Added by Manan Kumar singh on December 6, 2015 at 9:02pm — 1 Comment
वो अकेली बैठी रो रही थी, जंगली जानवरों से उसका रोना बर्दाश्त नहीं हुआ, वो उसके पास जाकर उसका दुःख पूछने लगे|
उसने कहा, "मैं उससे बहुत प्रेम करती हूँ, लेकिन उसे केवल मेरी खूबसूरती से ही प्रेम है, और वो ही मेरी सुन्दरता नष्ट कर रहा है, पता नहीं कैसे-कैसे रासायनिक द्रव और विष समान कचरा युक्त जल मुझे पीना होता है, उसके फैलाये धुंए से मैं क्षीण और कुरूप होती जा रही हूँ| उसके मचाये शोर से बहुत घबरा जाती हूँ, क्या करूँ?"
फिर उसने तितली से कहा, "तुम जिन फूलों पर जाती…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 6, 2015 at 8:30pm — 8 Comments
नीम तले ही खेलें
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कहाँ छाया खोजते हो तुम भी
बबूलों के जंगलों में
केवल कांटे ही बिछे होंगे ,
नुकीले , धारदार
सारी ज़मीन में
काट डालें
जला ड़ालें उसे
उनके पास है भी क्या देने के लिये
सिवाय कांटों के
चुभन और दर्द के
कुछ अनचाही परेशानियों के
होंगी कुछ खासियतें ,
बबूलों में भी
पर इतनी भी नहीं कि लगायें जायें
बबूलों के जंगल
नीम में उससे भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 6, 2015 at 8:00pm — 3 Comments
Added by मनोज अहसास on December 6, 2015 at 2:30pm — 2 Comments
राम कृष्ण की जन्मभूमि,
है कर्म-स्थली वीरों की,
भारत की पावन माटी सी,
होगी कहीं जमीन कहाँ ।
यूँ तो रंग अनेकों होंगे,
दुनिया में सब देशों के,
मगर तिरंगे के रंग जैसा,
होगा भी रंग तीन कहाँ।
शिरोधार्य कर माँ की…
Added by Ajay Kumar Sharma on December 6, 2015 at 1:36pm — 3 Comments
2122 2122 2122 212
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बेसदा बस्ती की रस्मों को निभाना था हमें
इसलिए अपनी जबानों को कटाना था हमें /1
या तो कातिल उस नगर में या बचे सब गैर थे
बोझ अर्थी का स्वयं की खुद उठाना था हमें /2
आग का दरिया मुहब्बत ताप आए हम भी यूँ
जो दिलों में जम गया वो हिम गलाना था हमें /3
भर गए सुनते थे वो ही चल दिए जो रीत कर
प्रीत घट में से भला फिर क्या बचाना था हमें /4
रास्ता यूँ तो सफर का जानते …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2015 at 5:30am — 8 Comments
ऐसे तो उसे इस घर में आये एक हफ्ता होने को आ रहा था किन्तु अभी भी वह एक अवांछित ही थी घर वालों के लिए I कसूर बस इतना था कि उसने इस घर के इकलौते बेटे के साथ प्रेम विवाह किया था I सिर्फ विवाह ही नहीं अलग रहने के बजाय वक़्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाने की आस लिए वह इस घर में भी आ गयी थी I नतीजा !! अवांछित ......I पर वह भी थी एकदम जीवट किस्म की !ठान लिया था कि जब तक सब ठीक न हो जाएगा हार नहीं मानेगी I
उस दिन वह पानी पीने के लिए किचन की ओर जा रही थी कि माँजी के कमरे से आते स्वर को सुन…
Added by meena pandey on December 6, 2015 at 1:30am — 10 Comments
"बादल !! देखो कितनी सुन्दर हरियाली , चलो हम कुछ देर यही टहलते है।"
वो देखो मानव और प्रकृति भी है .संग नृत्य करेगे।.
"बादल ने हवा का हाथ पकडते हुए गुस्से मे कहा-- चलो!! यहाँ से धरती माँ की गोद मे जहाँ सिर्फ़ प्रकृति बहन ही हो. हम वहा नृत्य करेगे".मानव तो कब का उसे छोड चुका है,बेचारी मेरी प्रकृति बहना…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on December 5, 2015 at 3:30pm — 2 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 5, 2015 at 10:42am — 11 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 5, 2015 at 9:07am — 10 Comments
122 122 122 122
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डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा
लड़ो जुगनुओं का सहारा मिलेगा /1
हमेशा नहीं यूँ अँधेरा मिलेगा
भले ही रहे कम उजाला मिलेगा /2
कहावत है तम की जहाँ बस्तियाँ हों
वहीं दीपकों का बसेरा मिलेगा /3
चलो ढूँढते हैं उसे रात भर अब
कहीं तो तिमिर का किनारा मिलेगा /4
भटक जाओ गर तुम गगन को निहारो
बताता दिशा इक वो तारा मिलेगा /5
फकत जागने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 5, 2015 at 6:00am — 14 Comments
Added by आर्यपुत्र सनी जाट स्वदेशी on December 4, 2015 at 9:50pm — No Comments
2122 1122 1122 22
किसको कितना है मिला माल,न हमसे पूछो।
हाँ! करप्शन का ये जंजाल न हमसे पूछो।
तेरे कारण हुई है, ये जो मेरी हालत है,
अब तुम्हीं आके मेरा हाल न हमसे पूछो।
ज़ेह्न-ओ-दिल से तेरी यादों को मिटा डाला,अब
बीते दिन, गुज़रे हुए साल न हमसे पूछो।
कौन आख़िर ले गया गाँव की पंचायत को,
कहाँ ग़ायब हुए चौपाल, न हमसे पूछो।
जनवरी और दिसंबर के महीने में…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on December 4, 2015 at 8:30pm — 17 Comments
सुरेखा कब से देख रही थी आज माँ-बाबूजी पता नहीं इतना क्या सामान समेट रहे है। बीच मे ही बाबूजी बैंक भी हो आए.एक दो बार उनके कमरे मे झांक भी आयी चाय देने के बहाने मगर पूछ ना पाई।
"माँ-बाबूजी नही दिख रहे ,कहाँ है.?"सुदेश ने पूछा
"अपने कमरे मे आज दिन भर से ना जाने क्या कर रहे है। मैं तो संकोच के मारे पूछ भी नही पा रही.तभी---…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on December 4, 2015 at 7:00pm — 13 Comments
Added by Rahila on December 4, 2015 at 5:35pm — 26 Comments
खूबसूरत राखी एक बेहतरीन नृत्यांगना और अभिनेत्री थी!फ़िल्म उद्योग में तीन साल से हाथ पैर मार रही थी!काम तो मिल रहा था मगर उसकी प्रतिभा के मुताविक…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 4, 2015 at 5:30pm — 15 Comments
खुशियाँ उनकी ,
आतिशवाजी की तरह छूती हैं , आसमान।
फुदकती हैं, फब्बारों सी, और
उनके अट्टहास में, अनजान, भी होते…
ContinueAdded by Dr T R Sukul on December 4, 2015 at 4:30pm — 10 Comments
गहरी नींद में सोये हुये इक्कीसवीं सदी के मानव को सपने में पता नहीं कहाँ से अलाउद्दीन का चिराग़ मिल गया। एकांत में घिस-घिस कर परेशान हो गया, चिराग़ काम नहीं कर रहा था, मानव निराश हो रहा था। ग़ुस्से में जैसे ही उसने ज़मीन पर पटका , अट्टाहास करता हुआ जिन्न प्रकट होकर बोला-
"क्या हुक़्म है आका ! "
पहले तो मानव औंधे मुंह गिरा, फिर संभलकर खड़े होकर उसने विशालकाय जिन्न से पूछा-
"क्क्क्कौन हो तुम, क्या नाम है तुम्हारा ?"
"सतरंगी विकास ! सतरंगी विकास है नाम मेरा !"
मानव ने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 4, 2015 at 3:00pm — 16 Comments
जीप में बैठते ही मन प्रसन्नता से भर रहा था। देश में वर्षों बाद वापसी , बार -बार हाथों में पकडे पेपर को पढ़ रही थी , पढ़ क्या रही थी , बार -बार निहार रही थी। सरकार ने पिछले दस साल से इस प्रोजेक्ट पर काम करके रामपुरा जैसी बंज़र भूमि को हरा -भरा बना दिया है।गाँव की फोटो कितनी सुन्दर है , मन आल्हादित हो रहा था। उसका गाँव मॉडल गाँव के तौर पर विदेशों में कौतुहल का विषय जो है ! बस अब कुछ देर में गाँव पहुँचने ही वाली थी। दशकों पहले सुखा और अकाल ने उसके पिता समेत गाँव वालो को विवश कर दिया था गावं…
ContinueAdded by kanta roy on December 4, 2015 at 3:00pm — 17 Comments
टूटी आशाएं,
बिखरा परिवार,
मैं मिट गया ।। 1 ।।
तुम्हारी खुशी,
जीं-तोड़ मेहनत,
फिर भी विफल ।। 2 ।।
बहती पवन,
विकराल रूप,
सब कुछ बंजर ।। 3 ।।
रब नाऱाज,
लहरो का कहर,
बहते आँसू ।। 4 ।।
धुँधली रेखा,
तुम्हारा आगमन,
सूर्य उदय ।। 5 ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by DIGVIJAY on December 4, 2015 at 3:00pm — 11 Comments
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