Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 31, 2015 at 10:58pm — 8 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on December 31, 2015 at 9:40pm — 5 Comments
Added by somesh kumar on December 31, 2015 at 1:00pm — 2 Comments
Added by Abha on December 31, 2015 at 1:12am — 2 Comments
रात की सरहदें,
चाँद का दबदबा,
जिनको करने फ़तह,
है सुबह चल पड़ी
नींद के सब किले,
बाँध लो तुम ज़रा,
ख़्वाब की ज़िन्दगी,
अब बहुत कम बची
सुबह और रात में,
जंग लो छिड़ गयी,
क़त्लो-ग़ारत हुई,
रात फिर छट गयी,
लाश तारों की उफ़!,
ओस बन बिछ गयी,
रौशनी, रौशनी,
हर तरफ चढ़ गयी
जीत का जश्न फिर,
खूब दिन भर चला,
आसमां रौंद कर,
देखो सूरज चला,
कितना मगरूर था,
हाय! कितना गुमां,…
Added by Karunik on December 30, 2015 at 11:30pm — 3 Comments
122-122-122-122
.
मैं रूठा हूँ तुमसे, मना क्यूँ न लेती।
अदाओं का जादू, चला क्यूँ न लेती।।
गज़ब का नशा है जो,तेरी नज़र में।
तो हाला ये तू, आज़मा क्यूँ न लेती।।
पता है मुझे सिर्फ़, धोखाधड़ी है।
हक़ीक़त पता तू,लगा क्यूँ न लेती।।
जो डरती है हासिल,गँवाने से ग़र तू।
तो इन आंसुओं को छिपा क्यूँ न लेती।।
सुना है तेरे जिस्म में दामिनी है।
चिता पर हूँ लेटा,जला क्यूँ न देती।।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 30, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
२१२ २१२
आपका नाम था
मेरा तो जाम था
हर किसी धर्म में
प्यार पैगाम था
रब मिला ही नहीं
उससे कुछ काम था
वो ख़ुदा था कहीं
पर कहीं राम था
थी ख़ुशी ख़ास में
गम मगर आम था
प्रेम इंसानियत
अब भी गुमनाम था
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on December 30, 2015 at 7:28pm — No Comments
उस दिन जब हम मिले थे
पहली बार
हम चुप रहे
या यूँ कहो बोल ही न सके
और फिर यूँ ही मिलते रहे
तब तक
जब तक तुमने शुरु नही किया
बोलना
हालांकि मैं
बोल न सकी फिर भी
अधर थरथराये जरूर
पर खोल न सकी मुख
पर तुमने जब शुरू किया
तो जाने कहाँ से
शब्दों का समंदर उमड़ पड़ा
और मैं
उसके घात-प्रतिघात के बीच
खाती रहे हिचकोले
मंत्र-मुग्ध, आतुर, विह्वल
मैं जानती…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2015 at 4:37pm — 4 Comments
फूल बिना भौंरे का जीवन , जग में है कितना लाचार । |
जब बाग वन कहीं खिले कली , आ जाये बिकल बेकरार । |
रंग रूप ना दूरी देखे , नैनों से करता इजहार । |
खार वार कुछ भी ना देखे , जोश में आये बार… |
Added by Shyam Narain Verma on December 30, 2015 at 12:30pm — 1 Comment
1222 1222 1222 1222
सियासत काम कम करती मगर तकरार जादा अब
बुढ़ापा चढ़ गया है या पड़ी बीमार जादा अब /1
जवानी क्या खुदा ने दी फरामोशी चढ़ी सर पर
लगे कम माँ की ममता जो सनम का प्यार जादा अब /2
बहुत था शोर पर्दे में रखे हैं खूब अच्छे दिन
उठा पर्दा तो ये जाना पड़ेगी मार जादा अब /3
कहा हाकिम ने है यारो चलेगी सम विषम जब से
हुए खुश यार निर्माता बिकेंगी कार जादा अब /4
जहर लगती है मुझको तो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2015 at 11:00am — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 30, 2015 at 8:40am — 1 Comment
क्या हासिल हर किये-धरे का ?
गुमसी रातें
बोझिल भोर !
