अब हृदय में वेदना ही का सृजन है,
भीड़ में कहीं खो गया यह मेरा मन है ।
पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।
जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,
प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।
अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,
आदमी का विषधरों जैसा चलन है।
ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,
इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।
याद रहता है कहाँ, कोई किसी को,
हालात से है जूझता हर तन और मन है ।…
Added by Abha saxena Doonwi on September 17, 2016 at 10:00am — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 16, 2016 at 11:30pm — 13 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 11:10pm — 12 Comments
2122. 2122. 2122. 212
इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,
देखकर सारे ज़माने की अदावत फिर गया,
टूटते हैं बेसबब जिस भी तरह पत्त्ती यहाँ,
वो नज़र से ख़ुद किसी के बेवजह ही गिर गया,
दर्द लेकर प्यार का ज़ख़्मी बना आशिक़ नया,
बन शराबी लड़खड़ाते उस तरफ़ से घर गया,
जानकर उसकी ख़ताओं की वजह,अहसास से,
आँख भरता हो दुखी का दिल मिरा बस भर गया,
लोग कहते थे उसे है साहसी कितना बड़ा,
प्यार के अंजाम के पहले निडर भी डर गया ।…
Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 16, 2016 at 11:00pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 16, 2016 at 9:50pm — 13 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 9:30pm — No Comments
"गणपति बप्पा मोरिया" की आवाज़ अबीर गुलाल और कानफाड़ू संगीत के बरसात के बीच गूंज रही थी, सड़क को निकलने वाले जुलुस ने पूरी तरह से जाम कर दिया था। किसी तरह बचते बचाते वो निकल रही थी कि एक गेंदे का फूल आकर छाती पर लगा और नज़र अनायास उस ट्रक की ओर चली गयी। भक्तों की भीड़ में दिख ही गया लखना, बज रहे संगीत पर झूम रहा था, या नशे में, समझना मुश्किल था। घृणा से एक जलती निगाह उसने उसकी ओर फेंकी और जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगी। पता नहीं मेडिकल स्टोर भी खुला होगा या नहीं इसी चिंता में वो परेशान थी कि लखना भी मिल…
ContinueAdded by विनय कुमार on September 16, 2016 at 3:31pm — 4 Comments
तेरी आँखों में मैंने देखी अपनी सूरत
तब से भूला जग में जीने की चाहत ॥
तेरी भोली मूरत का मैं पुजारी हो गया
तेरा दीवाना, परवाना मस्ताना हो गया
गलियों में तेरे घूमता आवारा हो गया
मैं सभी के नजरों में बदनाम हो गया ।
तेरी आँखों में मैंने देखी अपनी, सूरत
तब से भूला जग में जीने की चाहत ॥
भूलकर मैं सुध बुध मस्ताना हो गया
पतंगे की तरह मैं तेरा दीवाना हो गया
तेरे बिन मैं तो अब बेसहारा हो गया
सुबह शाम तेरी राह देखता रह गया…
ContinueAdded by Ram Ashery on September 16, 2016 at 3:30pm — 1 Comment
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 16, 2016 at 9:54am — 6 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२
रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ
पर न रंगों की दुकाँ हैं तितलियाँ
गुनगुनाता है चमन इनके किये
फूल पत्तों की जुबाँ हैं तितलियाँ
पंख देखे, रंग देखे, और? बस!
आपने देखी कहाँ हैं तितलियाँ
दिल के बच्चे को ज़रा समझाइए
आने वाले कल की माँ हैं तितलियाँ
बंद कर आँखों को क्षण भर देखिए
रोशनी का कारवाँ हैं तितलियाँ
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 16, 2016 at 1:59am — 12 Comments
चूल्हे पर तपता
पतीला
आग की बेचैन
लपटें
माँ की कुछ बेबस
साँसे
बच्चे की खुली
किताबें
मन में आस की
तरंगे
पतिले के उबलते
पानी को
इंतज़ार है चावल
के कुछ बिन छने
दानो का
लगता नही की
शराबी
पिताजी
घर लौटेंगे
बिन झगड़ा कर
माँ से
बिन चादर
ही सो लेंगे
लगता नहीं
की दादी बेटे
की तरफ़दारी
से बच पाएँगी
दारू को भी
माँ की
वजह बतायेंगी
चूल्हा फड़फड़ाके
ख़ुद…
Added by S.S Dipu on September 16, 2016 at 12:30am — 6 Comments
Added by Manan Kumar singh on September 15, 2016 at 8:30pm — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 15, 2016 at 8:21pm — 3 Comments
2122 2122 2122
जो हुई पाहुन कभी अपने हि घर में
आज अपनों से हुआ अब सामना है
हर जनम का साथ चाहा है दिलों ने
तीन लफ़्ज़ों को नहीं अब थामना है
हाथ जो भरते है उसकी मांग सूनी
उम्र भर का साथ ही अब कामना है
डोलियां उठती है जो शहनाइयों में
अर्थियां उनकी सजाना हाँ... मना है
चाहतें अपनी तभी तक हैं अधूरी
इश्क में अश्कों भरा दिल गर सना है
"मौलिक व…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 7:30pm — 11 Comments
लोगों से अब मिलते-जुलते
अनायास ही कह देता हूँ--
यार, ठीक हूँ..
सब अच्छा है !..
किससे अब क्या कहना-सुनना
कौन सगा जो मन से खुलना
सबके इंगित तो तिर्यक हैं
मतलब फिर क्या मिलना-जुलना
गौरइया क्या साथ निभाये
मर्कट-भाव लिए अपने हैं
भाव-शून्य-सी घड़ी हुआ मन
क्यों फिर करनी किनसे तुलना
कौन समझने आता किसकी
हर अगला तो ऐंठ रहा है
रात हादसे-अंदेसे में--
गुजरे, या सब
यदृच्छा है !
आँखों में कल…
Added by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 5:30pm — 23 Comments
छोटे मुँह की बात भी,ऊँची राह सुझाय ।
सीख कहीं से भी मिले, सीखो ध्यान लगाय ।।
औरन को अपना कहें , सुनते उनकी बात ।
अपनों की सुध है नहीं, उनसे करते घात।।
ऐसा नाम कमाइए, मन के खोले द्धार ।
अपनों की सुध लीजिये, बढे प्रेम व्यव्हार ।।
खुशियों की खामोशियां , खा जाती सुख चैन।
यादें ना हो साथ तो ,दिन बीते ना रैन ।।
.
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 4:00pm — 6 Comments
सिंदूरी हो गयी ... (क्षणिकाएं )....
१.
ठहर जाती है
ज़िदंगी
जब
लंबी हो जाती है
अपने से
अपनी
परछाईं
...... .... .... .... ....
२.
एक सिंदूर
क्या रूठा
ज़िन्दगी
बेनूरी हो गयी
इक नज़र
क्या बन्द हुई
हर नज़र
सिंदूरी हो गयी
..... ..... ..... ..... ..... ....
३.
ज़ख्म
भर जाते हैं
समय के साथ
शेष
रह जाते हैं
अवशेष
घरौंदों में
स्मृतियों के
इक अनबोली
टीस के…
Added by Sushil Sarna on September 15, 2016 at 3:55pm — 2 Comments
हिन्दी तो अनमोल है, मीठी सुगढ़ सुजान।
देवतुल्य पूजन करो, मात-पिता सम मान।।
मात-पिता सम मान, करो इसकी सब सेवा।
मिले मधुर परिणाम, कि जैसे फल औ मेवा।।
कहे पवन ये बात, सुहागन की ये बिन्दी।
इतराता साहित्य, अगर भाषा हो हिन्दी।१।
दुर्दिन जो हैं दिख रहे, इनके कारण कौन।
सबकी मति है हर गई, सब ठाढ़े हैं मौन।।
सब ठाढ़े हैं मौन, बांध हाथों को अपने।
चमत्कार की आस, देखते दिन में सपने।।
सुनो पवन की बात, प्रीत ना होती उर बिन।
होती सच्ची चाह, न…
Added by डॉ पवन मिश्र on September 14, 2016 at 9:30pm — 13 Comments
हिंदी सभ्यता मूल पुरातन भाषा है
संस्कृति के जीवित रहने की आशा है
एक चिरंतन अभिव्यक्ति का साधन है
भारत माता का अविरल आराधन है
हिंदी पावनता का एक उदाहरण है
मातृभूमि की अखंडता का कारण है
उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम तक
सारी बोलीं हिंदी माता की चारण हैं
हिंदी सरस्वती, दुर्गा माँ काली है
संस्कृति की पोषक माँ एक निराली है
पूरब में उगते सूरज की आभा है
पश्चिम में छिपते सूरज की लाली है
जन मन की अभिव्यक्ति की…
ContinueAdded by Aditya Kumar on September 14, 2016 at 8:51pm — 11 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 14, 2016 at 8:14pm — 10 Comments
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