ओर।।

-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on September 14, 2016 at 8:14pm — 10 Comments

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