Added by Manan Kumar singh on October 8, 2016 at 2:30am — 8 Comments
जो है दिल को शिकायत न हो ज़ेरेफुगाँ क्यों
न हो कहने का हक़ कुछ तो देते हो जुबां क्यों
मेरी खानाख़राबी सुबूतेआशिक़ी है
जो हो मजनूं तुम्हारा हो उसका आशियाँ क्यों
यूँ कारेआशिक़ी से है आती बू-ए-साज़िश
अदू जो हैं हमारे वो तेरे पासबाँ क्यों
मकीनेदिलबिरिश्ता-ओ-दश्तेगमनशीं था
वफ़ातेकैस पे फिर न हो ख़ुश गुलसितां क्यों
जो मुझसे निस्बतों की सभी बातें हैं झूठीं
सुनाते हो मुझे तुम तुम्हारी दास्ताँ…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 7, 2016 at 10:09pm — 10 Comments
2122 2122 2122 212
इक मुहब्बत का महल कब चुपके चुपके ढह गया
बिन किये आवाज सब आँखों का काजल कह गया
अनमनी सी वो अकेली रह गई किश्ती खड़ी
पाँव के नीचे से ही सारा समन्दर बह गया
वो खुदा भी उस फ़लक से देख कर हैरान है
आइना ये पत्थरों की मार कैसे सह गया
ठोकरों ने ही तराशे वो पशेमाँ पंख फिर
ताकते परवाज़ से पीछे गुज़शता रह गया
फूल से भी जो हथेली सुर्ख होती थीं कभी
उस हथेली में पिघल कर आज सूरज बह…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 7, 2016 at 7:41pm — 18 Comments
Added by Arpana Sharma on October 7, 2016 at 3:20pm — 6 Comments
“रेहाना’i बहुत खुश दिख रहा था आनंद “आज रात के ग़ज़ल की कंसर्ट के दो टिकटों का इंतजाम कर लिया है मैंनेI बहुत पीछे की सीटें हैं, पर मिल गए ये ही क्या कम है I”
“मुबारक हो” रेहाना धीरे से बोली I
“अरे इतनी दूर ऑस्ट्रेलिया में अपने इतने जाने माने लोगों के ग़ज़ल ,गाने सुनने को मिलेंगे I तुम खुश नहीं हो i” आनंद चिढ कर बोला I
“हाँ नहीं हूँ खुश और मै जाऊंगी भी नहीं “ रेहाना उठने लगी I
“पाकिस्तानी हैं इसलिए ?” आनंद ने उसका हाथ पकड़ लिया “ तुम इतनी पढ़ी लिखी हो, यहाँ …
ContinueAdded by Pradeep kumar pandey on October 7, 2016 at 3:00pm — 2 Comments
वह अपने महल के अंदर बैठा हुआ था और अपने साथियों के साथ जश्न मनाने की तैयारी हो रही थी। उसके सैनिकों द्वारा छद्म वेश में जाकर दुश्मन देश के सैनिक अड्डे पर भीषण आक्रमण के परिणाम स्वरूप वहां पर भयंकर तबाही मची हुई थी और उस देश का अगुवा बौखला उठा थां । आज तक उससे कहा जा रहा था िकवह हमारा दोस्त है लेकिन इस तरह से पीठ के उपर छुरा मार कर घायल कर दिया गया था और उसी से वह छटपटा रहा था । उस देश के लगभग 50 सैनिक मौके पर ही मर गये थे। साजो सामान के नुकसान भी करोड़ों के उपर था। उसने अपने अनुचरों को…
Added by indravidyavachaspatitiwari on October 7, 2016 at 1:29pm — No Comments
प्रेमाभिव्यक्ति ......
प्रेम आस है
प्रेम श्वास है
प्रेम जीवन की अमिट प्यास है
प्रेम आदि है
प्रेम अन्त है
प्रेम जीवन का अमिट बसंत है
प्रेम चुभन है
प्रेम लग्न है
प्रेम जीवन की अमिट अगन है
प्रेम चंदन है
प्रेम बंधन है
प्रेम जीवन की अमिट गुंजन है
प्रेम रीत है
प्रेम जीत है
प्रेम जीवन की अमिट प्रीत है
प्रेम नीर है
प्रेम पीर है
प्रेम जीवन की प्रेम हीर…
Added by Sushil Sarna on October 7, 2016 at 1:15pm — 2 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 7, 2016 at 10:56am — 2 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 7, 2016 at 9:25am — 2 Comments
छोटी छोटी सी खुशियां
भर देती हैं झोली
हंसी ख़ुशी दिन बीते जब
ज़िन्दगी लगती हमजोली
जीवन के है रंग निराले
जो खेले आँख मिचोली
एक आये जब दूजा जाए
ज़िन्दगी लगती मखमली |
लेकर बहार आती है ज़िन्दगी
प्यार से जब सींचि जाती है
कड़वाहट का ज़हर भी पीती
अपना असर दिखाती है |
अपनों के बीच अपनों के संग
प्यार को पाती है ज़िन्दगी
प्यार गर न मिले तो
सूखे पत्तों की तरह मुरझा जाती है ज़िन्दगी |
मौलिक एवं…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 10:30pm — 10 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 6, 2016 at 8:35pm — 6 Comments
फोन की घंटी लगातार बज रही थी, रश्मि दूसरे कमरे में बैठी काँप गयी| किसी तरह फोन बंद हुआ तब तक विवेक भी अंदर आ गया और दूसरे कमरे में आकर बोला "यहीं बैठी हो, फोन क्यों नहीं उठाया?
