For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

October 2013 Blog Posts (275)

बधाई (लघु कथा )

सेमीनार में “कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न” विषय पर अपना भाषण देकर जब प्रिंसीपल साहिब स्टेज से उतरे तो सभी ओर तालियों की गड़गड़ाहट व वाहवाही गूंज रही थी,  सभी लोग बारी-बारी प्रिंसीपल साहिब को बधाईयां दे रहे थे। इसी क्रम में जब एक जूनियर अध्यापिका ने प्रिंसीपल साहिब को बधाई दी तो उन्हे लगा जैसे किसी ने सरे-बाजार उन्हे नंगा कर दिया हो।

- मौलिक व अप्रकाशित

Added by Ravi Prabhakar on October 3, 2013 at 4:00pm — 34 Comments

ग़ज़ल - कुर्बतों की बात आखिर क्यों करें

2122 2122. 2122. 212



खो गई है प्यार की पतवार लगता है यही

नाव अपनी पास ही मझधार लगता है यही



कुर्बतों की बात आखिर क्यों करें हम बोलना

कर रहे हैं मौत का व्यापार लगता है यही



रोज ही गढ़ते कहानी बारहा बढ़ते कदम

दिख गया कोई नया बाजार लगता है यही



मौत का मंजर कहीं रस्ते न आ जाए यहाँ

देखकर तैयारियाँ खूँखार लगता है यही



जुल्मतों नें घेर ली है राह चारो ओर से

हाथ में है सो गई तलवार लगता है यही



जीत का आलम कभी दीदार था… Continue

Added by Poonam Shukla on October 3, 2013 at 3:30pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
समझौता (लघु कथा )

"देखो सुशीला ये रूल में नहीं है मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम दुबारा शादी कर चुकी हो फिर कैसे अपने मरहूम पति की पेंशन ले सकती हो मैं अभी नया आया हूँ ,जैसे चलता आया है सब वैसे  ही नहीं चलेगा; मैं इस मामले में बहुत सख्त हूँ"  बड़े बाबू   की फटकार सुनते ही सुशीला की आँखे भर आई हाथ जोड़ कर बोली "साहब मेरे दो बच्चों पर रहम खाइए आप किसी को कुछ मत कहिये बड़े साहब को पता चलेगा तो" !!!  और वो फफक कर रो पड़ी।…

Continue

Added by rajesh kumari on October 3, 2013 at 11:00am — 39 Comments

खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं





1 2 2 2    1 2 2 2    1 2 2 2    1 2 2 2



हुए रुखसत दिले -नादां  की ही  कुछ सिसकियाँ भी थी

खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं



लहर तडपी थी हर इक याद पे मचला भी था साहिल

ज़माने की वही रंजिश में डूबी किश्तियाँ  भी थीं



बिखरती वो घड़ी बीती न जाने कितनी मुश्किल से

दबी ही थी जो सीने में क़सक की बिजलियाँ भी थीं



कभी कहते थे वो भी उम्र भर यूँ साथ चलने को

चलीं हैं साथ जो अब तक वही गमगीनियाँ भी थीं



भुलाकर यूँ न जी पायेंगे गुजरे…

Continue

Added by sanju shabdita on October 3, 2013 at 10:26am — 23 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : गिरगिट (गणेश जी बागी)

ल राज्य में आम चुनाव के परिणाम का दिन था लोटन दास 'चम्मच छाप' पार्टी का पक्का समर्थक था, 'चम्मच छाप" बिल्ला लगाए, झंडा और गुलाल लिए वो और उसके साथी मतगणना स्थल पर सुबह से मौजूद थें, उसकी पार्टी को शुरूआती बढ़त मिलने लगी, लोटन दास और उसके साथी पूरे उमंग में नारे लगा-लगा कर गुलाल उड़ाते हुए नाच रहे थे । 

किन्तु यह क्या ! दोपहर बाद 'थाली छाप' पार्टी ने बढ़त बना ली और अंततः…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 3, 2013 at 9:00am — 30 Comments

!!! काम अनंग समान हुए !!!

!!! काम अनंग समान हुए !!!

दुर्मिल सवैया ... आठ सगण यथा-

112 112 112 112 112 112 112 112

कलिकाल अकाल समाज ग्रसे, मन आकुल दीप पतंग हुए।

नित मानव दंश करे जग को, रति-काम समान दबंग हुए।।

घर बाहर ताक रहे वन में, जिय चोर उफान करे तन में।

अति हीन मलीन विचार धरे, निज मीत सुप्रीति छले छन में।।1

जग घोर अनर्थ अकारण ही, नित रारि-प्रलाप सहालग है।

कब? कौन? कथा सुविचार करे, अपलच्छन कर्म कुमारग है।।

जब धर्म सुनीति डिगे जग में, अवतार तभी जग…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 3, 2013 at 7:30am — 25 Comments

हाइकु/ आम आदमी

१.

टेढ़ी मचिया

टिमटिमाता दिया

टूटी खटिया.

 

२.