हर मुट्ठी जब कसी हुई है
कोई कितना करे प्रयास
आँसू चाहे उमड़-घुमड़ लें
मत छलकें पर
बनके आस
…
Added by Saurabh Pandey on December 30, 2015 at 2:32am — 6 Comments
पहेली दिल की सुलझाऊँ तो कैसे
मैं इससे हार भी जाऊं तो कैसे।
लिपट जातें हैं पावों से बगूले
मैं बाहर दश्त से आऊँ तो कैसे।
पुकारे आसमां बाहें पसारे
परों बिन पास मैं जाऊं तो कैसे ।
धड़कता है वो दिल में दर्द बनकर
मैं उसको भूल भी जाऊं तो कैसे ।
गुलो पर बूँद मैं शबनम की बनके
हवा में फिर से घुल जाऊं तो कैसे।
उमड़ती ज़ह्ण में ख़्वाबों की नदियां
समन्दर मुट्ठी में लाऊँ तो कैसे
बदन पर पैरहन यादों का तेरा
नज़र…
Added by सीमा शर्मा मेरठी on December 29, 2015 at 10:00pm — 13 Comments
नई हसरत नई हिम्मत नई परवाज़ देगा कल
मिटाने तीरगी सबकी नया सूरज उगेगा कल
नये सपने उगाये खेत में देखो सियासत ने
फ़लक तक कीमतें पाकर बशर बेबस हँसेगा कल
नये इस दौर में आकर हुआ नेता कलम मेरा
अधूरा छोड़ कर कल का नया वादा लिखेगा कल
किसी भी रोज दफ्तर में किया कुछ भी नहीं जिसने
कसीदे काम के पिछले सुना है वो पढ़ेगा कल
जो पिछले साल सोचे थे हुए पूरे कहाँ उसके
भुलाकर वो पुराने अब नये संकल्प लेगा…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 29, 2015 at 8:30pm — 10 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
दो घड़ी जब ठहरना नहीं आपको
तय ही है प्यार करना नहीं आपको
चाँद अम्बर पे भी चाँद छत पे भी है
कुछ भी हो है बहकना नहीं आपको
रात दिन हुस्न क्यूँ यूं संवरता फिरे
आँखों से कुछ समझना नहीं आपको
बात गुल बुलबुलों तोता मैना कि क्या
है कभी जब चहकना नहीं आपको
सूखती जूड़े में नित नयी गुल कली
खूब समझे बदलना नहीं आपको
कितना भी यूं घटाओं सा उमड़ो मगर
अब्र जैसे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 29, 2015 at 6:30pm — 8 Comments
लगे रहो तुम मेरे प्यारे, पीछे मत हटना अन्ना हज़ारे
सोलह से अनशन ज़रूर करना, अब किसी से ज़रा न डरना
क्योंकि पूरा देश तुम्हारे साथ है
पर ये और बात है,
कि मैं नहीॅं आ पाऊंगा ।
क्योंकि बिजली चोरी करते पकड़ा गया था
ज़ुर्माना भरने अदालत जाऊंगा
मज़बूरी है वर्ना ज़़रूर आता , साथ तुम्हारे नारे लगाता
गली-गली में शोर है, हर एक नेता चोर है ।।
अन्ना, मैं सत्रह को भी नहीं आ पाऊंगा
नया मकान खरीदा है, रजि़स्ट्री कराने जाऊंगा
मैं वहां मौज़ूद रहा तो दो…
Added by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 29, 2015 at 12:49pm — 2 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 29, 2015 at 9:43am — 10 Comments
Added by Samar kabeer on December 28, 2015 at 11:02pm — 8 Comments
उसे कुछ दिखाई नहीं देता
सिवा
अपने आप के
अपनी आँखों के सामने
उसने रखा है
आईना
वह रहता है आत्ममुग्ध
समझता है स्वयं को ही
सबसे सुंदर
सर्वश्रेष्ठ
उसने देखा नहीं है
कोई और चेहरा
उसे कुछ सुनाई भी नहीं देता
बंद कर रखे हैं
उसने अपने कान
वह सुनता है
सिर्फ अपने आप को ही
गूँजती है उसके कान में
अपनी ही आवाज
मानता है अपनी बात को ही
एक मात्र सत्य
चाहता है समूची दुनियाँ को
बनाना अपने जैसा
आँखों…
Added by Neeraj Neer on December 28, 2015 at 8:34pm — 3 Comments
आज 'उनका' फ़ोन आया था।फोन तो रोज ही आता था पर आज कुछ ख़ास बात कही आता उन्होंने। उन्होंने कहा,"अब शादी का दिन करीब आ रहा है थोड़ी 'डाइटिंग' कर लो। माँ कह रही थी कि स्टेज पर बैठेगी तो पतली ही अच्छी लगेगी। अभी दो महीने हैं। मैं तुम्हे 'डाइट प्लान' और योग की सीडी भेज दूँगा,प्लीज मेरे लिए करोगी न।"
शब्द घर कर गए दिल में,अब घबराहट होने लगी थी कि पतली न हुई तो 'उनकी' माँ और 'वो' क्या सोचेंगे मेरे बारे में....
अब रह रह कर माँ और भाई की बाते याद आ रही थी...कितना टोकते थे मुझे....मीठा खाने…
Added by निधि जैन on December 28, 2015 at 7:00pm — 2 Comments
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