रश्मि कुछ बोल नहीं पायी, उसके चेहरे पर जैसे सन्नाटा छाया हुआ था| तभी विवेक के मोबाइल पर बेटी का फोन आया "पापा, मम्मी घर में नहीं है क्या, फोन नहीं उठाया उन्होंने"|
"नहीं बेटा, वो घर में ही है, लो बात कर लो", कहते हुए उसने फोन रश्मि को पकड़ा दिया|
"सब ठीक है बेटी, बस ऐसे ही झपकी आ गयी थी इसलिए फोन नहीं उठा…
Added by विनय कुमार on October 6, 2016 at 6:24pm — No Comments
2122 2122 2122 212
मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है
वो लड़कपन खूब था अब ये जवानी और है
आसमाँ सर पर उठाकर तूने साबित कर दिया
तेरा किस्सा और कुछ था हक़बयानी और है
मैं छुपाता हूँ जहाँ से दर्द-ए-दिल ये बोलकर
हिज़्र की तासीर कुछ मेरी कहानी और है
वस्ल की बातें वो लमहे भूल भी जाऊँ मगर
मेरे दिल में इक मुहब्बत की निशानी और है
आबले हाथों के मुझसे कह रहे हैं फूटकर
कामयाबी और शय है जाँफ़िशानी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2016 at 5:54pm — 16 Comments
वादा .....
मेरे ग़मगुसार ने
इक वादा किया था
कि वो हर लम्हा
मेरा ज़िस्म होगा
मेरा हर ग़म
उस पे आशकार होगा
फ़ना की तारीक वादियों में भी
वो मेरे साथ होगा
क्या सच में उसने
इस जहां से
उस जहां तक
साथ निभाने का
वादा किया था
लम्हा दर लम्हा
दूरी का अज़ाब बढ़ता गया
अकेलेपन की शाखाओं पे
यादों का शबाब
बढ़ता गया
साये गुफ़्तगू करने लगे
मेरी अफ़सुर्दा निगाहें
जाने ख़ला में…
Added by Sushil Sarna on October 6, 2016 at 2:02pm — 10 Comments
दो दिन से भूखा-प्यासा कबीर धूल भरी पगडंडियों में भटक रहा है।अज़ब है उसकी जिंदगी भी,दुनिया वालों के लिए अनाथ और पागल, न उसकी कोई जाति न कोई धर्म,जाने किसने,कब ,कहाँ,उसका नाम कबीर रख दिया। लोगों के रहमों करम से मिल गया तो खा लिया, हिन्दू के घर से रोटी ली तो मुसलमान के घर से सब्जी, स्वाद में कोई फ़र्क नहीं। गाँव दर गाँव नापता।
इधर सरहद पर तनातनी के बाद मरघट सी ख़ामोशी हवाओं में सरसरा रही है।मीलों आदमजात की आमद दरफ्त नहीं हैं।बेज़ार भटकता कबीर उस गाँव में पहुँचा तो लगा मकानों के…
Added by Janki wahie on October 6, 2016 at 11:30am — 9 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 6, 2016 at 9:45am — 8 Comments
"अरे , मकान का काम देखने मम्मी जी , पापाजी को भेज दें।", राखी कुनमुनाई, "बेकार ही घर में बैठे हैं" वो सोचने लगी, " हम तो खाना निपटा कर फिर थोड़ी देर वहाँ काम देख आएँगे", सास-ससुर के जाते ही उसने आजादी की साँस ली और जल्दी से मायके फोन लगाया । वैसे तो सुबह उठकर सबसे पहले अपने पिताजी से बात करके ही उसका दिन शुरू होता है पर फिर भी पूछना था कि उन्होंने ठीक से खाना खाया कि नहीं । तभी नन्ही पलक ठुमकती आई-"मम्मी सू आरही है", "अरे भई, अपन से नहीं होता ये सब, बच्चों की सू-सू, पाॅटी", राखी ने…
ContinueAdded by Arpana Sharma on October 5, 2016 at 11:00pm — 4 Comments
छम छम करती हुई
आयी जब वो छत पर
चाँद भी जैसे ठहर सा गया
यौवन उसका देखकर
श्वेत वस्त्रों में लिपटी हुई
कुछ शरमाई कुछ अलसायी
देख रही थी बादलों को
लगा मानो कह रही हो
बुला दो मेरे प्रियतम को
देख उसको बादल भी बरस पड़े
पीड़ा थी जुदाई की
या थी प्रीत की जीत
चाँद भी जा चूका था
बादल भी बरस गये
पिया के दरस को
नयन भी तरस गये |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 5:20pm — 10 Comments
बहर :१२२*४
सभा में गरीबों की चर्चा नहीं है
किसी को कभी उनकी चिन्ता नहीं है |
वज़ह होगी तो ही कहे दिल का अपना
सकल सच तो कोई बताता नहीं है |
सभी ओर धोखा है सच्चा न कोई
सही कोई रिश्ता निभाता नहीं है |
हमारा तुम्हारा जो नाता पुराना
यहाँ ऐसा अब इक भी रिश्ता नहीं है |
सगे सब कुटुम्बी दिखावे के हैं अब
कमी है समझ की समझता नहीं है |
प्रणय गीत गाना सनम प्यार से अब
बिना प्यार जीवित ही रहना नहीं है…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 5, 2016 at 5:00pm — 10 Comments
Added by S.S Dipu on October 5, 2016 at 1:11am — 4 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |