Added by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 5:40pm — 20 Comments
काफिया : आन ,रदीफ़ : है
बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है
सब जान ले अभी यही’ विधि का विधान है |
अदभूत जीव जानवरों का जहान है
नीचे धरा, समीर परे आसमान है |
संसार में तमाम चलन है ते’री वजह
हर थरथरी निशान ते’री, तू ही’ जान है |
जो भी जमा किये यहाँ’ रह…
Added by Kalipad Prasad Mandal on November 20, 2017 at 3:37pm — 9 Comments
Added by Ram Awadh VIshwakarma on November 20, 2017 at 2:53pm — 5 Comments
बंद किताब ...
ठहरो न !
थोड़ी देर तो रुक जाओ
अभी तो रात की स्याही बाकी है
सहर की दस्तक से घबराते हो
प्यार करते हो
और शरमाते हो
कभी नारी मन के
सागर में उतर के देखो
न जाने कितने गोहर
सीपों में
किसी के लम्स के मुंतज़िर हैं
देहाकर्षण के परे भी
एक आकर्षण होता है
जहां भौतिक सुख के बाद का
एक दर्पण होता है
नशवरता से परे
अनंत में समाहित
अमर समर्पण होता है
पर रहने दो
तुम ये…
Added by Sushil Sarna on November 20, 2017 at 1:30pm — 14 Comments
212 212 212 212
छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे
बिन तेरे आह भर-भर के मर जाएँगे
-
चाँद भी देख कर उनको शरमाएगा
मेरे महबूब जिस दम संवर…
Added by SALIM RAZA REWA on November 20, 2017 at 10:00am — 15 Comments
मन में आत्मा में आॅंखों में,
मीठी-मीठी बातों में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
स्नेह में ममत्व में भावनाओं में,
मूल्यों में सम्मान में दुआओं में,
हर क्षेत्र हर दिशाओं में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
वादों में इरादों पनाह में,
विश्वास में परवाह में,
वांछितों की चाह में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
आवाज में अंदाज में,
प्रजा में सरताज में,
कल में आज में,
हर रूप में हर राज में,
चरित्र गिर रहा…
Added by Manoj kumar shrivastava on November 19, 2017 at 9:30pm — 14 Comments
Added by Rahila on November 19, 2017 at 6:39pm — 6 Comments
मुक्त हृदय से आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार,
माँ वीणा सद्ज्ञान मुझे दो, जग में करूँ प्रसार ||
माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की गोद।
मिला छत्र छाया में उनके,जीवन का आमोद।।
किये बहत्तर वर्ष पार ये, बिना किसी अवसाद
स्वर्गलोक से मिलता मुझको,उनका आशीर्वाद।।
माँ-बापू से पाया मैंने,जीवन में संस्कार।
मिला सनातन धर्म रूप में, मुझको भारत वर्ष ।
ऋषि-मुनियों का देश यही है,इसका मुझको हर्ष ||
वन-उपवन में रोप सकूँ मै, कुछ सुन्दर से…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2017 at 7:30am — 14 Comments
Added by santosh khirwadkar on November 18, 2017 at 11:30am — 13 Comments
*1222 1222 1222 122*
ज़माना फिर न जाने क्यों ख़फ़ा होने लगा है।
मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है।।
कभी वादे किये जिसने कसम खाकर ख़ुदा की,
वही फिर अब न जाने क्यों ज़ुदा होने लगा है।।
वहाँ पर हाल कैसा है, वही बस जान पाया,
यहाँ पर ज़ख़्म, ज़ख़्मों की दवा होने लगा है।।
समझ बैठा था' तुमको मैं, मुहब्बत का समंदर,
गुमाँ मेरा यहाँ आकर, रफ़ा होने लगा है।।
मुहब्बत का हमेशा ही यही अंज़ाम होता,
शमा से…
