दोनो बचपन की सहेलियाँ शादी होने के बहुत दिनो बाद मिली थीं. सारे दुःख-दर्द बाँटे जा रहे थे.
"मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ जो उनके जाने के बाद मुझे रोहन जैसे पति का साथ मिला जो हरपल मेरा ख्याल रखता है." पहली सहेली के चेहरे पर मुस्कान थी।.
"एक पति मेरा है, आधी रात के बाद पी के आता है, और मार-पीट के सो जाता है, ये दारु उसे कहीं ले भी तो नही जाती.
दूसरी की आँखों से बरबस ही आँसू छलक पड़े!
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Pawan Kumar on November 6, 2014 at 2:30pm — 24 Comments
सडक के दांयी ओर पूजा जनरल स्टोर था और बांयी ओरगुप्ता प्रोवीजन स्टोर था।दोनो दुकाने आमने सामने थी। पूजा जनरल स्टोर गोरी चिट्टी नखरीली अदाओं से लबरेज लगभग बीस पच्चीस बर्ष की पूजा खुद सम्भालती थी। बांये अंग से बेकार पक्षाघात से पीडित गुप्ता जी अपनी दस बर्षीय बेटी तनु के साथ गुप्ता प्रोविजन स्टोर सम्भालते थे। जहाँ गुप्ता जी की दुकान में इक्का दुक्का ग्राहक आते बहीं पूजा को ग्रहको के चलते सांस लेने की फुर्सत नही मिलती। तनु ने इस बात को लेकर कितनी ही बार अपने पापा से शिकायत की लेकिन गुप्ता जी वही…
ContinueAdded by Dr.sandhya tiwari on November 6, 2014 at 2:00pm — 14 Comments
बाप साँसे बस दो चार सँभाले हुए हैं
तब से बेटे बंगले कार सँभाले हुए हैं
जिसने रद्दी कुछ अखबार सँभाले हुए हैं
हाँ उन्ही बच्चों ने घरबार सँभाले हुए हैं
आशियाँ टूट चुका इश्क़ का फिर भी लेकिन
हम वफ़ा की इक दीवार सँभाले हुए हैं
शाह तो खोये रंगीनी में हरम की यारो
आप जंजीर की झंकार सँभाले हुए हैं
मुल्क को लूट रहे जितने भी थे ख़ैरख़्वाह
मुल्क को कुछ ही वफादार सँभाले हुए हैं
आपदा के जितने पीड़ित थे उनको बस
सुर्ख़ियों में…
Added by gumnaam pithoragarhi on November 6, 2014 at 1:00pm — 11 Comments
तपते सूरज से
पिघल रही है बर्फ
बढ़ रहा है जलस्तर
तुम फिर डूबोगे
किसी मनु को खोजोगे
वह नहीं आयेगा
फिर कौन तुम्हे बचायेगा
प्रलय हो जायेगी
इस बार तुम्हें बचाने
कोई नाव नहीं आएगी
तुम पानी हो जाओगे
पर तुम्हे उठाना होगा
वाष्प बनकर उड़ना होगा
उठो बादल बन जाओ
इस जलते सूरज से टकराओ
इस बर्फ को पिघलने से
अगर तुम बचा पाओगे
तो स्वयं मनु बन जाओगे !!
("मौलिक व अप्रकाशित")
Added by Hari Prakash Dubey on November 6, 2014 at 12:30pm — 10 Comments
जग को मोहित करने वाला
स्वयं मोहित हो गया है
उसी माया पर
जिसको रचा था
स्वयं उसी ने
इस जग को मोहने के लिए
उस पर अतिव्यापित
हो गयें हैं अनर्गल प्रलाप
प्रपंचों मैं फंसकर
वह स्वयं मनुष्य बन गया है
उस रंगमंच पर उतर गया है
जिसका अंत हमेशा होता है
परदे का गिर जाना
और किसी व्यक्तित्व का
पात्रों की भीड़ में खो जाना
वह अब मंच पर नाच रहा है
लोगों को हंसा रहा है
कभी रुला रहा…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on November 6, 2014 at 12:00pm — 6 Comments
बाहोँ के अपनी वो के हार दे दो
प्यार भरे सोलह श्रंगार दे दो||
खिल जाए बगिया वो बहार दे दो
बस मुझे थोडा सा तुम प्यार दे दो ||
भड़क जाये शोले वो आग दे दो
नाचे मेरा मन वो राग दे दो||
बजे दिल में सरगम को साज दे दो
बस मुझे थोडा सा तुम प्यार दे दो ||
उड़ जाऊ तुम संग वो परवाज दे दो
कदमो तले तुम ये आकाश दे दो||
मर जाऊ तुम पे ये विश्वाश दे दो
बस मुझे थोडा सा तुम प्यार दे दो ||
हाथो का अपने वो…
ContinueAdded by sarita panthi on November 6, 2014 at 9:00am — 7 Comments
"दो लड़कियाँ तो पहले ही थी, अब ये एक और हो गई।" उसने बड़ी मायूसी से कहा।
"तू चिन्ता मत कर कमला। आजकल की लड़कियाँ किसी भी चीज़ मेँ पीछे नही हैँ।, हर काम बराबर से करती हैँ, बल्कि माँ बाप के लिए जितना लड़कियाँ करती हैँ उतना तो आजकल लड़के भी नही करते।" सरोज ने अपनी पड़ोसन को समझाते हुए कहा।
"तू ठीक ही कहती है सरोज। अरे हाँ याद आया, तेरी बहू भी तो पेट से है न? कौन सा महीना है?"
"पाँचवा महीना है। अगर ठाकुर जी की कृपा रही तो पोता ही होगा।"
"पूजा"
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by pooja yadav on November 5, 2014 at 12:00pm — 13 Comments
कोई भी लफ्ज आगे से नहीं सच का निकालेंगे
जुबाँ गर जह्र जो उगले जुबाँ को काट डालेंगे
चलो तनहाई को लेकर यहाँ से दूर चलते हैं
ग़मे दिल के सहारे से नयी दुनिया बसालेंगे
मग़र तरक़ीब तो कोई बतादे बेव़फा हमको
तेरी हो याद ज़ोरों पर भला कैसे सँभालेंगे
कभी भी जुर्म के आगे मेरा सर झुक नहीं सकता
अना के वास्ते अपनी उसी दिन सर कटालेंगे
लगा है देश अब घुटने सियासत कायदे भूली
कभी आवाम के आँसू सियासत को डुबालेंगे
मौलिक व…
Added by umesh katara on November 5, 2014 at 10:00am — 13 Comments
तन्हा प्याला ....
रजकण हूँ मैं प्रणय पंथ का
स्वप्न लोक का बंजारा
हार के भी वो जीती मुझसे
मैं जीत के हरदम ही हारा
नयन सिंधु में छवि है उसकी
वो तृषित मन की मधुशाला
प्रणयपाश एकांत पलों का
मन में जीवित ज्यूँ हाला
गीत कंठ के सूने उस बिन
रैन चांदनी बनी ज्वाला
नयन देहरी पर सजूँ मैं उसकी
हृदय में है ये अभिलाषा
अपने रक्तभ अधरों की मधु बूँद से
जो भर दे मेरा तन्हा प्याला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 4, 2014 at 6:52pm — 16 Comments
रामकिशन अपनी फसल से बहुत ज्यादा प्यार करता था. पौधों को अपने बच्चों के जैसा समझता. खेतों की साफ़-सफाई, हर काम शुरू करने से पहले पूजा-पाठ, यहाँ तक की अपनी भावुकता के कारण नन्हें-नन्हें पौधों पर कीटनाशकों का छिडकाव भी नहीं करता था. उसे यही लगता था कि इन मासूमों पर जहर का इस्तेमाल कैसे करूँ..? किन्तु ख़राब मौसम के कारण जन्मे कीट उसकी फसल को चट कर जाते. अपने हाथ कुछ न लगना और गाँव के लोगों द्वारा उसकी हंसी उड़ाना , एक दिन उसे समझ आ गया. अब रामकिशन अपनी फसलों से आमदनी का भरपूर फायदा ले रहा…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on November 4, 2014 at 1:05am — 14 Comments
“सुना है शादी के बाद हाथों की लकीरें बदल जाती हैं.“ सुमन ने अपनी छह महीने पहले ब्याही बहन से पूछा
"वो तो तू ही जाने ज्योतिषाचार्या, मुझे तो इतना पता है की सात फेरों के बाद औरत के पाँवों की रेखाएं अवश्य बदल जाती है और ज़िन्दगी चक्र-घिरनी हो जाती है |"
उसने गहरी साँस भरते हुए कहा |
सोमेश कुमार
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on November 3, 2014 at 9:00pm — 9 Comments
"हेलो, हाँ डॉक्टर साहब ! नमस्कार, बिटिया की शादी का निमंत्रण कार्ड भिजवा दिया है, भाभी जी और बच्चो को लेकर अवश्य आइयेगा"
"जी भाई साहब, नमस्कार, कार्ड मिल गया है, श्रीमती जी बच्चो के साथ जायेंगी, मैं न आ सकूँगा, आपको तो पता ही है शहर में डायरिया फैला हुआ है"
"हां, वो तो है, पर आपकी भगिनी की शादी है, कमसे कम दो दिन का भी समय निकालिये"
"माफ़ी चाहूंगा भाई साहब, सीजन चल रहा है यही तो दो पैसे कमाने के दिन हैं"
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => …
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2014 at 1:40pm — 26 Comments
सोनू जब सुबह सो के उठा तो माँ को घर में देखे के बोला - "अरे माँ आज ऑफिस नहीं गये आप ??"
