हल्की 'टप्प' की आवाज़ के साथ स्मार्ट फोन की स्क्रीन पर दो बूँदें गिरीं । एक लम्बी साँस लेकर पश्चाताप और आक्रोश की ज्वाला फिर भड़क उठी। यह वही तस्वीर है न, जो शालिनी के बेहद क़रीबी 'दोस्त' ने ली थी, उस दिन मोबाइल पर।फोटो लेते समय ही उसकी आँखें फटी की फटी सी रह गयीं थीं। उस छिछोरे के हाव-भाव ही संदेहास्पद थे। शालिनी ने तो उसे जीन्स या शोर्ट्स पहनकर चलने को कहा था , लेकिन वह सलवार सूट पहन कर ही उस 'आत्म-रक्षा प्रशिक्षण कैम्प' में गई थी। शालिनी का कुशल व्यवहार उसे पसंद था, लेकिन वह समझ न सकी कि…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on October 17, 2015 at 11:34am — 3 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 17, 2015 at 11:28am — 4 Comments
1222 1222 1222 1222
निशानी हार फूलो पे मुहर तुम सब लगा देना
खड़ा परधानी मेें देखो भऊजी को जिता देना
सुबह अब चार से पहले भऊजी रोज जागेगी
गली में हाथ जोडे़ मुस्कुरा कर वोट माँगेगी
बहुत खुश हैं न दॉंतो से जो पाते तोड़ अब रहिला
पता जब से चला उनको हुआ ये गॉंव है महिला
कहे बूढे़ सभी मुझसे, जरा उनसे मिला देना
निशानी हार फूलो पे मुहर तुम सब लगा देना
खड़ा परधानी मेें देखो भऊजी को जिता देना
रसोई में न काटे अब सुनो…
Added by Akhand Gahmari on October 17, 2015 at 10:00am — No Comments
Added by Samar kabeer on October 16, 2015 at 11:25pm — 12 Comments
"मधु ! पिता जी का खाना भेज दिया ?"
"हाँ ! बाबा हाँ ! रोज नियम से भेज देती हूँ।" रविवार रमेश स्वयं ही टिफिन लेकर चला जाता। उस दिन बाप -बेटे पुश्तैनी मकान में घण्टों बातें करते और शाम को घर लौटते समय पिता जी रमेश को हमेशा की तरह टोकते:
"बेटा ! बहु-बच्चों का ख्याल रखना।"
आज मधु की छोटी बहन-जीजा आये हुए, देखकर रमेश ने मधु को बिना कुछ बताये टिफिन सेंटर से खाना भर कर भिजवा दिया। मधु ने भी खाना भिजवा दिया। पिता जी की खुशियों का ठिकाना न था। आज रमेश प्रसन्नचित होकर घर पहुँचा तो मधु…
Added by Vijay Joshi on October 16, 2015 at 7:00pm — 5 Comments
तन्हाइयों के ढेर में ख्वाहिश दबी रही ,
जैसे कि रेगिस्तान में बाकी नमी रही
रोते रहे कुछ लोग और जलते रहे कुछ घर ,
पर निंदकों की बस्तियों में रोशनी रही
हमको बिठा के चल दिया ऑटो जब उसको छोड़ ,
मैं देखता रहा, वो मुझे देखती रही
सूखे के बावजूद भी उस दूब को देखो ,
जाने वो इस अकाल में कैसे बची रही
शायद वो समझती थी मुझे आईना, तभी ,
खुद रूप की गहराईयों को आंकती रही
हल है ये लोकतंत्र सियासत के हाथ का ,
जनता ही इस जुएं से मगर जूझती रही
बचपन…
Added by Jayprakash Mishra on October 16, 2015 at 1:00pm — 2 Comments
कर्तव्यनिष्ठ - ( लघुकथा ) -
"सुषमा जी,यह क्या देख रहा हूं! कन्या गुरुकुल की लडकियों को अस्त्र शस्त्र और मार्शल आर्ट्स सिखाया जा रहा है!
"जी सर"!
"सुषमा जी, आपने किसकी अनुमति से यह शुरु किया है"!
"सर, इसकी अनुमति ज़िलाधीश महोदय ने दी है, जो कन्या गुरुकुल के अध्यक्ष हैं"!
"और इसका खर्चा कौन देगा"!
"उसकी व्यवस्था भी ज़िलाधीश महोदय ने किसी समाज़ सेवी संस्था के द्वारा कराई है"!
"मगर सुषमा जी इसकी क्या आवश्यकता थी"!