ContinueAdded by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 17, 2017 at 5:30pm — 14 Comments
(फाइलातुन -फ़इलातुन-फ़इलातुन-फेलुन )
जिन से आबाद हर इक गोशा है वीराने का |
नाज़ कब वो भी उठा पाते हैं दीवाने का |
इंतज़ारी में कटी उम्र नहीं इसका गम
रंज है आपका वादे से मुकर जाने का |
कमसे कम मेरे ख़यालों में ही आ जाया करो
वक़्त कब मिलता है तुम को मेरे घर आने का |
लाख तू मेरी वफ़ाओं को भुला दे दिल से
अज़्म मुहकम है मेरा प्यार तेरा पाने का |
कोई इक बूँद को तरसे कोई भर भर के पिए
खूब दस्तूर…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on November 17, 2017 at 11:00am — 24 Comments
2122 2122 2122 212
चांद का टुकड़ा है या कोई परी या हूर है
उसके चहरे पे चमकता हर घड़ी इक नूर है
-
हुस्न पर तो नाज़ उसको ख़ूब था पहले से ही …
Added by SALIM RAZA REWA on November 17, 2017 at 10:30am — 14 Comments
शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के,
मौसम ने यूं पलट खाया,
शीतल हो उठा कण-कण धरती का,
कोहरे ने बिगुल बजाया!!
हीटर बने हैं भाग्य विधाता,
चाय और कॉफी की चुस्की बना जीवनदाता,
सुबह उठ के नहाने वक्त,
बेचैनी से जी घबराता!!
घर से बाहर निकलते ही,
शरीर थरथराने लगता,
लगता सूरज अासमां में आज,
नहीं निकलने का वजह ढूढ़ता!!
कोहरे के दस्तक के आतंक ने,
सुबह होते ही हड़कंप मचाया,
शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के
मौसम ने यूं पलटा…
Added by Sushil Kumar Verma on November 17, 2017 at 10:00am — 4 Comments
शादी की महफिल में,
हाइलोजन के भार से,
दबा कंधा,
ताशे और ढोल का,
वजन उठाये हर बंदा,
हाइड्रोजन भरे गुब्बारे,
सजाने वालों का पसीना,
स्टेज बनाने गड्ढे खोदने का,
तनाव लिये युवक,
चूड़ीदार परदों पर,
कील ठोंकता शख्श,
पूड़ी बेलती कामगर,
महिलाओं की एकाग्रता,
कुर्सियाॅं सजाते,
युवकों का समर्पण,
कैमरा फलैश में,
चमकते लोगों की शान,
कहीं न कहीं,
इन सबका होना जरूरी है,
किसी की खुशी,
किसी की मजबूरी है,
ये…
Added by Manoj kumar shrivastava on November 16, 2017 at 10:00pm — 8 Comments
बने-बनाये शब्दों पर
तू क्यों फंदे!
कलम सलामत है तेरी,
तू लिख बंदे,
उम्मीद मत कर कि कोई,
आयेगा तुझे,
तेरे दर पे सिखाने,
इंसां को देख,
तू खुद सीख बंदे,
बुराई लाख चाहे भी,
तुझे फॅंसाना,
अच्छाई को पूज,
खुद मिट जाएंगे,
विचार गंदे।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Manoj kumar shrivastava on November 16, 2017 at 9:30pm — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on November 16, 2017 at 7:43pm — 8 Comments
Added by Rahila on November 16, 2017 at 12:30pm — 11 Comments
मधुर दोहे :
मन के मधुबन में मिले, मन भ्र्मर कई बार।
मूक नयन रचते रहे, स्पंदन का संसार।।
थोड़ा सा इंकार था थोड़ा सा इकरार।
सघन तिमिर में हो गयी , प्रणय सुधा साकार।।
बाहुपाश से देह के, टूटे सब अनुबंध।
स्वप्न सेज महका गयी ,मधुर बंध की गंध।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 9:22pm — 12 Comments
Added by Mohammed Arif on November 15, 2017 at 6:26pm — 14 Comments
Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 15, 2017 at 3:34pm — 17 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |