नक्कारों में
गूंज रही फिर
तूती की आवाज
नहीं जागना
आज पहरूए
खुल जाएगा राज
लाचार कदम
बेबस जनता के
होते ही
कितने हाथ
आधे को
जूठी पत्तल है
आधे को
नहीं भात
अकदम सकदम
जरठ मेठ है
और भीरू
युवराज
भव्य राजपथ
हींस रहे हैं
सौ-सौ गर्धवराज
आओ खेलें
सत्ता-सत्ता
जी भर खेलें
फाग
झूम-झूम कर
आज पढ़ेंगें
सारी गीता
नाग
जाओ
इस नमकीन शहर से
तूती अपने…
Added by राजेश 'मृदु' on November 26, 2012 at 12:30pm — 2 Comments
देखा है
क्रूर वक़्त को,
पैने पंजों से नोचते
कोमल फूलों की मासूमियत
और बिलखते बिलखते
फूलों का बनते जाना पत्थर,
देखा है
पत्थर को गुपचुप रोते
फिर कोमलता पाने को
फूल सा खिल जाने को
मुस्काने को, खिलखिलाने को,
देखा है
अटूट पत्थर का
फूल बन जाना
फिर कोमलता पाना
महकना, मुस्काना, इतराना,
देखा है
सब कुछ बदलते
आकाश से पाताल तक
फिर भी मैं वही हूँ…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 26, 2012 at 9:38am — 10 Comments
कर्म के ही हल सदा रखती है कन्धों पे नियति
Added by ajay sharma on November 26, 2012 at 12:00am — 3 Comments
छुपा के होठों से गम को अपने
लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |
बना लो गीतों को मेय का प्याला
छलकती बूंदों ही को कहो तुम |
ये गम की तड़पन से लिपट लो,
हवा दो आग को जितनी भी तुम |
सुख को हौले से फिर भी छू लो ,
लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |
मंजिल पे जख्मों को तो न देखो,
मंजिल को छू लो नयनों से अपने |
बसा के आँखों में कल के सपने,
लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |
आसान नहीं खुद को पहचान…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:17pm — 6 Comments
तेरे नयनों में भर आये नीर तो, लहू मैं बहा दूं माँ,
न्योच्छार तुझपे जीवन करूँ, क्या जिस्म क्या है जाँ |
तू धीर गंभीर हिमाला को
मस्तक पे धारण करे |
तू चंचल गंगा जमुना का
प्रतिक्षण वरण करे |
विविध भी एक हैं , देख ले चाहे जहां |
जब उठा के लगा दें
हम मस्तक पे धूल |
बसंत है चारों तरफ
खिले मुस्कान के फूल |
नफरत भी बन जाती है, प्रेम का समाँ |
तेरे बेटों की ओ माँ
बस यही है आरजू…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:16pm — 5 Comments
हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा
संघर्ष को और बढाने की |
हर हार मुझे देती है आशा
जय को करीब लाने की |
बिखर जाये जब मन मेरा
मैं उसके मोती चुन लेता हूँ |
निराशा के हर अंगारे को
मैं अमृत समझ के सहता हूँ |
ये निराशा मेरे प्रेम की भाषा
जल्दी ही बन जाने की |
हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा.....
पतझर में जो झर गये पत्ते
आने पे सावन खिल जायेंगे |
मनुष्य यदि प्रयास करे तो
बिछड़े क्षण…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:14pm — 4 Comments
इस ज़िंदगी के किस पल में
जाने कब क्या हो जाये |
मिल कर सारे जहाँ की ख़ुशी,
ज़िंदगी ही खो जाये |
खुशियों के दर्पण के पीछे,
हम दीवाने हो जाते हैं |
दीवानगी में ये ना सोचे,
अक्स ही हमें सुहाते हैं |
सुख के हर इक अक्षर को, दुःख जाने कब धो जाये |
सुख तो इक आज़ाद पंछी,
पिंजरे में न रह पायेगा |
दिल का सूना पिंजरा भरने,
दुःख ही फिर से आ जाएगा |
जाने कब गम का आंसू, दामन को भिगो जाये…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:00pm — 6 Comments
हमेशा हमेशा के लिए वो चली गई है दूर मुझसे
जाते जाते बोली मुझे मोहब्बत नहीं है तुझसे
लेकिन फिर भी अश्क थे उसकी नजरों में
वह कह तो गई नहीं है मोहब्बत मुझसे
आज भी सोचता हूँ मैं उसके कहे उस बात को
पागल…
Added by Neelkamal Vaishnaw on November 25, 2012 at 8:00pm — No Comments
देव उठे अरु लग्न हुए, सखि कार्तिक पावन मास यहाँ,
मत्स्य बने अवतार लिये,प्रभु कार्तिक पूनम सांझ जहाँ,
पद्म पुराण बताय लिखें, महिना इसको हि पवित्र सदा,
मोक्ष मनुष्य प्रदाय करे,सखि कार्तिक स्नान व दान सदा/…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 25, 2012 at 7:45pm — 3 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2012 at 5:57pm — 6 Comments
बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया की है .…
Added by shalini kaushik on November 25, 2012 at 3:57pm — 8 Comments
एक पुरानी ग़ज़ल....
शायद २००९ के अंत में या २०१० की शुरुआत में कही थी मगर ३ साल से मंज़रे आम पर आने से रह गयी...
इसको मित्रों से साझा न करने का कारण मैं खुद नहीं जान सका खैर ...
पेश -ए- खिदमत है गौर फरमाएं ............
अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये
शीशे के घर में लग रहे लोहे के फाटक देखिये…
Added by वीनस केसरी on November 25, 2012 at 2:59pm — 31 Comments
जल प्रपात
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 25, 2012 at 2:36pm — 10 Comments
भारत के हम शेर किये नख के बल रक्षित कानन को।
छोड़त हैं कभि नाहिं उसे चढ़ आवहिं आँख दिखावन को।
भागत हैं रिपु पीठ दिखा पहिले निजप्राण बचावन को।
घूमत हैं फिर माँगन खातिर कालिख माथ लगावन को॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 25, 2012 at 10:20am — 13 Comments
'स्नेहा....स्नेहा ....' भैय्या की कड़क आवाज़ सुन स्नेहा रसोई से सीधे उनके कमरे में पहुंची .स्नेहा से चार साल बड़े आदित्य की आँखें छत पर घूमते पंखें पर थी और हाथ में एक चिट्ठी थी .स्नेहा के वहां पहुँचते ही आदित्य ने घूरते हुए कहा -''ये क्या है ?' स्नेहा समझ गयी मयंक की चिट्ठी भैय्या के हाथ लग गयी है .स्नेहा ज़मीन की ओर देखते हुए बोली -'भैय्या मयंक बहुत अच्छा ....'' वाक्य पूरा कर भी न पायी थी कि आदित्य ने जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया और स्नेहा चीख पड़ी ''…
ContinueAdded by shikha kaushik on November 24, 2012 at 10:30pm — 7 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on November 24, 2012 at 10:10pm — 2 Comments
छोटी छोटी खुशी कहीं गम ना दे जाये ।
पटाखों के ढेर में कोई बम ना दे जाये ।
कैसे यकीन करें जब यकीन नहीं होता,
झोली में रकम कभी कम ना दे जाये ।
कड़कती धूप में छाँव प्यारा लगता है ,
दरखत की शाख कहीं धम ना दे जाये ।
नम आखों देखते हैं जलता आशियाना,
दूसरों की आह बेबस रहम ना दे जाये ।
गिरते गिरते बचते ठोकर लगने के बाद ,
वर्मा संभलते कहीं निकला दम ना दे जाये ।
.
श्याम नारायण वर्मा
Added by Shyam Narain Verma on November 24, 2012 at 12:30pm — 3 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 10:00am — 13 Comments
गीत:
हर सड़क के किनारे
संजीव 'सलिल'
*
हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,
धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....
*
कुछ जवां, कुछ हसीं, हँस मटकते हुए,
नाज़नीनों के नखरे लचकते हुए।
कहकहे गूँजते, पीर-दुःख भूलते-
दिलफरेबी लटें, पग थिरकते हुए।।
बेतहाशा खुशी, मुक्त मति चंचला,
गति नियंत्रित नहीं, दिग्भ्रमित मनचला।
कीमती थे वसन किन्तु चिथड़े हुए-
हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,
धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....
*
चाह की रैलियाँ,…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2012 at 8:16am — 9 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |