122 122 122 122
ये माना कि हर सम्त कुछ बेबसी है
मगर हौसलों की बची ज़िन्दगी है
बुझेगी नहीं चाहे आंधी भी आये
ये अंदर से आयी है वो रोशनी है
लकीरें हथेली की सारी थीं झूठी
जो कहती थीं आगे खुशी ही खुशी है
वो भूँके या काटे, डसे आस्तीं को
अगर आदमी था, तो वो आदमी है
बिना ज़हर वाले बने हैं गिज़ा सब
ये क़ीमत चुकाई यहाँ सादगी है
घराना उजालों का था जिनका, उनका
सुना…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 10, 2016 at 9:33am — 5 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on November 10, 2016 at 6:30am — 3 Comments
जब चले थे कभी
Added by Abid ali mansoori on November 9, 2016 at 10:25pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 9, 2016 at 8:32pm — 2 Comments
अब ,क्या बोलूं मैं ...
अब
क्या बोलूं मैं
जब
मेरे स्वप्निल शब्दों ने
यथार्थ का
आकार लेना शुरू किया
तो भोर की
एक रशिम ने
मेरे अंतरंग पलों पर
प्रहार कर दिया
मैं अनमनी सी
सुधियों के शहर से
लौट आयी
यथार्थ की
कंकरीली ज़मीन पर
मेरी उम्मीदों की मीनारें
ध्वस्त हो कर
मेरी पलकों की मुट्ठी से
निःशब्द
गिरती रही
तिल-तिल जुड़ने की आस में
मैं रेशा-रेशा
उधड़ती…
Added by Sushil Sarna on November 9, 2016 at 8:27pm — 6 Comments
हमें साथ रहते दस वर्ष बीत गये
दस बड़ी अजीब संख्या है
ये कहती है कि दायीं तरफ बैठा एक
मैं हूँ
तुम शून्य हो
मिलकर भले ही हम एक दूसरे से बहुत अधिक हैं
मगर अकेले तुम अस्तित्वहीन हो
हम ग्यारह वर्ष बाद उत्सव मनाएँगें
क्योंकि अगर कोई जादूगर हमें एक संख्या में बदल दे
तो हम ग्यारह होंगे
दस नहीं
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(मौलिक एवंं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 9, 2016 at 8:02pm — 3 Comments
“बच्चों की बहुत याद आएगी बेटी इस बार मिंटू तो बड़ा भी हो गया है और समझदार भी बहुत अच्छी अच्छी बातें करता है दस दिन कैसे कटे पता ही नहीं चला| बहुत कम छुट्टी लेकर आते हो बेटा” नाश्ता खत्म करके प्लेट बहू की तरफ बढाते हुए मिंटू को प्यार से दुलारते हुए देशराज ने पास बैठे अपने बेटे चन्दन से कहा |
“ज्यादा छुट्टी कहाँ मिलती है पापा मिंटू के स्कूल की भी समस्या है और फिर खुशबू की शादी में भी तो आना है फिर छुट्टी लेनी पड़ेगी” चन्दन ने कहा |
“हाँ बेटा वो तो है” कहकर पापा चन्दन की…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 9, 2016 at 6:44pm — 10 Comments
2122 1212 22
मुझको इस तरह देखता है क्या
मेरे चेहरे पे कुछ लिखा है क्या
बातें करता है पारसाई की
महकमे में नया-नया है क्या
आज बस्ती में कितनी रौनक है
कोई मुफ़लिस का घर जला है क्या
खोए-खोए हुए से रहते हो
प्यार तुमको भी हो गया है क्या
दिल मेरा गुमशुदा है मुद्दत से
फिर ये सीने में चुभ रहा है क्या
ढूँढ़ते रहते हैं ख़ुदा को सब
आजतक वो कभी मिला है क्या
लापता आजकल हैं…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on November 9, 2016 at 3:59pm — 5 Comments
तलवों तले सपनो की चुभन, भूल नहीं तुम पाओगे।
अंधकार से जूझोगे जब , नवजीवन तब पाओगे।।
स्वयम की खोज करो तब ही विश्व तुम्हे अपनायेगा।
गोद तिमिर की जब छानोगे आलोक निकल आयेगा।।
.
प्राण भी व्याकुल करेंगे जब साथ अँधेरे पाओगे।
बीज सृजन का पाने को प्रलय के गर्भ में जाओगे।।
जन्म तुम्हे वरदान मिला विशेष .. शेष में पायेगा।
तू चले या रुके फर्क नहीं वक्त चलता जायेगा।।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by अलका 'कृष्णांशी' on November 8, 2016 at 4:00pm — 2 Comments
Added by दिनेश कुमार on November 8, 2016 at 1:06am — 6 Comments
Added by Arpana Sharma on November 7, 2016 at 11:08pm — 2 Comments
२१२२ ११२२ २२
खुशनुमा ख्वाब सजा कर देखो,
रात में चाँद बुला कर देखो.
नींद आँखों में कहाँ है यारो,
सारे ग़म अपने भुला कर देखो.
नफरतें कर रहे हो क्यूँ मुझ से,
हाथ में हाथ मिला कर देखो.
तिश्नगी लव पे क्यूँ तेरे छाई,
जाम हाथों से पिला कर देखो.
आज गर्दिश में है तेरी ‘आभा’,
उस के ग़म दूर भगा कर देखो
....आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by Abha saxena Doonwi on November 7, 2016 at 10:32pm — 4 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 7, 2016 at 9:35pm — 4 Comments
2122 1212 22
आपको आस-पास रखते हैं
फिर भी खुद को उदास रखते हैं
दिल को दरिया बना लिया हम ने
और लब हैं कि प्यास रखते हैं
लोग मिलते हैं मुस्कुरा के गले
दिल में लेकिन भड़ास रखते हैं
आदमी हम भले हैं मामूली
दोस्त पर ख़ास-ख़ास रखते हैं
लोग तकते हैं "जय" तुम्हारी राह
अब भी जीने की आस रखते हैं
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by जयनित कुमार मेहता on November 7, 2016 at 8:00pm — 2 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 7, 2016 at 5:00pm — 3 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on November 7, 2016 at 7:57am — 4 Comments
थी भोर की बेला सुहानी, भीड़ गंगा तट जुटी !
इक वृद्ध सन्यासी चला, गंगा नहा अपनी कुटी !
ओढ़े दुशाला राम नामी, गेरुवा पट रंग था !
कर में कमंडल था सुशोभित, भस्म चर्चित अंग था !!
प्रभु नाम का शुभ जाप करता, साधु कुछ…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on November 6, 2016 at 10:09pm — 4 Comments
तुम्हारी ज़िन्दगी में ....
चलो
तुम ही बताओ
आखिर
कहाँ हूँ
मैं
तुम्हारी ज़िन्दगी में
नसीमे सहर में
स्याह रात के सितारों में
बरसात की बूंदों में
झील के माहताब में
या
तुम्हारी बन्द पलकों के
ख्वाब में
आखिर
कहाँ हूँ
मैं
तुम्हारी ज़िन्दगी में
तेज़ पानी में
बहती कागज़ की
कश्तियों में
साहिलों के बाहुपाश में लिपटी
सागर की लहरों में …
Added by Sushil Sarna on November 6, 2016 at 3:30pm — 4 Comments
१२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२
भजो राम को या भजो श्याम को या, भजो नित्य ही मित्र माँ बाप को |
चुनों धर्म का मार्ग सच्चा हमेशा , बढ़ावा न देना कभी पाप को,
सिखाना सभी को सिखाना स्वतः को, भुलाना यहाँ व्यर्थ संताप को,
नई ये हवाएं कहें क्या सुनो तो, सुनो थाप को वक्त की चाप को ||
तजो लाज सारी करो कर्म अच्छे, रहोगे जहां में तभी शान से |
न लेना किसी का न देना किसी का, जिलाता यही मार्ग सम्मान से,
बिना कर्म पाते सभी दुःख देखो,…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 5, 2016 at 10:53pm — 9 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 5, 2016 at 6:30pm — 6 Comments
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