वर्षा की बूँदें

रिसती हुई छत

गीली है फर्श.

 

३.

छीजती आस

बिखरते सपने

टूटा साहस.

 

४.

छोटी सी जेब

बढती महंगाई

भूखा है पेट.

 

५.

बूढ़ा छप्पर

दरकती दीवार

खंडित द्वार.

 

६.

ठंडा है चूल्हा

अस्त होता सूरज

छाया कोहरा. 

     - बृजेश…

Continue

Added by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 11:30pm — 26 Comments

!!! एक 'बापू' फिर बुला मां शारदे !!!

!!! एक 'बापू फिर बुला मां शारदे !!!

बह्र-2122  2122  212

प्यार जीवन में बढ़ा मां शारदे।

दर्द मुफलिस का घटा मां शारदे।।

कंट के रस्ते भी फूलों से लगे,

राम का वनवास गा मां शारदे।

भील-शोषित का यहां उध्दार हो,

एक 'बापू' फिर बुला मां शारदे।

धर्म का रथ आस्मां में जा रहा,

गर्त में धरती उठा मां शारदे।

आततायी रोज बढ़ते जा रहे,

फिर शिवा-राणा बना मां शारदे।

लेखनी का रंग गहरा हो…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 2, 2013 at 10:30pm — 21 Comments

नज्म ...........मुलाक़ात अधूरी है

              १

ना जाओ अभी कि मुलाक़ात अधूरी है !

तेरे – मेरे मिलन की हर बात अधूरी है !

 जाने क्यों चल दिए तुम दामन छुडाकर!

शबनमी आँखों से लाज के मोती गिराकर !

पुरसुकूं हुस्न की एक झलक दिखाकर !

अभी नही बुझी आँखों की प्यास अधूरी है !

ना जाओ अभी कि मुलाक़ात अधूरी है !

तेरे – मेरे मिलन की हर बात अधूरी है !

               २

काली बदलियों का आँखों में काजल लगाकर !

कांच के पैमाने में मय का जाम थमाकर !

रुखसारो पे…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 2, 2013 at 8:07pm — 13 Comments

कवित्त (रूपसी)

रूपसी

सुंदर, सकल काया, से सभी के ह्रदय में,

अनुकूल जोश भर, जाती है वो रूपसी,

नयन उचारें जब, मधु से भी मीठे बोल,

तब मदहोश कर, जाती है वो रूपसी,

मन है पवित्र ऐसे, गंगा का हो जल जैसे,…

Continue

Added by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 8:00pm — 24 Comments

रामभरोसे - (रवि प्रकाश)

थोथे सपने
उथली नींदें
स्वप्नलोक भी
रीता है।

सारा जीवन
कुरुक्षेत्र है
भूख हमारी
गीता है।

अट्टहास कर
रावण नाचे
बंधन में फिर
सीता है।

किसने सागर
पी डाला है
किसने अंबर
जीता है।

हम क्या जानें
वक़्त हमारा
रामभरोसे
बीता है।

मौलिक व अप्रकाशित।

Added by Ravi Prakash on October 2, 2013 at 6:00pm — 26 Comments

ग़ज़ल : सच वो थोड़ा सा कहता है

बह्र : मुस्तफ्फैलुन मुस्तफ्फैलुन

----

सच वो थोड़ा सा कहता है

बाकी सब अच्छा कहता है

 

दंगे ऐसे करवाता वो

काशी को मक्का कहता है

 

दौरे में जलते घर देखे

दफ़्तर में हुक्का कहता है

 

कर्मों को माया कहता वो

विधियों को पूजा कहता है

 

जबसे खून चखा है उसने

इंसाँ को मुर्गा कहता है

 

खेल रहा वो कीचड़ कीचड़

उसको ही चर्चा कहता है

 

चलता है जो खुद सर के बल

वो…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 2, 2013 at 3:23pm — 18 Comments

उत्थान ----------कविता

दीप बन अँधेरी राहो पे जलने लगा हूँ !

धवल चंद्रमा सा चमकने लगा हूँ !

चीर  कर सीना निशा का  ,

जग के तम को हरने लगा हूँ !

ना दे सहारे को अब कोई बैसाखी !

खुद के पैरो पे जो चलने लगा हूँ !

लडखडाहट का दौर गुजर चुका है !

अब तो मैं सँभलने लगा हूँ !

धो चुका हूँ आँचल के दाग सारे !

फूलों सा अब महकने लगा हूँ !

बंदिशों के पिंजरे तोड़ सारे  !

मुक्त परिंदे सा चहकने लगा हूँ !

जला कर इर्ष्या और कपट को !

ज्वालामुखी सा…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 2, 2013 at 2:30pm — 17 Comments

तान्या : महसूस किया तुमको

इन मौन चट्टानों के सामने खड़ा

यह सोचता हूँ ,

कितनी कठोर हैं ये /

जितनी कठोर लगती हैं

क्या उतनी ही?

या कहीं ज्यादा ?

क्या भेद सकेगा कोई इनको?

और फिर मैं देखता हूँ

आकाश की ओर /

बदली छाई है ,

धूप का कतरा नहीं है ।

और फिर क्या देखता हूँ

तोड़ कर प्रस्तर कवच को ,

मोतियों सा झर रहा है ,

दुधिया झरना ।

भूल जाता हूँ मैं 

कि

कितने कठोर हैं ये पाषाण खंड ,

कि

मैं इन्हें भेद नहीं…

Continue

Added by ARVIND BHATNAGAR on October 2, 2013 at 12:30pm — 22 Comments

कुण्डलियाँ

जीवन में पहली बार कुण्डलियाँ लिखने का प्रयास किया है. आप सबका मार्गदर्शन प्रार्थनीय है.

अम्बे तेरी वंदना, करता हूँ दिन-रात

मिल जाए मुझको जगह, चरणों में हे मात

चरणों में हे मात, सदा तेरे गुण गाऊँ

चरण-कमल-रज मात, नित्य ही शीश लगाऊँ

अर्पित हैं मन-प्राण, दया करिए जगदम्बे

शब्दों को दो अर्थ, मात मेरी हे अम्बे

.

- बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 11:30am — 32 Comments

अध्यादेश

शरीर पर बेदाग पोशाक, स्वच्छ जेकेट, सौम्य पगड़ी एवं चेहरे पर विवशता, झुंझलाहट, उदासी और आक्रोश के मिले जुले भाव लिए वे गाड़ी से उतरे... ससम्मान पुकारती अनेक आवाजों को अनसुना कर वे तेजी से समाधि स्थल की ओर बढ़ गए... फिर शायद कुछ सोच अचानक रुके, मुड़े और चेहरे पर स्थापित विभिन्न भावों की सत्ता के ऊपर मुस्कुराहट का आवरण डालने का लगभग सफल प्रयास करते हुये धीमे से बोले- “मैं जानता हूँ, जो आप पूछना चाहते हैं... देखिये, आप सबको, देश को यह समझना चाहिए... और समझना होगा कि ‘गांधी’ जी के…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on October 2, 2013 at 9:08am — 25 Comments

बड़े साहब की गाँधी जयंती (कविता)- अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

बड़े साहब थे बड़े मूड में, भृत्य भेजकर मुझे बुलाये।                                                                                               

छुट्टी का दिन व्यर्थ न जाये, आओ इसे रंगीन बनायें॥                                                                                                          

आज के दिन जो मिले नहीं, उस चीज का नाम बताये।                                                                                            

और बोले कहीं से जुगाड़ करो, फिर…

Continue

Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 2, 2013 at 12:30am — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
एक तरही ग़ज़ल

अकीदत का करो रौशन चिरागाँ काम से पहले

खुदा को याद कर लेना कभी आलाम से पहले                     आलाम =तकलीफों

 

तुम्हारे दम से कायम ज़िन्दगी का है निशां यारब

झुके सजदे में सर मेरा किसी ईनाम से पहले

 

छुपा आगोश में माँ हमपे ममता की करे बारिश

हमें करुणा की ठण्डक दे कभी आराम से पहले



दुआओं की तेरी तासीर इतनी फ़ैज़ इतना माँ                        तासीर =प्रभाव, फ़ैज़= अनुकम्पा

महक जायें मेरी ये रहगुज़र हर गाम से…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2013 at 11:53pm — 14 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नील सागर .................डॉ० प्राची

संवेदनाओं के 

अंतर गुन्जन पर 

भाव लहरियों का 

निःशब्दित नृत्य..

इस ओर से उस छोर 

उस छोर से इस ओर

विलयित तटबन्ध..

लहर लहर मन 

आनंदित 'नील सागर'

मौलिक और अप्रकाशित 

Added by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 9:00pm — 54 Comments

दोहा -६ (आस -पास)

गाँव बसे कैसे भला ,करते बंदरबांट !

कम्बल तो देते मगर ,लूट लिये सब खाट !!१

हंस देखता रह गया ,बगुले के सर ताज !

गीदड़ अब राजा बना ,गीदड़ सिंह समाज !!२

आदि अंत सब हैं वही ,उनका ही संसार !

वो मिटटी के तन गढ़े ,कितने कुशल कुम्हार !!३

धन की चंचल चाल का ,फैला है भ्रमजाल !

जो पाते वो भी विकल ,बिन पाए बेहाल !!४

पर पीड़ा दिखती नहीं, ऐसे कैसे लोग!

दीमक जैसा खा रहा ,लालच नामक रोग !!५…

Continue

Added by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 8:30pm — 21 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी आयोजन का उद्घाटन करने बधाई.ग़ज़ल बस हो भर पाई है. मिसरे अधपके से हैं…"
23 seconds ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"देखकर ज़ुल्म कुछ हुआ तो नहीं हूँ मैं ज़िंदा भी मर गया तो नहीं ढूंढ लेता है रंज ओ ग़म के सबब दिल मेरा…"
10 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"सादर अभिवादन"
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"स्वागतम"
10 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service