आसमान पर, बादलों की बेहद घनघोर काली घटा छाई हुयी थी, न जाने इतना पानी बरश के कहाँ समायेगा, जमीन की पूरी गर्मी, बादलों को अपने ऊपर, मेहरबान होने का पूरा जोर लगाकर निमंत्रण दे रही थी..
....तभी एक शानदार चौपहिया वाहन आकर रुका, शायद उसमे कुछ खराबी आ गयी थी, चालक सीट पर बैठे साहब, ने अपनी आखों पर से तपती दुपहरी को, शीतल शाम करने वाला कत्थई पारदर्शी पर्दा उतारा और दरवाजा खोल के बाहर निकले, ऊपर आसमान की तरफ देखते हुए, वास्तविकता की जमींन पर कदम रखकर,सर्वप्रथम अपने छोटे से जेब से, बड़ा…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on November 8, 2013 at 12:21pm — 22 Comments
आशियाने दिल में आख़िर आजकल ठहरा है कौन।
रात दिन मेरे ख़यालो-ख़्वाब में रहता है कौन॥
किसके आने से हुई गुलज़ार दिल की वादियाँ,
हर तरफ मंज़र बहारों का लिए बैठा है कौन॥
चेहरे पे चेहरा लगाए फिर रहा है आदमी,
है बहुत मुश्किल बताना सच्चा है झूठा है कौन॥
कुछ न कुछ तो ख़ामियाँ मुझमें भी हैं तुझमें में भी हैं,
सबकी नज़रों में यहाँ तुम ही कहो अच्छा है कौन॥
है यकीं उसको यहाँ पे आने वाली है बहार,
वरना वीराने चमन…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 8, 2013 at 8:00am — 16 Comments
उन अधखुली
ख्वाबीदा आँखों ने
बेशुमार सपने बुने
सूखी भुरभरी रेत के
घरौंदे बनाए
चांदनी के रेशों से
परदे टाँगे
सूरज की सेंक से
पकाई रोटियाँ
आँखें खोल उसने
कभी देखना न चाहा
उसकी लोलुपता
उसकी ऐठन
उसकी भूख
शायद
वो चाहती नही थी
ख्वाब में मिलावट
उसे तसल्ली है
कि उसने ख्वाब तो पूरी
इमानदारी से देखा
बेशक
वो ख्वाब में डूबने के दिन थे
उसे ख़ुशी है
कि उन…
Added by anwar suhail on November 7, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
''आत्महत्या''
क्या है ये।
क्यों हो रही है ये,
क्यों भागते है वे,
जिन्दगी से,
कर्तव्यों से,
क्यों नहीं सामना करते
कठिनाईयों का,
समस्याओं का,
परिस्थितों का,
किस के दम पर
छोड जाते है वे
बूढे मॉं -बाप को,
अवोध बालको केा,
अपनी विवाहिता केा
जिसका संसार बदल दिये वे
एक चुटकी सिन्दूर से
क्या कसूर है इनका
यही , वे करते है
प्यार उनसे
चाहते है…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on November 7, 2013 at 5:49pm — 13 Comments
2122 2122 2122 2122
ज़ख़्म सूखे हैं तो फिर क्यों दर्द फैला जा रहा है
क्यों मुझे वो दिन पुराना याद आता जा रहा है
भीड़ मे रहना मुझे फिर बोझ सा लगने लगा क्यों
और तनहा कोई कोना क्यों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 7, 2013 at 5:30pm — 34 Comments
Added by Poonam Shukla on November 7, 2013 at 10:30am — 12 Comments
यजुर्वेद का चालीसवाँ अध्याय ईशावस्योपनिषद के रूप में प्रसिद्ध है जिसके पन्द्रहवें श्लोक के माध्यम से सूर्य की महत्ता को प्रतिस्थापित किया गया है.
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।
तत्त्वं पूषन अपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥
हिरण्मयेन पात्रेण यानि परम…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on November 7, 2013 at 12:00am — 48 Comments
उसकी बातों पे मुझे आज यकीं कुछ कम है
ये अलग है कि वो चर्चे में नहीं कुछ कम है
जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने
तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है
मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है
मुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखो
'कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है'
देख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुए
जो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है
कुछ तो…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on November 6, 2013 at 11:26pm — 41 Comments
इन खामोश क्षणों में
चाहा था
तुमको न याद करूँ /
लेकिन
बरखा की बूँदो के साथ
मेरा मन
भीग गया /
और याद आये वो बादल ,
जो आये , छाये
और लौट गए
बिन बरसे ही /
लेकिन
मन के आँगन में
फूटी एक नन्ही कोंपल
मुरझाई नहीं
कुछ ज्यादा हरी हुई /
और याद आया
वो सपना
जिसमे तुम थे
मै भी न था
क्योंकि
वह मेरी आँखों का ही सपना था /
और याद आई
वो सूनी, गरम दोपहरी
करती ख़ामोशी से
इंतज़ार…
Added by ARVIND BHATNAGAR on November 6, 2013 at 10:30pm — 8 Comments
मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन फअल
समझते थे उगा सूरज सवेरा हो गया ,
यहाँ तो और भी गहरा अंधेरा हो गया।
जरा सा फर्क आया क्या दिलों में एक दिन ,
सगी बहनों में तेरा और मेरा हो गया।
कभी पहले से कोर्इ तय नहीं होती जगह ,
जहाँ चाहा वहीं संतो का डेरा हो गया।
कटेगी राम जाने किस तरह से जिन्दगी ,
मगर के साथ मछली का बसेरा हो गया।
फंसा कर जाल में मानेगा ही अब तो उसे ,
सुनहरी मछली पे मोहित मछेरा हो…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on November 6, 2013 at 8:30pm — 11 Comments
नीरवता , सन्नाटा
शून्यता बस यही तो बचा था
जैसे अंतर के स्वर को
लील चूका हो बाह्य कोलाहल
रिक्त अंतर घट
कोई प्यास भी नहीं बाकी
सुप्त प्राय आत्मा…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 6, 2013 at 8:30pm — 18 Comments
Added by Ravi Prakash on November 6, 2013 at 7:11pm — 15 Comments
बह्र : रमल मुसद्दस महजूफ
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2
तंग बेहद हाथ खाली जेब है,
सत्य मेरा बोलना ही एब है,
पाँव नंगे वस्त्र तन पे हैं फटे,
वक्त की कैसी अजब अवरेब है,
( अवरेब = चाल )
जख्म की जंजीर ने बांधा मुझे,
दर्द का हासिल मुझे तंजेब है,
( तंजेब = अचकन, लम्बा पहनावा )
जुर्म धोखा देश में जबसे बढ़ा,
साँस भी लेने में अब आसेब है,
( आसेब = कष्ट )
भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,…
Added by अरुन 'अनन्त' on November 6, 2013 at 12:30pm — 32 Comments
मंगल मंगल को उड़ा ,बनकर मंगल यान
मंगल को कर कामना ,बढ़े देश की शान |
बढ़े देश की शान , नित्य ही उन्नति पायें
भारत मंगल गान , सभी दुनियां में गायें
सरिता कहे पुकार ,बढ़ो दुनियां में हरपल
हनुमन्ता का वार ,कामना करलो मंगल||
.................................................
.......... मौलिक व अप्रकाशित ..........