माँ ने मुस्करा के "नहीं बेटा आज ऑफिस की सरकारी छुट्टी है .."
"छुट्टी कैसी माँ ?? कल ही तो आप सांता बाई को काम पर न आने के लिए डांट रही थी कि रोज रोज छुट्टी नहीं मिलती है ...
आपको छुट्टी मिल सकती है तो सांता बाई को क्यों नहीं माँ ?"
"फिर सरकार कितनी छुट्टी करती है माँ. "
जवाब तो माँ के पास था नहीं , बस डांट थी सोनू के लिए ....
(मौलिक व अप्रकाशित )…
Added by Alok Mittal on November 3, 2014 at 1:30pm — 13 Comments
रहे अब लाख पेचीदा सफ़र तै कर लिया है
न छोडूंगा मुहब्बत की डगर तै कर लिया है
ज़माना भी खड़ा है हाथ में शमशीरें लेकर
मैंने भी सरफरोशी का इधर तै कर लिया है
गुज़ारिश है रुको कुछ देर तन्हाई मिटादो
चले जाओ कि जाने का अगर तै कर लिया है
उदासी की फटी चिलमन हटाकर फैंक दूंगा
जिऊँगा अब तबस्सुम ओढ़कर तै कर लिया है
हवाओं सब चरागों को बुझादो ग़म नहीं कुछ
अँधेरे में जलाऊंगा जिगर तै कर लिया है
खड़ा…
ContinueAdded by khursheed khairadi on November 3, 2014 at 11:30am — 9 Comments
(गीतिका छंद)
14-14 मात्राए
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2014 at 10:30am — 12 Comments
दिल ये बेईमान सताता है
हर पल भटकना चाहता है
डोरी है प्यार की नाजुक सी
कच्ची है कह धमकाता है
हलकी सी भी हवा मिले तो
हवा के संग बह जाता है
लग जाये ना गैरों की नजर
इस डर से छुपाकर रखा है
मैं लाख सम्हालूँ जतन करूँ
मुझको ही भ्रम दे जाता है
देखूं तो दुनिया…
Added by sarita panthi on November 2, 2014 at 10:00pm — 10 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on November 2, 2014 at 9:35pm — 9 Comments
मुख्यधारा
“ ए रुको,अपना लाइसेंस दो “ट्रैफिक हवलदार ने उसकी मोटर-साईकिल रोकते और चलान मशीन की तरफ देखते हुए कहा |
“ क्यों ,क्या हुआ साहब ? ”
“ पिछली सवारी बिना हेलमेट के है |”
“ नाम-मदन ,गाड़ी न.- - - - “
सर ,कारण क्या देंगें ?
“ पिछली पुरुष सवारी बिना हेलमेट “
पर ये तो - - -
“अच्छा ,स्त्री है ,माफ़ करना,पहनावे और बालों से मालूम नहीं हुआ “
“तो सर ,चालन में स्त्री या पुरुष लिखना जरूरी है ?”
“हूँ |अब जब से औरतों के लिए हेलमेट…
ContinueAdded by somesh kumar on November 2, 2014 at 9:25pm — 5 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 2, 2014 at 10:09am — 18 Comments
1222 1222 1222 1222
मुझे ख़त भेज़ता है वो ,कभी मेरा हुआ था जो
गया था छोड़कर मुझको ,मेरा बनकर ख़ुदा था जो
सितारों की कसम उस चाँद को भूला नहीं अब तक
मेरी तन्हा भरी उस रात में सँग सँग ज़गा था जो
परेशाँ तो नहीं होगा,अकेला तो नहीं होगा
मुझे है फिक्र क्यों उसकी, नहीं मेरा हुआ था जो
कभी दिन के उज़ाले में चला था साथ वो मेरे
मगर फिर छोड़कर मुझको अँधेरे में गया था जो
जमाने को शिकायत भी मेरे इन आँसुओं से है
बहुत लम्बा चला…
Added by umesh katara on November 1, 2014 at 8:30pm — 6 Comments
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