"सर आपने देखा नहीं,…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 16, 2015 at 11:10am — 3 Comments
एक हाथ से कन्या पूजन दूजे हाथ से कन्या हनन
माँ को खुश करने का कैसा है ये आयोजन
धन वैभव की चाहत में सुख संपत्ति के आगत में
मनाते सभी त्यौहार लक्ष्मी जी के स्वागत में
पर ये कैसा अनर्थ जो गृहलक्ष्मी पर भारी
घर अस्पताल में चलती इस लक्ष्मी पर आरी
माँ की ममता बेबस और निष्ठुर पिता का साया
उस घर में बेटी का जन्म क्यूँ न किसी को भाया
कैसी स्वार्थी कैसी निर्दयी ये दुनिया की मंडी
जहाँ बेबस है शक्ति स्वरूपा दुर्गा काली और चंडी
जिन हाथों से डाली जाती है…
Added by DR. HIRDESH CHAUDHARY on October 15, 2015 at 10:00pm — 1 Comment
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2015 at 8:27pm — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2015 at 8:27pm — 1 Comment
बह्र : ११२१ २१२२ ११२१ २१२२
हो ख़ुशी या ग़म या मातम, जो भी है यहीं अभी है
न कहीं है कोई जन्नत, न कहीं ख़ुदा कोई है
जिसे ढो रहे हैं मुफ़लिस है वो पाप उस जनम का
जो किताब कह रही हो वो किताब-ए-गंदगी है
जो है लूटता सभी को वो ख़ुदा को देता हिस्सा
ये कलम नहीं है पागल जो ख़ुदा से लड़ रही है
जहाँ रब को बेचने का, हो बस एक जाति को हक
वो है घर ख़ुदा का या फिर, वो दुकान-ए-बंदगी है
वो सुबूत माँगते हैं, वो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 15, 2015 at 6:13pm — 10 Comments
2122 – 2122 – 2122 – 212 |
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चाँदनी जब रात, गुमसुम क्यों नदी का तीर है? |
मौन है जल किसलिए, पूछो कि क्यों गंभीर है? |
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प्यार के झुरमुट अंधेरों से लिपट सोते… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 2:44pm — 12 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 15, 2015 at 12:49am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 10:15pm — 5 Comments
212—-212---212---212 |
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पूछते रह गए आप क्या कर चले? |
वो मेरी जिंदगी हादसा कर चले. |
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गुमटियाँ शह्र से जो हटा कर चले… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 14, 2015 at 4:30pm — 23 Comments
अंजामे मुहब्बत .......
कितनी अज़ीब हैं ज़िंदगी की राहें
हर मोड़
एक उलझी पहेली
हर राह पर फिसलन
हर नफ़स एक चुभन
गर्द में दफ़्न
वफ़ा और ज़फ़ा के अनसुने अनकहे
वो अफ़साने
जिन्हें सुनना चाहे
ये दिल बार बार
हर बार
कोई लफ्ज़ लबे दहलीज़ पे
इज़हार से शरम खाता है
और अश्के रवां रुखसार पे रुक जाता है
कह देती है सांस
साँसों में तपते अहसासों को
दे देती है खामोश धड़कनों को
अपनी धड़कनों की आवाज़
वो बात मुहब्बत की…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 14, 2015 at 2:16pm — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 2:00pm — 9 Comments
सुनयना की शादी को अभी तीन महीने ही हुए थे कि उसकी सास का फ़ोन आगया,"समधन जी, ज़रा फ़ुरसत निकाल कर अपनी लाडली को ले जाना"! और आगे बिना कुछ कहे सुने फ़ोन काट दिया!शाम को सुनयना के मॉ बापू पहुंच गये उसके ससुराल!
"कोई भूल हो गयी क्या हमारी सुनयना से"!
"नहीं जी, भूल तो हमसे हुयी जो इसकी भोली सूरत और एम. बी. ए. की डिग्री से धोखा खा गये"!
"आखिर हुआ क्या, बहिनजी, कुछ बताइये तो सही"!
"कोई एक बात हो तो बतायें! बिना उठाये सुबह उठती नहीं, महारानीजी, बिस्तर पर ही चाय चाहिये,रसोई…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 14, 2015 at 12:00pm — 6 Comments
दोहा छ्न्द-----नवरात्रि-उपहार
प्रथम शैलपुत्री मनन, है नवरात्रि विधान.
वृद्धि करें वन जीव जड, तप बल योग प्रमाण.1
ब्रह्मचारिणी मां प्रखर, दिव्य ज्योति की सार.
सकल सिद्धि यश विजय का, देती हैं उपहार.2
देवि चंद्र घंटा करें, रोग - दोष से मुक्त.
सुखद शांति सुख सम्पदा, वर देतीं उपयुक्त.3
दिव्य हास्य से प्रकट कर, सकल ब्रह्म रस छ्न्द.
खुले हृदय से बांटतीं, कूष्माण्डा मां कंद.4
शक्ति पांचवीं स्कंद…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 14, 2015 at 10:30am — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 13, 2015 at 11:39pm — 14 Comments
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