Added by Sarita Bhatia on November 6, 2013 at 11:31am — 10 Comments
इस नदिया की धारा में
कितने टापू हैं उभरे
कहीं हुई उथली-छिछली
तो कहीं भँवर हैं गहरे
पंख नदारद मोरों के
तितली का है रंग उड़ा
भौंरा भी अब ये सोचे…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on November 5, 2013 at 11:30pm — 20 Comments
१-डर
भयातुर आँखें
शक की नज़रों से देखती सबको
विसंगतियों और क्रूरताओं से भरा यह समाज
कब क्या कर बैठे किसे पता
२-सत्य
जीवन एक तहखाना है
हम सब कैदी
जो ईश्वर से प्यार नहीं करता
वह बार बार यहाँ पटक दिया जाता है
और जो ईश्वर से प्यार करता है
वह हमेसा के लिए मुक्त हो जाता है
३-रहस्य
ये कैसा रहस्य है
सारी उन्मनता.
सारी व्यग्रता
सारी म्लानता
तुम्हारे नेह की तरलता…
Added by ram shiromani pathak on November 5, 2013 at 10:22pm — 21 Comments
सुनो ऋतुराज- 15
सुनो ऋतुराज!!
वह एक अन्धी दौड थी
हांफती हुई
हदें फलांगती हुई
परिभाषाओं के सहश्र बाड़ो को
तोडती हुई
फिर भी वह भ्रम नही टूटा
जिसे तोडने के लिये संकल्पित थे हम
ऋतुओं का मौन यूँ ही बना रहा
सावन बरस् बरस कर सूख गया
हम अन्धड़ के वेग मे भी तने रहे
और आसक्ति का वृक्ष सूख गया
सुनो ऋतुराज
लमहों का बही खाता
जब भी खोलोगे
दग्ध ह्रदय पर लिखा
शुभलाभ अवश्य दिखेगा …
Added by Gul Sarika Thakur on November 5, 2013 at 11:30am — 11 Comments
मोहब्बत आग का दरिया भरोसा तोड़ देती है ।
खुदी आधी जलाकर ही भला क्यों छोड़ देती है ।
छलावा इस से बढ़कर ना कहीं देखा ज़माने में ।
समंदर गम के भर लाये ख़ुशी कि बूँद पाने में ।
लिए नादान सी हसरत किसी मासूम से दिल को ,
ख़ुशी का आसरा देकर ग़मों से जोड़ देती है ।
अच्छा था खुदी मेरी ये खुद में ही समा लेती ।
कहीं अपनी पनाहों में ये मुझको भी छुपा लेती ।
लुटा बैठा ये दीवाना कहाँ अपना मकां ढूढे ,
ये सबकुछ छीनकर मेरा मुझे क्यों…
Added by Neeraj Nishchal on November 5, 2013 at 10:30am — 7 Comments
1212 1122 1212 22
सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ
ज़मीं से आज उठे है धुआँ-धुआँ सा कुछ
ये ज़ोर शम्अ का है जो बुझी नही शब भर
गया करीब से तूफान बदगुमाँ सा कुछ
न जाने कौन खिरामां सफ़र में था मेरे
तमाम राह चला साथ कारवाँ सा कुछ
चिराग सा कभी, आतिशबजाँ लगे है गाह
वो टिमटिमाता अँधेरों में इक मकाँ सा कुछ
ये बदलियाँ जो हटीं चाँद भी खिला तनहा
इक अर्से बाद नज़र आया शादमाँ सा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 5, 2013 at 9:00am — 16 Comments
वो मुझे याद करता है
वो मेरी सलामती की
दिन-रात दुआएं करता है
बिना कुछ पाने की लालसा पाले
वो सिर्फ सिर्फ देना ही जानता है
उसे खोने में सुकून मिलता है
और हद ये कि वो कोई फ़रिश्ता नही
बल्कि एक इंसान है
हसरतों, चाहतों, उम्मीदों से भरपूर...
उसे मालूम है मैंने
बसा ली है एक अलग दुनिया
उसके बगैर जीने की मैंने
सीख ली है कला...
वो मुझमें घुला-मिला है इतना
कि उसका उजला रंग और…
ContinueAdded by anwar suhail on November 4, 2013 at 7:36pm — 6 Comments
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